वह दंपत्ति मुझे एक शादी में मिला था , उससे मेरा दूर का रिश्ता भी है लेकिन तब उनकी नई नई शादी हुई थी। लड़का एयरफोर्स में ट्रेनिंग ले रहा था तभी गाँव के होने के नाते घर वालों ने रिश्ता तय कर लिया और लड़की उस समय नर्सिंग की ट्रेनिंग कर रही थी। दोनों उम्र से २५ से काम की रही होगी।
कुछ विधि का विधान कि लड़की गर्भवती हो गयी , उस समय दोनों ही ट्रेनिंग में थे तो दोनों ने मिल कर निर्णय लिया कि अभी गर्भपात करा देते हें नहीं तो बीच में ट्रेनिंग में व्यवधान आएगा और फिर आगे ये निर्णय ले लेंगे। पर कुछ ऐसे भविष्य के लिए वे तैयार न थे। ladaki के गर्भपात के साथ ही किसी कारण से उसको तकलीफ रहने लगी और दो चार महीने में वह इतनी बढ़ चुकी थी कि उसको अस्पताल में रख कर उसकी uterus को तुरंत निकलने का निर्णय लेना था। दोनों के घर वाले थे और उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी क्योंकि अभी तो उनका दांपत्य जीवन शुरू भी नहीं हुआ था और उसके पहले ही ख़त्म होने के कगार पर आ गया। लड़की के घर वाले अलग चिंता में परेशान थे और लड़के के घर वाले अलग चिंता में।
लड़के की माँ बार बार कह रही थी कि 'सोच लो इससे फिर तुम्हें बच्चा नहीं मिल सकता और इसके बिना तो जीवन अधूरा रहेगा।'
लड़की की माँ और बाप इस चिंता में कि--' इसके बाद मेरी बेटी का क्या होगा? पता नहीं ये लोग उसको कैसे रखेंगे ?'
उस समय न चिंता करने का वक़्त था और न सलाह मशविरा करने का। लड़के ने पेपर लेकर तुरन ही साइन करके दे दिए। ऑपरेशन हुआ और लड़की घर आ गयी और लड़का अपनी ट्रेनिंग के लिए वापस हो गया। लड़की अपने माता पिता के घर आ गयी।
लड़के ने अपनी पत्नी से कहा - तुम चिंता मत करना कोई कुछ भी कहे, मुझ पर भरोसा रखना। मैं जल्दी नहीं आ पाऊंगा लेकिन अपने फैसले पर मैं अडिग रहूँगा।
कुछ महीने भी न बीते थे कि लड़के के घर वाले अब इसके बच्चे न होंगे तो नाम कैसे चलेगा? इससे तो अच्छा है कि दूसरी शादी कर दी जाये , दो शादियाँ होती नहीं हें क्या? पत्नी की सहमत मांगी जाने लगी कि अगर वह राजी हो जाए तो उसकी शादी कर दी जाये। लड़की के घर वाले भी सोचने लगे कि अपनी छोटी बेटी का विवाह कर दिया जाय तो दो बहने साथ बनी रहेंगी और बच्चे भी हो जायेंगे। जब पानी सर से गुजारने लगा तो लड़की ने अपने पति को इस बारे में बताया और तुरंत आने के लिए कहा।
लड़के ने आकर दोनों परिवारों से बात की। उसकी ट्रेनिंग पूरी हो चुकी थी। उसने दोनों परिवारों को बैठकर अपना निर्णय सुनाया - 'मैंने शादी की थी तब ऐसा कुछ भी नहीं था, अब जो समस्या है वो हम दोनों की है। आप लोग इस बारे में न सोचें तो अच्छा होगा। मैं इसको साथ लेकर जा रहा हूँ। अगर आपको ऐसे ही ये लड़का - बहू और beti -damad स्वीकार हो तो खबर कर देना मैं घर आता रहूँगा और अगर नहीं तो मैं इसके साथ रह कर ही खुश रहूँगा। शादी कोई मजाक नहीं है कि जब चाहा उसको अपनी सुविधा से जोड़ लिया और न मन bhara तो उसको तोड़ दिया। '
छोटी उम्र के इस बड़े निर्णय के बारे में पता लगा तो बहुत ही अच्छा लगा कि आज की पीढ़ी अपने मूल्यों के साथ जुड़ी है और उसकी गरिमा को सम्मान दे रही है।
सोमवार, 5 दिसंबर 2011
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आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की जाएगी!
जवाब देंहटाएंयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक पाठक आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो हमारा भी प्रयास सफल होगा!
बहुत बहुत धन्यवाद शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट मानसिकता।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
बहुत अच्छा लगा यह पढ़कर!धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंयदि सबमे ऐसी मानसिकता आ जाये तो कहना ही क्या …………देश और समाज को नयी दिशा मिल जाये।
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रेरक उदाहरण है।
जवाब देंहटाएंसुखद लगा पढ़ना ... आज ऐसे ही युवाओं की जरूरत है ...
जवाब देंहटाएंपढ़ा कर मज़ा आ गया ....कि आज की पीढ़ी समझदारी से चलने को तैयार हो गई है ....अच्छी मिसाल
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत उदाहरण...
जवाब देंहटाएंसादर..
वैसे भी जितनी भी दूर तक नजर जा रही है , मुझे लगता है कि आज की पीढ़ी बहुत समझदारी और संतुलित होकर निर्णय लेने वाली हो रही है. जो एक स्वस्थ समाज का प्रतीक बँटा जा रहा है.
जवाब देंहटाएंबँटा => बनता
जवाब देंहटाएंsahmat
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