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मंगलवार, 25 मार्च 2014

अरब देशों का भम !

                                 अपने घर की आधी रोटी परदेश की पूरी से भली ! ऐसी बातें मैंने बचपन से सुनी हैं और आगे जीवन में अनुभव भी करने लगी लेकिन सिर्फ अपने देश में ही  इसको अनुभव किया।  जैसे जैसे उम्र और अनुभव के साथ साथ सरोकार का दायर बढ़ना शुरू हुआ तब पता चला कि विदेश जाने का चस्का लोगों को किस लिए होता है ? सिर्फ कमाई के लिए - उच्च शिक्षा लेकर भी लोग वहीँ  पर रहना पसंद करने लगे।  मेधा पलायन के रूप बनकर फिर ये हर जगह दिखलाई देने लगा।
                               मेरे घर के आसपास में वर्तमान समय में एक वर्ग विशेष का बाहुल्य है और करीब हर परिवार के  एक या दो बेटे अरब देश में है और वहाँ से पैसे  कमा कर घर  भेज रहे हैं और   परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति सुदृढ़ हो रही है।  इस  परिदृश्य से और युवाओं का इस ओर आकर्षित होना स्वाभाविक है क्योंकि देश में जो सामाजिक , राजनैतिक और आर्थिक हालत है - उससे वे उतनी उन्नति की उम्मीद नहीं कर पाते हैं और वे भी ऐसे स्रोतों के द्वारा अरब देशों में जाकर ढेरों धन कमाने की आकांक्षा में वहाँ चले जाते हैं लेकिन वहाँ पर उन्हें बंधुआ मजदूर बना दिया जाता है।  वे अकुशल , अर्धशिक्षित या फिर अशिक्षित युवा वहाँ की मृग मरीचिका में फंस जाते हैं।  वहाँ पर काम देने से पहले उनके सारे प्रमाणपत्र जिनमें शिक्षा , पासपोर्ट और वीजा सब कुछ जब्त कर लिया जाता है।  उनको सिर्फ खाने और पीने की व्यवस्था के जाती है और वह भी कार्य प्रदान करने वाले की मर्जी के अनुसार होती है।  न भर पेट खाना और न सोने देना।  अधिक से अधिक काम लेने का प्रयास किया जाता है।  वहाँ पर बाहर से आये हुए युवकों के लिए को सुरक्षात्मक क़ानून नहीं होते और न ही उसके बारे में इन जाने वालों को कोई जानकारी होती है।
                                इस आशय की खबरे अख़बार में पढ़ रही  हूँ , वह सिर्फ मैं ही क्यों सभी लोग पढ़ रहे हैं लेकिन इसके विरुद्ध आवाज को धार  देने की जरूरत है।  कोई युवक किसी तरह से जागरण अखबार के ऑफिस में फ़ोन करता है और इस बारे में सब कुछ बयान किया जो वहाँ रह रहे युवक झेल रहे हैं।  फिर दूसरे दिन खबर ५ युवकों को जिन्दा गाड़ दिया गया।  उनको पहले इतना मारा गया कि वे मरणासन्न हो गए और फिर उनको दफन कर दिया गया।  ये खबरें कभी एक या दो सामने आती हैं वह भी कब ? जब कि किसी भी तरीके से वह ऐसी खबरे चुपचाप दे पाते  हैं। 
वे युवक कौन थे?
उनके घर वालों को इस विषय में कुछ भी पता है या नहीं ?
उन्हें ले जाने वाला या फिर उनको यहाँ से भेजने वाला इसके लिए कितना जिम्मेदार है ?
उनके बारे में कौन पता लगा पायेगा ?
                             ये अरब देश ही है जहाँ पर बड़ी संख्या में अकुशल श्रम , घरेलू  काम या फिर छोटे मोटे काम के लिए  नौकरी का प्रलोभन दे कर वहाँ भेजा या बुलाया जाता है।  हम सिर्फ पैसे की चकाचौध तो देखते  हैं और वह भी औरों के घरों में, लेकिन उसकी वास्तविकता के बारे में नहीं जानते क्योंकि कुछ को कहते हुए सुना है कि घर की चोरी  और परदेश की भीख  बराबर है यानि कि अगर अपनी झूठी  शान को बरकरार भी रखना है और अपने काम के विषय में किसी को पता भी नहीं लगना चाहिए।  अगर सरकार इसा दिशा में क़ानून बनाती जा रही है तो उन कानूनों को  ताक पर रख कर चोरी छिपे लोगों को भेजने के काम में कम लोग सम्मिलित नहीं है।  कितनी बार समूह में बच्चों को ले जाते हुए लोग पकड़े जाते हैं ( जिनमें लड़कियां भी शामिल है ) . गरीब घरों से उनके बच्चों और बच्चियों को झांसा देकर लोग ले जाते हैं कुछ रुपये पेशगी लेकर फिर उन बच्चों के विषय में जानकारी मिलना भी मुश्किल होता है।  वे बच्चे कहाँ गए ? इसको जानना बहुत मुश्किल होता है और इसा विषय में कोई भी जानकारी नहीं दी जाती है।  
                             इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ गरीबी और अशिक्षा होती है और उसका फायदा ऐसे लोग उठा रहे हैं।  इस भ्रम को तोड़ने के लिए और जाने के लिए जरूरी जानकारी प्राप्त करने के अधिकार के विषय में ऐसे लोगों को जागरूक बनाना होगा।  

                                

रविवार, 23 मार्च 2014

शहीद दिवस !

                     
          शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले ,   
       वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा !


                       भगत सिंह , सुख देव और राजगुरु  -- आजादी के इन दीवानों ने खुद को होम कर दिया और उनकी आहुति की तपन से ही अंग्रेजों के इरादे जल कर राख हुए , वह बात और है कि इन मरने वालों को श्रेय कितना दिया जाता है ? नहीं जानते हैं कि इस वर्ष चुनाव की आंधी में उड़ रहे नेताओं को ये सुधि भी होगी कि नहीं आज जिस चुनाव में वे जीतने का सपना देख रहे हैं उस की जमीन जिन्होंने तैयार की थी -- वे आज के दिन ही फाँसी चढ़ा दिए गए थे . उनको  श्रद्धा से स्मरण  करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए गर्व महसूस होता है कि हम उस जमीन पर रहते हैं जहाँ पर ऐसे देशभक्त हुए हैं।  

        आज के दिन किसी भी अखबार में देखा कि किसी मंत्रालय ने या किसी सरकार ने इन तीनों वीरों भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव की शहादत के दिन को याद करते हुए कुछ ही शब्दों में श्रद्धांजलि अर्पित की हो। हाँ एक अख़बार "अमर उजाला " में जरूर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा दिया गया एक श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए तीनों के चित्र सहित मिला।  ये पत्र पत्रिका में कुछ संवेदनशील लेखक और मीडिया इसको याद कर लेती हें . हो सकता है कि हमारे सांसदों और विधायकों को ये पता भी न हो कि आज के दिन को शहीद दिवस कहा क्यों जाता है? आने वाले समय में हमारी भावी पीढ़ी इस बात को बिल्कुल ही याद नहीं कर पायेगी क्योंकि कभी स्कूलों में ऐसे दिन कोई याद करने जैसी बात तो होती ही नहीं है कि प्रारंभिक कक्षाओं में ही बच्चों को शिक्षक इन शहीदों के बलिदान दिवस पर कुछ मौखिक ही बता में भी कभी लघु कथा के रूप में और कभी पूरे पाठ के रूप में देश के इन शहीदों की कहानी होनी चाहिए। इस देश की स्वतंत्रता के इतिहास के ये नायक गुमनाम न रह जाएँ।
इन्होने किस जुल्म में अपने को फाँसी पर चढ़ा दिया ये भी तो बच्चों को पता होना चाहिए। कहीं ये सब कालातीत तो नहीं हो चुका  है । ऐसा विचार मेरे मन में क्यों आया? क्योंकि अब तो  पब्लिक स्कूल की संस्कृति में ऐसा कुछ बताने की जरूरत नहीं समझी  जाती है।  उनके बलिदान को जब हम भूल रहे हैं तो फिर आने वाले समय में इतिहास से वह पन्ने कब निकल कर रद्दी का हिस्सा बन  जाएगा कोई नहीं जानता। हम जो यह सब जानते हैं इस विरासत को अपने घर के बच्चों को जरूर बताएं।  देश के प्रति और हमारी स्वतंत्रता के लिए बलिदान करने वालों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि  यही होगी।