कुछ ऐसे ही लोग जिन्हें हम देखते हैं और देख कर खुद हैरान हो जाते हैं लेकिन ये भी सच है की अगर हम खुद हौसला नहीं खोते तो वह ईश्वर भी हमारा हाथ थामे रहता है और हमें उतनी शक्ति देता है और रास्ते भी देता रहता है. 
                      आज की प्रस्तुति है सरस दरबारी जी की . 
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                रेखाजी का मैसेज  आया  कि  अपनी लेखनी द्वारा महिला दिवस के  उपलक्ष्य में  स्त्रियों के संघर्ष और हौसले को  मान दिया जाय , जिन्होंने मुश्किलों को धता बता कर - अपने लिए समाज में एक गरिमा स्थापित की एक उदाहरण  --बनकर .
                 आँखों के सामने एक एककर चेहरे उभरते  ... नाम याद आते गए . सबकी एक ही -  ' प्रताड़ना' .....कभी  पति द्वारा, कभी  ससुराल में,कभी समाज में , बस अलग थी तो परिस्थितियां , परिवेश , शहर और नाम .
      तभी एक नाम जेहन में उभरा -- , सुनीति  का जो उम्र में मुझसे काफी छोटी ,  एक अन्तरंग सहेली , घर भर की चहेती --हाथों हाथ पली उसका हर शौक पूरा किया जाता -- यहाँ तक कि  जब उसने अपने विवाह पर हर साड़ी  के साथ मैचिंग चप्पल और उसी से मेल खाते हैंडबैग आर्डर किए तो रिश्तेदारों को अतिश्योक्ति लगी .  सुनीति  के माता -पिता ने दिल खोल कर उसकी हर  ख्वाहिश पूरी की .
            जितना प्यार दुलार उसे मायके में मिला , उससे कहीं ज्यादा दुलार ससुराल में मिला . विशाल उसे बहुत चाहते थे ,  जितनी देर घर पर रहते उसको आँखों  से  ओझल न होने देते ,  सास-श्वसुर, नन्द और
विशाल , इस छोटे
से चार सदस्यों
के परिवार में
वह एक मुट्ठी
सी बंध गयी. 
                    विशाल जब फैक्ट्री चले जाते तो वह बहुत ऊबती .श्वसुर को जैसे
ही इस बात
का अहसास हुआ,
उन्होंने  उसके
लिए एक प्राइमरी
स्कूल खुलवा दिया
..... 
                      अब उसका समय बड़े आराम से कटता, गुणी  तो थी है .....स्कूल भी बढ़कर सेकेंडरी स्कूल बन गया .... इसी बीच दो प्यारे प्यारे बच्चे हुए ....बहुत होनहार ... और दुनियां का हर सुख उस घर में पनाह लेने पहुँच गया . पंद्रह साल यूं ही हंसी ख़ुशी में बीत गये.  
               शायद ईश्वर भी डर
गया की कहीं
यह लोग इतना
सुख पाकर मुझे
न भूल जायें
. और एक दिन विशाल की  फैक्ट्री में बायलर फट गया . त्राहि त्राहि मच गयी और जब तक सब समझ पाते विशाल के सीने में इतना धुआं भर गया कि  सांस के लिए जगह ही न बची ...... वह छोड़ कर चली गयी और उसके साथ ही चली गयीं उस घर की खुशियाँ .....
         सुनीति पत्थर हो गयी ...न बोलती , न रोती  , सबने रुलाने की बहुत कोशिश की , लेकिन सुनीति  सिर्फ सूनी आँखों से सबको देखती रही , लेकिन सुनीति सिर्फ रीती
आँखों से सबको
देखती रही. जब
दर्द असहनीय हो
जाता तो एक
लम्बा सा नि:श्वास लेती और
फिर वैसी ही.
मुझे जब खबर
मिली तो एक
ही बात मूंहसे
निकली, " ईश्वर इतना निष्ठुर
तो नहीं हो
सकता".
                उससे मिली तो मैं बिलख बिलख कर रो पड़ी   और वह मेरी पीठ पर हाथ फेर कर सांत्वना देती रही . 
         मैने  रोते रोते उससे पूछा , "कहाँ से लायी इतनी हिम्मत सुनीति ?" 
                  उसकी आँखों की कोर पर एक नमी ठहरी देखी  बस. मैं चली आई ....धीरे धीरे रिश्तेदार भी चले गए . अब केवल सुनीति  और उसके बच्चे . हल्द्वानी में विशाल और सुनीति  ने एक बहुत ही  सुन्दर बंगला   बनवाया था ... उसे बहुत ही
चाव से सजाया
था. उस हादसे
के बाद जब
वह उसी घर
में बच्चों के
साथ लौटी तो
उसका यह संसार
यादों की एक
क़ब्रगाह बन गया
था. हर तरफ विशाल की वही मुस्कराहट .. मानो  एक घिनौना मजाक कर रहे हों .... और अभी ठहाका लगाकर किसी कमरे निकल आयेंगे ......
अब, उसके दोनों बच्चे और वह स्कूल जिसे वह चलाती थी, बस यही उसकी दुनिया थे.
अब, उसके दोनों बच्चे और वह स्कूल जिसे वह चलाती थी, बस यही उसकी दुनिया थे.
                    उस हादसे के बाद वह उठ खड़ी  हुई , उसे बच्चों  के लिए जीना था .  जब  वह बहुत  टूट जाती तो बारी बारी  वह और उसकी बेटियां  एक दूसरे को सहारा देती ... .. माँ बनकर . बस  समय फिर मरहम बना ... घाव तो भरे नहीं ... ;पर उसने उन्हें के साथ जीना सीख लिया . 
  आज उसके बच्चे
अव्वल नम्बरों से
पास हो ऊँची
सिक्षा के लिए
बाहर चले गए. और उसका स्कूल
शहर के सम्मानित
और गरिमा प्राप्त
संस्थाओं में से
एक है .उसे
सरकार की तरफ
से कई सम्मान,
मैडल और प्रशस्ति
पत्र मिले, अपने
योगदान के लिए
.
आज वह सबका गौरव है ... . अपने माता -पिता का ... अपनी ससुराल और अपने शहर का .
आज वह सबका गौरव है ... . अपने माता -पिता का ... अपनी ससुराल और अपने शहर का .
 

जिस तरह तूफ़ान आता है और सबकुछ तहस-नहस होता है,उसमें प्रायः स्त्रियाँ उसे समेट लेने की क्षमता रखती हैं .... आपकी सुनीता ने कुछ यूँ समेट लिया अपने घर को
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार2/4/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार इस आलेख को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए
हटाएंजब जूझने का समय आता है तब पता चलता है कि मन में जूझने की क्षमता है या नहीं।
जवाब देंहटाएंदुनिया में सुनीति घर-घर में हैं, बस पहचान की जरूरत है। अच्छा प्रेरक प्रसंग।
जवाब देंहटाएंवक्त और हालात से लडकर जीना ही पडता है ।
जवाब देंहटाएंजिजीविषा को सलाम
जवाब देंहटाएंआप सबका ह्रदय से आभार ...!!!
जवाब देंहटाएंहौंसले के ज़ज्बे को सलाम
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