आज से ५० साल पहले जब हम बच्चे थे तो मधुमेह या डायबिटीज जैसे शब्द के बारे में सुना भी नहीं था बल्कि जब हाई स्कूल में होम साइंस में विभिन्न रोगों के विषय में पढ़ा तो उसमें इस नाम का कोई रोग न था। वैसे ये भी कह सकते हैं कि मधुमेह तब लोगों में इतना नहीं था क्योंकि तब व्यक्ति अपने काम स्वयं करता था और शारीरिक श्रम से ही सारे काम होते थे। शहरों में और उच्च मध्यम वर्गीय परिवारों में ही नौकर चाकर हुआ करते थे। एक मध्यम वर्गीय परिवार में सारे काम पुरुष और महिलायें खुद ही किया करते थे। ऐसे परिवारों में पहले लोग बीमार भी कम ही हुआ करते थे।
आज सम्पूर्ण विश्व की बात करें तो मधुमेह के रोगी तेजी से बढ़ रहे हैं और इसका रूप रोगी के जीवन में इसके विषय में आधी अधूरी जानकारी होने और नीम हकीम द्वारा दी गयी सलाहों के कारण रोग की उपस्थिति अन्य शारीरिक अंगों को भी प्रभावित करता है। इस विषय में शोध करना और रोगियों ( मेरे घर में ही मौजूद हैं - भाई भाभी , पतिदेव , जेठ जी , बहनेंऔर मित्र आदि ) को आगाह करना अब स्वभाव में आ चूका है। लेकिन कहते है न चिराग तले अँधेरा - वही हुआ भाई और भाभी दोनों ही अपने डॉक्टर से एक बार के बाद दुबारा गए ही नहीं। वही एक दवा वह लेते रहे। शुगर चेक करने की जहमत भी नहीं उठाते। कभी एक बार रात में चेक की लेवल सही आया तो मान लिया कि हमारी तो हमेशा नियंत्रण में रहती है। उनसे पूरी जानकारी ली तो पता चला कि जब उन्हें लगता है कि उनकी शुगर बढ़ी हुई है तो आयुर्वेदिक दवा ले ली और कंट्रोल हो गयी तो बंद कर दी।
मधुमेह के टाइप तो जाने दीजिये उन्हें तो सिर्फ मिथकों से सरोकार रहा है , जो कि हर दूसरा, इंसान मधुमेह है सुनकर, बताना शुरू कर देता है। इनमें तथ्य कितने होते हैं ये तो इनके बारे में जानकर ही बताया जा सकता है।
वास्तव में मधुमेह क्यों हो जाता है ? इसके बारे में जानना जरूरी है।
मधुमेह एक ऐसा रोग है जिसमें शरीर में इंसुलिन की कमी के कारण खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है। शरीर में समुचित मात्रा में इन्सुलिन न बनने का कारण अग्नाशय का समुचित रूप से काम न कर पाना होता है । इस कमी को पूरा करने के लिए ही दवायें और जरूरत पड़ने पर इन्सुलिन भी दिया जाता। है लेकिन सबसे पहले हमारे समाज में कुछ मिथक इस बारे में प्रचलित है जो प्रामाणिक नहीं है जब कि तथ्य कुछ और होते हैं। जिससे हम लोगों में से बहुत सारे लोग ग्रसित हैं और उसके विषय में स्पष्ट होना आवश्यक है।
१. :मिथक : मधुमेह बॉर्डर लाइन पर होने पर चिंता की कोई बात नहीं है। ऐसा होना सामान्य बात है।
तथ्य : बॉर्डर लाइन डायबिटीज जैसी कोई स्थिति नहीं है बल्कि एक संकेत है आपके शरीर में इन्सुलिन का निर्माण कार्य बाधित हो रहा है और इसके लिए आप अपने खान पान में सुधार करके और अपनी दैनिक क्रियाकलापों में कुछ परिवर्तन करके आप मधुमेह को नियंत्रित करने में सफल हो सकते हैं। आरंभिक स्थिति में ही इसको बढ़ने से रोक जा सकता है।
२. मिथक : अधिक मीठा खाने से ही मधुमेह होता है।
तथ्य : इसका कोई प्रमाण नहीं है अत्यधिक मीठा खाना मधुमेह का कारण हो सकता है। वास्तव में मधुमेह पारिवारिक इतिहास यानि परिवार में माता पिता या दादा दादी को मधुमेह होना , मोटापा , शारीरिक परिश्रम न करने वाली जीवनचर्या या खानपान की गलत आदतें होने से हो सकता है।
३. मिथक : पौष्टिक भोजन करने से रक्त में ग्लूकोज नहीं बढ़ता है।
तथ्य : सभी खाद्य पदार्थों में अपने स्वभाव के अनुसार कार्बोहाइड्रेट होता है और अगर रक्त में इन्सुलिन पर्याप्त मात्र में होती है तो खाद्य पदार्थों से ग्रहण किया हुआ कार्बोहाइड्रेट रक्त में शुगर की मात्रा नहीं बढ़ने देता है। लेकिन अगर इन्सुलिन का शरीर में कम निर्माण हो रहा है या पर्याप्त मात्रा में उसका उपयोग नहीं हो रहा है तो पौष्टिक भोजन से भी शुगर की मात्रा रक्त में बढ़ सकती है
४. मिथक : मधुमेह के रोगियों के चावल नहीं खाने चाहिए।
तथ्य : स्टार्चयुक्त खाद्य पदार्थ भी स्वास्थ्यप्रद आहार के अंतर्गत आते हैं। मधुमेह के रोगियों को चावल छोड़ने की जरूरत नहीं होती बल्कि उसको स्टार्च कम करके भी खाया जा सकता है। इसके लिए चावल को पकाते समय अधिक मात्रा में पानी डालें और पकाने के बाद उसके पानी को निथार कर चावल निकाल लें। ये चावल मधुमेह के रोगियों के लिए खाद्य हो सकता है।
५. मिथक : अनुवांशिकी न होने पर मधुमेह नहीं होता।
तथ्य : कई लोगों की यह भ्रान्ति रहती है कि उनके परिवार में किसी को मधुमेह नहीं था या है तो उनको यह हो ही नहीं सकता है। ये सत्य है कि मधुमेह अनुवांशिक हो सकता है या कहें तो तब होने की सम्भावना बढ़ जाती है। लेकिन व्यक्ति विशेष के खान पान , शारीरिक श्रम , मोटापा और तनाव मधुमेह की सम्भावना को बढाने वाले कारक होते हैं।
६. मिथक : मधुमेह रोगियों को विशेष खाद्य पदार्थ खाने चाहिए
तथ्य : मधुमेह रोगियों को विशेष खाद्य पदार्थ खाने चाहिए ऐसा विशेष प्रतिबन्ध नहीं है , लेकिन खाने के अंतराल को निश्चित करके खाना चाहिए। खाने के मध्य अधिक लम्बा अंतराल नहीं होना चाहिए। साथ ही जिन खाद्य पदार्थों में शुगर की मात्रा अधिक पायी जाती है जैसे केला , चुकन्दर , शकरकंद आदि के सेवन को सीमित मात्रा और शक्कर का सीधा सेवन भी वर्जित होता है क्योंकि इनसे शरीर में जाने वाली शुगर रक्त में शुगर के स्तर को बढ़ा देता है जो रोग के लिए नुकसानदेह साबित होता है।
७. मिथक : डॉक्टर द्वारा इन्सुलिन लेने का परामर्श देने का अर्थ है की आपका रोग अनियंत्रित हो चुका है।
तथ्य : मधुमेह का टाइप २ होने की स्थिति में डॉक्टर इन्सुलिन लेने का परामर्श देता है लेकिन इसका अर्थ ये बिलकुल भी नहीं है कि आप पहली अवस्था में ठीक से नियंत्रित नहीं कर सके हैं। जब शरीर में दवाओं द्वारा ग्लूकोज स्तर बनाये रखना संभव नहीं होता है तब इन्सुलिन लेने का परामर्श दिया जाता है। ये रक्त में ग्लूकोजकी मात्रा को नियंत्रित करता है।
इसके बारे में बहुत कुछ कहना है , हो सकता है कि आप इस बारे में जानकारी रखते हों लेकिन जो नहीं जानते उन्हें तथ्यों से अवगत जरूर कराएं !
आज सम्पूर्ण विश्व की बात करें तो मधुमेह के रोगी तेजी से बढ़ रहे हैं और इसका रूप रोगी के जीवन में इसके विषय में आधी अधूरी जानकारी होने और नीम हकीम द्वारा दी गयी सलाहों के कारण रोग की उपस्थिति अन्य शारीरिक अंगों को भी प्रभावित करता है। इस विषय में शोध करना और रोगियों ( मेरे घर में ही मौजूद हैं - भाई भाभी , पतिदेव , जेठ जी , बहनेंऔर मित्र आदि ) को आगाह करना अब स्वभाव में आ चूका है। लेकिन कहते है न चिराग तले अँधेरा - वही हुआ भाई और भाभी दोनों ही अपने डॉक्टर से एक बार के बाद दुबारा गए ही नहीं। वही एक दवा वह लेते रहे। शुगर चेक करने की जहमत भी नहीं उठाते। कभी एक बार रात में चेक की लेवल सही आया तो मान लिया कि हमारी तो हमेशा नियंत्रण में रहती है। उनसे पूरी जानकारी ली तो पता चला कि जब उन्हें लगता है कि उनकी शुगर बढ़ी हुई है तो आयुर्वेदिक दवा ले ली और कंट्रोल हो गयी तो बंद कर दी।
मधुमेह के टाइप तो जाने दीजिये उन्हें तो सिर्फ मिथकों से सरोकार रहा है , जो कि हर दूसरा, इंसान मधुमेह है सुनकर, बताना शुरू कर देता है। इनमें तथ्य कितने होते हैं ये तो इनके बारे में जानकर ही बताया जा सकता है।
वास्तव में मधुमेह क्यों हो जाता है ? इसके बारे में जानना जरूरी है।
मधुमेह एक ऐसा रोग है जिसमें शरीर में इंसुलिन की कमी के कारण खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है। शरीर में समुचित मात्रा में इन्सुलिन न बनने का कारण अग्नाशय का समुचित रूप से काम न कर पाना होता है । इस कमी को पूरा करने के लिए ही दवायें और जरूरत पड़ने पर इन्सुलिन भी दिया जाता। है लेकिन सबसे पहले हमारे समाज में कुछ मिथक इस बारे में प्रचलित है जो प्रामाणिक नहीं है जब कि तथ्य कुछ और होते हैं। जिससे हम लोगों में से बहुत सारे लोग ग्रसित हैं और उसके विषय में स्पष्ट होना आवश्यक है।
१. :मिथक : मधुमेह बॉर्डर लाइन पर होने पर चिंता की कोई बात नहीं है। ऐसा होना सामान्य बात है।
तथ्य : बॉर्डर लाइन डायबिटीज जैसी कोई स्थिति नहीं है बल्कि एक संकेत है आपके शरीर में इन्सुलिन का निर्माण कार्य बाधित हो रहा है और इसके लिए आप अपने खान पान में सुधार करके और अपनी दैनिक क्रियाकलापों में कुछ परिवर्तन करके आप मधुमेह को नियंत्रित करने में सफल हो सकते हैं। आरंभिक स्थिति में ही इसको बढ़ने से रोक जा सकता है।
२. मिथक : अधिक मीठा खाने से ही मधुमेह होता है।
तथ्य : इसका कोई प्रमाण नहीं है अत्यधिक मीठा खाना मधुमेह का कारण हो सकता है। वास्तव में मधुमेह पारिवारिक इतिहास यानि परिवार में माता पिता या दादा दादी को मधुमेह होना , मोटापा , शारीरिक परिश्रम न करने वाली जीवनचर्या या खानपान की गलत आदतें होने से हो सकता है।
३. मिथक : पौष्टिक भोजन करने से रक्त में ग्लूकोज नहीं बढ़ता है।
तथ्य : सभी खाद्य पदार्थों में अपने स्वभाव के अनुसार कार्बोहाइड्रेट होता है और अगर रक्त में इन्सुलिन पर्याप्त मात्र में होती है तो खाद्य पदार्थों से ग्रहण किया हुआ कार्बोहाइड्रेट रक्त में शुगर की मात्रा नहीं बढ़ने देता है। लेकिन अगर इन्सुलिन का शरीर में कम निर्माण हो रहा है या पर्याप्त मात्रा में उसका उपयोग नहीं हो रहा है तो पौष्टिक भोजन से भी शुगर की मात्रा रक्त में बढ़ सकती है
४. मिथक : मधुमेह के रोगियों के चावल नहीं खाने चाहिए।
तथ्य : स्टार्चयुक्त खाद्य पदार्थ भी स्वास्थ्यप्रद आहार के अंतर्गत आते हैं। मधुमेह के रोगियों को चावल छोड़ने की जरूरत नहीं होती बल्कि उसको स्टार्च कम करके भी खाया जा सकता है। इसके लिए चावल को पकाते समय अधिक मात्रा में पानी डालें और पकाने के बाद उसके पानी को निथार कर चावल निकाल लें। ये चावल मधुमेह के रोगियों के लिए खाद्य हो सकता है।
५. मिथक : अनुवांशिकी न होने पर मधुमेह नहीं होता।
तथ्य : कई लोगों की यह भ्रान्ति रहती है कि उनके परिवार में किसी को मधुमेह नहीं था या है तो उनको यह हो ही नहीं सकता है। ये सत्य है कि मधुमेह अनुवांशिक हो सकता है या कहें तो तब होने की सम्भावना बढ़ जाती है। लेकिन व्यक्ति विशेष के खान पान , शारीरिक श्रम , मोटापा और तनाव मधुमेह की सम्भावना को बढाने वाले कारक होते हैं।
६. मिथक : मधुमेह रोगियों को विशेष खाद्य पदार्थ खाने चाहिए
तथ्य : मधुमेह रोगियों को विशेष खाद्य पदार्थ खाने चाहिए ऐसा विशेष प्रतिबन्ध नहीं है , लेकिन खाने के अंतराल को निश्चित करके खाना चाहिए। खाने के मध्य अधिक लम्बा अंतराल नहीं होना चाहिए। साथ ही जिन खाद्य पदार्थों में शुगर की मात्रा अधिक पायी जाती है जैसे केला , चुकन्दर , शकरकंद आदि के सेवन को सीमित मात्रा और शक्कर का सीधा सेवन भी वर्जित होता है क्योंकि इनसे शरीर में जाने वाली शुगर रक्त में शुगर के स्तर को बढ़ा देता है जो रोग के लिए नुकसानदेह साबित होता है।
७. मिथक : डॉक्टर द्वारा इन्सुलिन लेने का परामर्श देने का अर्थ है की आपका रोग अनियंत्रित हो चुका है।
तथ्य : मधुमेह का टाइप २ होने की स्थिति में डॉक्टर इन्सुलिन लेने का परामर्श देता है लेकिन इसका अर्थ ये बिलकुल भी नहीं है कि आप पहली अवस्था में ठीक से नियंत्रित नहीं कर सके हैं। जब शरीर में दवाओं द्वारा ग्लूकोज स्तर बनाये रखना संभव नहीं होता है तब इन्सुलिन लेने का परामर्श दिया जाता है। ये रक्त में ग्लूकोजकी मात्रा को नियंत्रित करता है।
इसके बारे में बहुत कुछ कहना है , हो सकता है कि आप इस बारे में जानकारी रखते हों लेकिन जो नहीं जानते उन्हें तथ्यों से अवगत जरूर कराएं !
मधुमेह दिवस पर सार्थक चिंतनयुक्त प्रस्तुति ...
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