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शुक्रवार, 1 जुलाई 2016

डॉक्टर्स डे !

                        आज डॉक्टर्स डे है और वाकई डॉक्टर्स जो भगवान का रूप है इसी दुनियां में हैं।  उनका एक ही धर्म होता है और वह है मानव सेवा।  कभी कभी तो वह अपने पास से पैसे भी देकर सेवा कर जाते हैं।  आज का दिन वाकई ऐसे ही लोगों के लिए नमन का दिन है।  आज के दिन मैं एक डॉक्टर के साथ अपने अनुभव को साझा कर रहे है।
                              कितने लोगों को किस तरह से वो सेवा करते रहे मैं नहीं जानती लेकिन वो मेरे लिए मेरे बहनोई भी थे और डॉक्टर भी।  स्व. डॉ अमित सक्सेना के प्रति किसी के अनुभव जो भी रहे हों लेकिन मेरे अनुभव बहुत ही यादगार रहे हैं।आज के दिन मैं  श्रद्धांजलि अर्पित कर रही हूँ।

 
                                मेरे जीवन की दो यादगार घटनाएं ये साबित करने के लिए पर्याप्त है  , जिनसे मैं उस डॉक्टर के अहसान कभी भूल ही नहीं सकती हूँ।  मेरे ससुर को कैंसर था और उस समय उनको १५ दिनों में बहुत तेज बुखार आना शुरू हो चूका था।  जो उनको बराबर कमजोर करता चला जा रहा था और हमारे लिए भी कष्ट कारक था।  पता मैं नहीं जानती कि उन्होंने कौन सी दवा दी थी कि अंतिम समय तक जब कि  वह करीब १० महीने जिन्दा रहे  उनको बुखार नहीं आया।
                       साल तो मुझे याद नहीं है लेकिन मेरी छोटी बेटी प्रियंका एक दिन सुबह उठी तो उसको कोल्ड स्ट्रोक हुआ और आँखों से दिखना बंद हो गया था और पूरा शरीर उसका शिथिल हो  चूका था. उसने उठने की कोशिश की तो  तुरंत गिर पड़ी।  कितना मुश्किल था उस क्षण को एक माँ बाप के लिए झेलना लेकिन मेरे हर समस्या का समाधान अमित के पास होगा ऐसा हम विश्वास रखते थे।
                     तुरंत हमने अमित को फ़ोन किया और वह उस भयंकर सर्द  सुबह में जितनी भी दवाएं उस समय घर पर थीं , अमित  बाइक से चल कर १५ किमी दूर मेरे घर आ गए।  फिर शुरू हुआ उनका दवा देने का सिलसिला  और धीरे धीरे बेटी की हालत में सुधार शुरू हुआ।  करीब दो घंटे तक उपचार करने पर उसकी हालत में सुधार हुआ और जब वो उठकर खुद चलने लगी और उसको आँखों से भी दिखना शुरू हो चूका था।  तब अमित वहां से निकले।  मैं चिर ऋणी हूँ उनकी।
                      सिर्फ यही नहीं बल्कि हमारी किसी भी तकलीफ का इलाज उनके पास था।  सिर्फ एक फ़ोन की जरूरत होती थी और वह  पूरे लक्षण जान कर दवा लिखवा देते थे और हम उससे वाकई आराम पा जाते थे लेकिन ऐसे लोग अब दुनियां में बचे कितने हैं ?   उनके अकस्मात् और असामयिक निधन ने हमें  कमजोर कर दिया है लेकिन अगर ऐसे डॉक्टर इस धरती पर हों तो उनका भगवान नाम सार्थक है।