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मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

देश के चालाक !

हम तो जिए जा रहे हें और अपने अपने घर को चलाने में खुद को होम किये जा रहे हें क्योंकि आमआदमी के लिए अब परिवार चलना आसान नहीं रह गया है और ये हमारे देश और प्रदेश के चालाक - चालाक इस लिएक्योंकि ये देश की जनता को जानवर से भी बदतर जीवन जीने पर भी उन्हें गरीब नहीं मान रहे हें और दूसरी ओर वे उत्तरप्रदेश में तो वाकई अंधेर नगरी और चौपट राजा वाला खेल चल रहा है लेकिन किसके आगे गुहार लगायी जाएएकनागनाथ और दूसरा साँपनाथ
हम बात इस उत्तर प्रदेश की ही कर सकते हें जहाँ पर जातिवादी की जड़ें इतनी गहराई तक राजभवन सेलेकर प्रदेश के क़ानून तक में पैठ बना चुके हें कि लगता है कि यहाँ जो भी होता है वह इस लिए होता है कि यहाँ पर वहीलोग जीवित रहें जिन्हें इस जाति विशेष में विशेष दर्जा दिया गया है.और अनुसूचित नाम का तमगा लगाये जो भी लोगहें वे ही सारे लाभों को लेने के हकदार हें बल्कि उस समय तो हद गुजर गयी जब गरीबी के मानकों को भी अलग अलगपरिभाषित किया गयाशिक्षा जो कि सबका अधिकार है और इसके लिए सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है , इस क्षेत्रमें भी अनुसूचित और पिछड़ा होना लाभदायक सिद्ध हो रहा हैशिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जाति और पिछड़ी जाति केलोगों के लिए लाख तक की वार्षिक आय पर जो लाभ दिया जा रहा है वही लाभ सवर्ण को लाख रूपये की वार्षिकआय तक ही मिलेगाअब कोई भी अर्थशास्त्री या कानूनविद इस बात को स्पष्ट करे कि जन्म के आधार पर ये रूपये कीकीमत कैसे अलग अलग हो जाती है? क्या सवर्ण को गरीब होकर उन लाभों को लेने का अधिकार नहीं है और नहीं है तो क्यों ? उत्तर प्रदेश सरकार इस बात को स्पष्ट करे
उत्तर प्रदेश सरकार अनुसूचित जाति के लिए केंद्र से आरक्षण बढ़ाने के लिए कह रही है क्योंकि अबइतने वर्षों में उनकी आबादी बढ़ चुकी है और शेष जातियों की आबादी लगता है कि समाप्तप्राय हो चुकी होगीएक उच्चपद पर आसीन जिम्मेदार व्यक्ति से ऐसे गैर जिम्मेदाराना वक्तव्य या फिर अपील को क्या नाम दिया जाय?
एक वही क्यों? यहाँ तो हर दल ने आरक्षण को अपना चुनावी हथकंडा बना रखा है क्योंकि अगर वे इसतरह से जाति के सहारे लोगों लुभायेंगे तो लोग आकर्षित कैसे होंगे? और सिर्फ उनका ही दोष कहाँ है? ये देश के लोगभी तो अपने स्वार्थ के लिए किसी को भी देश की बागडोर देने में संकोच नहीं करते हेंसिर्फ उन्हें कुछ लोभ दे दियाजायलोग तो शायद अपनी गरीबी और स्वार्थवश ऐसा कर भी लें यह खेल तो संसद तक में होता है जहाँ बैठ कर सांसदसाल में लाखों का लाभ ले रहे हें
वैसे इस समय उत्तर प्रदेश में अनुसूचित या पिछड़ी जाति का होना ही फायदेमंद चीज है क्योंकि इस प्रदेशमें दंड कानून भी इनके प्रति नरमी बरत रहा हैपिछले दिनों सीमा आजाद नाम की राजनेत्री एक हत्या के मामलेमें दोषी ठहराई गयी और उनका आर्थिक दंड इसलिए काम कर दिया गया क्योंकि कानून में इनके लिए आर्थिक दंड मेंभी छूट हैगरीबों के लिए छूट होना समझ आती है लेकिन एक नेत्री के लिए जाति के आधार पर छूट कुछ समझ नहींआई लेकिन अंधेर इसी को कहा जाता है वैसे भी उत्तर प्रदेश में ये कथन एकदम सच है और जब तक ये सरकार है सच हीरहेगा --

Government is of the SCST , by the SCST and for the SCST

शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

राजनीति का नया रूप!

जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला कह रहे हें कि अगर अफजल गुरु को फाँसी दी जाती है तो इसके नकारात्मकपरिणाम देश में देखने को मिलेंगे। एक मुख्यमंत्री का ये कथन क्या उनके देश के प्रति निष्टा पर प्रश्नचिह्न नहीं लगा रहेहें? अभी तक तो चोरी छिपे ही अपराधियों और शरारती तत्वों को राजनीतिक शरण और शह मिलती रही है और यहीकारण है कि राजनीति का अपराधीकरण हो चुका है। अब ऐसे देशद्रोहियों को भी राजीनीतिक समर्थन मिलने के संकेतमिलने लगे हें और वह भी खुले आम। ऐसे में अगर देश की आतंरिक सुरक्षा पर सवाल खड़े किये जा रहे हें तो क्या गलतहै?
हम कहते हें कि पाकिस्तान आतंकियों को प्रशिक्षण देता है, उन्हें शह दे रहा है और ये अपने ही देश के अन्दर बैठेराजनेता अपने ऐसे वक्तव्यों से क्या अपनी उनके प्रति सहानुभूति और संरक्षण नहीं दर्शा रहे हें। अगर किसी राज्य कीविधायिका अब देशद्रोहियों के पक्ष में मतदान करके सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती देती है तो लोकतंत्र के तीनस्वतन्त्र स्तंभों को दूसरे के कार्य में निरर्थक हस्तक्षेप कहा जाएगा।
अफजल गुरु संसद हमले काण्ड का आरोपी है तो इसका पूरा मामला केंद्र शासित दिल्ली से जुड़ा है और वहीं केन्यायायलय में मामला विधाराधीन रहा और उसको सजा निधारित की गई फिर इस विषय में किसी राज्य कीविधायिका में उसे विचारार्थ रखने की बात क्यों और कैसे उठी? क्या उमर कश्मीर भारत से अलग और अफजल गुरु कोकश्मीर के प्रति समर्पित मानते हें और यदि नहीं तो फिर कल जब यही kasaab के साथ होगा तो भी क्या इसी तरह सेफाँसी का विरोध करके देश के प्रति अपनी निष्ठां पर स्वयं प्रश्नचिह्न लगाकर अपनी प्रतिष्टा और देश के प्रति निष्ठां नहीं खोरहे हें। इन सब के पीछे सिर्फ किसी एक व्यक्ति का विचार नहीं बनता है - ऐसी बातों के पीछे किसी बड़े दल या केंद्र की शहहोती है क्योंकि ऐसे जघन्य अपराधियों को जब हम सरकारी मेहमान बनाकर वर्षों जेल में पाल रहे हें तो कल को इनकापालना किसी नई घटना का वायस बन जाय तो कोई बड़ी बात नहीं है। अभी हाल में ही १३ जुलाई को कसाब के जन्मदिनपर हुए विस्फोट से अगर सरकार और जिम्मेदार मंत्रालय को समझ नहीं आता है तो फिर उन्हें अपने को गैर जिम्मेदारमान लेना चाहिए और सत्ता छोड़ कर चले जाना चाहिए।
सरकार क्यों ऐसे अपराधियों के मामले को वर्षों लटका कर रखती है क्योंकि उन्हें आशंका है कि अगर वह अफजल गुरुजैसे लोगों को फाँसी दे देती है तो उससे जुड़े वर्ग विशेष का समर्थन खो सकती है और ऐसा कोई भी रिस्क वह लेना नहींचाहती है। इसी लिए गृहमंत्री पी चिदंबरम अपने बयान में ये कह रहे हें कि हर आतंकी हमले को रोका नहीं जा सकता है।क्यों नहीं रोका जा सकता है क्या वे अमेरिका से सबक नहीं ले सकते हें कि एक हमले की तबाही के बाद कोई भीआतंकवादी संगठन वहाँ एक भी वारदात नहीं कर सका और अपने देश के प्रति प्रतिबद्धता दुहराते हुए चाहे राष्ट्रपतिबदल गए हों लेकिन ओसामा को जिन्दा या मुर्दा प्राप्त करने के संकल्प को कभी नहीं बदला। और जिनके इरादे मजबूतहोते हें उन्हें लक्ष्य तक पहुँचाने में कोई रोक नहीं सकता है।
उमर के ये अपने शब्द नहीं है बल्कि उसके साथ दूसरे अलगाववादी नेताओं ने भी सुर मिलने शुरू कर दिए हें। हमारी केंद्रसरकार की इसमें शत प्रतिशत शह है और जब तक ऐसी सरकार रहेगी देश सदैव असुरक्षित रहेगा।