tag:blogger.com,1999:blog-2168614474878860491.post8402933451171074234..comments2024-02-08T02:17:06.745-08:00Comments on मेरा सरोकार: समाज क्या कहेगा ? रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-2168614474878860491.post-7638377216353407902016-10-22T19:36:42.482-07:002016-10-22T19:36:42.482-07:00बहुत ही सुन्दर आलेखबहुत ही सुन्दर आलेखshailendra pratap singh Raghavhttps://www.blogger.com/profile/17623292598598604951noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2168614474878860491.post-48255368091871969952013-08-12T09:07:01.768-07:002013-08-12T09:07:01.768-07:00लोगों का तो काम है...कहना...लोगों का तो काम है...कहना...Vaanbhatthttps://www.blogger.com/profile/12696036905764868427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2168614474878860491.post-74355246634725471412013-08-12T08:03:29.313-07:002013-08-12T08:03:29.313-07:00सारगर्भित आलेख...सारगर्भित आलेख...रश्मि शर्माhttps://www.blogger.com/profile/04434992559047189301noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2168614474878860491.post-74921147481831840502013-08-12T06:49:53.288-07:002013-08-12T06:49:53.288-07:00बिलकुल सही तर्क दिये हैं ... सार्थक लेख । बिलकुल सही तर्क दिये हैं ... सार्थक लेख । संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2168614474878860491.post-75698372234528887872013-08-11T01:56:20.820-07:002013-08-11T01:56:20.820-07:00समाज को कहने दीजिये की सोच कूट कूट कर आत्मसात करनी...समाज को कहने दीजिये की सोच कूट कूट कर आत्मसात करनी होगी, इससे तभी उबर पायेगा ये सामाज. .इसकी जितनी परवाह की जाएगी ये उतना ही कहेगाAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/18094849037409298228noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2168614474878860491.post-35696554077741669082013-08-11T00:51:08.344-07:002013-08-11T00:51:08.344-07:00सारगर्भित ...
समाज में हर तरह के लोग अपने अनुसार ...सारगर्भित ... <br />समाज में हर तरह के लोग अपने अनुसार समाज को प्रभावित करते रहते हैं .. पर कुछ लोग नए नियम भी बनाते हैं जिसको समाज फोल्लो करता है ... ऐसा कुछ करने में ही सार्थकता है ... दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2168614474878860491.post-9852212954502224042013-08-10T16:46:07.656-07:002013-08-10T16:46:07.656-07:00दुर्बल-मना लोग समाज से भयभीत रहते हैं जब कि स्वस्थ...दुर्बल-मना लोग समाज से भयभीत रहते हैं जब कि स्वस्थ सबल मना कुछ नये मानदंड स्थापित करते हैं.<br />प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2168614474878860491.post-81650434508648429782013-08-10T11:37:14.287-07:002013-08-10T11:37:14.287-07:00आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [12.08.2013]
...आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [12.08.2013]<br /><a href="http://charchamanch.blogspot.in/" rel="nofollow">चर्चामंच 1335 पर </a><br />कृपया पधार कर अनुग्रहित करें <br />सादर <br />सरिता भाटिया Guzarishhttps://www.blogger.com/profile/11205127840621066197noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2168614474878860491.post-37255321443727798342013-08-10T11:12:33.091-07:002013-08-10T11:12:33.091-07:00सच कहा आपने समाज बना तो हमसे ही है पर अब हम हर पल ...सच कहा आपने समाज बना तो हमसे ही है पर अब हम हर पल उससे डरते ही रह जाते हैं ......निवेदिता श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/17624652603897289696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2168614474878860491.post-80304805071087482072013-08-10T07:39:32.128-07:002013-08-10T07:39:32.128-07:00बहुत सारगर्भित आलेख...बहुत सारगर्भित आलेख...Kailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2168614474878860491.post-68934419444162140852013-08-10T07:18:18.031-07:002013-08-10T07:18:18.031-07:00कालिदास जैसे विद्वान को भी स्थापित होने में बडा सं... कालिदास जैसे विद्वान को भी स्थापित होने में बडा संघर्ष करना पडा, यहॉं तक कि उन्हें यह कहना पडा कि " पुराणमेतद् नहि साधु सर्वम् ।" अर्थात् जो मान्यता प्राचीन काल में थी, आवश्यक नहीं है कि वह सब सही हो, वह गलत भी हो सकती है । कालिदास को लोग बहुत गाली देते थे । वे लोगों से कहते थे कि तुम मुझे गाली दो, मुझे बहुत मज़ा आता है -" ददतु-ददतु गालीम्...।" निष्कर्ष यह कि सदैव परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्व दें उसके बाद -"कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना ----।" शकुन्तला शर्माhttps://www.blogger.com/profile/12432773005239217068noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2168614474878860491.post-90060264818031997072013-08-10T06:01:57.383-07:002013-08-10T06:01:57.383-07:00जो भी कहेगा, कभी कभी सुन लेना चाहिये।जो भी कहेगा, कभी कभी सुन लेना चाहिये।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com