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बुधवार, 17 जुलाई 2024

महत्वपूर्ण क्या ? : करियर या जीवन !

                                      यहाँ हम यह बात एक महिला या लड़की के लिए कर रहे हैं क्योंकि अपनी सुरक्षा , आत्मनिर्भरता और एक  अच्छे जीवन को जीने का अधिकार इस समाज के अनुसार सिर्फ पुरुष को ही नहीं होता बल्कि ये उतना ही आवश्यक एक लड़की और महिला के लिए  होता है।

                                     आत्मनिर्भर होने का अर्थ - ये बिलकुल भी नहीं होता है कि उसे लड़की के अंदर संवेदनाएं , कोमल भावनाएं या फिर एक सुन्दर जीवन जीने की इच्छा नहीं होती हैं।  वह सब कुछ चाहती है - आत्मनिर्भर होने के लिए एक नौकरी , एक सुन्दर घर और उस घर में पति और उसके अपने बच्चे। ऐसा सोचना स्वाभाविक भी है क्योंकि वह सब कुछ करती ही इस लिए है कि वह एक सुखमय और शांतिपूर्ण जीवन जी सके। इसके बाद भी आज कुछ परेशानियों का सामना कर रही है  - कभी रोग से लड़ने की क्षमता की कमी , कभी सामंजस्य की समस्या तो कभी घर और नौकरी के बीच पिसती हुई । इससे पारिवारिक जीवन भी प्रभावित होता है ।

शादी  की बढ़ती उम्र !

                         करियर की तैयारी के लिए वह कई बार कई साल लगा लेती हैं और फिर अपने करियर बनाने के लिए इतना समय लगाने के कारण वह अपनी मंजिल पर पहुँचने के बाद उसको मजबूत भी करना चाहती है।  ऐसा नहीं है इस समय तक वह खुद भी शादी ले लिए तैयार नहीं  होती है , लेकिन घर वाले भी उसके लिए उचित वर खोजते रहते हैं।  इसी  जद्दोजहद में उसकी उम्र बढ़ती जाती है।  आज के समय के अनुसार जॉब के तनाव , अपने को ठीक से सेटल होने का तनाव, उसको ठीक से स्थिर नहीं होने देता है।  जब तक वो शादी करती हैं और फिर परिवार बढ़ाने के लिए प्रयास करती हैं।  तब तक शारीरिक स्थिति कई तरीके से हार्मोन असंतुलन का शिकार होने लगती  है। इससे शरीर में बहुत से परिवर्तन आने लगते हैं।  कई बार वह शरीर की समुचित देखभाल न होने  कारण भी कई समस्याओं में फँस जाती है।

माँ बनने में विलम्ब :-
                       देर से शादी करना और आज के चलन के अनुसार अभी तो जिंदगी शुरू हुई है , इस मानसिकता के अनुसार लड़कियां माँ बनने को दूसरे क्रम में रखती हैं और कभी कभी तो वे माँ बन कर अपनी जिंदगी को बाँटना या कहें उसकी मुसीबतें बढ़ाना नहीं चाहती है।   कई बार माँ  बनने में देर होने के कारण शुरू होता है डॉक्टर के यहाँ चक्कर लगाने का सिलसिला।  कई बार उन्हें आईबीएफ के जरिये माँ बनने की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। ये आधुनिक चिकित्सा  प्रणाली हमें बहुत कुछ ऐसा दे रही है , जो अतीत में संभव नहीं था लेकिन नए नए शोध से जो हमें उपलब्धि हो रही है , वह भविष्य पर अधिक घातक प्रभाव भी डाल रही  है।  इसमें आज कल सबसे घातक रोग जो महिलाओं के लिए सामने आता जा रहा है वह है कैंसर।  

 कैंसर के संभावित कारण :- कामकाजी महिलाएँ यद्यपि प्रसव अवकाश में अपने बच्चे को पूर्ण संरक्षण देती हैं और कभी कभी तो वह और अधिक छुट्टी लेकर भी उनको स्तनपान करवाती हैं लेकिन जैसे  ही वह ऑफिस जाना शुरू कर देती हैं , उनका यह क्रम बिगड़ जाता है।  उनके सामने फिर एक विकल्प रह जाता  है कि वह बच्चे को स्तनपान कराना बंद कर दे।  इसके पीछे आज की आधुनिकता की माँग भी है कि वे अपने फिगर के प्रति इतनी अधिक सजग होती हैं कि  वह स्तनपान कराना बंद कर देती हैं।  लेकिन इससे उसमें दूध बनने की प्रक्रिया धीरे धीरे बंद जरूर हो जाती है और कभी कभी तो ऑपरेशन के बाद दी जाने वाली दवाओं के द्वारा माँ का दूध सुखा दिया जाता है।  यह कभी कभी एक घातक प्रभाव डालता है , इससे स्तन में गाँठ पड़ जाती है और उसके प्रति ऑफिस और घर की व्यस्तताओं के चलते ध्यान भी नहीं दिया जाता है।  यह लापरवाही या कहें कि  समयाभाव , जागरूकता का अभाव उनको एक मुसीबत में फँसा देता है।

माँ न बनने का निर्णय :-  
                                      
                        कई बार लड़कियां शादी भी विलम्ब से करेंगी और फिर माँ न बनने का निर्णय भी उनको बहुत सारी जिम्मेदारियों से मुक्त तो कर देता है लेकिन वह यह भूल जाती हैं कि प्रकृति ने जो शारीरिक संरचना बनाई है वो समय से अपने उपयोग के प्रति सक्रिय होती है और शरीर के हार्मोन्स अपने समय से संतुलन भी बनायें रखते हैं लेकिन यदि उनका समय से शरीर में उपयोग नहीं हो पाता है तो वह कभी कभी विपरीत प्रभाव भी डालते हैं और वह किस रूप में और किस अंग को प्रभावित करेंगे नहीं जानते है । इसलिए दुष्प्रभावोंं से बचने के लिए के लिए एक बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय लेना बेहद जरूरी होती है। 

 सही समय पर सही निर्णय :-                   
 
                            जीवन सबसे महत्वपूर्ण है और इसके लिए परिवार, पति और स्वयं उसे अपने लिए एक समुचित और समयानुसार निर्णय ले लेना चाहिए ताकि जो जीवन मिला है उसको सुखपूर्वक जिया जा सके। सब महत्वपूर्ण है - अगर कोई लड़की अपने परिवार और बच्चों के लिए नौकरी से ब्रेक लेती है तो ये उसका निर्णय है और बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय है या वह नौकरी बिल्कुल ही छोड़ने का निर्णय लेती है तो ये भी वह अपनी क्षमता के अनुसार कार्य सम्पादित करने में वह अपने को तौल कर लेती है।  समाज या उसके परिवार वाले ये कहें कि इतनी पढाई बेकार कर दी या फिर दुनियां की महिलायें नौकरी कर रही हैं तो वह क्यों नहीं कर सकती है? उसके लिए एक विपरीत भाव पैदा करने वाली बात होगी।
 
                             हर इंसान की एक दूसरे से तुलना  नहीं की जा सकती है, हाँ ये अवश्य है कि आपकी या फिर घर वालों की टिप्पणियाँ उसको अवसाद या तनाव का शिकार भी बना सकती है। बेहतर है कि आप स्वयं ही बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय लें और उससे खुश रहें।  एक सुखपूर्ण जीवन ही सबसे बड़ी उपलब्धि है।

मंगलवार, 11 जून 2024

विश्व बाल श्रमिक निषेध दिवस !

  विश्व बाल श्रमिक निषेध दिवस ! 


                        बच्चों को वैश्विक मुद्दा बनाये जाने का भी जन मानस के मन में जागती मानवीय भावनाओं और उनके प्रति संवेदनशीलता है और कितने एनजीओ इस दिशा में काम कर रहे हैं। हर बच्चे को स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा का अधिकार है और हर समाज का जीवन में बच्चों के लिए अवसरों का विस्तार करने का दायित्व भी है।  फिर भी दुनियां भर में लाखों बच्चों को किन्हीं कारणों से उचित अवसर नहीं मिल पाते हैं और वह बाल श्रम की जद में आते हैं।  पूरे विश्व में 160 मिलियन बच्चे बाल श्रम में लिप्त हैं।

 

          
                ये बचपन जो भूखा है और ये बचपन जिसकी भूख  किसी और को मिटानी चाहिए अपने नन्हें नन्हें हाथों से काम कर असहाय माता - पिता की  भूख मिटाने के लिए काम  कर रहे हैं और कहीं कहीं तो नाकारा बाप के अत्याचारों से तंग आकर उसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी मजदूरी करने लगते हैं और कहीं कहीं माँ बाप के द्वारा ही बेच दिए जाते हैं।
                मैं अपनी बहन के यहाँ गयी तो उसकी सास ने कहा - कोई लड़की काम करने के लिए आपके जानकारी में हो तो बताना . घर में रखना है कोई तकलीफ नहीं होगी , घर वालों को हर महीने पैसे भेजती रहूंगी . क्या कहती उनसे ? उनकी बहू और बेटियां बहुत नाजुक है कि  वह अपने बच्चों को तक नहीं संभाल  सकती हैं और घर के काम के लिए उन्हें कोई बच्ची चाहिए क्योंकि उसको डरा धमका कर काम करवाया जा सकता है और अगर बाहर की होगी तो उसके कहीं जाने का सवाल भी नहीं रहेगा, स्थानीय होगी तो राज घर जायेगी तो सीमित समय तक ही काम करेगी। 
 
 
                ये घरेलू  काम करने वालों का हाल है . होटलों , ठेकों , भट्ठों और भवन निर्माण में ऐसे बच्चे काम करे हुए देखे जा सकते हैं और उनके नन्हे हाथ कितनी तेजी से काम करते हैं ? यहाँ मुफ्त शिक्षा भी क्यों नहीं ले पा  रहे हैं ये बच्चे ? क्योंकि माँ बाप को दो पैसे कमा कर लाने वाले बच्चे चाहिए जिससे खर्च में हाथ बँटा सके। माँ बीमार हो तो बेटी काम करके आएगी। स्कूल जाने पर क्या मिलेगा? 
 

                  इनके लिए सरकारी नीतियाँ तो हैं लेकिन उन नीतियों को लागू करवाने के लिए जिम्मेदार लोग शोषण करने वालों से ही पैसे खाकर सब कुछ नजर अन्दाज करके कागजों में खाना पूरी करते रहते हैं।  घर में काम करने वाली कम उम्र लड़कियाँ अक्सर यौन शोषण का शिकार होती हैं और वे अपनी मजबूरी के कारण  कुछ कह नहीं पाती हैं।  घर की मालकिन भी पति के डर से अपना मुँह बंद रखती हैं। 
 
           होटलों में मुँह अँधेरे से उठ कर काम करते हुए बच्चे और आधी रात  तक होटल बंद होने तक काम करते रहते हैं और खाने को क्या मिलता है ? बचा हुए खाना या नाश्ता। वहीं से वह कभी कभी अपराधों में भी लिप्त हो जाते हैं। ढाबे और सड़क किनारे बने हुए चाय के होटल तो ऐसे बच्चों को ही रखते हैं ताकि उन्हें कम पैसों में अधिक काम करने वाले हाथ मिल सकें। जहाँ पर दौड़ दौड़ कर काम करने वाले नौनिहाल होंगे वहाँ पर अत्याचार का शिकार भी होंगे। 
 

             
आज के दिन इन बच्चों को कोई छुट्टी देने वाला भी नहीं होगा। वे बिचारे क्या जाने इस लोकतान्त्रिक देश में उनको पढ़ने लिखने और और बच्चों की तरह से खेलने का पूरा अधिकार ही नहीं है बल्कि सरकारी तौर पर उनके लिए मुफ़्त शिक्षा और खाने पीने की व्यवस्था भी है। हम इस दिन को मना कर और कुछ लिख कर अपने दिल में तसल्ली कर लेते हैं कि  हमारा फर्ज पूरा हो गया लेकिन हम भी उतने ही दोषी है क्योंकि कहीं भी काम करते हुए बच्चों से काम लेने वालों को समझाने का काम करने का प्रयास तो कर ही सकते हैं। ये भी निश्चित है की जिन्हें ये मुफ्त में काम करने वाले मिले हैं, वह हमें 'भाषण और कहीं जाकर दीजिये।' कह कर वहाँ से चले जाने के लिए मजबूर कर देंगे। 
 
         अभी पिछले दिनों ही एनसीआर के एक स्लॉटर हाउस में कितने नाबालिग बच्चे काम करते हुए पकड़े गए। फिर आगे क्या होगा? इसके बारे में कोई भी जानकारी नहीं है। लेकिन अगर उनको कार्यस्थल से बाहर लाया गया है तो जरूर उनको वहाँ से मुक्ति मिलेगी। लेकिन ऐसे बच्चों की पारिवारिक और सामाजिक परिस्थियों का भी अध्ययन होना चाहिए।  सरकार द्वारा गरीबी रेखा से नीचे पाए जाने वाले परिवारों को वो सुविधाएँ दिलवाने का प्रयास हो ताकि इन बच्चों के भविष्य के बारे में कुछ सार्थक सोचा जा सके।
 
        सरकारी प्रयास कभी तो अच्छे अफसर पाकर सफल हो जाते हैं और कभी वे भी बिक़े होते हैं,  लेकिन हम प्रयास तो कर ही सकते हैं, और हो भी रहे हैं।  कहीं कोई एक बच्चा भी माँ बाप को  समझाने से, मालिक को  समझाने से, उसके बचपन को बचाने   में सफल हो सके तो आज का दिन सार्थक समझेंगे 
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*सभी चित्र गूगल के साभार 
 
 

बुधवार, 1 मई 2024

श्रमिक दिवस !

              

                                                          श्रमिक दिवस !

 

                    विश्व में सभी को एक दिन का सम्मान दिया जाता है , वह सम्मान चाहते हों या न हों ।​​ इसी क्रम में श्रमिक हमसे कभी भी अपनी आशाओं के लिए अपेक्षा नहीं करते , कभी हमारा बोझ अपने कन्धों पर उठाते हैं , कभी हमें रिक्शे में बैठा खुद सारथी बन कर मंजिल तक पहुँचाते हैं ।​​ आज उन्हें सम्मान देने वाला दिन है ।         

          आज विश्व श्रमिक दिवस है । मैं चिलचिलाती धूप में पसीने से लथपथ  खुद को काम में झोंके हुए उन सभी श्रमिकों को सलाम करती हूँ, जिन्हें हमने ये दिन दिया ।​ पर सिर्फ इस सम्मान के  समर्पण से ही हम उनके परिश्रम की कीमत का आकलन कर पाते हैं।​  हाथ ठेला गाड़ी में टनों लोहे को लादकर खींचते हुए - वे पूरे कार्य के लिए अपने क्षीण शरीर का उपयोग करते हैं , लेकिन हाथ की लकीरों में जरूर कुछ अंतर तो लेकर आते हैं। हम उन्हें हेय समझते हैं , फिर भी उनके फैले हुए हाथों पर कुछ न कुछ कभी तो रख ही देते हैं और उस पर भी मोल तोल लेते हैं कि यह इतना नहीं होता है, वे ज्यादा माँग रहे हैं । 
 
           ये उनके हक के पैसों खुद रख लेने या फिर जिस पैसे को बचाने की हमारी नीयत रहती है। हम उससे कुछ पीना चाहते हैं या फिर धुएँ में उड़ाते हैं, सब पर लागू नहीं होता है लेकिन अगर हम किसी को भाड़े पर लेकर सेवा करवा रहे हैं तो हम इतने सम्पन्न होने हैं कि उनके परिश्रम की पूरी कीमत अदा कर सकें। अगर आप चाहें तो शायद वे नमक के साथ रोटी खाने की जगह पर किसी भी सब्जी से खाने की सोच सकते हैं । 
   
              पूरी दुनिया की बात तो नहीं होती लेकिन अगर हम सिर्फ अपने नगर कानपुर की ही बात करें तो कभी भारत का मैनचेस्टर कहा जाता था ।​ आज से चालीस साल पहले यहाँ पर कपड़ों की कई मिलों का धुआँ आकाश में उड़ता था और लाखों की संख्या में मजदूर अपने परिवार पालते थे। वे दो दो पाली में काम करके अपने परिवार को आराम से पाल रहे थे।  
              धीरे -धीरे सब बंद हो गईं,  मिलों की बड़ी- बड़ी बिल्डिंगें आज भी खंडहर बन कर खड़ी हैं, लेकिन वे मजदूर आज भी आशा रखते हैं कि वे शायद चल पड़े और जो उस समय के युवा थे वे आज खत्म हो गए हैं और उनके नन्हे - मुन्ने बच्चे युवा हो गए हैं । उनके बच्चे भी श्रमिकों का ठप्पा लिए जगह - जगह घूम रहे हैं क्योंकि न तो उनके पास पढ़ने के लिए पैसे थे और न ही सरकार के पास उनके लिए कुछ सार्थक पहल थी , न है कि वे जीवनयापन के लिए कुछ कर सकें। सारी सरकारी घोषणाओं में सिर्फ कागजों में होती हैं, उनका क्रियान्वयन नहीं होता, अगर हुआ भी तो फ़ायदा कोई और उठाता है वे तो तब भी बिकते हैं। संगठित मजदूरों की कितनी संख्या है ? सभी असंठित मजदूर हैं और उनके बहते हुए पसीने की कमाई का सिर्फ कुछ प्रतिशत ही दे दें ।​​ सरकार की ओर से पंजीकृत कंपनी होने के बाद भी वे इस बात से सहमत नहीं हैं और वे जी तोड़ मेहनत करते हैं।  समय से पहले बूढ़े हो जाते हैं और कभी -कभी अशक्त हो जाते हैं और कभी-कभी किसी बीमारी का शिकार होकर एडियां रांगते हुए मर जाते हैं । वे पीढ़ी दर पीढ़ी श्रमिक बने ही रहते हैं । इनमें मिलने वाली सुविधाएँ तो कोई और खा रहा है । हम औरों तक क्यों जाएँ ?​ क्या हमने से किसी ने अगर आपके यहाँ कुछ काम करने वाले लोग हैं तो आज की  छुट्टी दे दी है , क्या हमने कुछ अच्छा खाने के लिए दिया है या आज के दिन के लिए कुछ अतिरिक्त पैसे दिए हैं ?

               शायद नहीं - हम इतना कर ही नहीं सकते ।​ हमारी सोच तो अपने से ऊपर किसी को देखती ही नहीं है  है ? फिर क्या फायदा इस दिन को सलाम का ? अरे कुछ सरकार ही ऐसे काम कर सकती हैं, जिससे आज का दिन विशेष बन जाएगा।​ हम भी तो कर सकते हैं अगर हम अपनी तरह से इंसान समझ कर कुछ कर सकें तो दिन सार्थक भी हो।​​​ आज तो चले गए आगे के लिए कुछ संकल्प कर लें कि हम उन्हें कुछ ऐसा देंगे कि वे भी अनुभव करें कि उनके लिए विश्व में कोई भी दिन है जिस दिन वे काम के बिना भी कुछ अलग व्यवहार प्राप्त कर सकते  तभी ये दिन उनके लिए सार्थक होगा ।

शुक्रवार, 12 जनवरी 2024

मकर संक्रान्ति !

               मकर संक्रान्ति हिंदू धर्म में एक प्रमुख पर्व है।  पौष मास में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है तभी यह पर्व मनाया जाता है। हिदू धर्म में एकमात्र मकर संक्रांति का पर्व ऐसा है, जो अंग्रेजी तारीख के अनुसार मनाया जाता है यह वह पर्व है जो अंग्रेजी माह जनवरी की दिनाँक  13 - 14 को ही पड़ता है लेकिन कभी कभी ग्रहों की गति या सूर्य के प्रवेश के समय में कुछ अंतर होने पर यह 15 जनवरी को भी पड़ती है  क्योंकि मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को उत्तरायणी भी कहा जाता है।  इसको उत्तरायणी गुजरात राज्य में ही कहा जाता है। मकर संक्रांति एकमात्र ऐसा पर्व है जिसका निश्चय सूर्य की गति की अनुसार होता है क्योंकि शेष सभी पर्व चन्द्रमा की गति के अनुसार निश्चित होते हैं।  इसका अपना पौराणिक महत्व माना  जाता है।

मकर संक्रांति से काल चक्र में परिवर्तन 
 वैज्ञानिकों का मानना है कि उत्तारायण में सूर्य के ताप शीत को कम करता है।14 जनवरी मकर संक्रांति के साथ ही ठंड के कम होने की शुरुआत मानी जाती है। हालांकि जलवायु परिवर्तन का असर मौसम पर भी पड़ा है। बता दें कि एक संक्रांति से दूसरे संक्रांति के बीच के समय को सौर मास कहते हैं। मकर संक्रांति के बाद जो सबसे पहले बदलाव आता है वह है दिन अवधि का बढ़ना और रात की अवधि का छोटा होना। मकर संक्रांति का  धार्मिक महत्व है उसके साथ साथ वैज्ञानिक महत्व भी  है। जैसी कि पौराणिक महत्व की बात करते हैं तो इसके साथ ही प्राकृतिक परिवर्तन के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।  

          
स्वास्थ्य के लिए मकर संक्रांति का महत्व
आयुर्वेद के अनुसार इस मौसम में चलने वाली सर्द हवाएँ  कई बीमारियों की कारण बन सकती हैं, इसलिए प्रसाद के तौर पर खिचड़ी, तिल और गुड़ से बनी हुई मिठाई खाने का प्रचलन है। तिल और गुड़ से बनी हुई मिठाई खाने से शरीर के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इन सभी चीजों के सेवन से शरीर के अंदर गर्मी भी बढ़ती है। मौसम के संक्रमण काल के चलते ये आहार शरीर के अनुकूल होते हैं।    खिचड़ी से पाचन क्रिया सुचारु रूप से चलने लगती है। इसके अलावा आगर खिचड़ी मटर और अदरक मिलाकर बनाएं तो शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। यह शरीर के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है साथ ही बैक्टिरिया से भी लड़ने में मदद करती है। 
                   
मकर संक्रांति से जुडी पौराणिक आधार        
                       मकर संक्रांति एकमात्र ऐसा पर्व है जिसका निश्चय सूर्य की गति की अनुसार होता है क्योंकि शेष सभी पर्व चन्द्रमा की गति के अनुसार निश्चित होते हैं।  इसका अपना पौराणिक महत्व माना  जाता है।
पौराणिक सन्दर्भ में प्रमुख तीन घटनाओं को उल्लिखित किया गया है --

1 . ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि  शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं , इसी लिए सूर्य धनु राशि से मकर में प्रवेश करते है ,तभी इसको मकर संक्रान्ति कहा जाता है।

2 .  महाभारत काल में भीष्म पितामह सूर्य के दक्षिणायन होने के कारण शरशय्या पर रहे , जब तक कि  सूर्य उत्तरायण नहीं हुए और इसी दिन उन्होंने अपने प्राण त्यागे थे।

3 . मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर  कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर  में जाकर मिली थीं। 
               
 देश के विभिन्न भागों में संक्रांति का स्वरूप --

            संक्रांति हे एक ऐसा पर्व है जो सम्पूर्ण देश में मनाया जाता है और अपने अपने रिवाजों के अनुरूप उसके स्वरूप को निश्चित कर लिया है।  एक दृष्टि देश के सभी राज्यों में मनाये जाने वाले ढंग पर डाले

पश्चिम  बंगाल -- बंगाल में इसको पौष माह के अन्तिम दिन पड़ने के कारण ही 'पौष पर्व ' नाम दिया गया है।  इसमें खजूर , खजूर के गुड़ को मिठाई बनाने में  प्रयोग  किया जाता है और माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है।  दार्जिलिंग में भगवान् शिव की पूजा होती है। इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल  दान करने की प्रथा है।

तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश --   पोंगल - ये चार दिनों का त्यौहार होता है -- प्रथम  भोगी-पोंगल जिसमें दिवाली की तरह ही घर की सफाई करते हैं , दूसरा  सूर्य-पोंगल  मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है।इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा भी की जाती है। तीसरा  मट्टू अथवा केनू-पोंगल  जिसमें पशुओं की पूजा की जाती है ,उसके बाद खीर को प्रसाद  के रूप में सभी ग्रहण करते हैं।,  और चौथे  दिन कन्या-पोंगल- इस दिन बेटी और जमाई  का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।

 पंजाब --   लोहड़ी  १३ जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन सुबह स्नान करके तिल के तेल का दीपक जलाते हैं ताकि  घर में खुशियां और समृद्धि आये।  इस दिन अँधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल , गुड़ और मूंगफली और भुने हुए मक्के (तिलचौली ) की आहुति दी जाती है। इसमें भाँगड़ा और गिद्धा  नृत्य की  विशेष रूप से धूम होती है।   लोग  तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियाँ आपस में बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं। नई बहू और नवजात बच्चे के लिये लोहड़ी का विशेष महत्व होता है।

महाराष्ट्र --इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं -'तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो।' इस दिन महिलाएँ आपस में तिल, गुड़, और हल्दी कुमकुम बाँटती हैं।

उत्तराखण्ड -- यहाँ पर यह घुघूती या काले कौवा के नाम से जाना जाता है और इसको चिड़ियों के अन्यत्र प्रवास को ख़त्म होने का पर्व मनाया जाता है।  इसमें खिचड़ी और अन्य चीजें दान की जाती हैं।  जगह जगह मेले लगते हैं और मीठे व्यंजन बना कर चिड़ियों को खिलाये जाते हैं।  

कर्नाटक -- यहाँ पर इसे  कृषि से सम्बद्ध मानकर मनाया जाता है।  वे अपने घरों को रंगोली से सजाते हैं और अपने पशुओं को भी  सजाते हैं।  उनके सीगों को रंगों से सजाते हैं।  महिलायें एक दूसरे के यहाँ एक थाली में तिल , गुड़ , गन्ने और अन्य मिष्ठान भर कर आदान प्रदान करती  हैं।

गुजरात -- मकर संक्रांति या उत्तरायण गुजरात का प्रमुख त्योहार है। पहले दिन 14 जनवरी को  उत्तरायण  मुख्य रूप से पतंगबाजी के रूप में मनाया जाता है। पतंग उड़ाने प्रतियोगिताएं राज्य भर में आयोजित की जाती है. अगले दिन बासी  उत्तरायण कहा जाता है , इसमें सर्दियों में उपलब्ध सब्जियों और चिक्की, तिल के बीज, मूंगफली और गुड़ से बने का एक  विशेष व्यंजन तैयार करते है, जिसका प्रयोग इस अवसर का जश्न मनाने के लिए किया जाता है।

 बिहार व झारखण्ड -- बिहार / झारखंड में इसे सकरात  या खिचड़ी  कहते हैं। पहले दिन मकर संक्रांति के दिन, लोग तालाबों और नदियों में स्नान करते हैं और मीठे व्यंजनों में तिल गुड़ के लड्डू और चावल की लाई 
 के लड्डू भी बनाये जाते हैं। खाने में चिवड़ा और दही  को प्रमुख रूप प्रयोग करते हैं।  खिचड़ी और काले तिल का दान विशेष रूप से किया जाता है।  

हिमांचल प्रदेश -- इसको माघ साजी  कहा जाता है , साजी  संक्रांति का प्रतीक शब्द है।  शरद के समापन बसंत के आगमन पर मनाया जाता है।  इसमें पवित्र जल में स्नान करके मंदिरो  में जाते हैं।  गरीबों में खिचड़ी , मिठाई दान करते हैं।  आपस में भी खिचड़ी और गुड़ तिल की चिक्की का आदान प्रदान करते हैं और शाम को लोक नृत्य आदि का आयोजन होता है।  

आसाम --  आसाम में इसको बिहू कहा जाता है।  इसमें रात में ही बांस और सूखे पत्तों से झोपड़ी नुमा तैयार करते हैं और सुबह स्नान करके उस झोपड़ी को जलाते हैं फिर चावल की रोटी बनाते हैं पीठा बनाकर देवता को अर्पित करते हैं और फिर आपस में बाँटते हैं।  इसी के साथ अच्छी फसल की कामना करते हैं।  

राजस्थान -- इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं।

 उत्तर प्रदेश -- यहाँ पर भी इसको संक्रांति या खिचड़ी के नाम से जाना जाता है , यह दो दिन मनाया जाता है - पहले दिन शाम दाल की नयी फसल आने के उपलक्ष में मूंग दाल के मगौड़े और उडद दाल के बड़े बनाये जाते हैं और दूसरे दिन सुबह लोग पवित्र नदी अगर उपलब्ध है तो उसमें स्नान करते हैं और फिर काले तिल और खिचड़ी का दान करते हैं।   उस दिन खाने में खिचड़ी ही खायी जाती है।  इसके साथ ही तिल के लड्डू के साथ साथ अन्य धान्य के लड्डू जैसे भुने चने के , लाइ के , रामदाना के का भी सेवन करते हैं और दान करते हैं।  इस पर्व पर संगम के साथ साथ गंगा , यमुना आदि नदियों में स्नान करने लाखों की संख्या में लोग आते है।

 कश्मीर घाटी -- में इसको नवजात शिशु या नववधू के आगमन पर उत्सव के रूप में मनाया जाता है और इसको शिशुर संक्रात  कहते हैं। 

                                भारत के अतिरिक्त यह पर्व अलग अलग नामों से बाहर भी मनाया जाता है।  इसमें पडोसी देशों में  --
नेपाल  --  मकर संक्रान्ति को माघे-संक्रान्ति, सूर्योत्तरायण  कहा जाता है। थारू समुदाय का यह सबसे प्रमुख त्यैाहार है। नेपाल के बाकी समुदाय भी तीर्थस्थल में स्नान करके दान-धर्मादि करते हैं और तिल, घी, शर्करा और कन्दमूल खाकर धूमधाम से मनाते हैं। वे नदियों के संगम पर लाखों की संख्या में नहाते हैं।
 बांग्ला देश -- शंकरेण / पौष सांगक्रान्ति
थाईलैंड  -- सोंगक्रान
लाओस  -- गड़बड़ी मा लाओ
म्यांमार -- थिंज्ञान
कंबोडिया  -- मोहां / सांगक्रान
 श्रीलंका  -- पोंगल / तिरुनल


सोमवार, 25 दिसंबर 2023

कानपुर लिटरेरी फेस्टिवल - 23

 कानपुर लिटरेरी फेस्टिवल









- 2023, जो 23-24 दिसंबर को यहां प्रकाशित हुआ, इसमें शामिल होने का यह पहला अनुभव बहुत अच्छा रहा।
इस अनुभव ने मुझे फिर से सक्रिय होने का और बहुत सारे अच्छे कार्यक्रम में शामिल होने का आनंद प्राप्त करने का अवसर भी दिया।

         इसके लिए मैंने अपनी बिटिया रानी रंजना यादव को पूरा श्रेय दिया, क्योंकि उन्होंने मुझे वहां आकर अपनी कहानियां रखने का मौका दिया था। उसने ही जद्दोजहद को लेकर कान के लेखकों के लिए एक स्टॉल की व्यवस्था की थी और फिर लेखक या नहीं पहुंचे सभी की सलाह को वहां पर लेकर आए थे। उसका दृश्य भी नीचे देखना होगा। यह भी एक रिकॉर्ड रखा गया है कि हमारे शहर में कितने लोग एक-दूसरे के साथ काम कर रहे हैं, जरूरी नहीं कि किसी भी मंच से जुड़ने का मौका मिले और सीखा जा सके। मेरे जैसे लोग जो अपने जीवन को एक अलग तरह के संघर्ष की राह पर बनाए रखते हैं, तो रहे लेकिन चित्रित करने का कभी सोचा ही नहीं, बहुत कुछ लिखा लेकिन फिर मैंने भी किताब का आकार दिया लेकिन प्रकाशक और प्रकाशन के बारे में कोई अनुभव नहीं था, जिसने जैसा सुझाया वैसा ही कर दिया। इस अवसर पर विभिन्न लोगों से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ, जो लब्ध प्रतिष्ठित और जाने-माने लोग थे और उनकी टीम को बहुत अच्छा लगा। फिर लगा कि विभिन्न उत्सवों में इतने सारे उत्सवों में न जाने के कारण बहुत सारे गैर-सरकारी लोग रहते हैं लेकिन जब भी जागो सवेरा। 

           इसके साथ-साथ 23 और 24 दिसंबर को दो सत्र आए, जो फिल्मों से संबंधित थे - एक तो ब्रह्मानंद जी की राहुल देव बर्मन की तैयारी के दौरान उनके शोध में शामिल हुए दिग्गज तन्मयता से नजर आए और खचाखच हॉल में उनके अनूठे संगीत की यात्रा हुई। रचना के साथ जब देखा तो न समय का पता चला और न ही कहां क्या हो रहा है पता चला, बहुत ही आनंद आया। 

      ऐसे ही दूसरे दिन 24 दिसंबर को धूमकेतु के आकाशवाणी के जाने वाले यूनुस खान जी द्वारा पोस्ट किए गए अवशेष जी के अवशेष लेकर चले गए शोध - जब एक-एक करके उनकी जीवन यात्रा और उनकी यात्रा के बारे में पोस्ट किया गया। तो पता नहीं चला कि समय कहां गया और पूरे हॉल के लोग भी साथ-साथ गीत गा रहे थे। आवाजें गूँजती थीं। मेरे अनुभव के अनुसार एक लाजवाब अभिनेता थे। उनके स्मारकों में से एक गोपाल शर्मा और श्वेतावृथ ने अपनी आवाज दी थी जो आपके घर में थी।

          यूनुस जी से मिलने का मेरा पूरा मन था इसलिए वह कोई सेलिब्रिटी नहीं हैं बल्कि वह मेरे भाई अजय ब्रह्मात्मज के पारिवारिक सदस्य हैं, लेकिन समयाभाव और उनके अन्य काम कार्यक्रम में प्रोत्साहन ने अपना यह पद नहीं दिया। मेरी उनकी पत्नी ममता सिंह से हुई मुलाकात बहुत अच्छी लगी।

          इसी अवसर पर रंजना यादव की किताब "मैट्रो का पहला डिब्बा" का कवर पेज लॉन्च किया गया। जो दिल्ली की बुक मॉल में उपलब्ध होगी।

गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

दुश्मन को रख देंगे चीर : हम हैं अग्निवीर !

 दुश्मन को रख देंगे चीर : हम हैं अग्निवीर !


                                ये नारा है अग्निवीरों का।  हाँ वही अग्निवीर  - जिनके लिए जब यह योजना लाई गयी थी तब पता नहीं किसने युवाओं को इसके विरुद्ध भड़काया था कि ये उनको सुनहरे ख़्वाब दिखाए जा रहे हैं और चार साल के बाद ये युवा दर दर के भिखारी बन भटकेंगे। जब अग्नि वीरों की भर्ती हो रही थी तो सरकार की इस योजना की पुरजोर आलोचना की गई थी और इसको विफल करने के लिए उस समय रेल जलाना , बसें जलाने के काम भी किए गए थे। वह कौन थे? जो युवाओं को अग्निवीर में भर्ती के लिए भड़का रहे थे, ये हम खुल कर नहीं कह सकते हैं।  

                                    पिछले दिनों अपनी नासिक से कानपुर की यात्रा के दौरान मुझको अपने ही कंपार्टमेंट में कुछ अग्निवीरों से मुलाकात करने का मौका मिला। बोगी में हम दूर थे लेकिन कानपुर में उतरते समय हम सब एक ही गेट पर खड़े थे तो मैंने सोचा कि उनके कुछ अनुभव और उनके अपनी नौकरी के प्रति विचारों को साझा किया जाए. वह जो अग्निवीर बने वे बहुत ही संतुष्ट है और सरकार की भविष्य की नीतियों के प्रति भी उनके अंदर एक आश्वासन है, जो उन्हें एक सुरक्षित भविष्य देगा।

           . मेरी 8 -10 अग्नि वीरों से मुलाकात हुई जिनकी उम्र 18 से 23 वर्ष के बीच थी। वे अपनी पहली ट्रेनिंग पीरियड पूरा करके 15 दिन की छुट्टी पर अपने घर आ रहे थे और स्टेशन पर उनको रिसीव करने के लिए उनके घर वाले, उनके मित्र सभी एकत्र थे। जितना उत्साह अग्नि वीरों में था, उतना ही उत्साह उनके घर वालों में भी था। उनमें से कुछ अपनी यूनिफॉर्म में थे। जब उनसे पूछा कि आप यूनिफॉर्म में क्यों जा रहे हैं ? वे बोले हमारा मन तो नहीं था लेकिन घर वालों ने कहा कि हम अपने बच्चों को यूनिफॉर्म में देखना चाहते हैं इसीलिए हम यूनिफॉर्म में जा रहे हैं।गाँव से घर वाले स्टेशन पर आ रहे हैं मैंने तो मना किया था लेकिन वो माने ही नहीं है। 
 
                             हमारे साथ पढ़ने वालों में भी बहुत उत्साह है कि हमें इस तरह देख कर वे अपने को खुशनसीब समझेंगे कि हमारा यार देश की सेवा में है।हमारे घर वाले इतने सम्पन्न नहीं हैं कि हमको एन डी ए  के लिए कोचिंग करवा पाते और सरकार के इस कदम ने हमें एक अच्छा मौका दिया है। हम और घर वाले सब खुश हैं।
        
 
         मैंने उनकी अपनी कार्य स्थल और कार्य प्रशिक्षण के प्रति संतुष्टि के बारे में पूछा और पूछा - 
 
1.   आप अपने भविष्य के प्रति आशंकित तो नहीं है?
 
                   तब उन्होंने बताया - " नहीं इससे अच्छा भविष्य हमको नहीं मिलता, हमको 40 हजार रुपए वेतन मिलता है और हमारे सारे खर्च सरकार उठाती है। 4 साल के बाद हमको 14 लाख रुपए मिलेंगे और सिविल एरिया में हमें नौकरी मिलेगी। जिसमें हर क्षेत्र में हमें 25 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। हममें से जो भी सेना की नौकरी को जारी रखना चाहेगा तो उसकी नौकरी जारी रहेगी। इससे अच्छा विकल्प और हमारे लिए क्या हो सकता है ? 
हम अभी उच्च शिक्षित नहीं है लेकिन अपने परिवार के लिए और अपने लिए एक सुरक्षित भविष्य के प्रति निश्चिंत हैं।
 
2. आपकी ट्रेनिंग किस तरह की होती है ? :--
 
                       हमारी ट्रेनिंग बहुत कठिन होती है, जिसके लिए ही हमारी इसमें चयन के समय ही कठिन परीक्षा ली गयी थी और उसमें सफल होने के बाद ही लिया गया। अपने नासिक के प्रशिक्षण काल में  हमको काफी बोझ पीठ , हाथों में लेकर मीलों तक पैदल चलना होता है और यह हमारे दैनिक की क्रिया होती है।हमें कड़े अनुशासन का पालन करना होता है और हमारा "आर्टिलरी प्रशिक्षण केंद्र " है।   हम लोग  आर्टिलरी शाखा में है,  जिसमें हमको सभी अस्त्र-शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है।  गोला आदि का चलाना सिखाया गया है। एक गोले का भार करीब 95 किलो होता है, जिसे हम चार लोग उठाकर डालते हैं और एक बार उसका वार करने पर 40 किलोमीटर तक सब कुछ तबाह हो जाता है। इसलिए हमें निर्णय भी बहुत सोच समझ कर लेने का निर्देश दिया जाता है।हम जहाँ भी जरूरत होती है वहाँ सेना को इन सब चीजों को पहुंचाते भी हैं।  हमें  भारतीय सेना में तोपची , तकनीकी सहायक, रेडिओ ऑपरेटर और चालक के रूप में सेवा करने  का अवसर प्रदान किया जाएगा।
 
3.  आपको  एक साल में कितने दिनों की छुट्टी मिलती है ?  
     
                     हमको साल में 2 महीने की छुट्टी मिलती है , जिसमें १ महीने की कैजुअल और एक महीने की अर्न होती है। और मेडिकल सुविधा हमको सेना की तरफ से प्राप्त होती है। उसे छुट्टी का कोई गणना नहीं की जाती है। बाकी कैंटीन की सुविधा भी मिलती है , जिसे घर वालों के लिए प्रयोग किया जा सकता है क्योंकि हमें तो सब कुछ वहीँ से मिलती है। 
 
4. आप को अपने काम से संतुष्टि है कोई असुरक्षा का भाव तो नहीं है ?
 
                   बिलकुल भी नहीं , हमारी उम्र में कौन इतना कमा सकता है ? हम अभी आगे की पढाई के लिए जा रहे होते तो अभी पढ़ ही रहे होते।  हम अपने घर का एक मजबूत कन्धा बन चुके हैं और घर वाले भी खुश हैं और हम भी। 
 
                      इनमें से कुछ बच्चे तो कानपूर के आस पास के थे , कुछ लखनऊ , गोण्डा , बलिया, बस्ती  और गोरखपुर के थे। 

नोट :-- ये सारी जानकारी मुझे उन अग्निवीरों से ही प्राप्त हुई है और इससे पहले मैं भी अग्निवीरों के भविष्य के प्रति फैलाई वही भान्तियों का शिकार थी।
                   

शुक्रवार, 30 जून 2023

सोशल मीडिया डे !

                                                     सोशल मीडिया डे !


                           पहले से तो मुझे इस बारे में ज्ञात नहीं था कि सोशल मीडिया डे नाम से कोई दिवस भी मनाया जाता है। बहुत अच्छे प्लेटफॉर्म हैं यहाँ पर , लेकिन उन पर अगर विचार करें तो इसने हमारी सामान्य दिनचर्या या सामाजिक जीवन का सर्वनाश कर दिया है, लेकिन हर क्षेत्र में ऐसा ही हो रहा है ऐसा नहीं है।  कोई भी सामाजिक सरोकार से जुड़ी हुई सुविधा सदैव अच्छी ही या बुरी ही नहीं होती है। यह तो हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम उसको किस तरह से प्रयोग कर रहे हैं। उसका उपयोग या दुरुपयोग कर रहे हैं। न तो विज्ञानं दोषी है और न कोई सुविधा बस हमारा ही विवेक उसका गुलाम हो चुका है।  चलिए हम कुछ बिंदुओं पर विचार ही करते चलें। 


उपयोगी बिंदु :--

                    * सोशल मीडिया ने दूरदराज बैठे लोगों के मध्य एक सेतु बन कर उनके विचारों के आदान प्रदान के लिए एक मंच प्रस्तुत किया है। 

                    *कितनी जानकारियाँ जिनसे एक आम आदमी परिचित ही नहीं है उससे अवगत कराया।  उनके ज्ञान का विस्तार होने लगा। 

                    * इतिहास बन चुके साहित्य, ज्ञानकोष, जो कि प्रिंट मीडिया ने अब छापने बंद कर दिए थे।  दूसरों शब्दों में कहैं तो कालातीत हो चुके थे। इस सोशल मीडिया ने उनको खोज कर या फिर प्रबुद्ध लोगों ने उसको यहाँ पर लोड करके सर्व सुलभ बना दिया। 

                    *बच्चों या बड़ों में सोई पड़ी प्रतिभा - लेखन, चित्रकारी , होम डेकोरेशन , बागवानी , शिल्प सभी तरह की चीजों को मंच मिला। दूसरे लोग भी इससे फायदा उठाने लगे हैं।  

                   * कुछ सामाजिक, सांस्कृतिक ,साहित्यिक संगठनों का निर्माण हुआ और उससे पूरे विश्व से लोगों ने जुड़ कर उसको समृद्ध बनाया। उनके कार्य पटल पर आने लगे। भाषा और संस्कृति को समझने समझाने में भी एक अच्छा मंच बन चुका है।

                   *गृहणियों के लिए भी एक अच्छा मंच मिला , वे सिर्फ घर में रहकर घर तक ही सीमित रह गयीं थी। उनकी  उच्च शिक्षा , ज्ञान और कला जो घर की चहारदीवारी में दम तोड़ रही थी , उसको सही स्थान मिला और उससे वे कुछ क्षेत्रों में आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी होने लगी। 

                  *छात्रों के लिए अपनी पढाई के लिए विश्व के साहित्य या पठन पाठन के लिए उपयोगी सामग्री भी प्राप्त होना सुलभ हो गया। हर छात्र के लिए सन्दर्भ पुस्तकें खरीदना संभव नहीं होता है तो वे सोशल मीडिया से सब आसानी से प्राप्त कर लेते हैं। 

               *किसी भी दुर्घटना के बारे में कभी कभी सोशल मीडिया से ही पता चल जाता है और पीड़ित को समय से सहायता भी मिल जाती है , जो उसके जीवन को बचा भी लेती हैं। 

                *अवसाद में गिरे हुए कितने लोग ये बात अगर सोशल साइट पर शेयर करके गलत कदम उठाने लगते हैं तो कई बार वे समय से बचा भी लिए जाते हैं। 

                *खोये हुए बच्चे या भटके हुए बुजुर्ग भी कभी कभी इसके द्वारा सही स्थान पर मिल जाते हैं। बरगला कर भगाये हुए बच्चे भी इससे पकड़ लिए जाते हैं। 


अनुपयोगी बिंदु :--


                 *सबसे अधिक दुरूपयोग इसका अपराधी प्रवृत्ति के लोग करने लगे हैं।  फेसबुक जैसे मंच से दोस्ती करके के बाद मैसेंजर पर जाकर स्त्रियाँ पुरुषों और पुरुष स्त्रियों को गलत ढंग से बातचीत करने के लिए फ़ोन मिलाने लगे हैं या फिर मैसेज के द्वारा ही उनसे अश्लील बातचीत करने लगते हैं। इसमें सिर्फ एक नहीं बल्कि दोनों ही होते हैं बल्कि ये भी होता है कि पुरुष होकर अपनी प्रोफाइल महिला के नाम से बना कर बात करते हैं और महिलाओं से ही गलत व्यवहार करने लगते हैं। ये सबसे बड़ी समस्या है और इसका कोई निदान भी नहीं है सिवाय इसके की पीड़ित पक्ष उसको अपने मित्र श्रेणी से बाहर कर दे या फिर अपना मैसेंजर ही लॉक कर दे। 

               *घरेलू महिलायें, बच्चों की देखरेख करने वाली सहायिकायें इसका दुरूपयोग करके छोटे छोटे बच्चों के सामने राइम या गेम खोल कर रख देती हैं और वे पाने काम में लगी रहती हैं।  अपनी सुविधा के लिए वे बच्चों को इसका आदी बना देती हैं और फिर बच्चा खाना भी उसके साथ ही खायेगा। इसके दुष्प्रभावों को वे जाती हैं या नहीं ये तो नहीं कह सकती लेकिन इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव होता है कि बच्चे का बोलना देर से शुरू होता है और वे वीडिओ वाली भाषा भी ग्रहण करने लगते हैं। (इस बारे में मेरी बात एक बच्चों की डॉक्टर ,जो इसका ही इलाज करती हैं , के साथ हुई है।)

               *बहुत छोटी उम्र में ही वे मोबाइल में अपने मन के वीडिओ लगाने लगते हैं , कॉल भी करने लगते हैं। उनको इसका ज्ञान नहीं होता है लेकिन उंगली चला कर वे उसके अभ्यस्त हो जाते हैं। पढ़ने वाले बच्चे भी मोबाइल चाहते हैं , छोटे छोटे क्लास के बच्चों के लिए भी अब पढाई का तरीका बदल गया है। विषय वार वाट्सएप पर ग्रुप बना दिए जाते हैं और पहले की तरह से हर बच्चे की डायरी में होमवर्क लिखने के बजाय वह एक बार ग्रुप पर डाल देती हैं फिर अभिभावकों  सिरदर्द कि वे उसको देखें और कुछ बड़े बच्चे हुए तो उनको लैपटॉप या मोबाइल चाहिए। 

                *किशोर होते बच्चों के लिए पढाई के लिए लैपटॉप बहुत जरूरी हो गया है क्योंकि उनको अपना प्रोजेक्ट बनाना है या फिर सन्दर्भ देखने हैं। फिर पढाई के अलावा बच्चे बहुत कुछ देखना सीख जाते हैं। जो कि उनके मानसिक विकास की दृष्टि समय से पहले परिपक्व बना रहा है। 

                *किशोर इससे ही अवसाद  शिकार जल्दी होने लगे हैं और उससे भी निजात पाने के लिए आत्महत्या जैसे कदम भी उठाने लगे हैं। वो क्रियाएं या अपराध जो कि उनके लिए न उचित हैं और न ही उनकी उम्र के अनुसार होने चाहिए वे करना सीख रहे हैं।  उनकी IQ बहुत अधिक होने लगी है तो उनको सोशल मीडिया से और अधिक ज्ञान मिलने लगा है। 

                *मैंने देखा है कि किशोर लड़कियाँ अपनी प्रोफाइल में अपनी आयु अधिक डाल देती हैं और फिर उनकी मित्रता भी उस उम्र के लड़कों से होने लगाती है और वे बहकावे में भी जल्दी आ जाती हैं।  आजकल हो रहे अपराधों के गर्भ में कहीं न कहीं ये मंच जिम्मेदार हो रहे हैं। 

                 *नए नए स्कैम भी इसी के तहत होने लगे हैं , जिन्हें पकड़ पाना हर एक के वश की बात नहीं है और इस तरह से अपराधों की श्रेणी में आ रहे हैं।  ये सोशल मीडिया ही है कि बी टेक और एम बी ए जैसी व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण करते हुए वे अपराधों में लिप्त होने लगे है उनको सारे रास्ते यही पर मिल जाते हैं। 

                          इस सोशल मीडिया डे को हम किस दृष्टि से देखते हैं, ये अपनी अपनी सोच है लेकिन कुल मिला कर हम प्रगति तो कर रहे हैं लेकिन गर्त में ज्यादा जा रहे हैं।