वंदना गुप्ता
सबके जीवन के संघर्ष एक से नहीं होते लेकिन होते सभी के जीवन में है , बस उनके रूप बदले हुए होते हें और इस संघर्ष से गुजर कर ही जीवन के अर्थ को समझा जा सकता है और दूसरे भी कभी कभी संघर्ष के इस रूप से अवगत होते हें। अगर कभी खुद को उस स्थिति से गुजरना पड़े तो वे मानसिक तौर पर इस बात के लिए तैयार होते हें कि किसी दूसरे को भी इन हालातों से गुजारते देखा है और उनसे लदकर जीतते हुए भी देखा है। बस यही तो चाहत है कि हम सभी के अनुभवों से दो चार हो लें । आज प्रस्तुत हें वंदना गुप्ता के अनुभव :
कभी कभी खुद को वक्त के आईने में देखना कितना दुरूह होता है मगर जीवन एक संघर्ष है तो पन्ने पलटने ही पड़ते हैं ,पुनः अवलोकन करना ही पड़ता है और आज एक बार फिर ज़िन्दगी ने कहा है खुद को निहारो और देखो क्या थे तुम और क्या बन गए शायद इसलिए रेखा जी का सन्देश मिला कि अपने संघर्षों के बारे में लिखो . पहले तो समझ ही नहीं आया कि क्या लिखूं मगर दोबारा सन्देश मिला तो लगा शायद किस्मत या कहो ज़िन्दगी चाहती है कि एक बार फिर उन गलियारों से गुजरो शायद कोई भूला बिसरा सिरा फिर हाथ आ जाये .
यूँ  तो आज की तारीख में ज़िन्दगी से कोई शिकायत नहीं है इस तरह मुड चुकी है कि  अब ज़िन्दगी से मिलना जैसे मिलती है उसी तरह जीना सुखद लगता है मगर एक  वक्त था जब इससे बहुत सी शिकायतें भी थीं जैसे हर आम इन्सान हो होती हैं  क्यूँकि जो चाहो वो देती नहीं और जो देती है उसे हम चाह नहीं पाते . बस  उन्ही रहगुजरों से हमें भी गुजरना पड़ा . बचपन तो बचपन होता ही है या कहो  शादी से पहले और उसके बाद की ज़िन्दगी में जमीन आसमाँ का अंतर होता है सभी  जानते हैं तो बस यहाँ भी शादी के बाद ज़िन्दगी की करवट ऐसी थी जो जल्दी से  गले से नीचे नहीं उतरती मगर कोशिश की जाती है उन हालात में भी जीने की ,  समझौता करने की और वो ही हम भी करते रहे . 
   ज़िन्दगी  में धोखा भी वहीँ मिलता है जहाँ अन्धविश्वास होता है ऐसा ही हमारे साथ हुआ  . अब भला अपनों पर भरोसा ना किया जाये तो किस पर किया जाये ? मगर ये भी एक  सच है कि अपने ही ठुकराते हैं , उनसे ही हमारा विश्वास चकनाचूर होता है  तभी हम ज़िन्दगी का वास्तविक अर्थ समझ पाते हैं .............बस हमने भी  अपनों के हाथों ठोकर खाई . जब माता पिता यानि मेरे सास ससुर ही धोखा दें तो  किस पर विश्वास करें कुछ ऐसा ही हाल हमारा हुआ और एक वक्त आया जब ऐसा लगा  कि हम तो खाली हाथ खड़े हैं , चारों तरफ देखने पर कोई चेहरा अपना नहीं दिखता  था , ना संबंधों में ना अपनेपन में यहाँ तक कि पैसों की दृष्टि से भी लगने  लगा था कि अब क्या होगा आगे ज़िन्दगी कैसे जियेंगे ? बच्चे कैसे पढ़ाएंगे?  बेटी की शादी कैसे करेंगे? ऐसे ना जाने कितने प्रश्न खड़े हो गए थे मगर जब  आप सत्य के मार्ग पर होते हैं तो आप का साथ चाहे सारी दुनिया छोड़ दे मगर एक  का साथ हमेशा मिलता है और वो है भगवान . बस हमें भी उस पल सिर्फ और सिर्फ  उसी का सहारा था. 
   हर  रिश्ते ने छला था मगर हमारी नियत अच्छी थी और हमने जो भी कहा या किया सबके  भले के लिए किया तो उसका फल ये मिला कि हमारे जीवन संघर्ष में वो परमपिता  परमात्मा सारथि बनकर इस महायुद्ध में हमारे साथ आ खड़ा हुआ . एक दम अन्जान  व्यक्ति जो सिर्फ हमारी दुकान से कभी कभी कपडा ले जाता था जब उसे हमारे  बारे में पता चला कि माँ बाप भाई - बहनों तक ने धोखा दिया है और हमें सारी  दुनिया से अलग- थलग सा कर दिया है यहाँ तक कि हमारा पूरा हक़ भी हमें नहीं  दिया है तब उन्होंने राह दिखाई . तब रिश्तों का महत्त्व पता चला . कैसे  अपने पराये हो जाते हैं और पराये अपने . बस ज़िन्दगी में एक बात का दुःख  रहा कि अपनों पर विश्वास करने का क्या यही प्रतिफल होता है बात पैसे से  ज्यादा विश्वास के टूटने की थी , धोखेबाजी की थी जिसकी हम सपने भी उम्मीद  नहीं कर सकते थे .
   जैसा  वास्तव में पांडवों के साथ हुआ था हमें अपने जीवन के हर पग पर वैसे ही  हालातों से गुजरना पड़ा था यहाँ तक कि अपमान के घूँट भी बहुत पिए मगर यही  चाहा कि शांति बनी रहे और जिस कीमत भी शांति मिले वो सस्ती है मगर जिस तरह  सारी सेना , सारे रिश्ते दुर्योधन की तरफ थे और साथ में पुत्रमोह था एक  पिता  का कुछ वैसा ही हमारे परिदृश्य में भी था तो फिर कैसे हम न्याय की  उम्मीद कर सकते थे । जब हर तरफ से देख लिया कि अब कोई रास्ता नहीं बचा सब  रास्ते बंद हो चुके तो हम चुप करके बैठ गए कि शायद यही भाग्य में बदा था  मगर उस पल मलिक साहब के रूप में भगवान हमारे जीवन में आये और उन्होंने हमें  रास्ते दिखाए , उन्होंने बताया कि तुम कर्म से मुँह नहीं मोड़ सकते और  प्रयास करो जीवन जीना थोड़े छोड़ोगे बल्कि करारा जवाब दो ताकि कल को वो  तुम्हें कमजोर ना समझें .जो तुम्हारा था वो यदि तुम्हें नहीं मिल सका और  उन्होंने तुमसे जबरदस्ती छीना है उसे उनका भी मत होने दो और हो सकता है वो  तुमसे इस बात पर समझौता कर लें क्यूँकि जब उन्हें सारी चीज जाती दिखेगी तो  शायद उन्हें समझ आ जाये और तुम्हें तुम्हारा हक़ दे दें या कम ज्यादा करके  कोई बीच का रास्ता निकाल  लें तो कम से कम जीने का आधार तो मिल ही जायेगा  ना और यदि ऐसा ना करें तो बेशक सरकार के पास चला जाये मगर उनके हाथ में मत  रहने दो कम से कम ऐसा करने से वो डरेंगे तो सही और आगे तुम पर कोई वार नहीं  करेंगे और हमने वो कदम उठाये , हर रास्ता उन्होंने सुझाया कि सरकारी कार्य  कैसे किये जाते हैं कहाँ से कौन से कागजात कैसे निकलवाने हैं, जगह जगह  जाते थे घर में छोटे छोटे बच्चों को छोड़कर कभी मैं जाती  तो कभी मेरे पति  सुबह से शाम हो जाती सरकारी कार्यों में पैसे अलग लगते चाहे कितनी भारी  गर्मी हो सर्दी हो या बरसात जब जाना होता तो जाते ही यहाँ तक कि खाने पीने  का भी कोई हिसाब नहीं सिर्फ बच्चों के भविष्य का सोच कर हम कर रहे थे कि  चलो थोडा सा ही सही उनके मनों में रहम तो आये और हमारे बच्चों का हक़  उन्हें मिल जाये बस इसी सबके चलते हमने ये कदम उठाये और बीच बीच में उन्हें  सन्देश भिजवाए मगर जब पैसे की  गर्मी होती है तो कौन किसी की  सुनता है जो  हाल दुर्योधन का था वो ही वहाँ था हमें तो हर कदम पर एक कुरुक्षेत्र नज़र  आता था जहाँ अर्जुन खड़ा है और कृष्ण सारथि बनकर राह दिखा रहे हैं . बस जैसे  मलिक साहब ने बताया वैसा ही हम करते गए और उसका नतीजा ये निकला कि हमारे  सन्देश को दरकिनार करके उन्होंने वो सब भी हाथ से गँवा दिया जो समझौता करने  पर शायद हम सबका रह जाता . शायद हमारे अहम् , हमारे लालच इन सबसे ऊपर होते  हैं जिसके आगे हम अपना बुरा भला भी नहीं देख पाते . जैसे दुर्योधन को  मिटना मंजूर था मगर सूईं की  नोक के बराबर जमीन देना मंजूर नहीं था वैसा ही  हाल वहाँ का था और वो ही हुआ भी . बेशक हमें कुछ नहीं मिला मगर दिलवाने  वाले के पास हजारों रास्ते होते हैं वो दूसरी तरह कहीं ना कहीं से जुगाड़  कर ही देता है और वैसा ही ऊपर वाले ने हमारे साथ किया . जो काम हमने किया  था उसी की  वजह से एक दूसरे जरिये से हमें थोडा बहुत मिला पूरा तो नहीं मगर  जो मिला हमने तो वो भी बोनस समझा और हमें पता चला कि  कैसे बिना किसी को  कुछ कहे , लड़े झगडे बिना भी शीत युद्ध होता है और उसका वार खाली भी नहीं  जाता...........हम तो आज भी खुश हैं क्यूँकि ऊपर वाले ने बहुत दया दृष्टि  रखी मगर गलत करने वालों को भी वो दंड जरूर देता है और उसका असर हम देख रहे  हैं कि वहाँ क्या हालात होते जा रहे हैं मगर शायद आज भी वो लोग समझ नहीं  पाए हैं चाहे अपनी औलाद की  ज़िन्दगी पर बन आई उनकी मगर तब भी अपने अहम् को  सर्वोपरि बनाया हुआ है बस यही फर्क होता है .
  
 
इस  सबमे एक ऐसी बात हुई जिसने हमें सोचने पर मजबूर किया कि हाँ भगवान  साक्षात् भी आता है वो ऐसे कि मलिक साहब हमारे साथ सिर्फ उतने वक्त ही रहे  जितने वक्त तक हमारे पैरों के नीचे जमीन नहीं थी जैसे ही एक आधार मिला वो  इस जहान को ही छोड़कर चले गए .......वो पल ऐसा लगा जैसे किसी ने हमारा सब  कुछ लूट लिया हो और हम फिर से कंगाल हो गए हों ..........उनका हमारे जीवन  में एक ऐसा स्थान है जिसे बयां करना नामुमकिन है . तब लगा था हाँ भगवान  किसी ना किसी वेश में जरूर आते हैं जैसे पांडवों का हक़ दिलाकर प्रभु  धराधाम को छोड़कर चले गए थे वैसे ही हमारे साथ भी हुआ और उस दिन के बाद  हमारा विश्वास प्रभु पर अटल होता चला गया . 
   अब  जीवन से कोई गिला शिकवा नहीं जिस ओर प्रभु ले चलते हैं हम चलते हैं ना आगे  की चिंता ना पीछे का गम क्यूँकि होता वो ही है जो उसने रच रखा है और जो वो  करता है वो सबसे अच्छा होता है उससे अच्छा कोई कर नहीं सकता ऐसा अपनी  ज़िन्दगी के अनुभवों से सीखा क्यूँकि जब हम दुनियादारी की  चालबाजियों से  अन्जान थे तो हम सबके भले की बात कहते थे और वो बात ही इस धर्मयुद्ध में  हमारे लिए रामबाण बन गयी तो फिर कैसे ना कहें कि वो जो करता है अच्छा करता  है उसने हमारी कही बात को हमारे लिए ही सत्य साबित करके दिखा दिया और बता  दिया कि अगर अच्छी और सच्ची नीयत से किसी के भले के लिए कुछ किया जाये या  कहा जाये और वैसा हो जाये तो वो किया या करा बेकार नहीं जाता वो तुम्हें  वापस मिलता है या कहो वो ऐसे रास्ते बना देता है कि जो तुम्हारा बुरा चाहता  है उसके लिए वो ही अच्छाई बुराई साबित हो जाती है मगर इसके बाद वो एक बात  और कहता है कि अब मैंने रास्ता दिखा दिया , जब तू मुश्किलों में था और जग  की हकीकतों से अनजान था तो मैंने तेरा साथ दिया मगर अब तुझे ज़िन्दगी संभाल  कर चलनी होगी सावधानी के साथ यदि ऐसा नहीं करेगा और बार- बार गिरेगा तो कब  तक मैं तेरा साथ दूँगा इसलिए हमने तो अपने जीवन से यही सीखा और अब ना किसी  से ज्यादा मोह, अपनापन नहीं रखते मगर सबको एक नज़र से देखते हैं और कोशिश  करते हैं कि हमसे किसी का बुरा ना हो और जितनी जिसकी सहायता कर सकें करें  और जीवन प्रभु गुण गाते हुए बीते .
   
पढकर एक ही बात मन में आई- कृष्ण स्वयं सारथी बने
जवाब देंहटाएंदुनियादारी की सीख देता अच्छा संस्मरण!
जवाब देंहटाएंआँखे नम हो गई आपका संघर्ष को पढ़ कर ....ईश्वर ऐसे ही सच का साथ देते रहे .....
जवाब देंहटाएंकौन कहता है भगवान् होते नहीं .....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
हूँ ऐसा भी होता है , आपका धैर्य और विश्वास यूँ ही बना रहे। आप पर सदैव ईश्वर आप की कृपा बनी रहे ,
जवाब देंहटाएंसंघर्ष के दौरान विश्वास होना भी बहुत ज़रूरी होता है जो आप में था। यही आस्था जीवन के पाठ पर आगे बढ्ने में सहायक साबित होती है जैसे आपके जीवन में हुई..। शुभकामनायें आपको!
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं आपको।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
वंदना ( जी) तो वन्दनीय है |
जवाब देंहटाएंईश्वर पर विश्वास यूँ ही नहीं आता..
जवाब देंहटाएंअच्छा संस्मरण है वंदना जी ... शायद इसी को दुनियादारी कहते हैं ...
जवाब देंहटाएं्रेखा जी आपकी आभारी हूँ जो आपने मुझे यहाँ स्थान दिया और चाहती हूँ कि इस संस्मरण से सबका ईश्वर मे विश्वास अटल हो सिर्फ़ इसी वजह से ये सब लिखा वरना सभी की ज़िन्दगी मे इस तरह की समस्यायें आती ही है इसमे कुछ खास नही था मगर ईश्वर कैसे किस रूप मे आ जाये पता ही नही चलता इंसान को और जब पता चलता है तब तक देर हो चुकी होती है इसलिये हर क्षण खुद को ईश्वर के प्रति समर्पित करके चलते रहें तो जीवन यात्रा आसान हो जाती है बस यही संदेश सब तक पहुँचे…………हार्दिक आभार्।
जवाब देंहटाएंतुम्हारा धैर्य और साहस वन्दनीय है और इससे बनती है साक्षात् वंदना.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया , और उससे बढ़िया ये की आपने अपनी बाते सच्चाई से कहने की कोशिश की ..
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी की यही कहानी है...
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