वह कथोक्ति है न कि जो दूसरों के लिए कुआँ खोदता है ईश्वर उनके लिए खाई खोद कर तैयार कर देता है, लेकिन ये कहावतें त्रेता , द्वापर या सतयुग में चरितार्थ होती होंगी। अब तो दूसरों को मौत बेचने वाले किसी जेल में नहीं बल्कि मखमली सेजों पर सोते हैं । उनपर हाथ डालने की हिम्मत किसी नहीं है । बड़े बड़े व्यापारी , ठेकेदार , इंजीनियर , विधायक और सांसद आदि इसमें आते है ।
..ये मौत के सौदागर कैसे है ? कहीं पुल गिरते हैं , कहीं फ्लाईओवर बनने से पहले ढह जाते हैं। उनमें होने वाली मौतों से प्रभावित लोग उन्हें दुआ तो नहीं देते होंगे । बड़े बड़े ठेके दिये जाते हैं । टेण्डर निकलने से पहले सौदेबाजी हो जाती है और भुगतान से पहले अलग चढ़ौती चढ़ानी पड़ती है । ठेकेदार मिलावट नहीं करेगा तो बच्चों को क्या खिलायेगा ? लेकिन ये कितने जीवन ले जाता है कोई नहीं जानता है ।
अब आते हैं खाने वाली चीजों में होने वाली मिलावट पर और फल और सब्जियों में प्रयोग होने वाले रसायनों पर ।
कुछ दिन पहले पढ़ा कि CSIR के एक अधिकारी की मृत्यु लौकी का रस पीने से हो गयी । ये आयुर्वेद चिकित्सा की औषधि है और इसमें गलत कुछ भी नहीं है, हाँ कुछ ऐसी मानसिकता वाले लोगों ने इसे दूषित करने की कसम खाई है. जो प्राकृतिक चिकित्सा की औषधियों को भी जहर बना रहे हैं ।
कानपुर में गाँव से दूध वालों के डिब्बों को पकड़ा गया तो सब डिब्बे छोड़ कर भाग गए क्योंकि उस दूध में यूरिया, सर्फ और फार्मोलीन मिला हुआ होता है, जो किसी विष से कम घातक नहीं है । ये भी मौत परोस रहे है। दूध वाले जानवरों को ऑक्सोटोसिन इंजेक्शन लगा कर दूध की एक एक बूँद निचोड़ लेते है तो क्या उस दूध को प्रयोग करने वाले उस रसायन का दुष्प्रभाव से बचे रहेंगे ।
हम सभी इस बात से वाकिफ हैं कि हरी सब्जियों में विशेष रूप से लौकी, तरोई , खीरा, तरबूज, और खरबूजे में किसान ऑक्सीटोसिन के इंजेक्शन लगाकर रातोंरात बड़ा करके बाजार में लाकर बेच लेते हैं। ये ऑक्सोटोसिन भी जहर ही है। हरी और मुलायम सब्जियां सबको आकर्षित करती हैं और हम सभी उस जहर को जज्ब करते रहते हैं और फिर एक दिन -
*बहुत दिनों से पेट में दर्द की शिकायत थी , पता चला की कैंसर है।
*भूख नहीं लगती थी, पेट भारी रहता था लीवर सिरोसिस निकला।
*इसी से पीलिया, आँतों में सूजन और पता नहीं कितनी घातक बीमारियाँ एकदम प्रकट होती है. फिर
उनका अंजाम कुछ भी होता है ।
सिर्फ यही क्यों? परवल , भिण्डी हरे रंग से रंगे हुए मिलते है । मसालों में बराबर मिलावट पकड़ी जाती है । आटा , तेल , घी , खोया जैसे खाद्य पदार्थों में मिलावट एक आम बात हो चुकी है और उसको जहरीला बनाने वाले लोग हम में से ही तो होते हैं। सिर्फ धनवान बनने की चाहत में जहर बो रहे हैं और इन चीजों से दूर रहने वाला आम आदमी इस जहर को अपने शरीर में उतार रहा है और उसके दुष्परिणामों को भी झेल रहा है .
फलों की बात करें त़ो केले , आम कार्बाइड से पका कर बेचने की जल्दी किसी के लिए मौत जल्दी बुला देते हैं । सेब को अधिक ताजा दिखाने के लिए मोम की परत चढ़ा कर चमकीला और ताजा दिखाया जाता है । उसको आम इंसान ही खाता है और फिर धीरे धीरे अपनी रोगों से लड़ने की क्षमता खोने लगता है । मैं स्वयं इसको देख चुकी हूँ - एक तरबूज लेकर आयी और घर में उसको काटा तो उसमें से लाल की बजाय सफेद पानी निकल रहा था और तरबूज से बदबू आ रही थी , इंसान तो क्या जानवर को भी देने लायक नहीं था?
वे जो ऑक्सीटोसिन का इंजेक्शन लगा कर जानवरों से दूध निकाल रहे हैं या सब्जियां उगा रहे हैं , फलों को जल्दी बड़ा करके बाजार में ला रहे हैं। वे इस ख्याल में हैं कि अपनी चीजों को प्रयोग नहीं करेंगे लेकिन यह भूल जाते हैं कि सारी वस्तुएं वे ही नहीं बना सकते हैं और उनके भाई बन्धु उनके लिए भी जहर परोस रहे हैं , जिसको वे निगल रहे हैं। इस बात से अनजान तो नहीं हो सकते हैं, फिर क्यों मानव जाति के दुश्मन अपनी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए ये जहर खा और खिला रहा है। वह क्या सोचते हैं कि इस जहर से बच जायेंगे? क्या धनवान बनने से वे दूसरों के खिलाये जा रहे जहर से ग्रसित होकर खून की उल्टियाँ नहीं करेंगे?
क्या वे कैंसर से ग्रसित नहीं होंगे?
पक्षाघात या हृदयाघात का शिकार नहीं होंगे?
हमारे बच्चे क्या इसकी पीड़ा नहीं झेलेंगे?
अगर वे इस बात से इनकार कर रहे हैं या अनजान हैं तो कोई बात नहीं. लेकिन ऐसा कोई भी चोर नहीं होता कि अपने किये अपराध की सजा न जानता हो. जब तक नजर से बचा हैं तो सफेदपोश और जिस दिन ये भ्रम टूट गया तो इससे बच वे भी नहीं सकते .हाँ ये हो सकता है कि पैसे के बल पर वे इन रोगों से लड़ सकते हैं लेकिन उस पीड़ा को उनकी तिजोरियों में रखा हुआ धन नहीं झेलेगा और क्या पता वह भी मौत से हार जाये और आप खुद अपने ही हाथों मौत परोस कर खुद ही उसके शिकार हो जाएँ.
इस जहर से कोई नहीं बच सकता है. अगर हम नहीं बचेंगे तो ये मौत के सौदागर भी नहीं बचेंगे.