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शनिवार, 29 नवंबर 2014

अपराध और टीवी !

 
                               मैं इस बात को स्वीकार करती हूँ कि मुझे टीवी पर सावधान इण्डिया , क्राइम पेट्रोल और पुलिस फाइल से आने वाले सच्ची घटनाओं पर आधारित सीरियल देखने में रूचि है और इसके लिए मैं अपने  से जुड़े लोगों  की तमाम दलीलें सुनती हूँ कि इससे अपराध बढ़ते हैं और लोगों को अपराध करने के नए नए तरीकों की जानकारी होती है और अपराध का ग्राफ इससे ही बढ़ रहा है , लेकिन मेरी राय इसके ठीक विपरीत है। 
                            वैसे तो युवा पीढ़ी इन  कार्यक्रमों में कम ही रूचि रखता है और जरूरी नहीं है कि हम उसका गलत पक्ष से ही सीख लें।  उन सबसे कुछ सतर्क होने की दिशा भी तो मिलती है बल्कि वो हमें सबसे ज्यादा मिलती है।  कम से कम हम जैसे लोग कुछ सकारात्मक खोजना चाहते हैं और वो उसी तरह से मिल जाता है जिस दृष्टि से हम उसको देखते हैं।  मैंने बहुत महीनों के अवलोकन और विश्लेषण के बाद कुछ तथ्यों पर विचार किया कि  कैसे हम अपराध में लिप्त लोगों से या फिर होने वाले फ्रॉड से बच सकते हैं ? यह हम अगर समाज का सर्वे करें तब भी इतने सारे मामलों को इकठ्ठा करके निष्कर्ष नहीं ले पाएंगे।  
                             ये बात सच है कि ये सब वे मामले हैं जो पूरे देश से लिए जाते हैं और  शरीफ नागरिक के लिए इनसे बारे में कम  से कम  जानकारी होनी चाहिए . अपराधी किस्म के लोग इससे अपराध के लिए प्रेरित होते हैं लेकिन जो सामान्य जन हैं उनको इससे अवगत होना जरूरी है ताकि वे अपने और अपने परिवार के विषय में सावधान तो रहें , सतर्कता के साथ अपने निर्णय लें . उन लोगों से भी  सावधान रहना होगा जो करीब होकर भी अपराध में लिप्त होकर अपने के लिए ही घातक सिद्ध हो सकते हैं . एक मध्यम वर्गीय नागरिक की अपनी अलग अलग सीमायें होती हैं और उनके जीवन की हदें में निश्चित रूप से न तो बहुत उच्च होती हैं और न ही निम्न होती हैं . वे अपने जीवन में परिवार के पालन पोषण के लिए संघर्ष करते रहते हैं और अपनी जिम्मेदारियों के प्रति बहुत ही समर्पित होते हैं . जीवन की भाग दौड़ में कभी कभी तो अपने आस पास के माहौल से भी पूरी तरह से वाकिफ नहीं होते हैं . वे अपराधों की किस्म से भी वाकिफ नहीं होते हैं और अपराधियों की चालों  से भी वाकिफ नहीं होते हैं . फिर भी  उन्हें इस विषय में अब सतर्क रहना होगा।  काम से काम अपने प्रयास से स्वयं की सुरक्षा पर ध्यान तो दे सकेंगे और सजग रहेंगे।  

                                                                                                                                     (क्रमशः )

गुरुवार, 27 नवंबर 2014

राशन की दुकानें।

          क्या यकीन करेंगे हमारी  सरकार द्वारा आवंटित राशन की दुकानें।  इसकी वास्तविकता सब जानते हैं उन्हें जितना भी सामान मिलता है उसमें सिर्फ BPL  राशन कार्ड रखने वाले ही सामान लेते हैं।  आप पूछेंगे कि मैं इतने विश्वास से कैसे कह सकती हूँ ? एक राशन की दूकान मेरे घर के बहुत करीब है।  मैं कई बार देखती हूँ कि जब हम सुबह मॉर्निंग वाक के लिए निकलते हैं तो चाहे सर्दी हो या गर्मी रात ४ बजे से मिटटी के तेल के लिए डिब्बों की लाइन लगी होती है और उपस्थित लोगों से ज्यादा होती है क्योंकि एक आदमी  कई कई डिब्बों की रखवाली कर रहा होता है क्योंकि कई महिलायें  रखकर घर के कामों में लगी होती हैं और दूसरों के घर काम करने वाली डिब्बा दूसरों की रखवाली में रखा कर काम करने जाती हैं और फिर काम ख़त्म करके आ जाती हैं . कई बार बच्चे खड़े होते हैं  और जब माँ आ जाती है  बच्चे स्कूल चले जाते हैं ।  दूकान ९ बजे खुलती है लेकिन इन्हें तो सामान चाहिए तो नींद ख़राब करके वहां खड़ा होना ही पड़ेगा।
                              

                                 
राशन की दुकानें जो महीने में २८ दिन बंद रहती हैं।

     ये दुकान महीने  में सिर्फ 10 और 21 तारिख को ही खुलती हैं और इसमें सैकड़ों कार्ड जुड़े हुए हैं।  इन लोगों को पता है कि मध्यम वर्गीय लोग राशन की दुकान में लाइन लगाने का समय नहीं रखते हैं सो उन्हें उनके हिस्से का आया हुआ सामान तो काला  बाजारी के लिए एक सबसे बड़ा साधन तो होता ही है।  फिर वे क्यों नहीं सप्ताह में दो दिन सामान वितरित करते हैं ? गरीबों को कब तक अपने हिस्से का सामान ही लेने के लिए भूखे प्यासे घंटों लाइन लगा कर खड़े रहना पड़ेगा ? ऐसा क्यों कर रहे हैं ये लोग ?   ईमानदारी से भी दें तब भी वे मिलवे ने वाले फायदे से वंचित नहीं होंगे।  
                                   
सुबह ४ बजे से खड़े राशन धारक 

                                       वे कहते है कि हमें कोटा लेने के लिए लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं अगर इसी पर निर्भर रहेंगे तो अपने बाल बच्चे कैसे पालेंगे ? मुझे सरकारी नीतियों और उसको नियम कायदों की जानकारी नहीं है लेकिन इतना एक आम नागरिक होने के नाते कह सकती हूँ कि ऐसी दुकानों को सप्ताह में कम से कम २ दिन जरूर खुलने का आदेश होना चाहिए।  गरीबों को अपने हक़ से पेट भरने की जो सरकारी व्यवस्था है उसमें से तो इनका हक़ न मारा जाय।  

शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

विश्व मधुमेह दिवस ! (14 Nov)

                                      आज से ५० साल पहले  जब हम बच्चे थे तो मधुमेह या डायबिटीज जैसे शब्द के बारे में सुना भी नहीं था बल्कि जब हाई स्कूल में होम साइंस में विभिन्न रोगों  के विषय में पढ़ा तो उसमें इस नाम  का कोई रोग न था।  वैसे ये भी कह सकते हैं कि मधुमेह तब लोगों में इतना नहीं था क्योंकि तब व्यक्ति अपने काम स्वयं  करता था और शारीरिक श्रम से ही सारे काम होते थे।  शहरों में और उच्च  मध्यम वर्गीय परिवारों में ही नौकर चाकर हुआ करते थे।  एक मध्यम वर्गीय परिवार में सारे काम पुरुष और महिलायें खुद ही किया करते थे। ऐसे परिवारों में पहले लोग बीमार भी कम ही हुआ करते थे।
                                      आज सम्पूर्ण विश्व की बात करें तो मधुमेह के रोगी तेजी से बढ़ रहे हैं और इसका रूप रोगी  के जीवन में इसके विषय  में आधी अधूरी जानकारी होने और नीम हकीम द्वारा दी गयी सलाहों के कारण  रोग की उपस्थिति अन्य शारीरिक अंगों को भी प्रभावित करता है। इस विषय में शोध करना और रोगियों ( मेरे घर में ही मौजूद हैं - भाई भाभी , पतिदेव , जेठ जी , बहनेंऔर मित्र आदि ) को आगाह करना अब स्वभाव में आ चूका है।  लेकिन कहते है न चिराग तले अँधेरा - वही हुआ भाई और भाभी दोनों ही अपने डॉक्टर से एक बार के बाद दुबारा गए ही नहीं।  वही एक दवा वह लेते रहे।  शुगर चेक करने की जहमत भी नहीं उठाते।  कभी एक बार रात में चेक की लेवल सही आया तो मान लिया कि हमारी तो हमेशा नियंत्रण में रहती है। उनसे पूरी जानकारी ली तो पता चला कि  जब उन्हें लगता है कि  उनकी शुगर बढ़ी हुई है तो आयुर्वेदिक दवा ले ली और कंट्रोल हो गयी तो बंद कर दी।
                                      मधुमेह के टाइप तो जाने दीजिये उन्हें तो सिर्फ मिथकों  से सरोकार रहा है , जो कि  हर दूसरा,  इंसान मधुमेह है  सुनकर, बताना शुरू कर  देता है।  इनमें तथ्य कितने होते हैं ये तो इनके बारे में जानकर ही बताया जा सकता है।
                                         वास्तव में मधुमेह क्यों हो  जाता है ? इसके बारे में जानना जरूरी है।
                  मधुमेह एक ऐसा रोग है जिसमें शरीर में इंसुलिन की कमी के कारण  खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है।  शरीर में समुचित मात्रा में इन्सुलिन न बनने का कारण अग्नाशय का समुचित रूप से काम न कर पाना होता है ।  इस कमी को पूरा करने के लिए ही दवायें और जरूरत पड़ने पर इन्सुलिन भी दिया जाता। है  लेकिन  सबसे पहले हमारे समाज में कुछ मिथक इस बारे में प्रचलित है जो प्रामाणिक नहीं है जब कि तथ्य कुछ और होते हैं।  जिससे हम लोगों में से बहुत सारे लोग ग्रसित हैं और उसके विषय में स्पष्ट होना आवश्यक है।

१. :मिथक : मधुमेह बॉर्डर लाइन पर होने पर चिंता की कोई बात नहीं है।  ऐसा होना सामान्य बात है।

तथ्य : बॉर्डर लाइन डायबिटीज जैसी कोई स्थिति नहीं है बल्कि एक संकेत है आपके शरीर में इन्सुलिन का निर्माण कार्य बाधित हो रहा है और इसके लिए आप अपने खान पान में सुधार करके और अपनी दैनिक क्रियाकलापों में कुछ परिवर्तन करके आप मधुमेह को नियंत्रित करने में सफल हो सकते हैं।  आरंभिक स्थिति में ही इसको बढ़ने से रोक जा सकता है।

२. मिथक : अधिक मीठा खाने से ही मधुमेह होता है।

तथ्य : इसका कोई प्रमाण नहीं है  अत्यधिक मीठा खाना मधुमेह का कारण हो सकता है।  वास्तव में मधुमेह पारिवारिक इतिहास यानि परिवार में माता पिता या दादा दादी को मधुमेह होना , मोटापा , शारीरिक परिश्रम न करने वाली जीवनचर्या या खानपान की गलत आदतें होने से  हो सकता है।

३. मिथक : पौष्टिक भोजन करने से रक्त में ग्लूकोज नहीं बढ़ता है।

तथ्य : सभी खाद्य पदार्थों में अपने स्वभाव के अनुसार कार्बोहाइड्रेट होता है और अगर रक्त में इन्सुलिन पर्याप्त मात्र में होती है तो खाद्य पदार्थों से ग्रहण किया हुआ कार्बोहाइड्रेट रक्त में शुगर की मात्रा नहीं बढ़ने देता है।  लेकिन अगर इन्सुलिन का शरीर में कम निर्माण हो रहा है या पर्याप्त मात्रा में उसका उपयोग नहीं हो रहा है तो पौष्टिक भोजन से भी शुगर की मात्रा रक्त में बढ़ सकती है

४. मिथक :  मधुमेह के रोगियों के चावल नहीं खाने चाहिए।

तथ्य : स्टार्चयुक्त खाद्य पदार्थ भी स्वास्थ्यप्रद आहार के अंतर्गत आते हैं।  मधुमेह के रोगियों को चावल छोड़ने की जरूरत नहीं होती बल्कि उसको स्टार्च कम करके भी खाया जा सकता है।  इसके लिए चावल को पकाते समय अधिक मात्रा में पानी डालें और पकाने के बाद उसके पानी को निथार कर चावल निकाल लें।  ये चावल मधुमेह के रोगियों के लिए खाद्य हो सकता है।

५. मिथक : अनुवांशिकी न होने पर मधुमेह नहीं होता।

तथ्य : कई लोगों की यह भ्रान्ति रहती है कि उनके परिवार में किसी को मधुमेह नहीं था या है तो उनको यह हो ही नहीं सकता है।  ये सत्य है कि मधुमेह अनुवांशिक हो सकता है या कहें तो तब होने की सम्भावना बढ़ जाती है।  लेकिन व्यक्ति विशेष के खान पान , शारीरिक श्रम , मोटापा और तनाव मधुमेह की सम्भावना को बढाने वाले कारक होते हैं।

६. मिथक :  मधुमेह रोगियों को विशेष खाद्य पदार्थ खाने चाहिए

तथ्य  :  मधुमेह रोगियों को विशेष खाद्य पदार्थ खाने चाहिए ऐसा विशेष प्रतिबन्ध नहीं है , लेकिन खाने के अंतराल को निश्चित करके खाना चाहिए।  खाने के मध्य अधिक लम्बा अंतराल नहीं होना चाहिए।  साथ ही  जिन खाद्य पदार्थों में शुगर की मात्रा अधिक पायी जाती है जैसे केला , चुकन्दर , शकरकंद आदि के सेवन को सीमित मात्रा  और शक्कर का सीधा सेवन भी वर्जित होता है क्योंकि इनसे शरीर में जाने वाली शुगर रक्त में शुगर के स्तर को बढ़ा देता है जो रोग के लिए नुकसानदेह साबित होता है।

७. मिथक : डॉक्टर द्वारा इन्सुलिन लेने का परामर्श देने का अर्थ है की आपका रोग अनियंत्रित हो चुका है।

तथ्य :  मधुमेह का टाइप २ होने की  स्थिति में डॉक्टर इन्सुलिन लेने का परामर्श देता है लेकिन इसका अर्थ ये बिलकुल भी नहीं है कि आप पहली अवस्था में ठीक से  नियंत्रित नहीं कर सके हैं।  जब शरीर में  दवाओं द्वारा ग्लूकोज  स्तर बनाये रखना संभव नहीं होता है  तब  इन्सुलिन लेने का परामर्श दिया जाता है।  ये रक्त में ग्लूकोजकी मात्रा को नियंत्रित करता  है।  
                         इसके बारे में बहुत कुछ कहना है ,  हो सकता है कि आप इस बारे में जानकारी रखते हों लेकिन जो नहीं जानते उन्हें  तथ्यों  से अवगत जरूर कराएं !

शनिवार, 1 नवंबर 2014

३१ अक्टूबर '८४ की यादें !

                         

संकल्प दिवस पर शत शत नमन

                   वह दिन वाकई बहुत भयावह रहा था।  जब ये समाचार  कि ' इंदिरा गांधी को उनके अंगरक्षक ने गोलियां मारी हैं। ' मैंने सुना उस समय मैं कानपूर के एलिम्को संस्थान में अपने एम एड के लघु शोध के लिए कुछ किताबें लेने के लिए गयी थी।  वहां पर रेडियो पर न्यूज़ सुनी। सबसे पहले मन में यही विचार आया कि अब देश का क्या होगा? वहां से किताबें लेकर किसी तरह से घर आई। 
                           ऐसे समय में अफवाहों का बाजार किस तरह से गर्म होता है , ये अपने आँखों से देखा और वह दहशत भी झेली हम लोगों ने।  हम उस समय इंदिरा नगर में रहते थे और उस समय वहां पर सिर्फ एक सिख परिवार रहता था।  सब लोगों को डर था कि रात में उस परिवार पर हमला हो सकता है।  उनकी सुरक्षा के लिए इंदिरा नगर के लोग हर तरह से प्रतिबद्ध हुए।  सभी प्रवेश मार्गों पर लोगों की टोली ने अवरुद्ध कर रखा था।  तब मोबाइल नहीं ही थे लेकिन उनके घर की सुरक्षा पूरी थी। 
                          हम जिस घर में रहते थे , नीचे रहते थे और ऊपर मकान मालकिन अकेली रहती थी।  उन्होंने हम लोगों को परिवार सहित ऊपर बुला लिया था कि अगर कुछ होता भी है तो नीचे ज्यादा खतरा है और ऊपर से हम सामना कर सकते हैं।  बीच बीच में रह रह कर अफवाहों का बाजार गर्म हो उठता कि वे लोग ( दंगाई) इस रस्ते से आने की सोच रहे हैं।  हमारा संयुक्त परिवार था हम ९ लोग थे, ६ बड़े और ३ हमारी बेटियां।   कहीं और किसी के घर जा नहीं सकते थे।  बस रात का ही डर था क्योंकि हमले की  साजिश रात में ही रची जाती थी।  कहीं दूर शोर सुनाई देता तो अंदर तक काँप जाते थे कि पता नहीं क्या होगा ? 
                            वह रात गुजर गयी और प्रशासन सतर्क भी हुआ।  वह परिवार सुरक्षित बच गया लेकिन मेरे दायरे में ही नहीं बल्कि रोज साथ होने वाले दो सिख परिवारों की कहानी बदल गयी थी।  उस समय मैं एक पब्लिक स्कूल में प्रिंसिपल का काम भी देख रही थी और मेरे साथ काम करने वाली चरणजीत कौर ( पता नहीं अब कहाँ होंगी ?) टीचर थी।  उस दिन उन्होंने शाम को सभी लोगों को अपने यहाँ खाने पर बुलाया था।  उसके बाद तो कहानी ही बदल गयी।  कई दिनों तक कर्फ्यू लगा रहा और जब स्कूल खुला तो पता चला कि उनका पूरा घर लूट लिया गया और वे लोग कहाँ गए ये पता नहीं लग पाया ? कई महीनों  तक  हम सब सामान्य नहीं हो पाये थे।
                              दूसरा था उसी स्कूल से लगी हुई एक बिल्डिंग मटीरियल की दुकान थी - वह एक सिख सज्जन की ही थी और उनसे करीब करीब रोज ही दुआ सलाम हुआ करती थी और वे थे भी बहुत सज्जन इंसान।  उनकी पूरी दुकान जला दी गयी थी और जो सामान लूटने वाला था लूट लिया गया था।  आस पास के कुछ लोगों को उनसे कुछ बैर भी था और वे लोग बहुत खुश देखे गये , लेकिन हमें दिल  अफ़सोस था कि किसी की रोजी रोटी चली गयी पता नहीं कितने दिन लगेंगे उन्हें फिर से जुटाने में लेकिन इतना था कि  उनका घर वहां नहीं था और वे परिवार सहित सुरक्षित थे।  


                         वैसे तो इंदिरा गांधी जैसी लौह इरादों वाली प्रधानमंत्री के साथ हुआ वह विश्वासघात शर्मिंदा करने वाला था, लेकिन शिकार जो निर्दोष इसमें शिकार हुए वो हादसे भूलने वाली चीज नहीं है।  लेकिन लिखा आज ३० साल बाद है।