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मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

अक्षय तृतीया !

          अक्षय तृतीया हम बचपन में तभी जानते थे जब माँ लोग कहती थीं ये बिना पूछी शादी की साइत होती है और कुछ दान पुण्य के काम किये जाते थे। सबसे बड़ा काम हम गुड़ियों का ब्याह रचाते थे। 
                            

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                                 अब तो व्यापारीकरण और बाजारीकरण के साथ साथ इंटरनेट के बढ़ाते प्रकोप से हम इसके सही अर्थ को तो भूलते ही जा रहे हैं. बड़े बड़े अक्षरों में ज्वैलर्स के विज्ञापन ,सोने और हीरे के जेवरातों में मिलाने वाली छूट का आकर्षण लोगों को खींच लेता है। अक्षय का शाब्दिक अर्थ जिसका क्षय न हो और इसी लिए सोना खरीदों तो वह बढ़ता ही रहेगा. दुकानदारों की जरूर चाँदी हो जाती है वह जितना पूरे साल में कमाते होंगे उसका काम से कम पचास प्रतिशत सिर्फ एक दिन में कमा लेते हैं। 
                                  जब की इसका वास्तविक अर्थ अगर समझें तो ये है भौतिक वास्तु का क्षय सुनिश्चित है फिर इस दिन खरीदी गयी वास्तु को अक्षय कैसे मान सकते हैं ? जीवन में हम कितना संचय करके उसका सुख उठा सकते हैं। ये हमारे मन का भ्रम है की हमने इतना संचित कर लिया चार पीढ़ियां बैठ कर खायेंगी। वास्तव में इस दिन अगर व्यक्ति अच्छे कार्य करे तो उससे अर्जित पूर्ण अक्षय जरूर हो सकता है। इस समय भयंकर गर्मी का मौसम आ चूका होता है और अगर करना है तो प्याऊ लगवाइये , गरीबों को सत्तू, शक्कर , छाता , पंखा , सुराही आदि दान देनी चाहिए। वह देकर जो आत्मा संतोष आपको मिलेगा वह अक्षय होगा। गर्मी में चिड़ियों के लिए पानी पेड़ पर टांगना ,जानवरों के लिए पानी भरवाना वह अक्षय होगा। आत्मा सभी में होती है और उस आत्मा की संतुष्टि के लिए जो भी प्रयास करता है , वह अक्षय है और अक्षय तृतीया इसी का पर्याय है।
                    पुराणों में लिखा है कि इस दिन पूर्वजों  को किया गया तर्पण अथवा  पिण्डदान या फिर किसी और प्रकार का दान अक्षय फल प्रदान करनेवाला होता   है। इस दिन गंगा स्नान करने का भी विधान है ,हमारी आस्था सदैव से धर्म कर्म से जुडी है इसीलिए कहा गया है कि भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया  जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है।