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शनिवार, 20 अगस्त 2011

हमारा बैंक : स्विस बैंक !

स्विस बैंक में संचित धन का खुलासा विकीलीक्स पहले ही कर चुका है और इससे सभी लोग वाकिफ होंगे , फिर भी एक बानगी देखें और विचार करें कि इन धन कुबेरों की मानसिकता और इस देश के प्रति जिम्मेदारी कितनी अधिक है कि वे अपने धन की सुरक्षा कुछ लेने के स्थान पर कीमत चुका कर करवा रहे हैं और वह कीमत कहाँ से वसूल रहे हैं? अपने ही देश और देशवासियों से।

१ प्रबोध मेहता - २८००० करोड़
२ चिंतन गाँधी - १९५० करोड़
३ अरुण मेहता - २५०० करोड़
४ आर पासवान - ३५०० करोड़
५ नीरा राडिया - २८९९९० करोड़
६ राजीव गाँधी - १९८००० करोड़
७ नरेश गोयल - १४५६०० करोड़
८ ए राजा -७८०० करोड़
९ हर्षद मेहता - १३५८०० करोड़
१० केतन पारीख - ८२०० करोड़
इन आकड़ों को देख कर कहा जा सकता है कि जिस देश रहने वालों का धन विदेशों में इतनी बड़ी रकम के रूप में संचित हो वह गरीब हो ही नहीं सकता है। ये हमारे ही देश के जिम्मेदार नागरिक है जिन्होंने ये सोचा कि अगर कभी देश में गरीबी बढ़ गयी तो हम उसके शिकार न हों तो यहां से धन चूस चूस कर पहले ही बाहर रख लें ताकि यहाँ से भाग कर वहाँ जीवन आराम से गुजर सके। साफ सी बात है कि अगर ये और इतना पैसा देश की बैंकों में जमा होता तो ये सवाल उठता कि कहाँ से कमाया गया? अगर देश की बैंक में होता तो देश की संपत्ति होती और देश के विकास में काम आता तो ऐसे देशभक्तों को ये कहाँ मंजूर होता? क्या इन्हें देशद्रोही कहा जाय तो गलत होगा क्योंकि ये सभी इसी देश की धरती इन की मिट्टी से उपजा अन्न खा रहे है और यहां की धरती से निकला हुआ पानी लेकिन यहां की धरती के साथ ही धोखा कर रहे हैं। अपनी संपत्ति विदेशों में जमा कर रहे है इन सबसे हिसाब तो लेना ही पड़ेगा कि वे कौन सा रोजगार कर रहे हैं कि जिसका शुद्ध लाभ और अपनी ईमानदारी की कमाई भी छिपानी पद रही है।
आज जब ये आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं और उसी में सांस ले रहे हैं तो फिर इनकी रगों में बहने वाला खून उसकी दुर्गन्ध से पानी बन चुका है और उस गंदे पानी को हमें अपनी शक्ति से इनकी रगों से निकलना होगा। भारत गरीब है क्योंकि हमारे गरीब लोगों के लिए विदेशों से सहायता मिलती है फिर भी इस देश में करोड़ों लोग सिर्फ आसमान के नीचे जीवन गुजर रहे हैं। पालीथीन के बनी छत की झोपड़ियाँ भी नसीब नहीं है। कहीं कहीं बड़ी मीलों या इमारतों की चाहरदीवारी को सहारा बना कर अपने परिवार का आशियाना बना कर लोग रह रहे हैं। ये किसकी देन है इन्हीं भ्रष्टाचारियों की - जो इन सब के लिए सरकार के दिए धन से भी निकाल कर खा रहे है। यहां की तिजोरी भर गयी तो किराये की जगह लेकर विदेशों में धन भर लिया । ये धन आता कहाँ से है? हमसे ही कron का नाम लेकर लिया जाता है और हमें महंगाई के नाम पर चूसा जाता है। सब्सिडी ख़त्म कर दी और चीज महँगी - इससे कमाई हुई और उनके खातों में जमा हो गयी ।
कभी ये भी सोचती हूँ कि राजीव गाँधी के नाम इतना पैसा जमा है , ये किसके काम आ रहा है, राजीव गाँधी साथ नहीं ले जा सके तो फिर सोनिया या राहुल को तो इसकी जरूरत नहीं है। फिर इस संपत्ति का क्या होगा? बाकी लोग भी जिन लोगों ने जमा कर रखा है शेष जीवन में खर्च तो कर नहीं पायेंगे तब क्या होगा - सूम का धन शैतान ही खायेंगे। हमारा दोहन कर ये लोग अपना जीवन सुधार रहे हैं। देश को गिरवी रखने की योजना बना रहे हैं। फिर ऐसा क्यों न हो? सांसदों के वेतन और भत्तों में २०० % की वृद्धि और इनमें से अधिकतर करते क्या हैं? संसद के सत्रों में उपस्थित नहीं होते और वेतन भत्ते पूरे पूरे - उस पर भी खुश नहीं , अरे उन किसानों की तरफ देखो जो हल की जगह खुद जुट कर खेती करते हैं और फिर कर्ज में डूबे रहते हैं और आत्महत्या करने को मजबूर होते हैं । ये इतने भूखे हैं कि इतने पर भी पेट नहीं भरता है और ve vibhinna tareekon से देश की संपत्ति भ्रष्टाचार के sahare अपनी बना कर अपनी bhookh मिटा रहे हैं।

सोमवार, 15 अगस्त 2011

स्वतंत्रता दिवस पर भारी अन्ना का आन्दोलन !

स्वतंत्रता दिवस मनाया गया लेकिन उससे अधिक लोगों में उत्साह है अन्ना का साथ देने में।आज़ादी के जुलूस तो निकले लेकिन उससे अधिक रैली अन्ना के समर्थकों की दिखाई दी। आज़ाद भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और गाँधीवादी आदर्शों पर चलने के लिए शासकों की शर्तों पर चलना होगा क्योंकि संसद और संविधान उनके कब्जे में है। उन्हें फिक्र है कि अन्ना की जान की सिर्फ अन्ना की जान की क्यों? इससे पहले कितने कितने किसानों से आत्महत्या की, कितने लोगों ने आत्मदाह किया कभी सरकार को चिंता नहीं हुई। अरे अंग्रेजों के ज़माने भी इतनी पाबंदियां नहीं थी, आजादी के दीवाने अनशन और सत्याग्रह आन्दोलन करते थे वह बात और है कि वे उसको असफल बनाने के लिए बराबर प्रयत्नशील रहते थे। वे कुछ भी करते थे तो हम उसका विरोध कर सकते थे लेकिन ये तो हमारे ही चुने हुए प्रतिनिधि और हमें ही आँखें तरेर रहे हैं।
बात सत्ता दल की होती तो ठीक थी लेकिन यहाँ पर तो कोई भी राजनीतिक दल अन्ना के साथ खुलकर सामने खड़ा नहीं है क्योंकि सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। आज ये सत्ता में है और कल वे होंगे, भ्रष्टाचार के खिलाफ कोइ बिल आ गया तो फिर उसकी तपिश से वह बच नहीं सकेंगे। इसलिए इस विषय पर सारे दल एक हैं। संसद में सत्ता पक्ष के साथ गुपचुप हुए समझौते क तहत उसके मौजूदा स्वरूप पर मतदान के मुद्दे को उठाया ही नहीं गया। आम आदमी जो अपने मत को देकर अपनी बात बोलने का अधिकार खो चुका है , वही अन्ना के साथ खड़ा है। अगर वहाँ नहीं जा सका तो अपने अपने नगर में शहर में उनके समर्थन की हुंकार तो भर रहा है। ये दल इस बात को भूल रहे हैं कि उनके दल का अस्तित्व इन्ही आम लोगों के बल पर है। अगर वह आपको सर पर बिठाती है तो फिर १९७७ की तरह से इंदिरा जैसी लोकप्रिय नेता को धूल में मिला भी सकती है तो चंद दिन की सत्ता में बचे दिनों में सब्र करके संसद के बाहर का रास्ता दिखा सकती है।
आज स्वतंत्रता दिवस का उत्साह कम ही दिखा अनना पर चर्चा अधिक मिल रही है। दिल्ली सरकार जो खुद भ्रष्टाचार का आरोप लिये खड़ी है प्रधान मंत्री उससे अनुमति का रास्ता सुझा रहे हैं। ये हमारे देश के प्रबुद्ध कहे जाने वाले साफ सुथरी छवि के प्रधानमंत्री हैं , ये अपने विवेक से कोई निर्णय नहीं ले सकते हैं . सबकी नजरें आज तिरंगे पर नहीं बल्कि अनना के साथ होने वाले कल के व्यवहार पर लगी हुई हैं। सरकार अनना को आगे नहीं बढ़ने देना चाहती है क्योंकि अपने पेट की रोटी में मशगूल लोग अगर सड़क पर आ गए तो फिर सिंहासन हिलते देर न लगेगी। हमरी आज़ादी के अधिकार पर डाका डालने की कोशिश कभी भी सफल नहीं हो सकती है । जिस युग वर्ग को १८ वर्ष की आयु में मतदान का अधिकार दिया जा रहा है , वह वर्ग सबसे अधिक खतरनाक साबित हो सकता है इस बात का सरकार को गुमान नहीं है। अगर भगत सिंह , चंद्रशेखर आज़ाद संगीनों के साए में भी अंग्रेजों की रूह फना कर सकते हैं तो फिर ये युवा अभी आज़ाद है और जिस ओर हवा बाह रही है उसी ओर बह कर सैलाब बन जायेंगे। अभी इस वर्ग के खून में बेईमानी का जहर पूरी तरह घुला नहीं है। वह कहर ढहा सकती है और फिर एक बार आपातकाल जैसी स्थिति लाने वाले कांग्रेस पार्टी को उसकी औकात दिखा सकती है।

शनिवार, 6 अगस्त 2011

मित्रता दिवस !

मित्रता दिवस


मित्रता हो तो ऐसे हो कि भगवान भी ईर्ष्या करे।
चाहे जीवन के अँधेरे जो साए से हम साथ रहें।
धन दौलत से दूर कहीं हाथ थाम कर गिरे वक्त में
हम सब दुनियाँ में सबसे पहले अपनों के साथ रहें.

ये रिश्ता कुछ मांगता नहीं है बस देता है सब कुछ
जब खून भी पानी होने लगता है तो उस वक्त
हाथ में दीपक लिए पीछे पीछे चल देता है कहीं
मेरे यार को ज़माने की कोई दूसरी ठोकर न लगे।


अपने सभी मित्रों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं, उन सभी को जो मेरे कठिन से कठिनवक्त में भी दूर से ही सही मेरे साथ रहे और मुझे साहस देते रहे उन परिस्थितियों से लड़ने के लिए। मैं अपने सभी मित्रोंकी चिर ऋणी हूँ क्योंकि ऐसे में कुछ बहुत अपने कहे जाने वाले बहुत दूर खड़े तमाशा देख रहे थे। वक्त गुजर गया औरमित्रों के दीपक अब भी मेरे चारों ओर जल रहे हैं और मुझे रोशनी दे रहे हैं। ये सदा इसी तरह से जगमगाते रहें।

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

ऐसे होते हैं भगवान ?

चिकित्सा क्षेत्र के सभी लोग एक विशेष महत्व रखते हैं और डॉक्टर तो भगवान कहे जाते हैं और होते भी हैंमैंने देखे है ऐसे डॉक्टर - मरीजो की सेवा किसी भी हद तक करने में संलग्न हैंसबसे पहले ऐसे समर्पित डॉक्टरों के लिएनमन और नीचे दी जा रही शर्मनाक घटना के लिए लोगों की जितनी भी भर्त्सना की जाय कम है

ये घटना उत्तर प्रदेश के बहुत पुराने अस्पताल "स्वरूपरानी नेहरु चिकित्सालय" इलाहाबाद की हैजिसने क़ानून और मानवता को ताक पर रख कर ये घृणित काम किया और फिर उसके खिलाफ जंग भी छेड़ दी है
इस अस्पताल के कर्मचारियों ने कुछ मरीजों को अस्पताल से उठा कर दूर जंगल में झाड़ियों में फ़ेंक दियाक्योंकि उनकी हालात में सुधार नहीं हो रहा थाइसमें जिम्मेदार माने जा रहे कर्मचारियों का कहना है कि ऐसा उन्होंनेयहाँ के डॉक्टरों के कहने पर किया थावही डॉक्टर जिन्हें भगवान मानकर मरीज अस्पताल आता है और उसके घर वालेआशाभरी निगाहों से उसको देखते रहते हैंइस कथन में कितनी सच्चाई है - इस बात को सिद्ध नहीं किया जा सकता हैलेकिन फिर भी चाहे जो हो उसके अन्दर एक आत्मा होती है और वह क्या ऐसे घृणित कार्य करने के लिए विरोध नहींकरती हैशायद नहीं , नहीं तो उनकी दया पर निर्भर मरीज को ऐसे जंगल में कौन फ़ेंक सकता है? अगर डॉक्टर ने ऐसाकहा है तो वह और भी शर्मनाक है लेकिन कोई भी कर्मचारी बगैर किसी ऊपर हाथ रखने वाले के ऐसा कदम नहीं उठासकता हैइसके पीछे उच्च कर्मचारी वर्ग का समर्थन या शह जरूर ही हैं
शर्मनाक इस लिए तो है ही --साथ ही जब इसके लिए दोषी पाए गए वार्ड बॉय के खिलाफ कार्यवाहीकी गयी तो सभी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी हड़ताल पर चले गए और बाद में उनके साथ जूनियर डॉक्टर भी मिल गएइसके विषय में क्या कहा जा सकता है? ये कि इस कार्य को अंजाम देने वाले लोगों के साथ जूनियर डॉक्टर की भी साजिशरही होगीएक तो चोरी और ऊपर से सीनाजोरीअब होगी कार्यवाही - जांच के लिए समिति का गठन और इस समितिमें कौन लोग होंगे? वही अस्पताल वाले फिर वे क्यों इसके खिलाफ रिपोर्ट देंगे और दी भी तो हम क्या कर लेंगे? मानवता के मुँह पर कालिख पोतते हुए ये भगवान इनके लिए जो भी दंड निर्धारित किया जाय काम है
एक तरफ हमारा सुप्रीम कोर्ट अरुणा शानबाग जैसे मरीज को दया मृत्यु के लिए सहमत नहीं है औरउस अस्पताल के डॉक्टर और कर्मचारी भी उसके लिए प्रतिबद्ध है और दूसरी ओर जीवित लोगों को मरने के लिए जंगलमें फ़ेंक दिया गया क्योंकि वे अब कभी ठीक नहीं हो सकते हैं या फिर उनकी हालात में सुधार नहीं हो सकता हैअगरऐसा ही हो तो हमारे देश की आबादी बहुत जल्दी काम हो सकती है क्योंकि टाटा मेमोरिअल जैसे अस्पतालों में तोलाइलाज मरीज ही आते हैं और फिर अस्पताल सबको बाहर फिंकवा दे और डॉक्टरों की कोई जिम्मेदारी नहीं हैक्योंकिवहाँ आने वाले कम से कम ८० प्रतिशत मरीज को पूरी तरह से कभी ठीक होना ही नहीं होता हैकुछ वर्षों कि जिन्दगी केलिए क्यों जहमत उठाई जाएलाखों रुपये खर्च किये जायये महज एक खबर नहीं है बल्कि कुछ सोचने के लिएमजबूर करने वाली बात है और इसको सिर्फ विभागीय स्तर पर निपटाने वाली बात भी नहीं बल्कि इसको सरकार केसंज्ञान में लिया जाना चाहिए और अगर सरकार इसके लिए मजबूर है क्योंकि इसमें कुछ सम्मिलित लोग वर्ग विशेष केभी हो सकते हैं जिनपर मुख्यमंत्री जी की विशेष कृपा रहती है तो फिर उनके खिलाफ कार्यवाही हो ही नहीं सकती हैतबइसको हमें सर्वोच्च न्यायालय कि दहलीज पर ले कर जाना होगा

बुधवार, 3 अगस्त 2011

किशोर वय और आप !

ये हर माता-पिता को पता है कि किशोरावस्था बच्चों के जीवन का वह नाजुक दौर होता है जो उन्हें बना और बिगड़ दोनोंसकता है। उनके सोचने और समझने की शक्ति बहुत नाजुक होती है- बरगलाने पर वे भटक सकते हैं और समझाने परसही दिशा ले सकते हैं।
आज अपराध की दृष्टि से सिर्फ एक दिन का अख़बार देखने की जरूरत होती है - इनमें अधिकांश अपराध करने वालेकिशोर होते हैं। वे अभी छात्र ही होते हैं लेकिन कैसे भटक जाते हैं? इसके बारे में कभी हमने सोचा है -

**वे अच्छे घरों के बच्चे होते हैं लेकिन माता-पिता को उनकी संगति के बारे में ज्ञात नहीं होता है।

*माता-पिता अति प्यार के कारण उनको बाइक और कार खरीद कर दे देते हैं। मेरी अपनी ही बहन का किस्सा है , बेटे कोइंटर में ही महँगी बाइक खरीद कर दे दी और पहले ही दिन सपूत ने एक्सिडेंट कर दिया और पहुँच गए थाने। किसी तरहसे उनको छुड़ाया गया। अभी भी उनको पेट्रोल पूरी टंकी भरी हुई चाहिए और माता-पिता इसको पूरा कर रहे हैं। इस बारगर्मियों में जब मुलाकात हुई तो मेरे बहनोई कहने लगे कि पहले आप इसको समझाइए हम इससे बहुत परेशान हैं।पढ़ने में मन नहीं लगता है। नेट पर रात - बजे तक बैठा दोस्तों के साथ पिक्चर डाउन लोड करता रहता है।
मैंने इसके लिए बेटे को नहीं बल्कि अपनी बहन और बहनोई को कस कर डांटा कि समझाने कि जरूरत उस बच्चे कोनहीं बल्कि आपको है। पढ़ाई से पहले
आपने उसको ८० हजार की बाइक दिला दी। दोस्तों में अपनी छवि बनाने के लिएबाइक रेस भी होने लगी। किसी दिन किसी खास दोस्त के किशोर दिमाग में कोई अपमान घुस गया तो जाने क्या करडालें।
पिछले दिनों कानपुर में ही एक किशोर को उसके खास दोस्तों ने मिलकर मार डाला क्योंकि वह जिस लड़की से प्यारकरता था उसी से उसका दोस्त भी करता था। एक परित्यक्ता का एकमात्र सहारा सिर्फ इस लिए चला गया कि उसकेसबसे खास दोस्त ने उसकी जान ले ली। इसमें हम किसको दोष दें? अपनी परवरिश को या उस बच्चे की संगति को। येउम्र प्यार मुहब्बत की नहीं होती बल्कि बच्चों के भटकते कदमों को अगर सही दिशा नहीं दी जाती है तो वे उधर ही चलपड़ते हैं जहाँ उनको रास्ते दिख रहे होते हैं। हमें समझना चाहिए की बच्चे किन हालातों में गलत कदम उठा सकते हैं --

** यदि घर का वातावरण तनाव पूर्ण होता है, माता-पिता के मध्य संबंधों में कटुता रही होती है।
**यदि बच्चे को माता-पिता का पूर्ण संरक्षण नहीं मिलता है , कभी कभी ये दोनों के कामकाजी होने पर भी बच्चे अपनेको अकेला महसूस करने लगते हैं और वे भटक जाते हैं।
**माता-पिता जब बच्चे को पैसे से खेलना सिखा देते हैं और उनकी हर जायज और नाजायज मांग को पूरा करने के लिएतैयार रहते हैं।
**माता-पिता का अतिव्यस्त होना भी इसके लिए रास्ते खोल देता हई क्योंकि उनके पास बच्चे को देखने या उस परनजर रखने का समय नहीं होता है। वे गुड मोर्निंग और गुड नाईट ही करना जानते हैं और फिर अपने काम पर निकलजाते हैं।
**जरूरत होने पर भी माता पिता बच्चों को सिर्फ उनके शौक के लिए बाइक या कार दे देते हैं, इससे बच्चों में औरअधिक घूमने और दोस्तों के साथ मस्ती करने कि आदत पड़ जाती है। यही बाइक और कार उनके साथियों को अपराधमें जुड़े होने पर शक के दायरे में लगा देती है।
** ये उम्र उनके प्रेम प्रसंग की नहीं होती है लेकिन अगर उनके घर में माता - पिता के बीच तनाव रहता है या फिर लड़ाईझगड़े होते रहते हैं तो बच्चा कभी कभी अपने सुरक्षित भविष्य के लिए ऐसे व्यक्ति की तलाश में भटक जाता है जो उसेगलत रास्ते पर भी ले जा स्क्कता है या फिर प्रेम प्रसंग में पड़ जाता है। इस उम्र में उनको एक आकर्षण ही प्यार दिखाईदेने लगता है और इसके परिणाम आज घातक दिखाई दे रहे हैं।
ज़माने के साथ और अपनी जरूरत के साथ माता -पिता बहुत व्यस्त हो रहे हैं लेकिन इससे वह अपने बच्चों के प्रतिदायित्वों से बच तो नहीं सकते हैं बल्कि और अधिक जिम्मेदारी तब बढ़ जाती है जब वे किशोरावस्था में कदम रखनेलगते हैं। आपको कभी उनसे पूछकर कर और कभी उसके दोस्तों और मोहल्ले के लोगों से पूछ कर उनके बारे जानकारीले लेनी चाहिए। अधिक समय दे सकें फिर भी सतर्क रहने की जरूरत तो होती ही है। कुछ सुझाव हैं जो अगर हम सोचकर देखें और विचार करें तो कि इनको अपना कर बच्चों को कुछ तो संभाला जा सकता है।
**परिवार को महत्व दें, इसमें आप अपने माता पिता को अपने साथ रख सकते हैं, इससे बच्चे अपनी स्कूल से छूट करसीधे घर ही आयेंगे। घर पर बड़े का साया होने पर उनके इधर उधर जाने का प्रश्न नहीं
उठता है।
**बच्चों की गतिविधियों पर पूरा पूरा ध्यान दें, उनके मित्रों और संगति के बारे में जानकारी रखें। इसके लिए आप स्कूलसे भी संपर्क में रहें उनके शिक्षक से उनकी प्रगति के बारे में जानकारी लें। कभी कभी ये भी होता है कि बच्चा कक्षा मेंसाथ नहीं चल पाता है और फिर वह स्कूल से ही भागने लगता है और ऐसे बच्चों पर कई अपराधिक इतिहास रखने वालेसंगठन नजर रखते हैं और बच्चों को बरगला कर अपने साथ जोड़ लेते हैं।
**बच्चों को बाइक या कार तब तक दें जब तक कि उनके लिए बहुत जरूरी हो। उन्हें स्कूल बस या फिर दूसरे वाहनसे भेजें बच्चे अधिक सुरक्षित रहेंगे।
**अपने आपसी तनाव या झगड़ों को बच्चों के सामने सार्वजनिक करें। समझदारी से काम लें, उनके अच्छे भविष्य केलिए ही आप दोनों काम करते हैं तो फिर उसके लिए जोखिम लें।
**उनकी रुचियों और अरुचियों के बारे में जानकर ही बात करें क्योंकि शिक्षा के क्षेत्र में अपनी मर्जी उन पर थोपने की सोचें उनकी अपनी रूचि के अनुसार उन्हें पढ़ने दें। अनिच्छा से लिया गया निर्णय उन्हें एकाग्र नहीं होने देता और वेभटक जाते हैं।
**उन्हें समय दें, अपनी व्यस्त की आड़ में उन्हें उपेक्षित करें। उनके साथ समय बिताने कि पूरी कोशिश करें। उनकेदिल में झांक कर देखें तो शीशे की तरह से सब साफ नजर जायगा।