हम तो जिए जा रहे हें और अपने अपने घर को चलाने में खुद को होम किये जा रहे हें क्योंकि आमआदमी के लिए अब परिवार चलना आसान नहीं रह गया है और ये हमारे देश और प्रदेश के चालाक - चालाक इस लिएक्योंकि ये देश की जनता को जानवर से भी बदतर जीवन जीने पर भी उन्हें गरीब नहीं मान रहे हें और दूसरी ओर वे उत्तरप्रदेश में तो वाकई अंधेर नगरी और चौपट राजा वाला खेल चल रहा है लेकिन किसके आगे गुहार लगायी जाए। एकनागनाथ और दूसरा साँपनाथ।
हम बात इस उत्तर प्रदेश की ही कर सकते हें जहाँ पर जातिवादी की जड़ें इतनी गहराई तक राजभवन सेलेकर प्रदेश के क़ानून तक में पैठ बना चुके हें कि लगता है कि यहाँ जो भी होता है वह इस लिए होता है कि यहाँ पर वहीलोग जीवित रहें जिन्हें इस जाति विशेष में विशेष दर्जा दिया गया है.और अनुसूचित नाम का तमगा लगाये जो भी लोगहें वे ही सारे लाभों को लेने के हकदार हें बल्कि उस समय तो हद गुजर गयी जब गरीबी के मानकों को भी अलग अलगपरिभाषित किया गया। शिक्षा जो कि सबका अधिकार है और इसके लिए सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है , इस क्षेत्रमें भी अनुसूचित और पिछड़ा होना लाभदायक सिद्ध हो रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जाति और पिछड़ी जाति केलोगों के लिए २ लाख तक की वार्षिक आय पर जो लाभ दिया जा रहा है वही लाभ सवर्ण को १ लाख रूपये की वार्षिकआय तक ही मिलेगा। अब कोई भी अर्थशास्त्री या कानूनविद इस बात को स्पष्ट करे कि जन्म के आधार पर ये रूपये कीकीमत कैसे अलग अलग हो जाती है? क्या सवर्ण को गरीब होकर उन लाभों को लेने का अधिकार नहीं है और नहीं है तो क्यों ? उत्तर प्रदेश सरकार इस बात को स्पष्ट करे।
उत्तर प्रदेश सरकार अनुसूचित जाति के लिए केंद्र से आरक्षण बढ़ाने के लिए कह रही है क्योंकि अबइतने वर्षों में उनकी आबादी बढ़ चुकी है और शेष जातियों की आबादी लगता है कि समाप्तप्राय हो चुकी होगी। एक उच्चपद पर आसीन जिम्मेदार व्यक्ति से ऐसे गैर जिम्मेदाराना वक्तव्य या फिर अपील को क्या नाम दिया जाय?
एक वही क्यों? यहाँ तो हर दल ने आरक्षण को अपना चुनावी हथकंडा बना रखा है क्योंकि अगर वे इसतरह से जाति के सहारे लोगों न लुभायेंगे तो लोग आकर्षित कैसे होंगे? और सिर्फ उनका ही दोष कहाँ है? ये देश के लोगभी तो अपने स्वार्थ के लिए किसी को भी देश की बागडोर देने में संकोच नहीं करते हें। सिर्फ उन्हें कुछ लोभ दे दियाजाय। लोग तो शायद अपनी गरीबी और स्वार्थवश ऐसा कर भी लें यह खेल तो संसद तक में होता है जहाँ बैठ कर सांसदसाल में लाखों का लाभ ले रहे हें।
वैसे इस समय उत्तर प्रदेश में अनुसूचित या पिछड़ी जाति का होना ही फायदेमंद चीज है क्योंकि इस प्रदेशमें दंड और कानून भी इनके प्रति नरमी बरत रहा है । पिछले दिनों सीमा आजाद नाम की राजनेत्री एक हत्या के मामलेमें दोषी ठहराई गयी और उनका आर्थिक दंड इसलिए काम कर दिया गया क्योंकि कानून में इनके लिए आर्थिक दंड मेंभी छूट है। गरीबों के लिए छूट होना समझ आती है लेकिन एक नेत्री के लिए जाति के आधार पर छूट कुछ समझ नहींआई लेकिन अंधेर इसी को कहा जाता है वैसे भी उत्तर प्रदेश में ये कथन एकदम सच है और जब तक ये सरकार है सच हीरहेगा --
Government is of the SCST , by the SCST and for the SCST।
मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011
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उत्तर प्रदेश का तो रब ही राखा रेखा जी.
जवाब देंहटाएंआरक्षण का रूप तो मुझे भी समझ नहीं आता है जिस गांव के बेकार से स्कुल में पढ़ कर दलित के बच्चे आते है उसी में तो आरक्षण न पाने वालो के भी बच्चे पढ़ते है फिर किसी एक को आरक्षण क्यों आरक्षण का आधार आर्थिक होना चाहिए ना की जातिवाद | लेकिन हमारे देश में तो आरक्षण का आधार वोट बैंक है |
जवाब देंहटाएंबेहद खरा-खरा लिखती हैं आप.....Thanks for sharing.
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक लेख| आप को दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएँ|
जवाब देंहटाएंसमय समय का फेर है कभी सवर्ण होना गर्व की बात थी तो आज अनुसूचित जाति और जनजाति का होने में। इस देश में आरक्षण तब भी था और आज भी है। पता नहीं समानता किस युग में आएगी?
जवाब देंहटाएंab aarakshan sirph ek turup ka patta rah gaya hai jise har koi chala kar satta par kabij rahana chahta hai aur isaka sahi roop kya hona chahie isaki jaroorat hi nahin samajhi jati hai. vaise rajneeti ke vartmaan svaroop men sabhi range siyar hai - una bhole bhale logon ko is aarakshan ke naam par thag bhi lete hain aur ve vahin ke vahin rahate hain. chunavi pralobhan men aakar apane ko aise lalachi logon ke girvi ho jate hain. phayada vahi utha rahe hain jo varshon pahale isa par kabij ho chuke the.
जवाब देंहटाएंNICE.
जवाब देंहटाएं--
Happy Dushara.
VIJAYA-DASHMI KEE SHUBHKAMNAYEN.
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MOBILE SE TIPPANI DE RAHA HU.
ISLIYE ROMAN ME COMMENT DE RAHA HU.
Net nahi chal raha hai.