भारतीय हिन्दू समाज में जितने पर्व और त्यौहार मनाये जाते हैं , उनमें नवरात्रि का  विशिष्ट स्थान है।  नवरात्रि शक्ति की उपासना का पर्व है।  शक्ति ही सृष्टि का निर्माण करती है , उसका पालन  करती है और उसका संहार भी करती है।  इसीलिए देवी शक्ति को सर्वोपरि माना गया है।  शक्ति ही महालक्ष्मी , महासरस्वती और महाकाली के रूप में जानी  जाती हैं। नवरात्रि में इन्हीं व्यक्त महाशक्तियों की आराधना की जाती है। 
                     नवरात्रि भी वर्ष में दो बार मनाई जाती है।  प्रथम वासंतिक नवरात्रि - जिसके प्रथम दिन से नवसंवत्सर आरम्भ होता है और वह हिंदी पंचांग के नववर्ष का प्रारम्भ कहा जाता है।  दूसरी नवरात्रि आश्विन मास में होती हैं , जिन्हें  शारदीय नवरात्रि कहा जाता है।  नवरात्रि
 का अर्थ है नौ रातों तक नौ रूपों में देवी दुर्गा की आराधना। शक्ति की उपासना का पर्व प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि , नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जाता है।  सर्वप्रथम श्री रामचंद्र जी ने इस शारदीय नवरात्रि की पूजा का आरम्भ समुद्र तट  पर किया था और विजय प्राप्त की। दशमी को विजयादशमी इसी लिए मनाई जाती है क्योंकि इस दिन श्रीरामचंद्र्र जी ने रावण का वध किया था।  
  भारत के सभी 
राज्यों में नवरात्रि का पर्व विभिन्न  तरीकों से इसे मनाया जाता है।   इस समय नौ दिनों तक महिलाएं एवं पुरुष व्रत रखते  हैं।घर पर 
व्रत का खाना बनता है और सभी इसका आनंद उठाते हैं। दुकानों में  के 
व्रत दौरान खाए जाने वाले खाध पदार्थों की भरमार होती है। सजे धजे मंदिरों में 
पूजा ,भजन,कीर्तन ,जगराता होता है। कुल मिलाकर हर शहर का वातावरण उत्सव के 
रंग में रंगा होता है ।  हां पूजा के रस्मों में अंतर अवश्य होता है।   
                    उत्तरप्रदेश , मध्य प्रदेश और बिहार :--उत्तर भारत के इन राज्यों लगभग समान रूप से पूजा की जाती है और इसके नौ दिन नौ देवियों के नाम को समर्पित होते हैं।  पहले दिन कलश की स्थापना कर देवी का आह्वान किया जाता है और क्रमशः प्रथम - शैलपुत्री , द्वितीय- ब्रह्मचारिणी , तृतीय चंद्रघंटा , चतुर्थ - कूष्माण्डा , पंचम स्कंदमाता , षष्ठ - कात्यायनी , सप्तम - कालरात्रि , अष्टम - महागौरी , नवम - सिद्धिदात्री देवियों के नाम से पूजन और इनके मन्त्रों का जप भी किया जाता है।   
               नवरात्रि  में प्रथम दिन ही कलश स्थापना की जाती है और अखंड ज्योति जला कर रखी जाती है, जो नौ दिनों तक लगातार जलती रहती है।  व्रत रखने वाले शुद्धता से साथ अधिकतर भूमि शयन करते हैं।  अष्टमी या नवमी के दिन पूजन, हवन के बाद व्रत का परायण किया जाता है। 
                 नवरात्रि में अष्टमी और नवमी के दिन निकलने वाले ज्वारों पर
 भक्तों की अटूट आस्था है। माना जाता है कि ज्वारों में सांग लगवाने से 
मन्नतें पूरी होती है। कानपुर में ज्वारों का अलग ही महत्व है। यहां पर 
बच्चे, बड़े और महिलाएं जुलूस में शामिल होकर सांग* लगाकर देवियों के मंदिर जाते हैं , कानपुर में सिद्ध देवी मंदिरों  के 
दरबार में जाते हैं। नवरात्रि  के पर्व पर शहर के सभी जगहों से ज्वारे 
निकलते हैं। इसमें कुछ लोग तो 40 सालों से ज्वारे निकाल  रहे हैं। लोगों का 
मानना है कि ज्वारे में शामिल होने मात्र से लोगों की सभी मन्नतें पूरी हो 
जाती हैं।
क्या होता है ज्वारा - नवरात्रि के पहले दिन मिट्टी के घड़े में जौ डालकर ज्वारे बोए जाते हैं। इसमें नौ घड़े होते हैं और जहां पर ज्वारे बोए जाते हैं, वहा पर शुद्ध जल का कलश भी रखा जाता है। इस कलश के ऊपर नौ दिनों तक ज्योत जलाई जाती है। नवमी के दिन महिलाएं माता के दरबार के लिए ज्वाराअपने सर पर रख कर मंदिर की और प्रस्थान करती हैं और उनके साथ गाजे बाजे भी होते हैं। बच्चे-पुरुष सांग लगवाते हैं।
क्या होता है ज्वारा - नवरात्रि के पहले दिन मिट्टी के घड़े में जौ डालकर ज्वारे बोए जाते हैं। इसमें नौ घड़े होते हैं और जहां पर ज्वारे बोए जाते हैं, वहा पर शुद्ध जल का कलश भी रखा जाता है। इस कलश के ऊपर नौ दिनों तक ज्योत जलाई जाती है। नवमी के दिन महिलाएं माता के दरबार के लिए ज्वाराअपने सर पर रख कर मंदिर की और प्रस्थान करती हैं और उनके साथ गाजे बाजे भी होते हैं। बच्चे-पुरुष सांग लगवाते हैं।
                 इस क्षेत्र में नवरात्रि के व्रत में सब अपनी अपनी श्रद्धा के अनुरूप पूजा और व्रत करते हैं।  कुछ लोग निर्जल नौ दिन का व्रत  करते हैं और कुछ लोग सिर्फ एक लौंग खाकर रहते हैं।  फलाहारी व्रत अधिकतर लोग रखते हैं।समय और श्रद्धा के अनुसार कुछ लोग एक समय व्रत रह कर शाम को एक बार खाना ग्रहण कर लेते हैं।  नवरात्रि के पुरे नौ दिन कन्याओं की कुछ लोग विशेष पूजा करते हैं।  उनको घर बुला कर उनके पैर धोकर और टीका लगा कर पूजा करके भोजन कराते  हैं और दक्षिणा देकर उनको विदा करते हैं।
इसके अतिरिक्त नवरात्रि में रामचरित मानस का पाठ भी नवाह्न परायण के अनुसार नौ दिन में रामायण का सम्पूर्ण पाठ पूर्ण कर लेते हैं।
इसके अतिरिक्त नवरात्रि में रामचरित मानस का पाठ भी नवाह्न परायण के अनुसार नौ दिन में रामायण का सम्पूर्ण पाठ पूर्ण कर लेते हैं।
तमिलनाडु 
दक्षिण
 के इस राज्य में नवरात्रि  का त्यौहार अलग  अंदाज में मनाया जाता है। 
नवरात्रि  की नौ रातें देवी दुर्गा ,देवी लक्ष्मी एवं देवी सरस्वती को समर्पित
 हैं।अय्यर  समुदाय की महिलाएं शाम को सुहागिनों को अपने घर पर बुलाती हैं 
तथा सुहाग की निशानियां जैसे चूड़ी ,कान की बाली आदि उपहार में देती हैं। 
एक नारियल , पान ,सुपारी एवं रूपये भी इन महिलाओं को दिये जाते हैं। मसूर 
और अन्य दालों से बने विशेष व्यंजन आमंत्रित लोगों  के लिए प्रतिदिन बनता है। 
कुछ लोग घर में गोलू बनाते हैं।गोलू में अस्थाई रूप से नौ सीढ़ी बनाई जाती 
है जिस पर सजावटी सामान , देव देवी की मूर्तियां रखी जाती हैं। यह 
मूर्तियां पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती हैं  ।
आंध्र प्रदेश 
                                 यहां
 नवरात्रि  के दौरान विशेषकर तेलंगाना  क्षेत्र में  बटुकम्मा पाण्डूगा  मनाया 
जाता है।  इसका अर्थ देवी मां का आह्वान  करना है। महिलाएं बटुकम्मा तैयार करती
 हैं। इसमें मौसमी फूलों की सात परतें होती हैं। यह देखने में फूलों का 
फूलदान जैसा लगता है। तेलगू में बटुक का अर्थ है जीवन और अम्मा का अर्थ है 
मां। इस दौरान महिलाएं सोने के जेवर और सिल्क की साड़ी पहनती हैं। बटुकम्मा 
बनाने के बाद महिलाएं शाम को रस्म निभाती हैं। बटुकम्मा को बीच में रखकर 
देवी शक्ति  को समर्पित गीतों पर नृत्य करती हैं। इसके बाद बटुकम्मा का 
विसर्जन पानी में कर दिया जाता है।
केरल
                 यहां अंतिम तीन दिन ही नवरात्रि  मनाई जाती है अष्टमी ,नवमी एवं विजया दशमी। केरल
 में शिक्षा प्रारंभ करने के लिए इन तीन दिनों को शुभ माना जाता है। अष्टमी
 के रोज किताबें और वाद्य यंत्र देवी सरस्वती के समक्ष  रखकर उसकी पूजा का 
जाती है। ऐसा ही बसंत पंचमी के दिन पश्चिम बंगाल में होता है । दशमी के दिन 
किताबों को निकालकर पढ़ा जाता है। 
कनार्टक
                  कर्नाटक में नवरात्रि  मनाने की परंपरा आज भी पुरातन काल से चली आ रही है  , उसे ही मानते हैं।  सन  1610 ई..में राजा 
वाडयार के समय से यह त्यौहार मनाया जाता है। विजयनगर साम्राज्य में जिस तरह
 से नवरात्रि  मनाई जाती थी आज भी यहां के लोग उसी तरह से इसे मनाते हैं। 
अधिकांश स्थानों की तरह यहां भी नवरात्रि  मां दुर्गा की महिषासुर पर विजय के
 रूप में मनाई जाती है।महिषासुर मैसूर का निवासी था। मैसूर का दशहरा विश्व 
प्रसिद्ध है।आज भी यहाँ पर भव्य तरीके से मनाया जाता है।  यहां सड़क पर सजे धजे हाथियों का जुलूस निकलता है।इसके अलावा 
प्रदर्शनी और मेले तो आम बात है।
गुजरात
                यहां
 धरती पर जीवन का स्रोत मां के गर्भ का प्रतीक मिटटी का कलश नवरात्रि  का 
मुख्य आकर्षण है। कलश में पानी ,सुपारी एवं चांदी का सिक्का डाला जाता है। 
सबसे ऊपर एक नारियल रखते हैं। महिलाएं इसके चारों ओर नृत्य करती हैं। इसे 
ही गरबा कहते हैं। डांडिया रास भी गुजरात में नवरात्रि  का आकर्षण है।गुजरात में नवरात्रि  के दौरान गरबा महोत्सव का आयोजन किया जाता है। पारंपरिक
 गुजराती ड्रेस में सजे लड़के-लड़कियां जोड़े के साथ गरबा पंडालों में 
गीत-संगीत की धुन पर डांस करते हैं। गरबा पंडालों को खासतौर पर सजाया जाता है।   इस महोत्सव के दौरान देवी  दुर्गा की आराधना की जाती है। गरबा
 में हिस्सा लेने के लिए लोग खास तौर पर तैयारी करते हैं। करीब एक महीने 
पहले से ही ट्रेनिंग क्लास ज्वाइन करते हैं। आजकल गरबा का क्रेज देश के कई 
शहरों में बढ़ता जा रहा है।
महाराष्ट्र
            यहां
 के निवासियों के  लिए नवरात्रि  नई शुरूआत करने का समय है जैसे नया घर ,नया 
वाहन इत्यादि खरीदना। महिलाएं एक दूसरे को अपने घर पर आमंत्रित करती हैं और
 उन्हें नारियल ,पान ,सुपारी भेंट करती  हैं। सुहागिनें एक दूसरे के माथे पर
 हल्दी-कुमकुम लगाती हैं।महाराष्ट्र विशेषकर मुम्बई में नवरात्रि  गुजरात 
जैसा ही मनाया जाता है। प्रत्येक इलाके में गरबा और डांडिया खेला जाता है 
और सभी इसका भरपूर मजा लेते हैं।
हिमाचल प्रदेश
                यहां
 का नवरात्रि  अनोखा है। नवरात्रि  में यहां के लोग रिश्तेदारों के साथ मिलकर 
पूजा करते हैं। अन्य राज्यों में जब यह पर्व खत्म होता है तब यहां कुल्लू 
दशहरा प्रारम्भ होता है। यह भारतवर्ष की शान है। लोग भक्ति  को व्यक्त करने 
के लिए नाचते गाते हैं। दशमी के दिन मंदिर  की मूर्तियों का जुलूस निकाला 
जाता है। 
पंजाब
        यहां के निवासी
 पहले सात दिन व्रत रखते हैं। यहां जगराते  विशेष महत्व मन जाता है।  जगराते  का अर्थ है  -
पूरी रात जागकर देवी के भजन गाना। अष्टमी के दिन व्रत तोड़ने के लिए नौ 
कुमारी कन्याओं को भोजन कराया जाता है । भंडारे में 
पूरी , हलवा  और भिगोकर और फिर चने को चौंक कर  खिलाया जाता है ।कन्याओं को लाल चुनरी उपहार में दी जाती
 है। इन कन्याओं को कंचिका  भी कहते हैं । नवरात्रि  पूरे देश में मनाई जाती 
है। मनाने की विधि में अंतर है। परंतु पूजा हर जगह पर देवी के शक्ति  रूप की 
ही होती है और लोगों का जोश ,उमंग और उल्लास भी एक जैसा ही होता है।
पश्चिम बंगाल 
                बंगाल में दुर्गा पूजा की तैयारियां काफी पहले ही शुरू हो जाती हैं। यहां पंचमी से दुर्गोत्सव की शुरुआत होती है। महाकाली की नगरी कोलकाता में तो पांच दिनों तक श्रद्धा और आस्था का ज्वार थमने का नाम ही नहीं लेता है बल्कि पूरे साल में सबसे उत्साह से इसे मनाने की तैयारी करते हैं। 
                  पूजा के इन चार दिनों में सभी लोग खुशियां मनाते हैं। जिस प्रकार लड़की विवाह के बाद अपने मायके आती है, उसी प्रकार बंगाल में श्रद्धालु इसी मान्यता के साथ यह त्योहार मनाते हैं कि दुर्गा मां अपने मायके आई हैं। 
               दुर्गोत्सव से पहले तो देवी मां की सुन्दर और मनोहारी मूर्तियां बनाई जाती हैं। प्रमुख रूप से कोलकाता के कुमोरटुली नामक स्थान पर कलाकार मूर्तियों को आकार देते हैं। बंगाली मूर्तिकार द्वारा देवी दुर्गा के साथ साथ लंबोदर गणेश, सरस्वती, लक्ष्मी और कार्तिकेय की भी मूर्तियां बनाई जाती हैं। देश के बहुत से प्रांतों में बंगाली मूर्तिकारों की खूब मांग रहती है। यहां निर्मित मूर्तियां देश के अन्य स्थानों के साथ ही दुर्गा पूजा के लिए कोलकाता में विशाल पंडाल सजाए जाते हैं। शहर और दूर गांवों से आकर शिल्पकार पंडालों का निर्माण करते हैं। इन भव्य पंडालों को बनाने में आने वाली लागत लाखों रुपए में होती है। वहां के निवासी इन दिनों खूब खरीदारी करते हैं। 
                    फुटपाथ पर लोग सजावट की बहुत सारी सामग्री बेचते हैं। दुकानों से लेकर शॉपिंग मॉल तक हर जगह भीड़ का रेला दिखाई पड़ता है। सभी अपनी-अपनी पसंद की चीजें खरीदते हैं। लोग अपने परिजनों, संबंधियों को वस्त्र आदि उपहार स्वरूप देते हैं। विजयादशमी के दिन मां का विसर्जन होता है। 
                      कुल मिला कर सम्पूर्ण देश में चाहे वह किसी भी भाग में हो , नवरात्रि शक्ति स्वरूपा देवी के लिए ही मनाया जाता है और सभी में पूर्ण श्रद्धा और भक्ति का भाव भरा होता है। 
*सांग : या लोहे का भरी सा भाला जैसा होता है , जिसे सांग लेकर चलने वाले अपने एक गाल से डालते हुए मुंह के अंदर से दूसरे गाल से निकाल कर चलते हैं। भारी होने के कारण दोनों तरफ लोग उसे भाले को हाथों का सहारा देते हुए चलते हैं। यह लोग ज्वारों के साथ साथ चलते हुए मंदिर तक जाते हैं।
*सांग : या लोहे का भरी सा भाला जैसा होता है , जिसे सांग लेकर चलने वाले अपने एक गाल से डालते हुए मुंह के अंदर से दूसरे गाल से निकाल कर चलते हैं। भारी होने के कारण दोनों तरफ लोग उसे भाले को हाथों का सहारा देते हुए चलते हैं। यह लोग ज्वारों के साथ साथ चलते हुए मंदिर तक जाते हैं।

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