गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

श्रमिक दिवस ! (कानपुर के संदर्भ में )


                 आज का दिन  कितने नाम से पुकारा जाता है ? मई दिवस , श्रमिक दिवस और महाराष्ट्र दिवस।  अगर विश्व के दृष्टिकोण  देखें तो मजदूर दिवस ही कहा जाएगा।  हम कितने उदार हैं ? हमारा दिल भी इतना बड़ा है कि हमने पूरा का पूरा दिन उन लोगों के नाम कर दिया।  सरकार ने तो अपने कर्मचारियों को छुट्टी दे दी लेकिन क्या वाकई ये दिन उन लोगों के लिए नहीं तय है जो अनियमित मजदूर हैं।  इस दिन की दरकार तो वास्तव में उन्हीं लोगों के लिए हैं - चाहे वे रिक्शा चला रहे हों या फिर बोझा ढो रहे हों।   आज के दिन मैं कानपुर की बंद मिलों और उनके मजदूरों की याद कर उनके चल रहे संघर्ष को सलाम करना चाहूंगी।         
               कभी कानपुर भारत का मैनचेस्टर कहा जाता था और यहाँ पर पूरे उत्तर भारत से मजदूर काम करने आते थे और फिर यही बस गए। कहते हैं न रोजी से रोजा होता है। यहाँ पर दो एल्गिन मिल, विक्टोरिया मिल , लाल इमली , म्योर मिल , जे के कॉटन मिल , स्वदेशी कॉटन मिल , लक्ष्मी रतन कॉटन मिल , जे के जूट मिल और भी कई मिलों में हजारों मजदूर काम करते थे। रोजी रोटी के लिए कई पालिओं में काम करते थे। सिविल लाइन्स का वह इलाका मिलों के नाम ही था। रोजी रोटी के लिए यहाँ पर काम करने वाले मजदूर या बड़े पदोंपर काम करने वाले अपने गाँव से लोगों को बुला बुला कर नौकरी में लगवा देते थे। जिस समय शाम को मिल का छुट्टी या लंच का हूटर बजता था तो मजदूरों की भीड़ इस तरह से निकलती थी जैसे कि बाँध का पानी छोड़ दिया गया हो। ज्यादातर मजदूरों का प्रयास यही रहता था कि मिल के पास ही कमरा ले लें।वह समय अच्छा था - मेहनत के बाद पैसा मिलता तो था कोई उसमें बिचौलिया तो नहीं था। 

बंद पड़ी एल्गिन मिल

                            वह मिलें बंद हुई , एक एक करके सब बंद हो गयीं। वह सरकारी साजिश थी या कुछ और मजदूर सड़क पर आ गए कुछ दिन उधार लेकर खर्च करते रहे इस आशा में कि मिल फिर से खुलेगी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। वे अपनी लड़ाई आज भी लड़ रहे हैं , कितने दुनियां छोड़ कर जा चुके हैं और कितने उस कगार पर खड़े हैं। मजदूरों की पत्नियां घरों में काम करके गुजर करने लगीं। कभी पति की कमाई पर बड़े ठाठ से रहती थीं। 
                            इन सब में लाल इमली आज भी कुछ कुछ काम कर रही है और मजदूर काम न सही मिल जाते जरूर हैं। इस उम्मीद में कि हो सकता है सरकार फिर से इन्हें शुरू कर दे. इनका कौन पुरसा हाल है।



एल्गिन मिल खंडहर हो रही है और सरकार उसकी बिल्डिंग को कई तरीके से प्रयोग कर रही है लेकिन उस बंद मिल के मजदूर आज भी क्रमिक अनशन पर बैठे हुए हैं। कितनी सरकारें आई और गयीं लेकिन ये आज भी वैसे ही हैं। यह चित्र बयान कर रहा है कि उनके अनशन का ये 3165 वाँ दिन है।बताती चलूँ मैंने भी  इस मिल के पास सिविल लाइन्स में कुछ वर्ष गुजारे हैं। वर्ष १९८२-८३ का समय मैंने इन मजदूरों के बीच रहकर गुजारा है। तब उनके ठाठ और आज कभी गुजरती हूँ वहां से सब कुछ बदल गया है। मिलें खंडहर में बदल चुकी है ।

कभी जवान थे वक्त ने हड्डी का ढांचा बना के रख दिया
                              

         
वीरान पड़ा म्योर मिल का प्रवेश द्वार


13 टिप्‍पणियां:

  1. मजदूर दिवस को सार्थक करती सुन्दर प्रस्तुति।

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  2. मजदूरों की व्यथा और बंद मिलें । सोचने को मजबूर करता है मजदूर दिवस पर । अच्छा आलेख ।

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  3. उत्तर
    1. लाल इमली में कुछ होता है मजदूर जाते हैं और कभी कभी उन्हें पैसे भी मिल जाते हैं । एक रिशतेदार का बेटा है ।

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  4. आज के दिन मेरी पढ़ी हुई सबसे बेहतरीन और सार्थक पोस्ट दीदी । बहुत ही सामयिक और सटीक , सच को सच जैसा लिख दिया आपने ।
    मजदूर और मजबूर एक ही पर्याय हैं युगों से ।

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  5. आप सभी अगर पोस्ट पढ़ते रहें तो लिखना सार्थक हो जाय ।

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  6. बेहद दुख की बात है, पर यह मिल बंद क्यों कर दी गई?

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  7. श्रमिकों का जीवन शायद ही बदल पाए । उनका समस्त जीवन अंगारों पर सफ़र जैसे रहा

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  8. चित्र देखकर पीड़ा हुई. काश अभी भी सरकार इन मीलों को फिर से शूरू कर दे. लाखों लोगों को रोज़गार वापस मिल सकेगा.

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  9. ऐसा ही होता है ... मुनाफा निकाल के बन्द हो जाती हैं जगह ... मजदूर वाही रह जाता

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  10. एक बेहतरीन पोस्ट ,पढ़ते पढ़ते कानपुर के बारे में इतना जानने को मिला ,मजदूरों की स्थिति कब सुधरेगी पता नही ,अजय जी ने सही कहा ये सार्थक पोस्ट है दीदी ,मातृदिवस की बधाई ,सम्पूर्ण जगत की माओ को नमन ,माँ है तो जहां है ,माँ है तो मानवता जीवित है ।नमन

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  11. कष्टदायक ...दुखद , कोई सुनने वाला नहीं यहाँ !

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