लगता है कि हम लोगों का मतलब माँ की बेटियों का अपनी माँ से लगाव ज्यादा होता है , अपवाद इसके भी हैं , बेटे भी माँ से जुड़े होते हैं लेकिन कहते हैं न कि बेटे तब तक ही माँ और बाप के होते हैं जब तक कि उनकी शादी न हो लेकिन बेटियां जब तक उनकी सांस है माँ बाप से जुडी ही रहती हैं और मायका इसी लिए तो कहा जाता है।  माँ के जाने पर बेटियां आनाथ अनुभव करने लगाती हैं।  अपनी वही बात आज प्रस्तुत कर रही हैं : रश्मि प्रभा जी।  
                                                    
अम्मा' इस एक शब्द में मेरी ज़िंदगी थी/है … पिछले वर्ष जाने कितनी बार उसने फोन किया - मदर्स डे बीत गया ? तुमने विश नहीं किया
                                                    अम्मा' इस एक शब्द में मेरी ज़िंदगी थी/है … पिछले वर्ष जाने कितनी बार उसने फोन किया - मदर्स डे बीत गया ? तुमने विश नहीं किया
नहीं बीता अम्मा 
और  … मदर्स डे भी भला बीतता है ? 
आज का दिन - तुम्हारे नाम 
माँ के नाम  
माँ, 
इस एक शब्द -
नहीं नहीं 
इस एक महाग्रंथ में मेरी माँ भी है 
मैं भी हूँ  . 
माँ ने मुझे जीवन दिया 
मेरी गलतियों को नज़रअंदाज कर 
मुझे वह सब दिया - जिसे प्यार कहते हैं 
आशीर्वाद कहते हैं 
आँखों से बहती दुआ कहते हैं !
मैंने जीवन के सारे संजीवनी मंत्र 
लिए अपनी `माँ से 
और अपने बच्चों के लिए 
नज़र उतारनेवाली माला बनाई 
रक्षा मंत्र के धागे में !
कुछ बचकाने धोखे दिए मैंने अपनी माँ को 
जिसे माँ समझती थी 
पर हर बार अनजान बन जाती थी 
क्योंकि उसने वैसे धोखे अपनी माँ को दिए थे 
और वह जानती थी 
कि वैसे ही भोलेभाले धोखे मेरे बच्चे मुझे देंगे 
और तब मैं हँसूँगी अबाध गति से 
अपने बच्चों में अपनी माँ को 
और खुद को पाकर  ....!
माँ होना एक नियामत है 
एक एक क्षण को आँचल से पोछना 
रुद्राक्ष के 108 मनकों को जपने जैसा है 
सुबह बच्चे से 
दिन बच्चे से 
शाम बच्चे से 
रात बच्चे से - इस तरह माँ परिवार रचती है !
यदि माँ गर्भनाल से जुड़े अपने आत्मिक रूप संग नहीं जीये 
तो माँ एक मृत काया है 
और यही माँ का सत्य है !
अन्यथा माँ -
हमेशा है 
उसकी रूह फ़िज़ाओं में भरती है साँसें 
प्रकृति के कण कण में 
अपने बच्चे के लिए शुभ का शंखनाद करती है 
ब्रह्ममुहूर्त का आगाज़ बनती है  … 
माँ 
एक ग्रन्थ 
महाग्रंथ 
जिसका एक खूबसूरत पृष्ठ मैं भी हूँ 
हाँ मैं भी हूँ 
रश्मि प्रभा 

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29-05-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1627 में दिया गया है |
जवाब देंहटाएंआभार
बढ़िया प्रस्तुति व लेखन , आदरणीय धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बेहद संवेदनशील उदगार...
जवाब देंहटाएंहद संवेदनशील प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहद को बेहद पढ़े
जवाब देंहटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंसच है हर बेटी में एक माँ छिपी होती है और हर माँ के अंतर में एक नन्ही सी बच्ची छिपी होती है ! कदाचित इसीलिये दोनों एक दूसरे के मन को कुछ कहे सुने बिना ही खुली किताब की तरह पढ़ लेती हैं और एक स्पर्श मात्र से एक दूसरे की पीड़ा को बाँट लेती हैं ! बहुत सुंदर तरीके से एक माँ को व्याख्यायित किया है !
जवाब देंहटाएंनिःशब्द करती रचना ...
जवाब देंहटाएंमाँ को तभी तो ईश्वर का रूप कहा गया है अति सुन्दर
जवाब देंहटाएं