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गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

दहशत के बीच : दोषी कौन ?

                        हम इस इलाके में पिछले २४ साल से रह रहे हैं और जब यहाँ आये थे तब भी एक तरफ मुस्लिम बाहुल्य इलाका था और दूसरी और मिले जुले लोग रहते हैं और हम बड़ी शांति से रह रहे थे।  वर्षों से यहाँ ताजिए उठते हैं तो साथ में हिन्दू जाते हैं और रामनवमी के रथ के साथ मुस्लिम भी होते हैं।  कभी इसमें साउंड बॉक्स हिन्दू ले कर जाते हैं और कभी मुस्लिम।  कभी कोई शिकायत नहीं थी।  एक दूसरे के सुख में हम शामिल भी होते रहे हैं।  चाहे उनके यहाँ गम हो या ख़ुशी या हमारे यहाँ।  
                        फिर अचानक इतने सालों के बाद परसों एकदम क्या हुआ कि यहाँ पर रामनवमी की शोभा यात्रा ख़राब सड़क के कारण  दूसरी सड़क से ले जा रहे थे तो एक बुजुर्ग सज्जन रास्ते में लेट गए कि हम यहाँ से ये जुलूस  नहीं निकलने देंगे क्योंकि हमारे ताजिये यहाँ से गुजरते हैं और दूसरे कई लोग जुलूस के पीछे की तरफ से रास्ता रोक रहे थेकि यहाँ से वापस नहीं गुजरने देगें । फिर पत्थरबाजी और मकानों से गरम पानी नीचे लोगों के ऊपर फेंकने लगी घरों की महिलायें।  फिर हालात बिगड़ने में देर  कहाँ लगती है ? यद्यपि कुछ पुलिस के सिपाही उस रथयात्रा के साथ थे लेकिन वे अपर्याप्त थे। खबर आग की तरह तेजी से पूरे इलाके में फैल गयी और वह भी फैलते फैलते  कुछ से कुछ बन गयी । खबर उस जुलूस में दो बच्चों की हत्या तक पहुँच चुकी थी और सारा इलाका सन्नाटे में था।  अफवाह फैलाने के लिए अब तो हमारे पास मोबाइल का सबसे तेज साधन भी है और आप उसे पकड़ भी नहीं सकते हैं।   आनन फानन में पुलिस के आला अफसर डी एम , एस पी सब आकर स्थिति को सम्भालने में लग गए।  उनके रहते भी उस दिन जहाँ भी मौका मिला गरीबों की दुकाने जला दी गयीं।  जानते हैं किन लोगों की -- एक विकलांग जो साइकिल के पंचर जोड़ कर अपना परिवार पाल रहा था।  उसकी दुकान बांस के टट्टर के नीचे लगा रखी थी . एक गरीब ने बैंक से कर्ज लेकर बक्शे बनाने की दुकान खोल रखी थी , अपनी दो बेटियों के साथ घर में चैन से रह कर नमक रोटी ही सही खा रहा था ।  पुलिस की एक गाड़ी में आग लगा दी। 
                        हम इस दहशत में जी रहे थे - क्योंकि घर के पुरुष लोग अपने काम से बाहर ही थे।  सबको आगाह  किया गया कि दूसरे रास्ते से आइये लेकिन आना तो अपने घर ही था न।  जब तक घर पहुंचे नहीं जान गले में अटकी थी और आने पर बताया कि थोड़ी दूर पर जोर की आग भड़क रही थी।  उस समय तो अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता था कि किसी गरीब के पेट बुझाने के साधन धू धू कर जला दिए थे।  

                         इस के पीछे कौन है ? एक फेरी वाला , कबाड़ वाला , या फिर रोज के रोज कमाने वाले लोग क्या ऐसे कदम उठा सकता है ? नहीं इनको भड़काने वाले और इनके पीछे के मास्टर माइंड कोई और हैं।  आखिर ये लोग चाहते क्या हैं ? एक दिन गुजर गया और पुलिस के साये में पूरा का पूरा इलाका जी रहा था और फिर देखिये हिम्मत पुलिस की तलाशी के दौरान उन पर बम फोड़े गए।  पथराव किया गया , डीएम तो बाल बाल बच गयी लेकिन वे भी अपने दायित्व के साथ वहाँ पर डटी ही रहीं।  दूसरे दिन भी छुटपुट वारदात होती रहीं। दुकाने भी जलाई गयीं और बमबाजी भी की गयी।   वो सड़कें जो सारे दिन गुलजार रहती थीं सुनसान रहीं।  कोई सब्जी वाला नहीं , दूध की गाड़ी नहीं और मार्किट ही नहीं बल्कि छोटी बड़ी दुकानों के साथ बाज़ार बंद कर दी गयीं।  १४४ धारा लगा दी गयी।  
                           ये चुनाव के पहले दहशत फैलाने से किसका फायदा होने वाला है ? ये जातिवाद की आग भड़काने वाले कौन हैं ? स्थानीय लोग तो बिलकुल भी नहीं है।  जरूरी सेवाओं वाले लोग घर में नहीं बैठ सकते हैं - फिर उनके घर वाले कैसे रह रहे हैं ? स्थिति नियंत्रण में है , लेकिन हमारे मन नियंत्रण में कब रहते हैं ?  हम एक दूसरे के लिए अपने मन में एक छुपा हुआ शक देख रहे हैं।  एक चोर हमारे मन में है कि कहीं दूसरा इसमें हमें भी तो दोषी नहीं समझ रहा है ? हम कब इन दंगों से मुक्त हो पाएंगे और ये अराजकतत्व कब तक गरीबों के मुंह से निवाला छीनने की साजिश रचते रहेंगे ? नहीं मालूम फिलहाल अभी भी स्थिति तनावपूर्ण किन्तु नियंत्रण में होने की घोषणा कर रही है।  

8 टिप्‍पणियां:

  1. चूल्हा जला कर रोटी सेकी जाती थी कभी
    अब तो बोटी जला कर गोटी फिट करते हैं
    इस चुनाव पद्धति से मुझे नफरत इसी वजह से है

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  2. दीदी, राजनीति का यह स्वरूप दिन पर दिन खतरनाक होता जा रहा है...जानलेवा भी

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  3. स्थानीय लोग कहने में नहीं आते तो यह सब संभव नहीं था .रास्ते पर लेट जानेवाले बुज़ुर्ग और पीछे से रास्ता रोकनेवाले कहाँ के थे? .घरों से गर्म पानी फेंकनेवालियाँ कहाँ की थीं ?ये लोग परायों का साथ क्यों दे रहे थे!
    दोषी कौन है ?

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  4. दहशत फ़ैलाने वालों का एक तरह से यह धंधा ही है। आम जनता को अपनी रोजी रोटी से फुर्सत कहाँ मिलती है

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  5. ये भी राजनीति‍ है....गंदी..जि‍ससे बर्बाद र्सि‍फ गरीब होता है...

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  6. धर्म का जुनून अफीम की तरह लोगों की सुधबुध भुला देता है। सही विचार करने की समझ जाती रहती है। इसी का फायदा उठाते हैं राजनीति बाज जिनका अपना कुछ नही जाता।

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