रहिमन पानी राखिये , बिन पानी सब सून,
पानी गए न ऊबरे मोती मानस चून।
रहीम जी ने वर्षों पहले ये लिखा था, शायद उन्हें आने वाले समय के बारे में ये अहसास था कि ये विश्व एक दिन इसी पानी के लिए विश्व युद्ध की कगार पर भी खड़ा हो सकता है।
इस एक दिन हम विश्व जल दिवस के रूप में मना लेते हें, कुछ भाषण दिए जाते हें। कुछ लेख लिखे जाते हें लेकिन आने वाले समय में जल विभीषिका के बारे में किसी ने सोचा ही नहीं है। ऐसा नहीं है कि आज इस पानी के लिए लोग तरस नहीं रहे हें ।
मैं किसी को दोष नहीं दे रही लेकिन वो हम ही हैं न कि सड़क पर लगे हुए सरकारी नलों की टोंटी तोड़ देते हें ताकि पानी पूरी रफ्तार से आ सके और फिर अपना पानी भर जाने पर उससे उसी तरह से बहता हुआ छोड़ देते हें। हमें किसी को दोष देने का अधिकार नहीं है लेकिन सबसे ये अनुरोध तो कर ही सकती हूँ कि पानी की एक एक बूँद में जीवन है - एक बूँद जीवन दे सकती है तो एक बूँद के न होने पर जीवन जा भी सकता है। ये प्राकृतिक वरदान है जिसे हम खुद नहीं बना सकते हें और हमारा विज्ञान भी इसको बना नहीं सकता है। हम अनुसन्धान करके खोज तो कर सकते हें लेकिन प्रकृतिदत्त वस्तुओं का निर्माण नहीं कर सकते हैं।
शहरों में सबमर्सिबल लगा कर हम पानी का गहराई से दोहन कर रहे हें और जल स्तर निरंतर गिरता चला जा रहा है। नदियों के किनारे बसे शहरों में भी आम आदमी बूँद - बूँद पानी के लिए जूझ रहा है। लेकिन ये नहीं है कि वह इसके लिए दोषी नहीं है बल्कि एक आम आदमी जो पानी के लिए परेशान है लेकिन पानी आने पर वह इस तरह से बर्बाद करने से नहीं चूकता है।
--घरों में नलों के ठीक न होने पर उनसे टपकता हुआ पानी सिर्फ और सिर्फ पानी की बर्बादी को दिखाता है जिसके लिए हम जिम्मेदार हैं। इस तरह से बहते हुए।
- आर ओ हम जीवन का अभिन्न अंग बना चुके हैं लेकिन उससे उत्सर्जित पानी को बहने के लिए छोड़ देते है। उसका उपयोग हो सकता है, कपड़े धोने में, गमलों में डालकर, घर की धुलाई में।
आज भी लोग मीलों दूर से पानी लाते हैं। बढ़ती आबादी के साथ खपत तो बढ़ती है लेकिन जल स्रोत नहीं। जो हैं उन्हें संरक्षित कीजिए और जल दिवस रोज मानकर चलिए।