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शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

संघर्ष उनका : गर्व हमारा या शर्मिंदगी !



                               पढने में कुछ अजीब सा लग रहा है ये शीर्षक लेकिन इससे ही वो भाव उभरते हैं जो हमें कहना है और वो महसूस करते हैं। 
                                जीवन में हर इंसान टाटा या बिड़ला की तरह भाग्यशाली नहीं होता है कि चाँदी की चम्मच मुँह  में लेकर पैदा हुए हों। जब एक पीढ़ी अभावों की  बलि चढ़ती है और खुद संघर्ष करती है तब जाकर अपनी आने वाली पीढ़ी को एक सुन्दर भविष्य देने में सफल होती है।  जब अपने संघर्ष की धूप  में फसल पकती हुई देखते हैं तो उनका सीना चौड़ा हो जाता है।  उनका संघर्ष उनके और उनके बच्चों या भाइयों के जीवन में जुड़ा वह पहलू है जिसके बिना जीवन और सफलता अधूरी ही है।  जिन सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ कर आप ऊपर पहुँच रहे हैं , वे कैसे धूप  , बारिश और सर्द हवाओं में काटी गयीं है , इसका अहसास आपको होना चाहिए।  
                               लेकिन इसके भी दो पहलू हैं - कभी कभी नयी पीढ़ी अपने माता - पिता के संघर्ष को मान देते हैं और उसको अपने लिए गर्व मान कर सबके सामने स्वीकार करती है।  तभी तो बच्चे अपनी डिग्री या तमगे अपने लिए जूझ रहे अभिभावकों को समर्पित करते हैं।  सब कुछ उनका ही किया होता है , पढाई का परिश्रम , अपना उसके प्रति समर्पण और मिली हुई सफलता।  फिर अगर वे किसी को समर्पित करते हैं तो वो आँखें उस समय आंसुओं से भीगी होती हैं और कृतज्ञ मन उनके आगे नत होता है। 
                           इसका एक पहलू ये भी होता है - अपनी सफलता के बाद तथाकथित बड़े लोग , अफसर या उच्च पद पर पहुँच कर अपना रसूख बनाने वाले अपने को इसका खुद जिम्मेदार मान कर बड़ी बड़ी बातें हांकने लगते हैं क्योंकि अगर उन्होंने अपने लिए संघर्ष करने वाले के विषय में बताया तो लोग क्या कहेंगे ? लेकिन क्या हम सच को बदल सकते हैं ? माता - पिता कैसे भी हों ? कभी शर्मिंदा होने की बात तो सोचनी ही नहीं चाहिए।  क्या ये कम है कि उन्होंने आप जैसे व्यक्तित्व को जन्म दिया।  भले ही उन्होंने भर पेट न खाया हो लेकिन आपको भूखा नहीं रखा।  कुछ लोग अपने सर्किल में ये भी बतलाने में शर्म महसूस करते हैं कि उनके पिता मीलों साईकिल चला कर नौकरी पर जाते थे और फिर कहीं पार्ट टाइम काम करके खर्च पूरा कर पाते थे।  उनका भविष्य बनाने के लिए उन्होंने अपना वर्तमान होम कर दिया।  
                           मेरी अपने एक मित्र से बात हो रही थी तो वे बोले कि मेरे संघर्ष के बारे में अगर मेरे बच्चे जान लें तो विशवास ही नहीं करेंगे क्योंकि उन्होंने तो मेरा वर्तमान देखा है और अगर मैं कहूँ भी तो विश्वास नहीं करेंगे और पता नहीं जानकार क्या सोचें ? उन लोगों ने तो मुझे एक अफसर की तौर पर ही देखा है और सारी  सुख सुविधाओं  सम्पन्न।  मेरा संघर्ष तो मेरी पत्नी को भी नहीं पता है।  
                             मैंने उनसे कहा कि आप अपना संघर्ष बयान करके उनको न सही औरों के लिए  एक नसीहत दे सकते हैं क्योंकि परिश्रम और संघर्ष कभी व्यर्थ नहीं जाता है।  उन्होंने मुझे बताया कि वे एक किसान परिवार में पैदा हुए जिसमें ३ बेटे और १ बेटी थी।  आमदनी के साधन सीमित ही होते हैं गाँव में।  स्कूल  से लौट कर जानवरों के लिए चारा पानी करना।  उनके बाड़े की गोबर आदि  हटा कर सफाई करना उसके बाद रात में पढाई करता था। आगे की पढाई के लिए गाँव छोड़ना पड़ा तो एक छोटा सा कमरा लिया।  खाना बनाना , बरतन धोना , कपडे और सफाई सब के बाद पढाई होती थी।   लालटेन की रौशनी में पढाई करनी होती थी।  जब अफसर बन गया तब लोगों ने जाना।  तब तक घर स्थिति भी ठीक हो गयी थी।  
                           मेरी पत्नी , ससुराल वाले और बच्चे सबने ऐसे ही देखा अगर कहूँ  विश्वास नहीं करेंगे और फिर न जाने क्या सोचें ? मेरा अतीत किसी पुरानी पत्रिका की तरह रद्दी का ढेर में कहीं दब गयी है। ये तो वह पक्ष है जिसे किसी ने जाना ही नहीं है। 
                           दूसरे पक्ष में नलिन जैसे लोग - बहुत बड़ी कंपनी में इंजीनियर।  रोज ही घर पर पार्टियां  हुआ करती हैं लेकिन अपने घर वालों को कभी शामिल ही नहीं किया।  ओहदा देख कर पत्नी के परिवार वालों ने विवाह कर दिया और वह भी बड़े घर के लोग।  अपने किसान पिता के बारे में किसी को क्या बताया जाय ? पार्टी में तो साले , सालियां शामिल होते , इष्ट मित्र होते।  बहन , भाई और माता पिता  उस श्रेणी में आते ही नहीं थे।  न पार्टी तौर तरीकों से वाकिफ और न वैसी महँगी ड्रेसेस का खर्च उठाने वाले।  छोड़ दिया उन सबको।  उसका बचपन से लेकर इंजीनियर बनाने तक का सफर  एक बदनुमा दाग है जिसको वह देखना ही नहीं चाहता है।  
                            आज नलिन जैसे लोग बहुत हैं और हमारे मित्र जैसे संकोची भी।  ये तो हमारे संस्कारों पर निर्भर करता है कि हम अपने अतीत को कैसे स्वीकार करते हैं।  अपने माता पिता के संघर्ष को मान देकर गर्व महसूस करते हैं या फिर उन्हें अपना काला अतीत मान कर शर्मिंदगी महसूस करने के साथ  उस पर मिटटी डाल कर दफन कर देते हैं।  
                                                  
           
                                 

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