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रविवार, 2 जनवरी 2022

अनियोजित नववर्ष !

                                               

                                               जब से होश सँभाला तब से हर वर्ष , वर्ष के पहले दिन का एक नियोजन बना कर रखती  थी।  मेरा विश्वास है कि जैसा वर्ष का पहला दिन गुजरेगा और जो  करेंगे उसकी पुनरावृत्ति पूरे साल बार बार होती रहती है।  मेरे विचार से हर बार ही होता था। अब जब जीवन के ६६ + होने पर अब सब कुछ वैसा ही करूंगी जैसा कि हो रहा है।  अनियोजित सा सामने आता जाएगा तो करती जाउंगी।  उठूंगी अपने मन से और काम करूंगी अपने मन से। 

                    बहुत चल लिए दूसरों और वक्त की रिद्म पर और मैं चलूंगी अपनी ही रिद्म पर। उठे तो मन से धीरे धीरे काम शुरू किया। सोचा मैं आज के दिन किसी को विश नहीं करूंगी , नेटवर्क नहीं मिलता है और देखती हूँ कि जिन्हें मैं हर बार करती रही , मुझे कौन कर रहा है ?  मन में कोई रोष लेकर नहीं बल्कि अपने मन की करने की सोच कर।  दिन अच्छा शुरू हुआ नाश्ता भी रोज से हट कर बनाया। धूप भी कई दिन बाद निकली तो उसका भी फायदा उठाना भी था। लंच भी रोज की तरह से दाल रोटी नहीं बनाई।  पालक की कचौड़ी और मिक्स वेज बनायीं और खाकर रजाई में घुस गए तीन बजे। 

                      अभी सोये भी नहीं थे कि जिनके जिगरी दोस्त रवि भाई साहब



का फोन आया कि शाम को रोटी साथ ही खाते हैं और बात ख़त्म।  मैं सोचूँ ये क्या बात हुई ? मेरे लिए न पूछा और न कहा।  मैंने इनसे पूछा कि सुमन भाभी नहीं है तो ये बोले मैंने तो ये पूछा ही नहीं। '

                       रवि भाई साहब ने सुमन भाभी को बताया कि  आदित्य हमारे साथ रात में डिनर लेंगे।  वो बोली कि भाभी नहीं है , उन्होंने भी कह दिया कि मैंने पूछा नहीं।  उन्होंने मुझे फ़ोन करके पूछा कि आप कहाँ है ? मैंने कहा कि मैं तो घर पर ही हूँ।  तब उन्होंने कहानी बताई और कहा कि हम भी साथ ही डिनर ले रहे हैं।


                      यह भी अनियोजित सा डिनर हुआ कि पहले सोचा ही नहीं था और दोनों ही दो ही लोग हैं। 

                       रात में जब पहुंची तो भाभी बोली कि  हम तो गले मिलेंगे एक मुद्दत गुजर गयी गले मिले हुए।  ये बोले सोच लीजिए - 'कोरोना फिर से पैर पसार रहा है। ' 

                         हम लोगों ने कहा - ' ऐसे की तैसी कोरोना की , हम तो गले ही मिलेंगे।' एक मुद्दत बाद हम गले मिले शायद दो साल बाद। 

                        खाते पीते जब दस बज गए तो रात्रि कर्फ्यू का ध्यान आया और हम वहां से सवा दस बजे चल दिए और ११ बजे घर। 

                                     इति वर्ष के प्रथम दिवस की कथा.