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शुक्रवार, 30 जून 2023

सोशल मीडिया डे !

                                                     सोशल मीडिया डे !


                           पहले से तो मुझे इस बारे में ज्ञात नहीं था कि सोशल मीडिया डे नाम से कोई दिवस भी मनाया जाता है। बहुत अच्छे प्लेटफॉर्म हैं यहाँ पर , लेकिन उन पर अगर विचार करें तो इसने हमारी सामान्य दिनचर्या या सामाजिक जीवन का सर्वनाश कर दिया है, लेकिन हर क्षेत्र में ऐसा ही हो रहा है ऐसा नहीं है।  कोई भी सामाजिक सरोकार से जुड़ी हुई सुविधा सदैव अच्छी ही या बुरी ही नहीं होती है। यह तो हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम उसको किस तरह से प्रयोग कर रहे हैं। उसका उपयोग या दुरुपयोग कर रहे हैं। न तो विज्ञानं दोषी है और न कोई सुविधा बस हमारा ही विवेक उसका गुलाम हो चुका है।  चलिए हम कुछ बिंदुओं पर विचार ही करते चलें। 


उपयोगी बिंदु :--

                    * सोशल मीडिया ने दूरदराज बैठे लोगों के मध्य एक सेतु बन कर उनके विचारों के आदान प्रदान के लिए एक मंच प्रस्तुत किया है। 

                    *कितनी जानकारियाँ जिनसे एक आम आदमी परिचित ही नहीं है उससे अवगत कराया।  उनके ज्ञान का विस्तार होने लगा। 

                    * इतिहास बन चुके साहित्य, ज्ञानकोष, जो कि प्रिंट मीडिया ने अब छापने बंद कर दिए थे।  दूसरों शब्दों में कहैं तो कालातीत हो चुके थे। इस सोशल मीडिया ने उनको खोज कर या फिर प्रबुद्ध लोगों ने उसको यहाँ पर लोड करके सर्व सुलभ बना दिया। 

                    *बच्चों या बड़ों में सोई पड़ी प्रतिभा - लेखन, चित्रकारी , होम डेकोरेशन , बागवानी , शिल्प सभी तरह की चीजों को मंच मिला। दूसरे लोग भी इससे फायदा उठाने लगे हैं।  

                   * कुछ सामाजिक, सांस्कृतिक ,साहित्यिक संगठनों का निर्माण हुआ और उससे पूरे विश्व से लोगों ने जुड़ कर उसको समृद्ध बनाया। उनके कार्य पटल पर आने लगे। भाषा और संस्कृति को समझने समझाने में भी एक अच्छा मंच बन चुका है।

                   *गृहणियों के लिए भी एक अच्छा मंच मिला , वे सिर्फ घर में रहकर घर तक ही सीमित रह गयीं थी। उनकी  उच्च शिक्षा , ज्ञान और कला जो घर की चहारदीवारी में दम तोड़ रही थी , उसको सही स्थान मिला और उससे वे कुछ क्षेत्रों में आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी होने लगी। 

                  *छात्रों के लिए अपनी पढाई के लिए विश्व के साहित्य या पठन पाठन के लिए उपयोगी सामग्री भी प्राप्त होना सुलभ हो गया। हर छात्र के लिए सन्दर्भ पुस्तकें खरीदना संभव नहीं होता है तो वे सोशल मीडिया से सब आसानी से प्राप्त कर लेते हैं। 

               *किसी भी दुर्घटना के बारे में कभी कभी सोशल मीडिया से ही पता चल जाता है और पीड़ित को समय से सहायता भी मिल जाती है , जो उसके जीवन को बचा भी लेती हैं। 

                *अवसाद में गिरे हुए कितने लोग ये बात अगर सोशल साइट पर शेयर करके गलत कदम उठाने लगते हैं तो कई बार वे समय से बचा भी लिए जाते हैं। 

                *खोये हुए बच्चे या भटके हुए बुजुर्ग भी कभी कभी इसके द्वारा सही स्थान पर मिल जाते हैं। बरगला कर भगाये हुए बच्चे भी इससे पकड़ लिए जाते हैं। 


अनुपयोगी बिंदु :--


                 *सबसे अधिक दुरूपयोग इसका अपराधी प्रवृत्ति के लोग करने लगे हैं।  फेसबुक जैसे मंच से दोस्ती करके के बाद मैसेंजर पर जाकर स्त्रियाँ पुरुषों और पुरुष स्त्रियों को गलत ढंग से बातचीत करने के लिए फ़ोन मिलाने लगे हैं या फिर मैसेज के द्वारा ही उनसे अश्लील बातचीत करने लगते हैं। इसमें सिर्फ एक नहीं बल्कि दोनों ही होते हैं बल्कि ये भी होता है कि पुरुष होकर अपनी प्रोफाइल महिला के नाम से बना कर बात करते हैं और महिलाओं से ही गलत व्यवहार करने लगते हैं। ये सबसे बड़ी समस्या है और इसका कोई निदान भी नहीं है सिवाय इसके की पीड़ित पक्ष उसको अपने मित्र श्रेणी से बाहर कर दे या फिर अपना मैसेंजर ही लॉक कर दे। 

               *घरेलू महिलायें, बच्चों की देखरेख करने वाली सहायिकायें इसका दुरूपयोग करके छोटे छोटे बच्चों के सामने राइम या गेम खोल कर रख देती हैं और वे पाने काम में लगी रहती हैं।  अपनी सुविधा के लिए वे बच्चों को इसका आदी बना देती हैं और फिर बच्चा खाना भी उसके साथ ही खायेगा। इसके दुष्प्रभावों को वे जाती हैं या नहीं ये तो नहीं कह सकती लेकिन इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव होता है कि बच्चे का बोलना देर से शुरू होता है और वे वीडिओ वाली भाषा भी ग्रहण करने लगते हैं। (इस बारे में मेरी बात एक बच्चों की डॉक्टर ,जो इसका ही इलाज करती हैं , के साथ हुई है।)

               *बहुत छोटी उम्र में ही वे मोबाइल में अपने मन के वीडिओ लगाने लगते हैं , कॉल भी करने लगते हैं। उनको इसका ज्ञान नहीं होता है लेकिन उंगली चला कर वे उसके अभ्यस्त हो जाते हैं। पढ़ने वाले बच्चे भी मोबाइल चाहते हैं , छोटे छोटे क्लास के बच्चों के लिए भी अब पढाई का तरीका बदल गया है। विषय वार वाट्सएप पर ग्रुप बना दिए जाते हैं और पहले की तरह से हर बच्चे की डायरी में होमवर्क लिखने के बजाय वह एक बार ग्रुप पर डाल देती हैं फिर अभिभावकों  सिरदर्द कि वे उसको देखें और कुछ बड़े बच्चे हुए तो उनको लैपटॉप या मोबाइल चाहिए। 

                *किशोर होते बच्चों के लिए पढाई के लिए लैपटॉप बहुत जरूरी हो गया है क्योंकि उनको अपना प्रोजेक्ट बनाना है या फिर सन्दर्भ देखने हैं। फिर पढाई के अलावा बच्चे बहुत कुछ देखना सीख जाते हैं। जो कि उनके मानसिक विकास की दृष्टि समय से पहले परिपक्व बना रहा है। 

                *किशोर इससे ही अवसाद  शिकार जल्दी होने लगे हैं और उससे भी निजात पाने के लिए आत्महत्या जैसे कदम भी उठाने लगे हैं। वो क्रियाएं या अपराध जो कि उनके लिए न उचित हैं और न ही उनकी उम्र के अनुसार होने चाहिए वे करना सीख रहे हैं।  उनकी IQ बहुत अधिक होने लगी है तो उनको सोशल मीडिया से और अधिक ज्ञान मिलने लगा है। 

                *मैंने देखा है कि किशोर लड़कियाँ अपनी प्रोफाइल में अपनी आयु अधिक डाल देती हैं और फिर उनकी मित्रता भी उस उम्र के लड़कों से होने लगाती है और वे बहकावे में भी जल्दी आ जाती हैं।  आजकल हो रहे अपराधों के गर्भ में कहीं न कहीं ये मंच जिम्मेदार हो रहे हैं। 

                 *नए नए स्कैम भी इसी के तहत होने लगे हैं , जिन्हें पकड़ पाना हर एक के वश की बात नहीं है और इस तरह से अपराधों की श्रेणी में आ रहे हैं।  ये सोशल मीडिया ही है कि बी टेक और एम बी ए जैसी व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण करते हुए वे अपराधों में लिप्त होने लगे है उनको सारे रास्ते यही पर मिल जाते हैं। 

                          इस सोशल मीडिया डे को हम किस दृष्टि से देखते हैं, ये अपनी अपनी सोच है लेकिन कुल मिला कर हम प्रगति तो कर रहे हैं लेकिन गर्त में ज्यादा जा रहे हैं। 

सोमवार, 19 जून 2023

मैट्रो से - 2 !

 मैट्रो से - 2 !

                     एक ही स्टेशन से कई सहायिकाएं लेडीज़ डिब्बे में चढ़ती हैं, रोज नहीं तो अक्सर उनका मिलना होता रहता है , एक बहनापे की तरह हो गया। एक टाउनशिप में सब काम करती हैं और कई कई घरों में करती हैं। इतने बड़े शहर में अपने दम पर ही तो रह रही हैं। 

   "अरी बबिता आज कुछ ज्यादा थकी नजर आ रही है, वह भी सुबह सुबह।"

   "हाँ बहन कुछ न कुछ ऐसा हो जाता है, फिर कल तो पूरी रात सो ही नहीं सकी, काम पर निकलना ही था। "

   "रोज तेरा कुछ न कुछ ऐसा ही होता रहता है, अरी थोड़ा मजबूत बन, नहीं तो सब तुझे भी बेच कर खा जाएंगे। " 

    "वह तो है तभी तो रोती नहीं हूँ, कब का छोड़ दिया लेकिन दिल और दिमाग के आँसूं आँखों से चुगली कर देते हैं। " 

    "अरे आज सी तो कभी न दिखी, कह डाल तो कुछ हल्की हो जायेगी।"

   "क्या कहूँ, कल रात पीने के लिए पैसे माँग रहा था तो मैंने मना कर दिया।  मारपीट करके घर से भाग गया। जब देर तक न  आया तो एक बजे ढूंढने निकली। धुत पड़ा मिला।  किसी तरह से लेकर आयी। तीन बज गया और चार बजे से घर के काम करके निकल पड़ी।"

    "तू भगा क्यों नहीं देती ऐसे मरद को, कमाए भी तू, खिलाये भी तू और मार खाकर खोजने भी तू ही जाए। कम से कम चैन से काम करके खायेगी तो। "

     "किस किस को भगाएँगे, हम लोगों के भाग्य में ऐसे ही मरद लिखे होते हैं, नहीं तो हम भी घर में चैन से न रहें।"

     "सच कह रही है, किसी की औलाद खून पीने  के लिए पैदा होती है और किसी का तो मरद ही जीते जी मार देता है। "

                  फिर गंतव्य आ गया और चल दी दोनों।                     

 

नौटंकी !

            नीति ने सुबह उठकर मोबाइल उठाया तो उसमें एक स्टोरी देख कर उसकी आँखें आश्चर्य से फैल गयीं। वो थी उसकी ही सहेली मीता के द्वारा डाली गयी अपने ससुर की तस्वीर - आज पितृ दिवस के उपलक्ष्य में।  अभी कल ही उनका गाँव में निधन हुआ है। 

                  पिछले कई सालों से वह अपने पैतृक गाँव में छोटे भाई के सहारे रह रहे थे क्योंकि मीता और उनके पतिदेव को तो उनको रखना ही नहीं था।  माँ के निधन के बाद कुछ ही महीनों में उनको गाँव भेज आये थे क्योंकि माँ थीं तो उनके सारे काम समेटे रहती थी। अब कौन करेगा और क्यों? 

                 उनके निधन पर जरूर गाँव गए थे लेकिन उनके भाइयों ने खुद ही उनका अंतिम संस्कार किया। बेटा अपना हक़ तो पहले ही खो चुका था। अंतिम समय कई बार कहा भी कि मुझे यहाँ से ले जाओ मैं अपने ही घर में मरना चाहता हूँ लेकिन वह घर तो अब बेटे के अनुसार ढल चुका था। 

              स्टोरी के साथ गाना लगा था - "चिट्ठी न कोई सन्देश। ...... " और कैप्शन था - "पापाजी आप इतनी जल्दी क्यों चले गए? आपके बिना हम अनाथ हो गये।" 

              मीता ने मोबाइल उठा कर पटक दिया। कोई इतनी बड़ी नौटंकी कैसे कर सकता है? शायद अपने फ्रेंड सर्किल में या दूर के रिश्तेदारों में अपनी छवि बनाने के लिए ?

बुधवार, 14 जून 2023

पुरुष विमर्श - 4

पुरुष विमर्श -4

                                   

                                           नारी विमर्श का एक दूसरा पहलू है पुरुष विमर्श। सदियों से शोषित नारी ने भी  रूप बदला है या  संविधान और कानून ने जब उसकी रक्षा और अधिकारों के प्रति सजगता दिखलाई तो उसका दुरूपयोग भी शुरू हो गया।  इसमें कानून के साथ उस स्त्री के साथ खड़े परिवार वालों ने भी सारी सामाजिकता और नैतिकता को ताक पर रख दिया। परिणाम सामाजिक संस्थाएँ खतरे में ही नहीं आ गयीं हैं बल्कि उसका विद्रूप रूप भी सामने आने लगा है। अब इतना अधिक आतंक हो चुका है कि लोग लड़कियों से ज्यादा लड़कों की शादी के लिए सशंकित रहने लगे हैं। 

                          गिरीश एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार और सुलझे हुए माता-पिता का इंजीनियर बेटा, जिसे घर और परिवार से अधिक दुनिया जहाँ में कोई रूचि न थी। उसकी एक सेमिनार के दौरान नमिता से मुलाकात हुई और बात हुई कुछ अधिक बात बढ़ी बस।  फिर सब अपनी अपनी जगह। सामान्य बातचीत होती रही। 

                    एक दिन नमिता के पिता मिस्टर सिन्हा, जो आईएएस अधिकारी थे, ने गिरीश के पिता को  फ़ोन किया कि वे उनसे मिलना चाहते हैं।  दोनों अलग अलग प्रदेशों के रहवासी थे, यहाँ तक कि बहुत फर्क था दोनों की भाषा और संस्कृति में भी। राय साहब को समझ नहीं आया कि उनका ऐसा कोई परिचय भी नहीं है फिर कोई अनजान व्यक्ति क्यों मिलना चाहता है। सिन्हा साहब अपने रुतबे के अनुकून लाव लश्कर के साथ आ गए और उनका भी समुचित आदर सत्कार किया गया। 

        "अपनी बेटी नमिता का रिश्ता आपके बेटे गिरीश से करना चाहता हूँ , वे दोनों भी एक दूसरे को पसंद करते हैं आशा करता हूँ कि आपको कोई आपत्ति नहीं होगी।"

        ये बात सुनकर राय साहब कुछ अचकचा गए और बोले "गिरीश ने तो मुझसे ऐसा कुछ भी नहीं बताया, फिर एकाएक शादी की बात कैसे पैदा हो गयी।" उनको सिन्हा साहब का रुतबा और स्टेटस देख कर संकोच तो हो ही रहा था। 

         "मुझे नमिता ने बताया और लड़की के पिता होने के नाते में खुद प्रस्ताव लेकर आया।  आपको कोई आपत्ति तो नहीं। "

          "जी मुझे क्या आपत्ति होती अगर गिरीश की मर्जी है तो। "

         "तब आप एक बार मेरे निवास पर आइये, आपकी नमिता से भी मुलाकात हो जायेगी, हमारे परिवार भी आपस में मिल लेंगे। "

          सब कुछ सही रहा और कुछ महीने के अंतराल में विवाह सम्पन्न हो गया। सिन्हा साहब ने अपने स्तर के अनुसार शादी की और सारा सामान गिरीश की पोस्टिंग के अनुसार हैदराबाद में भिजवा दिया। नमिता एक सप्ताह ससुराल में रही और फिर उसके पापा ने हनीमून टिकट दिया ही था सो वे बाहर निकल गए।  लौटकर नमिता सीधे मायके निकल गयी और गिरीश घर आकर अपनी नौकरी पर चला गया। 

              कुछ एक सप्ताह के बाद नमिता अपने एक नौकर को लेकर हैदराबाद पहुँच गयी। वह उसके साथ ही रहने वाला था और पिता ने अपनी बेटी को पूरी सुख सुविधा का ध्यान रखते हुए ये व्यवस्था की थी और कुछ बड़े घरों के बच्चों की जिंदगी के अनुरूप भी किया। यहाँ भी वह सिर्फ एक सप्ताह सामान्य रही और फिर एक दिन - गिरीश ऑफिस से वापस आया तो ड्रांइंग रूम में कैंडल लाइट में नमिता शार्ट पहने मेज पर दोनों पैर फैलाये ड्रिंक करती मिली, वह तो ऊपर से नीचे गिरा क्योंकि वह तो ड्रिंक तो क्या कोई भी व्यसन नहीं करता था। वह अपने पर काबू नहीं रख पाया तो उसने आते ही सवाल किया - "नमिता ये क्या ?" 

    "कुछ नहीं जानू , बहुत दिन हो गए थे , अब तो इससे दूर नहीं रखा जाता आखिर कब तक मैं नाटक कर सकती हूँ  आओ न दोनों मिलकर पिएंगे। "

          "नहीं मेरे घर में ये सब नहीं चलेगा।"

          "क्या कहा तेरा घर? अरे में मेरा भी घर है और इसमें मेरी ही चलेगी।  तुम मर भुक्के हो ये मैं जानती थी और इसी लिए पैग बनाने और बाकि सामान लाने के लिए पापा ने राजू को साथ भेजा है।"

        "नमिता होश में बात करो, ये घर है कोई होटल नहीं और मेरे साथ तो ऐसे बिलकुल भी नहीं चलेगा। "

         "तुम्हारे साथ चलाना भी किसे है? वो तो उस एक्सीडेंट से मेरे ब्रेन में कुछ गड़बड़ हो गया था और ये कभी भी उभर सकता है ये बात पापा जानते थे।  इसीलिए न तुमसे शादी की नहीं तो तुम्हारी औकात क्या है ? मेरे लिए आईएएस और आईपीएस लड़कों की कमी नहीं थी। अब शादी की है तो उसका भी मजा लो न। "

               गिरीश एकदम सकते में आ गया और समझ गया कि अब जीवन नर्क होने वाला है। दूसरे ही दिन उसने अपने पापा से सारी बात बतलाई और पूछा कि अब क्या करूँ ? लेकिन पापा भी कुछ नहीं सकते थे।  कुछ दिन ऐसे ही गुजरे उसने अब उसकी हरकतों और गालियों, जो कि रोजमर्रा का रूटीन बन चुका था, के वीडियो बनाना शुरू कर दिया क्योंकि वह कर कुछ नहीं सकता था। फिर एक दिन जब वह ऑफिस से आया तो घर में ताला लगा था और वह नौकर सहित जा चुकी थी। उसने चारों तरफ फ़ोन घुमाये तो पता चला कि वह फ्लाइट पकड़ कर अपने पापा के घर पहुँच चुकी है।  उसने अपने ससुर को फ़ोन किया तो उनका उत्तर था - "अब वह तुम्हारी वाइफ है और उसको कैसे रखना है ?  ये तुम्हें पता होना चाहिए। मैं इस विषय में कोई सहायता नहीं कर सकता हूँ। "

                सिर्फ एक हफ़्ते के अंदर उसके खिलाफ घरेलू हिंसा का केस कर दिया गया और उसके घर सम्मन भेजा गया। इधर उसको नौकरी से भी निकलवा दिया गया। वह वहाँ से घर भागा, लेकिन कानून की पेचेदगी में उसे फँसा लिया गया था। सब कुछ पूर्व नियोजित था क्योंकि उसके ससुर को पता था कि नमिता की दिमागी हालत आज नहीं तो कल उबरेगी ही और फिर क्या होगा ? उनका भेजा हुआ नौकर उनका गवाह बन गया। उसने घर आकर अपने ही हाथ से दीवार पर सिर मार कर गुमला बना लिए , चूड़ियां तोड़ कर हाथों पर भी खरोंच के निशान बना कर मेडिकल करवा कर सुबूत बनवा लिए।  जो उसके पिता के लिए कोई बड़ा काम नहीं था और मारा गया बेचारा सीधा सादा परिवार। समाज के सामने परिवार ख़राब होने का एक सर्टिफिकेट नमिता को मिल गया और अब मनमर्जी के लिए वह स्वतन्त्र थी।  वैसे भी बड़े घरों में ये सब कोई बड़ी बात नहीं होती।

                    वारंट निकाला गया किसी शुभचिंतक ने इसकी सूचना दे दी और उन्हीं ने आकर पूर्व जमानत ले लेने की सलाह दी। पिता ने भाग दौड़ करके वह भी ली।  गिरीश घर में आकर बैठा था और फिर घर का माहौल तनावपूर्ण हो गया। सब तरफ से वे लोग सशंकित रहते , घर का दरवाजा भी खटकता तो डर लगा रहता। 

                   इसी बीच गिरीश की माँ को ब्रेन हैमरेज हुआ और तीन महीने वह जीवन मृत्यु के बीच झूलती रहीं, आखिर में चल बसी। घर का एक स्तम्भ ढह गया, सारा घर मानसिक रूप से बिखर गया।  माँ के जाने से पिता भी असहाय महसूस करने लगे थे। उनका मन उचाट हो गया और वे वहां से भागने की सोचने लगे। 

                  तारीखों का सिलसिला शुरू हो गया, साथ ही जान का खतरा भी लगने लगा क्योंकि ऐसे रुतबे वाले लोगों के लिए कुछ भी असंभव न था। गिरीश भी न नौकरी कर रहा था और न उसको मानसिक शांति थी। पिता का स्वास्थ्य भी गिरने लगा था, कोई रोग न भी था तो चिंता उनको खाये जा रही थी कि मेरा सीधा सादा लड़का किस मुसीबत में फँस गया। 

                  उन्होंने अपना घर और सारी जायदाद बेच कर अपना शहर छोड़ने की सोच ली और वे रातोंरात जो भी मिला बेच कर अपने भाई के पास चले गए और वहीँ सेटल होने की सोची।  भतीजे ने अपनी ही कंपनी में गिरीश को जॉब दिलवा दी। उसके पीछे होने से कोई समस्या खड़ी नहीं हुई। पिता और बेटे ने अपने मोबाइल नंबर भी बदल दिए।  धमकियों का सिलसिला बंद हो और उनका पता न मिल सके। उन्होंने सभी से अपने संपर्क तोड़ लिए।  अब अकेले ही सब झेलना था, एक भाई का परिवार उनके साथ था।  

                इसके साथ ही गिरीश के साढ़ू, जो उससे अपने उत्पीड़न की घटनाएं शेयर करता था, की तरफ से एक मुकद्दमा उसके खिलाफ लगा दिया गया। उसका सम्मान पुराने आवास पर भेजा गया लेकिन वापस हो गया। मुकदमा दर्ज है और वारंट भी, लेकिन जिस कोर्ट में ये सब चल रहा है वहां पर तारीख पर तारीख अब सालों में पड़ रहीं हैं और इनके कभी वहाँ न पहुंचने से आगे बढ़ जाती है। 

                  एक मानसिक यंत्रणा का शिकार एक होनहर इंजीनियर का भविष्य एक गलत निर्णय ले गया। जिससे मुक्ति अब संभव है या नहीं किसी को नहीं पता है।