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शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014

लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल !

                                 


                        आज सरदार पटेल के जन्मदिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा बहुत सुखदाई  लगी । सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता के अदभुत प्रणेता थे,  जिनके ह्रदय में भारत  की आत्मा बसती थी।  वास्तव में वे भारतीय जनमानस अर्थात किसान की आत्मा थे। स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं स्वतन्त्र भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार पटेल एक शांत ज्वालामुखी थे। वे नवीन भारत के निर्माता थे। उन्हे भारत का ‘लौह पुरूष  कहा जाता है।
                   वह व्यक्तित्व जो इस भारत के शुरूआती निर्माण में पूरे मन से समर्पित रहा और गृह मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर रह कर भी उनके हाथ अपने वचन के कारण बंधे रहे और जहाँ जहाँ विवश पाये गए या उनके निर्णयों को गांधीजी या नेहरूजी के कारण दरकिनार कर दिए गए वे आज भी नासूर  बन कर रिस रहे हैं।  
                                    सरदार पटेल ने भारत विभाजन स्वीकार किया था क्योंकि  पूरे भारत के हाथ से जाने का भय सामने खड़ा दिख रहा था - नवंबर,1947 में संविधान परिषद की बैठक में उन्होंने अपने इस कथन को स्पष्ट किया, मैंने विभाजन को अंतिम उपाय के रूप में तब स्वीकार किया था, जब संपूर्ण भारत के हमारे हाथ से निकल जाने की संभावना हो गई थी। वे गांधीजी और नेहरूजी की बात का सम्मान करते थे लेकिन विभाजन के समय पाकिस्तान को  ५५ करोड़ रूपयें देने के निर्णय के सर्वथा विरोधी थे और तत्कालीन सरकार ने इसको अस्वीकार भी कर दिया था लेकिन गांधीजी के अनशन ने सरकार के इस फैसले को पलटवाया गया था।  उस समय सरकार को अपने विवेक से निर्णय लेने का अधिकार न था।  गांधी जी का अंधानुकरण ही सबसे घातक सिद्ध होने वाला था ये बात सरदार पटेल को आभास दे गयी थी और उन्होंने कहा था - 'अब मैं इस शासन में न रह सकूँगा। ' 

                    वे एक समर्थ और जागरूक गृहमंत्री थे और देशहित में उनके विचारों को कितना स्वीकार किया गया ये बात और है।  शायद उस समय हम सिर्फ और सिर्फ आजादी को गांधी जी और नेहरूजी द्वारा दिलवाई गई नियामत समझ रहे थे।  
               
जब चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने नेहरू को पत्र लिखा कि वे तिब्बत को चीन का अंग मान लें तो पटेल ने नेहरू से आग्रह किया कि वे तिब्बत पर चीन का प्रभुत्व कतई न स्वीकारें, अन्यथा चीन भारत के लिए खतरनाक सिद्ध होगा। नेहरू नहीं माने बस इसी भूल के कारण हमें चीन से पिटना पड़ा और चीन ने हमारी सीमा की 40 हजार वर्ग गज भूमि पर कब्जा कर लिया। वह चीन १९६२ में जिस रूप में हमारे सामने खड़ा हुआ वह हमारी उस भूल का ही परिणाम था और तब से लेकर आज कितने नापाक इरादे हमें देखने को मिलते ही रहते हैं।
                              बहुत जल्दी चले गए थे सरदार पटेल अगर देश को उनका साथ कुछ और बरसों तक मिल गया होता तो शायद देश का स्वरूप कुछ और ही होता।  उनके जन्मदिन पर कुछ लिखने का मन था सो लिखा।  

बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

मित्र बनाओ बनाम ...........!






                                       ये बानगी है कुछ विज्ञापनों की -----रोज करीब करीब हर दैनिक अख़बार में निकला करते हैं. इनसे आने वाली बू सबको आती है और सब इस बात को समझते हैं. अख़बार वाले भी और असामाजिक गतिविधियों में लिप्त लोगों को सही दिशा देने वाली संस्थाएं भी लेकिन क्या कभी इस ओर किसी ने प्रयास किया कि  इनकी छानबीन की जाय ? लेकिन आख़िर की क्यों जाय? 
             

         परिवार संस्था पहले भी थी और आज भी है, बस उसके नियम और कायदे कुछ उदार हो गए हैं. पहले बेटे और बहू परिवार के साथ ही रहते थे और वहीं पर कोई नौकरी कर लेते थे. उस समय मिल जाती थीं. घर और परिवार की मर्यादा का पालन होता रहता था. मुझे अपना बचपन और जीवन का प्रारंभिक काल याद है. घर से बाहर जाने पर अकेले नहीं जा सकते  थे कोई साथ होना चाहिए. स्कूल भी अकेले नहीं बल्कि साथ पढ़ने वाली कई लड़कियाँ इकट्ठी हो कर जाती थीं. भले ही स्कूल घर से २० कदम की दूरी पर था. समय के साथ ये सब बदला और बदलते बदलते यहाँ तक पहुँच गया कि लड़कियाँ और लड़के दोस्ती के नाम पर कहाँ से कहाँ तक पहुँचने लगे हैं। कहीं भी विश्वास जैसी चीजें अब रह नहीं गयीं हैं।  दोस्ती के नाम पर ऐसे काम भी होने लगे हैं , जिसमें यहाँ से लड़कियों को लेकर विदेशों में तक पहुँचाने वाले रैकेट मौजूद हैं. कहीं कभी कोई वारदात सामने आ गयी तो हंगामा मच जाता है लेकिन खुले आम आने वाले इन विज्ञापनों को क्या कोई नहीं पढ़ पाता है ? 
                 सिर्फ ये ही क्यों? मसाज सेंटर के नाम पर निकलने वाले विज्ञापनों में भी आप इस तरह के कामों की महक पा सकते हैं. हमारी सरकार या फिर पुलिस  किस इन्तजार में रहती है कि ऐसे लोगों पर छापे मारने के लिए कोई बड़ी वारदात जब तक न हो जाए तब तक उनकी नींद खुलती ही नहीं है. इन विज्ञापनों में फ़ोन नं.  ईमेल एड्रेस सभी कुछ होता है. इसके लिए कोई आपरेशन क्यों नहीं चलाया जाता है? समाज में सेक्स के भूखे भेडिये बेलगाम घूम रहे हैं जिनसे बच्चियों से लेकर युवतियां ही नहीं बल्कि उम्र दराज महिलायें भी सुरक्षित नहीं है. जिसमें ऊँची पहुँच वाले लोगों को तो अब संयम जैसे गुण से कोई वास्ता ही नहीं रह गया है या फिर इनके साए तले पलने वाले लोग भूखे भेडिये बन कर घूम रहे हैं. 

                  अब ये लड़कियों तक ही सीमित नहीं रह गया है क्योंकि अब तो लड़कों को  भी अच्छे पैसे मिलने के नाम पर लुभाया जाने लगा है और लडके भी क्या करें ? सब तो पढ़ लिख कर नौकरी नहीं पा लेते हैं बल्कि  पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ उन्हें सिर्फ काम की तलाश में उलझा ले जाता है और फिर वे इनके जाल में ऐसे फँस जाते हैं कि निकल ही नहीं पाते हैं। ऐसा नहीं है पुलिस ने ऐसे  मामलों पर काम  किया और भंडाफोड़ भी किया लेकिन ये काम तो आज भी खुले आम अखबारों में निमंत्रण दे रहे हैं और हम पढ़ रहे हैं।  
कुछ विज्ञापन की बानगी : 

* प्रिया मसाज पार्लर रजि. २००८ अमीर घरों की अकेली महिलाओं की बॉडी मसाज करके युवक रोजाना २५ - ३० हजार कमाएं।  सर्विस आधे घंटे में।  संपर्क सूत्र : ००००००००० 

 * दीपा मसाज पार्लर रजि. २००४  अमीर घरों की अकेली महिलाओं की बॉडी मसाज करके युवक रोजाना २५ - ३० हजार कमाएं।  सर्विस आधे घंटे  में।  संपर्क सूत्र : ०००००००००


              अलग अलग नाम से  पार्लर के  ढेरों विज्ञापन और एक ही भाषा होती है - कोई भी इसकी भाषा पढ़  समझ सकता है कि इसके पीछे क्या चल रहा है ? फिर क्यों समाज के ये कोढ़ पाले जा रहे हैं क्योंकि उनके ऊपर हाथ रखने वाले भी इसमें हिस्सेदार होते हैं। कौन होती है अमीर घरों की अकेली महिलायें ? और क्या  सिर्फ मसाज के काम के पच्चीस हजार से लेकर तीस हजार तक सिर्फ आधे घंटे में मिलते हैं तो फिर क्यों कोई बोझ ढोता है।  क्यों सुबह से शाम तक ऑफिस में काम करता है और फिर  भी नहीं  कमा पता इतना ? ढेरों सवाल है और उत्तर हम सभी जानते हैं और चुप हैं।  
                मीडिया वाले नए नए मामलों को लेकर टी वी पर रोज पेश करते रहते हैं लेकिन उनकी नजर इन पर क्यों नहीं पड़ती है कि वे ऐसे लोगों तक पहुँचने के लिए अपने जाल बिछा कर इनका खुलासा करें. जो खुल गया उसको पेश करके कौन सा कद्दू में तीर मार रहे हैं. अभी हम आदिम युग की ओर फिर प्रस्थान करने लगे हैं तो फिर अपने प्रगति के दावों को बखानना बंद करें नहीं तो अंकुश लगायें।  इस तरह की संस्थाओं और विज्ञापनों पर जिनसे समाज का भला नहीं  होता है. इस दलदल में फंसने के बाद अगर कोई बाहर निकलना भी चाहे तो नहीं निकाल सकता है. अपना भंडा फूटने के डर से इनसे जुड़े लोगों को इस तरह से अनुबंधित कर लिया जाता है या फिर उनको ऐसे प्रमाणों के साथ बाँध दिया जाता है कि वे उससे निकलने का साहस नहीं कर पाते हैं. इससे समाज सिर्फ और सिर्फ पतन कि ओर जा रहा है. इस पर अंकुश लगाना चाहिए चाहे जिस किसी भी प्रयास से लगे. .

शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस !

                                  कहते हैं न कि इंसान वही सुखी है जो तन , मन से सुखी हो।  धन का सुख तो उसकी लालसाओं और जरूरतों से जुड़ा रहता है।  कभी वह अपार धन के बाद भी , पलंग के गद्दे के नीचे नोटों की मोटी तह लगा कर भी सुखी नहीं होता और कभी कोई इस " दाता इतना दीजिये जामे कुटुंब समाय , मैं भी भूखा न रहूँ साधु न भूखा जाय। " सूक्ति पर विश्वास करके जीवन भर सुखी रह लेता है। 
                                    आज का जो जीने का तरीका है या फिर कहें इस वर्तमान जीवनचर्या ने इंसान को तनावों के अतिरिक्त कुछ दिया ही नहीं है।  ये सत्य है कि आज हर आयु वर्ग में कुंठा , अवसाद और तनाव के शिकार लोग मिल रहे हैं। सबके अपने अपने तरीके के तनाव है और इस तनाव के जो कारण है वही आगे जाकर उनको अवसाद का शिकार बना देते हैं।  आज ८० प्रतिशत लोग (  इसमें हर आयु वर्ग के हैं ) मानसिक तौर पर स्वस्थ नहीं है।  सबकी अपनी अपनी परेशानियां है - बच्चे को स्कूल से भेजने से जीवन में कम्पटीशन और सबसे आगे रहने की लालसा,  चाहे ये अभिभावकों के द्वारा थोपी गयी हो उनके बचपन की अल्हड़ता और भोलेपन को छीन लेता है।  स्कूलों की शिक्षा पद्यति ने भी उनको किताबों और होम वर्क के तले इतना दबा दिया है कि वे कुछ और सोच ही नहीं पाते हैं।  खुली हवा में खेलना उनके लिए कितना जरूरी है ये कोई समझता नहीं है।  
                                   उससे आगे बढे तो अपने करियर की चिंता युवाओं को इसका शिकार बना रही है।  बार बार की असफलता या फिर मनमुताबिक जगह का न मिलना उन्हें क्या देता है ? यही  कुंठा , तनाव और अवसाद ! 
जबतक उन्हें मंजिल मिल नहीं जाती वे संघर्ष करते रहते हैं और ये संघर्ष का काल क्या उन्हें मानसिक रूप से स्वस्थ रहने देता है।  घर वालों के कटाक्ष , पड़ोसियों की बातें और सफल हुए मित्रों के माता पिता की अपने बच्चों की सफलता की लम्बी चौड़ी बातें - उन्हें क्या देता है ? सिर्फ कुंठा ,मानसिक तनाव और अवसाद।  
                                   नौकरी करने वाले जो कॉर्पोरेट जगत से जुड़े हैं - उनके काम की कोई सीमा नहीं है , डेड लाइन , टारगेट और प्रोजेक्ट का कम्पलीट होना - ऐसे बेरियर हैं कि कई बार बच्चे अपने सगे रिश्तों के  महत्वपूर्ण अवसरों पर शामिल होने से वंचित हो जाते हैं।  जीवन के कुछ पल ऐसे होते हैं कि जिन्हें इंसान अपने अनुसार जीना चाहता है लेकिन आज वह भी नसीब नहीं है फिर हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य बरक़रार रहेगा।  
                                      परिवार वालों की अपनी तरह की अलग अलग समस्याएं , बुजुर्गों की भी अपनी समस्याएं हैं , एकाकीपन , आर्थिक असुरक्षा , पारिवारिक तनाव ये सब मानसिक तौर  वाले कारक है और इससे ही बढ़ता जा रहा है - समाज में स्वस्थ मानसिकता का अभाव !
                                        इसके परिणाम क्या हो रहे हैं -- 


  • छोटी कक्षा के छात्र ने पिता के डांटने पर आत्महत्या  ली।  . 
  • लड़की ने माँ के देर तक बाहर न रहने के आदेश पर आत्महत्या। 
  • उच्च पदासीन अधिकारी द्वारा आत्महत्या। 
  • अफसरों के व्यवहार से क्षुब्ध होकर आत्महत्या। 
  • पत्नी के मायके जाने पर आत्महत्या।
  • परीक्षा में असफल होने पर आत्महत्या।

                                      जो उम्र होती है खेलने की क्यों मौत चुन लेते हैं ? आत्महत्या  अपने आप में इस बात की द्योतक है कि  मानसिक दबाव में रहा होगा।  जब उसको अपने अनुसार कोई भी भविष्य के लिए आशा नजर नहीं आती तो वह ऐसे कदम उठा लेता है।  
                                    ये जीवन की इति नहीं है - अगर हमारे परिवार का कोई सदस्य , मित्र , बच्चे या फिर कोई परिचित  मानसिक तौर पर अवसाद , कुंठा या तनाव  शिकार है तो उसको मनोरोग विशेषज्ञ के पास ले जाना चाहिए।  इससे पहले कि वह गंभीर समस्या का शिकार जो जाए।   काउंसलिंग की भी जरूरत होती है जो परिवार के सदस्य सबसे अच्छी तरह से अध्ययन करके कर सकते हैं।  हमें अपनी आर्थिक प्रगति भरपूर दिख रही है लेकिन  उसके पीछे दीमक की तरह खा रहे ये अवसाद , कुंठा और तनाव  किसी को नजर नहीं आते हैं।  
आप स्वयं अपना स्वविश्लेषण कीजिये और फिर स्वयं को स्वस्थ रखने की दिशा में प्रयास कीजिये और अगर आप स्वस्थ हैं तो दूसरों के लिए प्रयास कीजिए।  

कुछ सार्थक सुझव दे सकती हूँ जिनको अपनाने से कुछ तो इससे ग्रसित लोग स्वयं को स्वस्थ बनाने की दिशा में सक्रिय हो सकते हैं --

१. नियमित सुबह भ्रमण के लिए निकले , सुबह की जलवायु आपको शारीरिक रूप से नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी सामान्य रहने में सहायक होगी। 

२.  सोने   और जागने का  समय निश्चित करें। 

३. ६ घंटे की नींद जरूर लें , सोने के बाद दिमाग  तरोताजा रहता है। 

४. लगातार कंप्यूटर या मोबाइल पर काम न करें।  सोशल साइट पर रहने के बजाय अपने आस पास सामाजिक होने का प्रयास करें।  

५. बच्चों को भी पढाई से उठाकर कुछ देर  खुली हवा में पार्क या अन्य जगह पर खेलने के लिए कहें।  

६. परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताएं और उनके नियमित जीवन की समस्याओं से अवगत रहें।  
                            अगर जीवन है तो उसे पूरी  तरह से स्वस्थ होकर जीना ही वास्तव में जीवन है।