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शुक्रवार, 2 अगस्त 2024

मौत के सौदागर !

 वह कथोक्ति है न कि जो दूसरों के लिए कुआँ खोदता है ईश्वर उनके लिए खाई खोद कर तैयार कर देता है, लेकिन  ये कहावतें त्रेता , द्वापर या सतयुग में चरितार्थ होती होंगी। अब तो दूसरों को मौत बेचने वाले किसी जेल में नहीं बल्कि मखमली सेजों पर सोते हैं । उनपर हाथ डालने की हिम्मत किसी नहीं है । बड़े बड़े व्यापारी, ठेकेदार , इंजीनियर , विधायक, सांसद और अब तो किसान, दूधवाले, गृहउद्योग वाले सभी इसमें शामिल हो चुके हैं।  


    खाने में जहर : 
                       आटा, दाल, मसाले कुछ ऐसे जिंस हैं, जिनके बिना चाहे गरीब हो या फिर अमीर जीवित रह ही नहीं सकता है। सरकार अपने स्तर से समय समय पर उनकी गुणवत्ता के लिए परीक्षण करवाती ही रहती है और होता भी ये हैं कि मामला अपने स्तर पर ही निबटा दिया जाता है और इसीलिए उनके मन बढ़ते ही रहते हैं। अभी दो दिन पहले ही कानपुर में नामी गिरामी मसाला कंपनियों के नमूनों को लिया गया और उनको खाने योग्य नहीं पाया गया। उनमें पेस्टीसाइड, और अन्य ऐसे कीटाणुरोधी केमिकल पाये गए, जो मानव जीवन के लिए घातक हैं , न तत्काल सही लेकिन धीरे धीरे शरीर के अंगों को क्षतिग्रस्त करते हुए किसी भयानक रोग के रूप में विस्फोट बन कर सामने आता है।  कैंसर, लिवर सिरोसिस, पक्षाघात ,हृदयाघात और किडनी के असाध्य रोग संज्ञान में आते हैं।

                 दूसरा सामने आया अलीगढ में पंचवटी के बैनर तले चलने वाली आते की बड़ी कंपनी। वहां पर आते के नाम पर उसमें सिलखड़ी मानक पदार्थ मिलाया जाता है। यहाँ पर नाम के आधार पर भी विश्वास स्थापित किया जाता है। एक दो नहीं सैकड़ों बोर सिलखड़ी वहां से बरामद की गयी। कब तक रहेगी या फिर ले दे कर अपना धंधा फिर शुरू कर देंगे। 

              ये मौत के सौदागर पेट के रास्ते ही सेंध नहीं लगाते हैं बल्कि और भी रास्ते हैं लेकिन ये यह क्यों भूल जाते है कि उनके अलावा भी और सौदागर हैं, जो आपके लिए माहौल तैयार करके बैठे हैं। कब तक बचते रहेंगे और किस किस से। आप पूर्व में बांटिए मौत और उत्तर में आपके के लिए भी मौत के कुएं तैयार हैं। अमर कोई भी नहीं है। 
             कुछ साल पहले  CSIR के एक अधिकारी की मृत्यु  लौकी का रस पीने से हो गयी । ये आयुर्वेद चिकित्सा की औषधि है और इसमें गलत कुछ भी नहीं है,  हाँ कुछ ऐसी मानसिकता वाले लोगों ने इसे दूषित करने की कसम खाई है। जो प्राकृतिक चिकित्सा की औषधियों को भी जहर बना रहे हैं। सब्जियों को समय से पहले पका कर बाजार में लेकर बेचना और मुनाफे की छह में किसान भी अब ऑक्सोटोसिन के इंजेक्शन लगा कर रातों रात फसल तैयार करते हैं और उसके दुष्प्रभाव से उनको कोई मतलब नहीं होता है।  तब सवाल उठा था आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति पर।

                      कानपुर में गाँव से दूध वालों के डिब्बों  को पकड़ा गया तो सब डिब्बे  छोड़ कर भाग गए क्योंकि उस दूध में यूरिया, सर्फ और फार्मोलीन   मिला हुआ होता है, जो किसी विष से कम घातक नहीं है । ये भी मौत परोस रहे है। दूध वाले जानवरों को ऑक्सोटोसिन इंजेक्शन लगा कर दूध की एक एक बूँद निचोड़ लेते है तो क्या उस दूध को प्रयोग करने वाले  उस रसायन का दुष्प्रभाव से बचे रहेंगे ।

       हम सभी इस बात से वाकिफ हैं कि हरी सब्जियों में विशेष रूप से लौकी, तरोई , खीरा, तरबूज, और खरबूजे में किसान ऑक्सीटोसिन  के इंजेक्शन लगाकर रातोंरात बड़ा करके  बाजार में लाकर बेच लेते हैं। ये ऑक्सोटोसिन भी जहर ही है। हरी  और मुलायम सब्जियां सबको आकर्षित करती हैं और हम  सभी उस जहर को जज्ब करते रहते हैं और फिर एक दिन  -

*बहुत दिनों से पेट में दर्द की शिकायत थी , पता चला की कैंसर है।

*भूख नहीं लगती थी, पेट भारी रहता था लीवर सिरोसिस निकला।

*इसी से पीलिया, आँतों में सूजन और पता नहीं कितनी घातक बीमारियाँ एकदम प्रकट होती है. फिर
उनका अंजाम कुछ भी होता है ।
 
           फलों की बात करें त़ो केले , आम कार्बाइड से पका कर बेचने की जल्दी किसी के लिए मौत जल्दी बुला देते हैं । सेब को अधिक ताजा दिखाने के लिए मोम की परत चढ़ा कर चमकीला और ताजा दिखाया जाता है । उसको आम इंसान ही खाता है और फिर धीरे धीरे अपनी रोगों से लड़ने की क्षमता खोने लगता है । मैं स्वयं इसको देख चुकी हूँ - एक तरबूज लेकर आयी और घर में उसको काटा तो उसमें से लाल की बजाय सफेद पानी निकल रहा था और तरबूज से बदबू आ रही थी , इंसान तो क्या जानवर को भी देने लायक नहीं था?
                       वे जो ऑक्सीटोसिन का इंजेक्शन लगा कर जानवरों से दूध निकाल  रहे हैं या सब्जियां उगा रहे हैं , फलों को जल्दी बड़ा करके बाजार में ला रहे हैं। वे इस ख्याल में हैं कि  अपनी चीजों को प्रयोग नहीं करेंगे लेकिन यह भूल जाते हैं कि सारी वस्तुएं वे ही नहीं बना सकते हैं और उनके भाई बन्धु उनके लिए भी जहर परोस रहे हैं ,  जिसको  वे निगल रहे हैं। इस बात से अनजान  तो नहीं हो सकते हैं, फिर क्यों मानव जाति के दुश्मन अपनी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए ये जहर  खा और खिला रहा है। वह क्या सोचते हैं कि  इस जहर से बच जायेंगे? क्या धनवान बनने से  वे दूसरों के खिलाये जा रहे जहर से ग्रसित होकर खून की उल्टियाँ नहीं करेंगे? क्या वे  कैंसर से ग्रसित नहीं होंगे? पक्षाघात या हृदयाघात का शिकार नहीं होंगे? हमारे बच्चे क्या इसकी पीड़ा नहीं झेलेंगे?
                      अगर वे इस बात से इनकार कर रहे हैं या अनजान हैं तो कोई बात नहीं. लेकिन ऐसा कोई भी चोर नहीं होता कि अपने किये अपराध की सजा न जानता हो. जब तक नजर से बचा हैं तो सफेदपोश और जिस दिन ये भ्रम टूट गया तो इससे बच वे भी नहीं सकते .हाँ ये हो सकता है कि पैसे के बल पर वे इन रोगों से लड़ सकते हैं लेकिन उस पीड़ा को उनकी तिजोरियों में रखा हुआ धन नहीं झेलेगा और क्या पता वह भी मौत से हार जाये और आप खुद अपने ही हाथों मौत परोस कर खुद ही उसके शिकार हो जाएँ.
                    इस जहर से कोई नहीं बच सकता है. अगर हम नहीं बचेंगे तो ये मौत के सौदागर भी नहीं बचेंगे.

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