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बुधवार, 3 अगस्त 2011

किशोर वय और आप !

ये हर माता-पिता को पता है कि किशोरावस्था बच्चों के जीवन का वह नाजुक दौर होता है जो उन्हें बना और बिगड़ दोनोंसकता है। उनके सोचने और समझने की शक्ति बहुत नाजुक होती है- बरगलाने पर वे भटक सकते हैं और समझाने परसही दिशा ले सकते हैं।
आज अपराध की दृष्टि से सिर्फ एक दिन का अख़बार देखने की जरूरत होती है - इनमें अधिकांश अपराध करने वालेकिशोर होते हैं। वे अभी छात्र ही होते हैं लेकिन कैसे भटक जाते हैं? इसके बारे में कभी हमने सोचा है -

**वे अच्छे घरों के बच्चे होते हैं लेकिन माता-पिता को उनकी संगति के बारे में ज्ञात नहीं होता है।

*माता-पिता अति प्यार के कारण उनको बाइक और कार खरीद कर दे देते हैं। मेरी अपनी ही बहन का किस्सा है , बेटे कोइंटर में ही महँगी बाइक खरीद कर दे दी और पहले ही दिन सपूत ने एक्सिडेंट कर दिया और पहुँच गए थाने। किसी तरहसे उनको छुड़ाया गया। अभी भी उनको पेट्रोल पूरी टंकी भरी हुई चाहिए और माता-पिता इसको पूरा कर रहे हैं। इस बारगर्मियों में जब मुलाकात हुई तो मेरे बहनोई कहने लगे कि पहले आप इसको समझाइए हम इससे बहुत परेशान हैं।पढ़ने में मन नहीं लगता है। नेट पर रात - बजे तक बैठा दोस्तों के साथ पिक्चर डाउन लोड करता रहता है।
मैंने इसके लिए बेटे को नहीं बल्कि अपनी बहन और बहनोई को कस कर डांटा कि समझाने कि जरूरत उस बच्चे कोनहीं बल्कि आपको है। पढ़ाई से पहले
आपने उसको ८० हजार की बाइक दिला दी। दोस्तों में अपनी छवि बनाने के लिएबाइक रेस भी होने लगी। किसी दिन किसी खास दोस्त के किशोर दिमाग में कोई अपमान घुस गया तो जाने क्या करडालें।
पिछले दिनों कानपुर में ही एक किशोर को उसके खास दोस्तों ने मिलकर मार डाला क्योंकि वह जिस लड़की से प्यारकरता था उसी से उसका दोस्त भी करता था। एक परित्यक्ता का एकमात्र सहारा सिर्फ इस लिए चला गया कि उसकेसबसे खास दोस्त ने उसकी जान ले ली। इसमें हम किसको दोष दें? अपनी परवरिश को या उस बच्चे की संगति को। येउम्र प्यार मुहब्बत की नहीं होती बल्कि बच्चों के भटकते कदमों को अगर सही दिशा नहीं दी जाती है तो वे उधर ही चलपड़ते हैं जहाँ उनको रास्ते दिख रहे होते हैं। हमें समझना चाहिए की बच्चे किन हालातों में गलत कदम उठा सकते हैं --

** यदि घर का वातावरण तनाव पूर्ण होता है, माता-पिता के मध्य संबंधों में कटुता रही होती है।
**यदि बच्चे को माता-पिता का पूर्ण संरक्षण नहीं मिलता है , कभी कभी ये दोनों के कामकाजी होने पर भी बच्चे अपनेको अकेला महसूस करने लगते हैं और वे भटक जाते हैं।
**माता-पिता जब बच्चे को पैसे से खेलना सिखा देते हैं और उनकी हर जायज और नाजायज मांग को पूरा करने के लिएतैयार रहते हैं।
**माता-पिता का अतिव्यस्त होना भी इसके लिए रास्ते खोल देता हई क्योंकि उनके पास बच्चे को देखने या उस परनजर रखने का समय नहीं होता है। वे गुड मोर्निंग और गुड नाईट ही करना जानते हैं और फिर अपने काम पर निकलजाते हैं।
**जरूरत होने पर भी माता पिता बच्चों को सिर्फ उनके शौक के लिए बाइक या कार दे देते हैं, इससे बच्चों में औरअधिक घूमने और दोस्तों के साथ मस्ती करने कि आदत पड़ जाती है। यही बाइक और कार उनके साथियों को अपराधमें जुड़े होने पर शक के दायरे में लगा देती है।
** ये उम्र उनके प्रेम प्रसंग की नहीं होती है लेकिन अगर उनके घर में माता - पिता के बीच तनाव रहता है या फिर लड़ाईझगड़े होते रहते हैं तो बच्चा कभी कभी अपने सुरक्षित भविष्य के लिए ऐसे व्यक्ति की तलाश में भटक जाता है जो उसेगलत रास्ते पर भी ले जा स्क्कता है या फिर प्रेम प्रसंग में पड़ जाता है। इस उम्र में उनको एक आकर्षण ही प्यार दिखाईदेने लगता है और इसके परिणाम आज घातक दिखाई दे रहे हैं।
ज़माने के साथ और अपनी जरूरत के साथ माता -पिता बहुत व्यस्त हो रहे हैं लेकिन इससे वह अपने बच्चों के प्रतिदायित्वों से बच तो नहीं सकते हैं बल्कि और अधिक जिम्मेदारी तब बढ़ जाती है जब वे किशोरावस्था में कदम रखनेलगते हैं। आपको कभी उनसे पूछकर कर और कभी उसके दोस्तों और मोहल्ले के लोगों से पूछ कर उनके बारे जानकारीले लेनी चाहिए। अधिक समय दे सकें फिर भी सतर्क रहने की जरूरत तो होती ही है। कुछ सुझाव हैं जो अगर हम सोचकर देखें और विचार करें तो कि इनको अपना कर बच्चों को कुछ तो संभाला जा सकता है।
**परिवार को महत्व दें, इसमें आप अपने माता पिता को अपने साथ रख सकते हैं, इससे बच्चे अपनी स्कूल से छूट करसीधे घर ही आयेंगे। घर पर बड़े का साया होने पर उनके इधर उधर जाने का प्रश्न नहीं
उठता है।
**बच्चों की गतिविधियों पर पूरा पूरा ध्यान दें, उनके मित्रों और संगति के बारे में जानकारी रखें। इसके लिए आप स्कूलसे भी संपर्क में रहें उनके शिक्षक से उनकी प्रगति के बारे में जानकारी लें। कभी कभी ये भी होता है कि बच्चा कक्षा मेंसाथ नहीं चल पाता है और फिर वह स्कूल से ही भागने लगता है और ऐसे बच्चों पर कई अपराधिक इतिहास रखने वालेसंगठन नजर रखते हैं और बच्चों को बरगला कर अपने साथ जोड़ लेते हैं।
**बच्चों को बाइक या कार तब तक दें जब तक कि उनके लिए बहुत जरूरी हो। उन्हें स्कूल बस या फिर दूसरे वाहनसे भेजें बच्चे अधिक सुरक्षित रहेंगे।
**अपने आपसी तनाव या झगड़ों को बच्चों के सामने सार्वजनिक करें। समझदारी से काम लें, उनके अच्छे भविष्य केलिए ही आप दोनों काम करते हैं तो फिर उसके लिए जोखिम लें।
**उनकी रुचियों और अरुचियों के बारे में जानकर ही बात करें क्योंकि शिक्षा के क्षेत्र में अपनी मर्जी उन पर थोपने की सोचें उनकी अपनी रूचि के अनुसार उन्हें पढ़ने दें। अनिच्छा से लिया गया निर्णय उन्हें एकाग्र नहीं होने देता और वेभटक जाते हैं।
**उन्हें समय दें, अपनी व्यस्त की आड़ में उन्हें उपेक्षित करें। उनके साथ समय बिताने कि पूरी कोशिश करें। उनकेदिल में झांक कर देखें तो शीशे की तरह से सब साफ नजर जायगा।

18 टिप्‍पणियां:

  1. आपका लेख सोचने को विवश करता है, बच्चों का भविष्य ही देश का भविष्य है।

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  2. आपके सभी लेख पढ़ती हूँ ... काश आपकी बात सभी अभिवावक गण समझ पाएँ.....पालन-पोषण ऐसा हो कि 18 साल का होते होते बच्चे को खुद ही माँ बाप के आगे हाथ फैलाने में शर्म आए...

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  3. rekha ji sachmuch men aapka lekh har ghar ke liye upyogi hai, lekin kya kiya jay ki bachche ko niyantran men rakha ja sake, ya samashya bahut hi gambhir hai aaj sabhi ma-baak ke liye, keyon ki aap hamesha to dantfatkar kar bachcho ko rakh nahi sakte, isse to aur hi udandta karne lagta hai aur jiddi bhi ban jata hai ya kahe to vidrohi, yah sab aaj ke adhunik samaj men rahan sahan, ke karan hota hai aur bhi kai karan hain, utni hi samashya bhi hai, is gambhir samashya par koi ayojan nahi hota, na hi karyshala hi, yah samaj aur raj ke liye bhi ghatak hai

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  4. रेखा दी ....जिस समस्या का आपने यहाँ ज़िक्र किया ....वो आज कि अहम् समस्या है ....आज हर एक घर....माता पिता ...इसी समस्या से रूबरू हो रहे है ....आभार आपका....ये लेख हम सबके साथ बांटने के लिए ..

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  5. रेखा जी ये समस्या किशोरावस्था में नहीं होती ये तो बचपन से ही शुरू हो जाती है बच्चो पर शुरू से ही कुछ बातो का ध्यान रखना चाहिए साथ ही मुझे लगता है की बच्चो के साथ बस ज्यादा समय गुजरने से कोई बात नहीं बनेगी ऐसे बहुत सी माँये है जो सारा समय बच्चो के आगे पीछे ही घुमती है उसके बाद भी बच्चे बिगड़े होते है जरुरी है बच्चो के साथ क्वालिटी टाइम बिताया जाये ना की उसकी क्वानटीटी देखी जाये |

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  6. बच्‍चों के साथ कम से कम एक घण्‍टा नियमित गप्‍प मारनी चाहिए, जिससे उनका आचरण खुलकर आपके सामने आ जाएगा। यदि वे ठीक हैं तो संतोष की बात है नहीं तो उन्‍हें समझाने का आपको अवसर मिल जाएगा। किशोर वय के बालकों को विलासिता की वस्‍तुओं से दूर ही रखना चाहिए। समय आने पर ही वस्‍तुओं के उपयोग की छूट देनी चाहिए।

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  7. बिल्कुल सही कहा गलती माता पिता की और भुगतते बच्चे हैं ये तो हमारे पर है हम कैसे संस्कार देते है मगर आज माता पिता भी शान के लिये सब करते है तो उसका दंड उन्हे ही भुगतना भी पडता है मगर ये बात वो खुद नही समझ पाते कि जितनी चादर हो उतने पाँव पसारें और बच्चो की जायज चाहतो को ही पूरा करें।

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  8. baat to sach hai, par har maa bap apne bachcho me apna jeevan jeeta hai, jo usne nahi kiya chahta hai wo sab khushi uske bachche karen...aur sayad issi chakkar me kuchh galat mange bachcho ki manane lagte hain...!!

    yani parents ko khud me sudhar ki jarurat to hai...........par kab tak...:)

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  9. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है , कृपया पधारें
    चर्चा मंच

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  10. बहुत ज़रूरी है ये कि हम अपने किशोरवय बच्चों को समय दें. उनकी अनावश्यक फ़रमाइश बिलावज़ह पूरी न करें. बहुत अच्छी पोस्ट.

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  11. mukesh,

    apani adhoori rah gayi ichchhaon ko bachchon men poori karana theek hai lekin pahale ki majaboori samajh sakte hain ek kamane vala aur 8 khane vale hote the. aaj aap do log kamakar bhi do bachchon ke kharch ko theek se nahin jhel pate hain. unako sab deejiye lekin umra par jab ve uska sadupyog karna seekh len. kishoravastha jeevan ka bada naajuk daur hota hai aur isa samay aapko bhi satark rahana chahie. kuchh saal phir to ve apani bhavishya kee disha le hi lete hain.

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  12. anshumala jee,

    apaka kahana sahi hai, lekin ye samasya adhiktar una mata pita ke samane aati hai jo ki donon kamakaji hote hain, ve bachchon par usa tarah se najar nahin rakh pate hain jis tarah se rakhani chahie ye unaki majaboori bhi ho skati hai lekin isake liye smay dena bahut jaroori hota hai. ghar men rahane vali maan bhi isake liye satark rahen. sirph peechhe peechhe ghoomane se kuchh nahin hota hai balki unpar najar rakhane aur sahi disha dene se hota hai.

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