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मंगलवार, 11 जनवरी 2011

चुनाव आयोग की नजर में प्रत्याशिता !

        हमारा चुनाव आयोग अपनी सीमा में रहते हुए चुनावों की शुचिता को बनाये रखने के लिए वर्षों से प्रयत्नशील है. इस दिशा में सबसे अधिक सख्त और अनुशासन के लिए टी. एन. शेषन चर्चित हुए. इसके बाद से चुनाव आयुक्तों ने इसकी शुचिता को बनाये रखने में अपना प्रयास जारी रखा. हर बार चुनाव में सीमाओं को ऐसे निर्धारित किया जाने लगा की लोकतंत्र की अपेक्षाओं पर प्रश्न चिह्न कम लगें.
                        वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैशी ने जो सुझाव प्रस्तुत किया है - वह जन सामान्य की इच्छा को एक अधिकृत व्यक्ति द्वारा सामने लाया गया है और उनकी  बात मायने रखती है. राजनीति का अपराधीकरण पूर्णतया हो चुका है, यह था तो वर्षों से किन्तु जो स्वरूप आज सामने आ रहा है - वह इतने खुले रूप में पहले न था. अपराधियों को टिकट सिर्फ इस आधार पर दल के द्वारा दिया जाता है कि अभी अपराध साबित नहीं हुआ है और सत्ता में आने के बाद उसको साबित होना भी नहीं है. ऐसे लोगों को शरण देने वाले दल खुद प्रश्न-चिह्न के लायक बन जाते हैं किन्तु वे सशक्त दल है और संसद में उनकी छवि भी बहुत सशक्त होने की है. फिर कौन बोल सकता है? उनके लंबित मामले हमेशा ही लंबित रहेंगे. कितने अमरमणि त्रिपाठी संसद में भी बैठे होंगे लेकिन उन तक पहुंचना आसान नहीं है. 
                        प्रमुख चुनाव आयुक्त ने कोलकाता में एक वक्तव्य में कहा  - 'यह विडम्बना है कि जेल में बंद व्यक्ति मुकदमा लंबित रहने के दौरान चुनाव लड़ने के आजाद है जबकि वह मतदान का हक़दार नहीं है. किसी को चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहराने का अधिकार चुनाव आयोग को नहीं बल्कि संसद को है. मौजूदा क़ानून के तहत दोष साबित होने पर ही व्यक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहराया जा सकता है. गंभीर आरोपों का सामना कर रहे लोगों को चुनाव प्रक्रिया से बाहर करने के लिए तत्काल कदम उठाये जाने चाहिए. '
               'हत्या, बलात्कार, जबरन उगाही सरीखे आरोपों का सामना कर रहे लोगों को चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए. '
                देश का हर नागरिक राजनीति को साफ सुथरा देखना चाहता है और इसको साफ सुथरा बनाये बिना देश की प्रगति की आशा करना निरर्थक  ही है. संसद अपनी गरिमा को बनाये रखने के लिए स्वस्थ मानसिकता , चरित्रवान और सुसंस्कृत सदस्यों की अपेक्षा करती है. स्वयं संसद को इस दिशा में पहल करनी चाहिए, भले ही अनुभवी कहे जाने वाले दागी सांसदों को तिलांजलि देनी पड़े. आज जो पौध लगाई जायेगी वह कल परिपक्व होगी और देश की बागडोर संभाल कर इसके स्वरूप को अधिक विकसित और खुशहाल बनाये रखने में सक्षम होगी. 
                     राजनैतिक दलों के साए तले अपराधियों को शरण क्यों मिलती है? क्योंकि चुनाव परिणामों  का निर्णय बन्दूक कि नोक पर ऐसे ही लोग किया करते हैं. वे मतदाता जो अभी तक चुनाव और मतदान के अधिकारों से अनभिज्ञ है - वे ऐसे ही लोगों के द्वारा कभी धमाका कर, कभी लालच देकर और कभी बरगला कर भ्रमित  किये जाते हैं. तभी तो छोटे स्तर के चुनाव में कलंकित इतिहास वाले भी निर्विरोध चुन लिए जाते हैं. १८ वर्ष के अपरिपक्व युवा कभी नौकरी के लालच में, कभी छात्रवृत्ति के लालच में और कभी घर के लालच में बगैर ये जाने कि उनके मत का मूल्य क्या है? दे आते हैं और इसमें भी प्रलोभन देने वाले दल स्वच्छ छवि वाले तो नहीं ही हो सकते हैं. अब ऐसे कानूनों की सख्त आवश्यकता है कि गंभीर  अपराधों में वांछित व्यक्ति चुनाव में प्रत्याशिता से वंचित कर दिए जाएँ.
                    
            

7 टिप्‍पणियां:

  1. मुख्य चुनाव आयुक्त का ये सुझाव बहुत अच्छा है की राजनीतिक पार्टिया अपराधी प्रवृति वाले लोगों को चुनाव लड़ने के लिए अधिकृत ना करे तो शायद लोकतंत्र की शुचिता को बचाने में सहयता हो . देखिये मुझे तो नहीं लागत अकी राजनीतिक दलों में इतनी नैतिकता बची है और ये कदम उठा पाएंगे . अच्छा आलेख .

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  2. राजनीति से अपराध को दूर रखने या अपराध को समूल समाप्त करने के लिए कानूनों की कमी कभी नहीं थी ...कमी है उनके क्रियान्वन में ...जिसे हम सभी अपनी सुविधानुसार ही क्रियान्वित करते हैं ...कमी दृढ इच्छाशक्ति की है !

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  3. Vani jee ke baat se sahmat...kash rajnitik parties sirf seat kaise jeeta jaye ye na soche.......

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  4. वाणी जी,

    हमारे कानून ही तो लचर हैं जिससे अपराधी खुले आम घूम रहा है और निर्दोष को अपराधी साबित करके जेल के अन्दर डाल दिया जाता है. जेल के अन्दर रहने वाला कितना ही लोकप्रिय नेता क्यों न हो, उसको चुनाव लड़ने का हक़ नहीं मिलना चाहिए . हमारे यहाँ तो जितना बड़ा अपराधी उतने ही बहुमत से चुनाव जीत जायेगा. जिसे मत देने का हक़ न हो उसे चुनाव लड़ने का हक़ देना कानून व्यवस्था को अंगूंठा दिखाने वाली बात है.

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