आत्मनिर्भर होने का अर्थ - ये बिलकुल भी नहीं होता है कि उसे लड़की के अंदर संवेदनाएं , कोमल भावनाएं या फिर एक सुन्दर जीवन जीने की इच्छा नहीं होती हैं। वह सब कुछ चाहती है - आत्मनिर्भर होने के लिए एक नौकरी , एक सुन्दर घर और उस घर में पति और उसके अपने बच्चे। ऐसा सोचना स्वाभाविक भी है क्योंकि वह सब कुछ करती ही इस लिए है कि वह एक सुखमय और शांतिपूर्ण जीवन जी सके। इसके बाद भी आज कुछ परेशानियों का सामना कर रही है - कभी रोग से लड़ने की क्षमता की कमी , कभी सामंजस्य की समस्या तो कभी घर और नौकरी के बीच पिसती हुई । इससे पारिवारिक जीवन भी प्रभावित होता है ।
शादी की बढ़ती उम्र !
करियर की तैयारी के लिए वह कई बार कई साल लगा लेती हैं और फिर अपने करियर बनाने के लिए इतना समय लगाने के कारण वह अपनी मंजिल पर पहुँचने के बाद उसको मजबूत भी करना चाहती है। ऐसा नहीं है इस समय तक वह खुद भी शादी ले लिए तैयार नहीं होती है , लेकिन घर वाले भी उसके लिए उचित वर खोजते रहते हैं। इसी जद्दोजहद में उसकी उम्र बढ़ती जाती है। आज के समय के अनुसार जॉब के तनाव , अपने को ठीक से सेटल होने का तनाव, उसको ठीक से स्थिर नहीं होने देता है। जब तक वो शादी करती हैं और फिर परिवार बढ़ाने के लिए प्रयास करती हैं। तब तक शारीरिक स्थिति कई तरीके से हार्मोन असंतुलन का शिकार होने लगती है। इससे शरीर में बहुत से परिवर्तन आने लगते हैं। कई बार वह शरीर की समुचित देखभाल न होने कारण भी कई समस्याओं में फँस जाती है।
माँ बनने में विलम्ब :-
देर से शादी करना और आज के चलन के अनुसार अभी तो जिंदगी शुरू हुई है , इस मानसिकता के अनुसार लड़कियां माँ बनने को दूसरे क्रम में रखती हैं और कभी कभी तो वे माँ बन कर अपनी जिंदगी को बाँटना या कहें उसकी मुसीबतें बढ़ाना नहीं चाहती है। कई बार माँ बनने में देर होने के कारण शुरू होता है डॉक्टर के यहाँ चक्कर लगाने का सिलसिला। कई बार उन्हें आईबीएफ के जरिये माँ बनने की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। ये आधुनिक चिकित्सा प्रणाली हमें बहुत कुछ ऐसा दे रही है , जो अतीत में संभव नहीं था लेकिन नए नए शोध से जो हमें उपलब्धि हो रही है , वह भविष्य पर अधिक घातक प्रभाव भी डाल रही है। इसमें आज कल सबसे घातक रोग जो महिलाओं के लिए सामने आता जा रहा है वह है कैंसर।
कैंसर के संभावित कारण :- कामकाजी महिलाएँ यद्यपि प्रसव अवकाश में अपने बच्चे को पूर्ण संरक्षण देती हैं और कभी कभी तो वह और अधिक छुट्टी लेकर भी उनको स्तनपान करवाती हैं लेकिन जैसे ही वह ऑफिस जाना शुरू कर देती हैं , उनका यह क्रम बिगड़ जाता है। उनके सामने फिर एक विकल्प रह जाता है कि वह बच्चे को स्तनपान कराना बंद कर दे। इसके पीछे आज की आधुनिकता की माँग भी है कि वे अपने फिगर के प्रति इतनी अधिक सजग होती हैं कि वह स्तनपान कराना बंद कर देती हैं। लेकिन इससे उसमें दूध बनने की प्रक्रिया धीरे धीरे बंद जरूर हो जाती है और कभी कभी तो ऑपरेशन के बाद दी जाने वाली दवाओं के द्वारा माँ का दूध सुखा दिया जाता है। यह कभी कभी एक घातक प्रभाव डालता है , इससे स्तन में गाँठ पड़ जाती है और उसके प्रति ऑफिस और घर की व्यस्तताओं के चलते ध्यान भी नहीं दिया जाता है। यह लापरवाही या कहें कि समयाभाव , जागरूकता का अभाव उनको एक मुसीबत में फँसा देता है।
माँ न बनने का निर्णय :-