मेरा सरोकार

ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जब भी और जहाँ भी ये अनुभव होता है कि इसको तो सबसे बांटने और पूछने का विषय है, सब में बाँट लेने से कुछ और ही परिणाम और हल मिल जाते हैं. एकस्वस्थ्य समाज कि परंपरा को निरंतर चलाते रहने में एक कण का क्या उपयोग हो सकता है ? ये तो मैं नहीं जानती लेकिन चुप नहीं रहा जा सकता है.

शुक्रवार, 6 जून 2025

नया स्टार्ट अप!

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           फेसबुक अब पूरी तरह से ठगने के विज्ञापनों से भर चुकी है, इसमें काम करने वाले तथाकथित लेखक, पब्लिशर भी है । उनके नाम बड़े हैं या नह...
सोमवार, 31 मार्च 2025

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 मायके के चंद घंटे ! (3)                                            उरई की संक्षिप्त यात्रा में सबसे ज्यादा प्रतीक्षित मुलाकात मुझे करनी थी ...
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मायके के चंद घंटे (2)

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      मायके के चंद घंटे (2)                                   मायके का सफर अभी ख़त्म नहीं हुआ था क्योंकि वह तो पहुँचने के कुछ घंटे बाद से सोन...

मायके के चंद घंटे !

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                              मायके के चंद दिन हों या फिर चंद घंटे - कितना सुख देते हैं और कितने वर्षों पीछे ले जाकर एक बार फिर जीने का मौका...
गुरुवार, 3 अक्टूबर 2024

कर्म का धर्म !

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   कर्म का धर्म !                                                 जीवन में जो कर्म इंसान करता है और उसके फल भी संचित होते है लेकिन इन कर्मों...
बुधवार, 18 सितंबर 2024

श्राद्ध और श्रद्धा !

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                     श्राद्ध और श्रद्धा !                                      हर बार श्राद्ध के पंद्रह दिनों में खूब चर्चा होती है कि जीते ...
शनिवार, 14 सितंबर 2024

हिन्दी का स्वरूप !

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                                                                        हिन्दी  का स्वरूप !                   हिन्दी दिवस पर बहुत कुछ लिखा ...
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मेरे बारे में

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रेखा श्रीवास्तव
मैं अपने बारे में सिर्फ इतना ही कहूँगी कि २५ साल तक आई आई टी कानपुर में कंप्यूटर साइंस विभाग में प्रोजेक्ट एसोसिएट के पद पर रहते हुए हिंदी भाषा ही नहीं बल्कि लगभग सभी भारतीय भाषाओं को मशीन अनुवाद के द्वारा जन सामान्य के समक्ष लाने के उद्देश्य से कार्य करते हुए . अब सामाजिक कार्य, काउंसलिंग और लेखन कार्य ही मुख्य कार्य बन चुका है. मेरे लिए जीवन में सिद्धांत का बहुत बड़ी भूमिका रही है, अपने आदर्शों और सिद्धांतों के साथ कभी कोई समझौता नहीं किया. अगर हो सका तो किसी सही और गलत का भान कराती रही यह बात और है कि उसको मेरी बात समझ आई या नहीं.
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