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बुधवार, 22 अगस्त 2012

कोटे की राजनीति !

                   हमारे देश में कोटे (आरक्षण ) की राजनीति संविधान में जिस आधार पर शुरू की गयी थी,  उस समय देश के हालत ऐसे थे कि उनको उस दलदल से निकालना  था इसमें वे सदियों से धंसे हुए थे। लेकिन उसको भुनाने में सिर्फ कुछ लोग ही सफल हो पाए और जो नहीं हो पाए वे आज भी उन्हीं हालातों में जी  रहे हैं . 
                       ये कोटा एक हथियार बना कर थमा दिया गया है और जिनके हाथ में ये है वे उसका नाजायज फायदा उठा रहे हैं क्योंकि सरकार ने उनके लिए स्थान सुरक्षित रखे हैं लेकिन उसमें योग्यता की कोई सीमा निर्धारित नहीं की है . उन्हें कोटे में पास भी किया जा  रहा है . उनमें कितनी योग्यता है इस बात की हमें न शिक्षा में आरक्षण देते समय देखा और न नौकरी के समय। वहां भी उन्हें छूट है। 
                    शिक्षा और ज्ञान अर्जित किये जाते हैं और इनमें समझौता उनको ही कमजोर ही नहीं बना रहा है बल्कि अपने देश के ज्ञान और उपलब्धियों को दांव पर लगा दिया गया है। सरकार उन्हें सुविधाएँ दे और उनके लिए आरक्षण भी दे , लेकिन उस समय ज्ञान या योग्यता के लिए कोटा न निर्धारित करे। पद पर आरक्षण हो सकता है लेकिन उन पदों के लिए जो अहर्ता निर्धारित की गयी हैं वो सभी में समान रूप से होनी चाहिए. सरकारी नीतियां उन लोगों को अकर्मण्य और बिना परिश्रम के अर्जन के लिए आदी बना रहा है। उनके अन्दर ये भाव भर चुका  है कि उन्हें किसी भी परीक्षा में सफलता ज्ञान के आधार पर नहीं बल्कि आरक्षण के आधार पर मिल ही जाएगी 
                   एक ताजातरीन उदाहारण देखने को मिला -- सरकार द्वारा प्रस्तावित निःशुल्क  'ओ' लेवल के कंप्यूटर कोर्स के लिए अभ्यर्थियों को बुलाया गया था। वे सभी कम से कम इंटर पास और स्नातक से परास्नातक तक के बच्चे थे। उसमें कोई और जा नहीं सकता इसी विश्वास के साथ सभी आये थे।  लेकिन उनका साक्षात्कार के समय जो ज्ञान देखा गया तो लगा कि हम उन्हें उपहार में नौकरी और शिक्षा देकर अकर्मण्य  बना रहे हैं। सब ऐसे हों ऐसा नहीं है लेकिन जो इसका सिर्फ लाभ उठाना चाहते हैं और प्रयास नहीं करना चाहते हैं ये बात उन पर ही लागू होती है। 
कुछ सवालों और उनके उत्तरों की बानगी देखिये --
  1. ब्रह्मपुत्र नदी उत्तर प्रदेश में बहती है।
  2. सानिया मिर्जा टेबल टेनिस की खिलाडी हैं और पी टी उषा कुश्ती की। 
  3. उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला  मुख्यमंत्री मायावती थी।
                          इस तरह के काफी प्रश्न थे, जिनके उत्तर उन लोगों ने गलत दिए। हम क्या सोच सकते हैं ? ऐसे लोगों को क्या सिर्फ इस लिए प्रवेश या ये मुफ्त प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए जिन्हें कि सामान्य ज्ञान के नाम पर वर्तमान के विषय में भी जानकारी न हो। जिनका सामान्य ज्ञान शुन्य के लगभग हो। यही आज नहीं तो कल आगे बढ़ेंगे और फिर कोटे के आधार पर प्रोन्नति पाकर उच्च पदस्थ अधिकारी भी बनेगे . ये सीनियर डॉक्टर बनेंगे और इंजीनियर बनेगे और देश की उन्नति में अपना सहयोग भी करेंगे . अगर उनके समक्ष एक मेधावी इस कोटे का न हुआ तो वह तो जूनियर ही रहेगा और फिर उसके कामों को कोई कैसे आंक सकेगा?  उच्च पदों पर काम करने के लिए ज्ञान और मेधा की जरूरत होती है और इसमें कोई भी आरक्षण उस पद की गरिमा और उसकी जिम्मेदारियों को उठाने में सक्षम व्यक्ति को नहीं खोज सकता है।  उस पद के लिए सिर्फ और सिर्फ योग्य व्यक्ति की जरूरत होती है। आश्चर्य तो इस बात का होता है कि राजनीति  में सभी प्रबुद्ध और अनुभवी लोग हैं और फिर भी राजनीति के स्वार्थ के तहत ऐसे प्रस्ताव संसद में लेकर आते हैं और कोई एक दल नहीं बल्कि सभी इस तुरुप के पत्ते को भुनाने में लगे रहते हैं। कभी दलित और कभी अल्पसंख्यक  और कभी पिछड़े के नाम पर राजनीति की  है। जब की हर इंसान इस बात को अच्छी तरह से समझता है कि जिन्हें वाकई इसकी जरूरत है वे कभी इसका लाभ नहीं ले पाए हैं और न ले पायेंगे . मेरे ख्याल से तो तकनीकी शिक्षा , चिकित्सा आदि महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कोटे से नहीं बल्कि योग्य को मापदंड बनाया  जाना चाहिए। उनके स्थान तो आरक्षित  हों लेकिन उसकी अहर्ताओं में किसी प्रकार का समझौता नहीं किया आना चाहिए। चयन में भी यही होना चाहिए। अयोग्य व्यक्ति को यह लाभी देकर हम अपने आप को ही कमजोर  कर रहे हैं।

4 टिप्‍पणियां:

  1. तकनीकी शिक्षा , चिकित्सा आदि महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कोटे से नहीं बल्कि योग्य को मापदंड बनाया जाना चाहिए। उनके स्थान तो आरक्षित हों लेकिन उसकी अहर्ताओं में किसी प्रकार का समझौता नहीं किया आना चाहिए।
    बिल्‍कुल सही कहा है आपने ... सार्थकता लिए सशक्‍त लेखन ...आभार

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  2. स्वयं को और कमजोर करने का प्रयास है..

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  3. वोट की राजनीति के आगे देश हित की चिंता किसे है !

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