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मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013

क्या फेसबुक से ब्लॉग पर सक्रियता कम हो रही है ? (7)

                  हम कम लिखें या नियमित लेकिन ब्लॉग की अपनी एक अलग जगह है , जो स्थायी है और संचित रखने वाली भी है।  उससे अगर हम सिर्फ इसा लिए किनारा कर रहे हैं कि फेसबुक पर तुरंत प्रतिक्रिया प्राप्त होती है या फिर बहुत थोडा समय लेकर अपडेट  पढ़कर सिर्फ लाइक करके भी है लेकिन कभी कभी  कि लाइक  न भी लिखा हो , किसी के निधन की खबर हो उसको लाइक करके हम क्या साबित करते है? ये अपने अपने विचार हैं आगे आगे देखिये कोई  सोचता है क्या ?





भई सबसे पहली बात तो यह है कि अपने से कम शब्दों में सीधी बात कही नहीं जाती। या यूं कह लो, कि हमको यह कला आती ही नहीं है। शायद यही वजह है कि अब जैसे-जैसे फेसबुक  जैसे सोशल साइट पर सभी ब्लॉगर का ध्यान ब्लॉग से ज्यादा लगने लगा है। वैसे-वैसे हमारे ब्लॉग पर कमेंट आना बंद होते जा रहे हैं। और यह केवल हमारी समस्या नहीं है, अपितु बहुत से ब्लॉगर इस समस्या से जूझ रहे हैं, जिसके कारण अब उन्हें ब्लॉग से ऊब होने लगी है। इसके पीछे एक कारण यह भी हो सकता है कि ब्लॉग की अपेक्षा फेसबुक  पर ज्यादा जल्दी रिसपोन्स मिलता है। इसलिए अब ज्यादतर ब्लॉगर फेसबुक पर ज्यादा लिखना पसंद करते हैं और ब्लॉग पर
कम, मुझे तो कभी-कभी ऐसा भी लगता है कि ब्लॉग पर लिखने की सुविधा होने कि वजह से अब ब्लॉग लिखने वाले बहुत ज्यादा हो गए हैं और पढ़ने वाले बहुत कम, यह मैं अपने गूगल चाचा की मैहरबानी के तहत कह रही हूँ । क्यूंकि गूगल प्लस पर और मेल पर मुझे लगभग हर रोज़ 20 से 25 मेल आते हैं। जहां मुझ से अपने अपने ब्लॉग लिंक के साथ कमेंट लिखने का अनुरोध किया जाता है। मगर मेरे कमेंट कर देने पर भी, वह
सभी लोग कभी मेरे ब्लॉग पर नज़र नहीं आते और ऐसा एक बार नहीं बहुत बार हो चुका है। इसलिए मैंने अब ऐसे मेल पर कमेंट करना बंद कर दिया है।


इसका मतलब यह नहीं है कि मुझे कमेंट का कोई लालच है। मगर इस बात से भी तो इंकार नहीं किया जा सकता ना कि एक सार्थक कमेंट ही एक ब्लॉगर की ऊर्जा है, उसका हौसला  है, कुछ और अच्छा लिखने और ज्यादा लिखने की प्रेरणा है। आज मुझे ब्लॉग लिखते हुए 3 साल से ज्यादा का समय हो गया है। पर मैंने अपने इस ब्लॉग के सफर में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 60 कमेंट ही देखें हैं और अब तो संख्या दिन प्रति दिन गिरती ही जा रही है। जिसके कारण अब ना तो लिखने में मन
लगता है और ना ही पढ़ने में, हालांकी अच्छे ब्लॉगर का लिखा मैं आज भी ज़रूर पढ़ती हूँ। मगर अब उन सभी की संख्या भी धीरे धीरे कम हो चली है। अब उनके भी ब्लॉग पोस्ट महीनो में एक बार दिखाई देते हैं।


ऐसे में शायद फेसबुक  ही एकमात्र ऐसा माध्यम है जहां लोग तुरंत लिखकर तुरंत टिप्पणी पा जाते हैं। सो वहाँ बने रहने का ज्यादा फायदा महसूस होता है। हालांकि  मेरा मानना तो यह है कि फेसबुक  एक सोशल साइट के साथ-साथ एक सोशल  क्लब के जैसा माध्यम हैं। जहां लोग हर रोज़ आकर अपने अपने मन की बात सांझा करते हैं ,बतियाते हैं और चले जाते हैं। यानि मनोरंजन का मनोरंजन और साथ में तुरत  फुरत
ज्ञान फ्री :-) यहाँ तक के कभी-कभी तो कोई समस्या होने पर यहाँ उस समस्या का समाधान भी आसानी से मिल जाता है। फिर भला अब ब्लॉग पर कोई क्यूँ आयेगा या जाएगा। ऊपर से राजनीति ने तो यूं भी कोई क्षेत्र नहीं बक्शा है। मैंने सुना है यहाँ भी राजनीति चलती है, जिसका असर ब्लॉगर पर साफ दिखाई देता है। जो पहले रेगुरल टिप्पणी करते थे वह अचानक ही शांत बैठे हैं। अब तो कभी भूले भटके भी उन ब्लॉगर की कोई प्रतिक्रिया अपने ब्लॉग पर देखने को नहीं मिलती।  कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने अचनाक ही आना प्रारम्भ किया और फिर एकदम से गायब हो गए जैसे किसी ने उनका हाथ पकड़ लिया हो कि अरे तुम वहाँ कैसे चले गए, वहाँ जा कर टिप्पणी लिखोगे तो समझो हमारे समूह से बाहर हो जाओगे :-)


ऐसे में केवल फेसबुक ही एकमात्र ऐसा माध्यम साबित हुआ है जहां किसी से किसी को कोई बैर नहीं है। सब अपनी मन मर्ज़ी के मालिक है। लेकिन इस सबके बावजूद भी मेरा सभी ब्लॉगर मित्रों से नम्र निवेदन है कि यदि आप सभी को अपने-अपने ब्लॉग  से प्रेम है, तो कृपया एक बार फिर अपने साथ-साथ दूसरों के ब्लॉग पर जाकर भी उन्हें पढ़िये उस पर अपने बहुमूल्य विचार प्रस्तुत कीजिये। ताकि एक बार फिर ब्लॉगर और ब्लॉग के बीच के आपसी संबंध पुनः मधुर होकर जीवित हो सके एवं सार्थक
विचारों का टिप्पणी के माध्यम से आदान प्रदान हो सके और उन्हें एक नयी दिशा के साथ-साथ न्याय मिल सके। याद रखिए हर ब्लॉगर अनमोल है। क्यूंकि कमियाँ सभी में होती हैं, किन्तु गुणों से भी इंकार नहीं किया जा सकता जय हिन्द ....   
-- पल्लवी सक्सेना
                                                                                                                                                   (क्रमशः )                                                                                                       
                                                                                                                                   

सोमवार, 28 अक्तूबर 2013

क्या फेसबुक से ब्लॉग लेखन पर सक्रियता कम हो रही है ! (6 )

                               ये ये विषय बहुत  ज्वलंत बन  चुका  है क्योंकि  कहीं न कहीं हमारा  ब्लॉग लेखन प्रभावित अवश्य ही हो  रहा है। ……………… ! चलें  कुछ और साथियों के विचारों को जानें। 

                         इसमें कुशवंश जी का  चित्र उपलब्ध नहीं हो सका है। 

पुस्तकों के बाद यदि कहा जाए तो ब्लॉग लेखन साहित्य का एक शशक्त माध्यम बन के उभरा है और इसमे दो राय नाही है की इसने सभी को भरपूर सहयोग दिया उभारा और प्रशशा भी दी। ब्लॉगर ने भी इसे गंभीरता से लिया और ले रहे है। बस समय की कमी के चलते अब लोग फेस्बूक की ओर रुख कर रहे है और झटपट प्रतिक्रिया से अपनी साहित्यिक अभिरुचि प्रदर्शित कर रहे है । दोनों का महत्व इस एक वाक्य से समझा जा सकता है ।जो जिसमे खुश रहे वो ठीक। मगर एक बात तो बेहद महत्वपूर्ण है ब्लॉग से फ़ेस बूक की ओर गए लोग दोनों ही ओर हाथ पैर मार रहे है और गंभीर लोग निश्चित तौर से ब्लॉग की ओर लौटेंगे और ब्लॉगिंग को निरंतर समृध्ध करेंगे ।

-- कुश्वंश



 Rachna Singh

२००७ से हिंदी ब्लॉग जगत में हूँ , यहाँ पर ब्लॉग लेखन से ज्यादा नेट वर्किंग हैं और इसीलिये यहाँ पर फेस बुक पर ज्यादा लोग हैं। हाँ उनमे से कुछ पहले ब्लॉग भी लिखते थे पर वो सब ब्लॉग भी केवल और केवल एक दुसरे से अपने अपने नेटवर्क बढाने के लिये ही लिखते थे
ब्लॉग लेखन हिंदी में अब ज्यादा बेहतर हैं क्युकी वही लोग पढते और कमेन्ट देते हैं जो किसी मुद्दे से जुड़े हैं या ब्लॉग को एक निजी डायरी की तरह लिखते हैं
पहले हिंदी ब्लॉग में ग्रुप थे जो अब कम हो गए हैं क्युकी वो ग्रुप काल एक नेटवर्क के लिये बन जाते थे
अब ब्लॉग लेखन पहले से बहुत बेहतर और फेस बुक और ब्लॉग लेखन दो अलग अलग विधाए हैं और अलग अलग मकसद हैं

  -- रचना





आप सच कह रही हैं , धीरे धीरे लोग ब्लॉग से दूर हो गए फिर फेसबुक पर आ तो गए लेकिन लाइक कर के चल देते हैं या फिर टॉपिक को आगे पीछे हो जाते हैं।  विषय कहीं से शुरू होता है और कहीं पहुँच जाता है।  बहुत से महत्वपूर्ण विषय दरकिनार हो जाते हैं।   फेसबुक पर ये तो हैं कि बिना ज्यादा मशक्कत किये काफी लोगों की पोस्ट दिख जाती हैं जिनमें ज्वलंत मुद्दों पर भी आसानी से वक्तव्य दिए जा सकते हैं।  लेकिन उन विषयों का समय या यूँ कहिये की लाइफ़ एक या  रह पति है।   आने पर पोस्ट पिछड़ जाती है।  ब्लॉग ही एक ऐसा माध्यम है जिस पर विस्तृत और  वार्तालाप की जा सकती है।  
 -- अनामिका जी 


Aparna Sah 


ब्लॉग लिखना या फेसबुक के वाल पे लिखना एक विधा होते हुए भी दो चीज है। ब्लॉग भी अपना निजी होता है और वाल भी---पर वाल पे आप कुछ भी २-४ लाइन्स हल्का सा लिख सकते हैं पर ब्लॉग के साथ हीं गंभीरता,सार्थकता,मौलिकता की बात सामने आ जाती है। ब्लॉग की दुनिया काफी विस्तृत है,जितना अन्दर जाइये कम है पर कहा पैठ हो पाती है। फेसबुक के नशा के आगे ब्लॉग पे ज्यादा ध्यान लोग नहीं दे पातें हैं। लाइक-कमेंट की भी अपनी महत्ता है। कुछ लोग दोनों पे सामान रूप से पोस्ट डालते हैं। पर हाँ ये जरुरी है की ब्लॉग पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दिया जाय क्योंकि ये आपके व्यक्तित्व और निजता की पहचान है। पुराने लोगों को भी नए को ग्रहण करने और सिखलाने की आवश्यकता है। नए-नए ब्लॉग को खूब पढने के लिए समय तो देना ही पड़ेगा--गहरे नहीं पैठने से मोती कहा से पायेंगे।

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

क्या फेसबुक से ब्लॉग पर सक्रियता कम हो रही है ? (5)

                  कहने को तो फुरसतिया जी नाम से लगते हैं  कि  बड़ी फुरसत में रहते होंगे,  लेकिन विषय पर उन्होंने अपने ब्लॉग से कथन उठाने  की अनुमति दी है।  सो विषय के अनुरूप हमने उनके विचारों को  लिया।
सफाई इसा लिए पेश कर रही हूँ कि  चोरनी का लेबल न लग जाय !



                 संकलक के अभाव में यह कहना मुश्किल है कि ब्लॉग बनने की गति क्या है और प्रतिदिन छपने वाली पोस्टों की संख्या क्या है लेकिन यह तय बात है कि ब्लॉग धड़ाधड़ अब भी बन रहे हैं और लोग पोस्टें भी लिख रहे हैं। फ़िर यह बात कैसे फ़ैली कि ब्लॉगिंग कम हो गयी है।
           हुआ शायद यह कि कुछ लोग जो पहले से लिख रहे थे और जिनके पाठक भी काफ़ी थे उनमें से कुछ लोगों का लिखना कम हुआ।  ब्लॉग पर अभिव्यक्ति थोड़ा ज्यादा मेहनत मांगती है। इसलिये और इसके अलावा और कारणों से भी लोग फ़ेसबुक पर ज्यादा सक्रिय दिखते हैं। इससे यह धारणा बना लिया जाना सहज ही है कि फ़ेसबुक/ट्विटर के चलते ब्लॉग लिखना कम हो गया है। थोड़ा कठिन है।
        आम आदमी की अभिव्यक्ति के लिये ब्लॉग जैसी सुविधायें और किसी माध्यम में नहीं है। आपकी बात अनगिनत लोगों तक पहुंचती है। जो मन आये और जित्ता मन आये लिखिये। अपने लिखे को दुबारा बांचिये। तिबारा ठीक करिये। लोग आपके पुराने लिखे को पढ़ेंगे। टिपियायेंगे। आपको एहसास दिलायेंगे कि आपके अच्छा सा लिखा है कभी। फ़ेसबुक और ट्विटर की प्रवृत्ति केवल आज की बात करने की है। बीती हुयी अभिव्यक्ति इन माध्यमों के लिये अमेरिकियों के लिये रेडइंडियन की तरह गैरजरूरी सी हो जाती है!
                 
               कुछ लोगों के न लिखने से यह सोचा जाना कि ब्लॉगिंग के दिन बीत गये शायद सही नहीं है। ब्लॉगिंग की प्रवृत्ति ही शायद ऐसी है कि लोग लिखना शुरु करते हैं ,उत्साह होने पर दनादन लिखते हैं, फ़िर किसी कारण कम लिखते हैं और फ़िर कम-ज्यादा लिखना चलता रहता है। अगर कुछ लोगों ने लिखना कम किया है तो ऐसे भी हैं जो कि एक-एक दिन में तीन-तीन,चार-चार पोस्ट लिख रहे हैं और सब एक से एक बिंदास! किसी माध्यम जुड़े कुछ लोगों की क्षमताओं को उस माध्यम की क्षमतायें मानना सही नहीं होगा।
मुझे नहीं लगता कि ब्लॉगिंग कि अभिव्यक्ति के किसी अन्य माध्यम से कोई खतरा है। फ़ेसबुक और ट्विटर से बिल्कुलै नहीं है। इन सबको ब्लॉगर अपने प्रचार के लिये प्रयोग करता है। इनसे काहे का खतरा जी! :)
ब्लॉगिंग आम आदमी की अभिव्यक्ति का सहज माध्यम है। आम आदमी इससे लगातार जुड़ रहा है। समय के साथ कुछ खास बन चुके लोगों के लिखने न लिखने से इसकी सेहत पर असर नहीं पड़ेगा। अपने सात साल के अनुभव में मैंने तमाम नये ब्लॉगरों को आते , उनको अच्छा , बहुत अच्छा लिखते और फ़िर लिखना बंद करते देखा है। लेकिन नये लोगों का आना और उनका अच्छा लिखने का सिलसिला बदस्तूर जारी है- पता लगते भले देर होती हो समुचित संकलक के अभाव में।
! :)

--अनूप शुक्ला



बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

क्या फेसबुक से ब्लॉग पर सक्रियता कम हो रही है ? (4)



                        विषय अच्छा है और इस पर  का भी उतना ही महत्व है जितना की इसको महसूस कर मन में रखने वालों में - अरे भाई आप भी  अपनी सोच को शब्दों में ढल कर हमें भेज दीजिये।  हम उसे  पढ़ाएंगे।  



vandana A dubey's profile photo 
अच्छा विषय उठाया है रेखा दी...
हिंदी ब्लॉगिंग ने अपने दस साल पूरे कर लिये....
तमाम उतार-चढाव के बीच. हिंदी ब्लॉगिंग की शुरुआती दिक्कतें, फिर उनसे निजात पाना..सब हम लोग पढते रहे हैं. कैसे-कैसे प्रयोग किये गये, ये भी. हिंदी ब्लॉगिंग अपने शुरुआती दौर से लेकर शायद 2010 तक अपने शबाब पर थी, लेकिन पिछले लगभग दो सालों से तमाम सक्रिय ब्लॉगर्स ने अपना ध्यान ब्लॉगिंग से हटा के फेसबुक पर केन्द्रित कर लिया है, ऐसा मुझे लगता है ( क्योंकि मेरे साथ खुद ऐसा हुआ) बीच-बीच में पोस्ट लिखी भी गयीं तो उन्हें उतने पाठक नहीं मिले, जितने पहले मिलते थे. पहले जहां एक-एक पोस्ट पर पचास-साठ कमेंट आते थे, वे दस-पन्द्रह में सिमट गये. वो भी अगर लिंक फेसबुक पर शेयर किया गया है तो. वरना इससे भी कम. 
तो मुझे लगता है कि हिंदी ब्लॉगिंग को सबसे ज़्यादा नुक्सान फेसबुक से हुआ. लोगों को फेसबुक ब्लॉग से कहीं अधिक सुविधाजनक लगने लगा. पोस्ट लिखी और फेसबुक पर शेयर कर दी . कमेंट्स करने वाले भी सुकून में आ गये. अब टिप्पणी करने की बजाय वे बस "लाइक" का बटन दबाने लगे. पोस्ट पढी हो या नहीं, लाइक करने में क्या जाता है? अगले को ओब्लाइज़ भी कर दिया..... पोस्ट पढने की मेहनत से भी बच गये. वरना पहले ध्यान से पोस्ट पढो, फिर उस पर सार्थक टिप्पणी लिखो.... अब ज़्यादा भला. लाइक करो और अधिक से अधिक लिख दो, " जा रहे हैं पढने..." अब पढो चाहे न पढो. 
फेसबुक की लोकप्रियता के आगे ब्लॉगिंग विवश सी नज़र आने लगी....... आखिर हम सब लिखने-पढने वाले लोग फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट के प्रति इतने आकर्षित क्यों हुए? क्या वजह है जो इस साइट ने पोती से लेकर दादी तक, सबको बांध रखा है? क्यों नियमित रूप से ब्लॉग लिखने वाले अब फेसबुक पर रोज़ अपना स्टेटस अपडेट करते भर नज़र आ रहे? बहुत ज़ाहिर से कारण हैं. 
१) तात्कालिक रूप से मुलाकात और बात
२) तात्कालिक सवाल-जवाब
३) एक लाइव बहस जैसा माहौल निर्मित हो पाना.
४) लाइक की सुविधा उपलब्ध होना
५) सबसे बड़ी सुविधा है, नोटिफ़िकेशन की.
नोटिफ़िकेशन की सुविधा के चलते हम अगर किसी का ज़िक्र करते हैं, तो उसे हायपर लिंक करने की सुविधा होती है वहां, जिससे चिन्हित व्यक्ति के पास सूचना पहुंच जाती है, और वो तत्काल उस जगह पर पहुंच के अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा देता है. ज़िक्र करने वाले को भी अच्छा लगता है, और उस व्यक्ति को भी, जिसका ज़िक्र किया गया. जबकि ब्लॉग में ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है. मुझे लगता है, कि अगर ब्लॉग को भी नोटिफ़िकेशन की सुविधा उपलब्ध हो जाये तो फेसबुक पर अतिसक्रिय ब्लॉगर्स तत्काल ब्लॉग की ओर लौटेंगे. लोग अक्सर अपनी पोस्ट में अन्य साथियों का ज़िक्र करते हैं, कमेंट्स में भी पोस्ट लेखक जवाब देता है,लेकिन टिप्पणीकर्ता को खबर नहीं हो पाती.  अगर नोटिफिकेशन  की सुविधा ब्लॉग पर होगी, तो टिप्पणीकर्ताओं को तत्काल जानकारी होगी कि उन्हें पोस्ट लेखक ने या अन्य किसी ने कोई जवाब दिया है. चिट्ठा-चर्चा जैसे मंच को तो इस सुविधा की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. जब भी चर्चा की जाती है, तो उसमें तमाम लिंक्स शामिल किये जाते हैं, लेकिन कितनों को पता चल पाता है कि उनकी चर्चा की गयी? नोटिफ़िकेशन की सुविधा होगी तो चर्चाकार को भी अभी से अधिक आनन्द आयेगा चर्चा करने में. फिर देखियेगा, कैसे तमाम निष्क्रिय बैठे चर्चाकार कैसे सक्रिय होते हैं .. और वे सारे ब्लॉग-लेखक हरकत में आ जायेंगे जो फ़िलहाल पोस्ट लिखने से जी चुराने लगे हैं, और जिन्हें छोटे-छोटे स्टेटस रास आने लगे हैं. 
वैसे भी सोशल नेटवर्किंग साइट्स की लोकप्रियता को ,  उनमें  सुविधाओं पर नज़र डालनी ही चाहिए।  और ब्लॉग को अधिक सुविधा- संपन्न बनाए जाने पर  विचार किया ही जाना चाहिए, जब  साइट्स की तरह ब्लॉग भी क्यों न संपन्न हो , आधुनिक तकनीक से ?

 --- वंदना अवस्थी दुबे                                                                          
                                                                                                                                                 (क्रमशः )

सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

क्या फेसबुक से ब्लॉग पर सक्रियता कम हो रही है ? ( 3 )

                           बहुत महत्वपूर्ण विषय  है ये और इसके विषय में मैं  सोचती हूँ और इसा के बारे में हमारे ब्लॉगर मित्र जो कहते हैं वो उनके अपने विचार और अपनी सोच है।  फिर भी वे भी इस बात से इनकार नहीं कर रहे हैं कि ऐसा हो रहा है वजह उसकी कोई भी हो।  आपके अपने जो भी विचार हों अगर हमें अवगत कराएँगे तो  प्रस्तुत करके अपने ब्लॉग और अपने प्रयास को सफल मानूंगी।  इन्तजार में ………… !




ब्लॉग और फेसबूक दोनों ही आम आदमी को अपने सृजन क्षमता, सोच को दिखाने का जरिया है जो मानसिक संतुष्टि देती है, जब वो अपनी सृजनता पर प्रत्युतर पता है, बेशक सराहा जाए या गलतियाँ निकली जाए। हाँ ये अलग बात है की फेसबूक अगर एक रफ कॉपी के तरह है तो ब्लॉग एक शानदार डायरी है। फेसबूक पर आप कुछ भी लिखें, उस पोस्ट से तुरंत जुड़ जाते हैं एक संपर्क उसपर कमेंट करने वाले के साथ बनता है, जिस से वो थोड़ी खुशी देती है, पर उसको सहेजना मुश्किल है, क्योंकि कुछ दिनों मे ही वो पोस्ट कहीं विलीन होती दिखने लगती है, इसके उलट ब्लॉग पोस्ट आपके लिए सहेजा हुआ रहता है, उसके कोमेंट्स को कभी भी पढ़ कर आप खुश हो सकते हैं। फिर ब्लॉग पर चूंकि हम सोच समझ कर एक विशेष पोस्ट डालते हैं तो उस से ज्यादा जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। अतः बेशक फेसबूक की लोकप्रियत जितनी भी हो, एक सृजनकर्ता रचनाकर के लिए ब्लॉग ज्यादा अहम है, और ब्लॉग पर समय ज्यादा देना चाहिए।

 मुकेश कुमार सिन्हा 



 Photo: दिसंबर २००७ मे '' दिल्ली आज तक '' पर -- यह रौशनी उन्ही के स्टूडियो की है !

 सोशल मीडिया प्रेमियों के लिये ब्लॉगिंग और फ़ेसबुक मे उतना ही अंतर हैं जितना क्रिकेट प्रेमियों के लिये टैस्ट मैच और टी ट्वेंटी मे. ब्लॉगिंग विचारों की अभिव्यक्ति का एक गंभीर माध्यम है. साथ ही मनोरंजन का भी उत्तम साधन है . यहाँ लेखक सभी तरह के विषयों पर गंभीर चर्चा कर सकते हैं. एक बार लिखी गई पोस्ट सदा के लिये अमर हो जाती है . वर्षों बाद भी किसी विषय विशेष पर लिखी गई पोस्ट को ढूंढ कर पढ़ा जा सकता है . यह रचनात्मकता को प्रोत्साहन देती है . लेकिन टैस्ट मैच की तरह ब्लॉगिंग मे भी समय की खपत ज्यादा होती है . शायद इसीलिये अधिकांश ब्लॉगर्स का ध्यान अब फ़ेसबुक की ओर मुड़ गया है . फ़ेसबुक तुरंत फुरंत माध्यम है जहां एक स्टेटस की उम्र क्षणिक ही होती है . साथ ही यहाँ गंभीर विचार विमर्श के लिये कम ही जगह है .फ़ेसबुक पर लोग मौज मस्ती ज्यादा करते हैं , काम की बातें कम . यहाँ अक्सर स्वमुग्धता ज्यादा देखने को मिलती है. अभिव्यक्ति से ज्यादा अपनी उपलब्धियों का प्रचार ज्यादा होता है. अक्सर कोई कवि , लेखक , कलाकर या अन्य विशेष योग्यता रखने वाला अपनी उपलब्धियों का गुण गान करता ज्यादा नज़र आता है . पता चला है कि फ़ेसबुक पर रहने से कई लोगों को अवसाद होने लगता है. लेकिन सही तरीके से इस्तेमाल किया जाये तो फ़ेसबुक जैसा माध्यम सामाजिक जागृति पैदा करने मे बहुत sahayak siddh हो सकता है .

-- तारिफ दराल




फेसबुक ने ब्लागिंग की सक्रियता को बढाने का कार्य किया है।  यह एक मिथ है कि फेसबुक की  ब्लाग लेखन कम हो गया है।  अगर फेसबुक न होता तो भी ब्लॉग लेखन में सचुरेशन की स्थिति आती।  ब्लागिंग में धीमापन उसका सहज स्वभाव है जबकि फेसबुक त्वरित ढंग से कार्य करता है। नए  ब्लागरो  में लेखन का उत्साह कुछ ज्यादा रहता है सो उनकी पोस्टे फटाफट आती रहती है और जब  व्यक्ति लम्बे समय तक लिखता रहता है तो उसे लेखन कार्य से थोड़े समय के लिए ऊबन होने लगती है और वह कुछ 'रिक्रियेशन' के लिए करता है इसका मतलब यह नही की वह लेखन छोड़ कर 'रिक्रियेशन' को लेखन का विकल्प बना लेगा।  ब्लाग पर देरी से पोस्ट का आना और फेसबुक पर उपस्थित रहना दोनों में कोई सम्बन्ध नही है।  लोग जो फेसबुक पर होते है मैंने उनको भी फेसबुक को छोड़ कर जाते देखा है।  ब्लागिंग का शानदार और चौकस  भविष्य है।  

--- पवन  मिश्रा

                                                                                                                              ( क्रमशः )

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

क्या फेसबुक से ब्लॉग पर सक्रियता कम हो रही है ? (2)



              पिछली पोस्ट पर हमने  अपने मित्रों के विचार इसा विषय पर पढ़े और अब आगे चलते हैं।  यद्यपि  दो मित्रों ने ब्लॉग  फेसबुक के बारे में ही विचार दिए  हैं लेकिन मैं  उनके विचारों का सम्मान करती हूँ अतः उनको भी शामिल कर रही हूँ।  




 जब परिवर्तन आता है तो उसके बहुत सारे कारण होते हैं। लेकिन लेखन में लेखक को उसके विचार मजबूर कर देते हैं लिखने के लिए। इसलिए जो वास्‍तव में लेखक है वह ब्‍लाग पर ही लिखेगा। प्रारम्‍भ में लेखक बनने की चाह में बहुत सारे लोग ब्‍लाग से जुड़ गए थे लेकिन फिर निरन्‍तरता नहीं रख पाए और वे फेसबुक पर चले गए। इसलिए ब्‍लागजगत में लेखन में कमी आयी है। यदि विमर्श बिना पूर्वाग्रह के होगा तब सार्थक होगा, लेकिन आज राजनैतिक पूर्वाग्रह से लिखने वाले बहुत हैं इसलिए भी कुछ लोग दूर हो गए हैं।

--अजित गुप्ता




मुझे एक बात समझ मे नही आती कि इन दिनोँ फेसवुक पर कई लोग ग्रुप बनाकर तरह-तरह के भ्रष्टाचार के खिलाफ खडे नजर आते है, जो खुद कई प्रकार के भ्रष्टाचार मे सुबह से शाम तक लिप्त रह्ते है, एक छोटा सा उदाहरण देखिये - एक प्रोफेसर पढाई से ज्यादा गुटवन्दी मे, अपने हित साधने मे समय बिताते देखे जाते हैँ, एक पत्रकार हर घोटालेबाजोँ के धन्धे मे प्रत्येक्ष और परोक्ष रूप से उसे मदद करता रह्ता है, बदले मे हिस्सा लेता है, सरकारी व्यक्ति अपनी डुयुटी मे फांकी मारता है और भी कई लोग- कई तबके के हैँ, जो फेसबुक पर पिँघल छाँटते हुए दिखाई देते है, किसी मित्र को यह बात समझ मे आए तो बडी कृपा होगी, मुझे भी समझाने का कष्ट करेँगे, आभारी रहुँगा.


--अरुण कुमार झा

 पहली बात जो लोग आफ़िस टाईम मे भी फ़ेस बुक पर लगे रहते हे, वो भी तो एक तरह से भ्रष्टाचार कर रहे हे... सब से पहले वो कसम ऊठाये कि आफ़िस समय मे अपना काम ईमान दारी से करेगे, कोई कागज पेंसिल घर नही ले जायेगे, ओर ना ही आफ़िस के समय वो आफ़िस के पीसी से फ़ेस बुक या ऎसी प्राईवेट जगह पर जायेगे...

--राज भाटिया



 आजकल यह चर्चा ज़ोर शोर से चल रही है कि फेसबुक ने हिन्दी ब्लोगिंग का सब से ज्यादा नुकसान किया है कारण यह कि लगभग सभी हिन्दी ब्लॉगर आजकल फेसबुक पर अधिक सक्रिय दिखते है और इस वजह से उन सब के ब्लॉग असक्रिय हुये जा रहे है | न कोई पोस्ट लिख रहा है न पढ़ रहा है ... फेसबुक पर तुरंत संवाद हो पाने के कारण ब्लॉग से लोगो की दूरी बनती जा रही है !
ऐसे माहौल मे एक सवाल सब के जहन मे आता है क्या हिन्दी ब्लोगिंग अपनों के ही हाथों मारी जाएगी !!??

दरअसल इस पूरे मामले मे गलती हम सब की ही है ... मान लीजिये हम दिन मे २ घंटा फेसबुक पर बिताते है ... ऐसे मे बड़े आराम से हम बगल की विंडो मे अपना ब्लॉग भी खोल कर रख सकते है ... फीड्स का अनुसरण करते हुये नयी आई हुई पोस्ट पढ़ सकते है ... और पढ़ते पढ़ते कमेन्ट देने का मन हुआ तो झट मन की बात कह दी पोस्ट पर ... एक बार इसी तरह सक्रिय होने पर धीरे धीरे खुद भी पोस्ट लिखने का मन भी होने लगेगा और हमारी असक्रियता कब सक्रियता मे बदल जाएगी पता भी नहीं चलेगा !

मैं खुद भी ऐसा ही करता हूँ ... साथ साथ ... ब्लॉग बुलेटिन की पोस्ट लगाने के कारण भी काफी पोस्टों को पढ़ना हो जाता है ... हाँ यह जरूर है कि आजकल कमेंट्स करना काफी कम हो गया है !

फेसबुक पर हम से ज़्यादातर लोग इसी ब्लोगिंग के चलते एक दूसरे से जुड़े है ... तो आइये इस जुड़ाव के आधार को बनाए रखें |

--
शिवम् मिश्रा


अभिव्यक्ति एक सशक्त माध्यम है अपने विचार दूसरों तक पहुँचाने का - चाहे वह कोई भी विधा हो- संगीत, नृत्य, पेंटिंग या लेखन !
अक्सर हमारा लिखा डायरी के पन्नों में सिमट कर रह जाता है , शायद इसलिए की हम उसे अन्यत्र भेजने की हिम्मत नहीं जुटा पाते . लेकिन ब्लॉग एक ऐसे सशक्त मंच के रूप में उभरा है जहाँ हम अपनी सोच ..अपनी भावनाएं..अपने विचार साझा कर सकते हैं .
अमूमन काफ़ी समय हम सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर व्यतीत करते हैं ...कितना अच्छा हो अगर हम अपने ब्लॉग के साथ साथ दूसरे ब्लॉग को भी महत्त्व दें ...थोडासा समय निकालकर ..उनपर जाकर मित्र लेखकों की सोच पर भी एक नज़र डालें, उन्हें पढ़ें, समझें और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें, उनका मनोबल बढाएं, जैसा की हम और मित्रों से अपेक्षा रखते हैं .
तभी तो सही मायनों में हमारा ब्लॉग लेखन सार्थक हो पायेगा .
.......ज़रा सोचिये ..!

       सरस दरबारी 

फेस बुक ने लोगों को एक बहुत बड़ी दुनिया से परिचित करवा दिया है इसने कई अजनबियों को एक परिवार की तरह बाँध दिया है। शुरू में ब्लॉग जगत के लोगों ने फेस बुक को बहुत तवज्जो नहीं दी लेकिन धीरे धीरे बैटन चर्चाओं का आकर्षण सिर चढ़ कर  और कई ब्लोगर्स जो हफ्ते में पांच से छह पोस्ट लिखते थे एक दो पोस्ट तक सिमट गए और इसकी जगह ले ली लाइक और चुटीली टिप्पणियों ने।  इससे निश्चित ही लेखन का स्तर गिरा  है साथ ही अपनी सोच के हिसाब से किसी बात को नए नज़रिए से देखने समझने और समझाने का क्रम भी कम हुआ है जो शोचनीय है। ब्लॉग परडाली गयीं पोस्ट एक सुरुचि पूर्ण दस्तावेज  के रूप में होती हैं और उसके साथ होते हैं लोगों के बेशकीमती विचार ,इसलिए  से ब्लॉग का साथ छोड़ना अपने लेखन के साथ अन्याय करना है।
-- कविता वर्मा
 एक चर्चा 

                                                                                                                           (क्रमशः)

बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

क्या फेसबुक से ब्लॉग पर सक्रियता कम हो रही है ?

              जिसे मैं महसूस कर  हूँ , उसे और भी हमारे साथी भी महसूस कर  हैं लेकिन महसूस करने से कुछ नहीं होता।  कुछ  इस  तरह से सोचा जाय कि  जो हम खोते जा रहे हैं,  उसके अस्तित्व को उसी तरह से जारी  रखें।
                      अरे अभी  शेष है मुद्दे पर आना।   ब्लॉगिंग के ऊपर फेसबुक ने डाका डाल  दिया है और ब्लोगर्स भी ब्लॉग के बजाय फेसबुक पर जाकर स्टेटस अपडेट कर देते हैं, वह भी कुछ ही पंक्तियों में और पढ़ने वाले भी उसको लाइक करके अपने फर्ज से मुक्त हो जाते हैं।  ये अवश्य है कि फेसबुक पर डाली हुई चीज करीब करीब उस हर इंसान की नजर से गुजर जाती है जो ऑनलाइन होता है बल्कि कहिये कि  फेसबुक पर सिर्फ वे लोग पढ़ सकते हैं जो आपके मित्रों में शामिल है  और अगर कुछ घंटों में इतने स्टेटस अपडेट  हो जाते हैं कि जो आगे बढ़ जाते हैं , उनको पढ़  पाना संभव नहीं हो पाता है और ब्लॉग की अपडेट उन्हें  तब ही मिलती है जब वे किसी भी  संकलक  पर जाएँ .  जहाँ पर उन्हें ताजे अपडेट मिलें। लेकिन किसी भी समस्या और विषय को ब्लॉग पर डालने से जितने सहज ढंग से उसको प्रस्तुत किया जा सकता है  फेसबुक पर अगर करें भी तो सारे लोग सारे अपडेट नहीं पढ़ पाते हैं और महत्वपूर्ण विषयों से वंचित रह जाते है।  ब्लॉग पर विषय  संचित और सुरक्षित रहते हैं और उसको  पढ़ने के लिए और उसे कहीं भी उल्लिखित करने के लिए कभी भी जोड़ा जा सकता है जब कि हम फेसबुक के साथ ऐसा नहीं कर पाते  हैं।


                      मैं खुद भी कुछ  ब्लॉग पर  रही हूँ लेकिन जब अपने से जुड़े ब्लॉग पर  नजर डाली तो पाया कि राजभाषा ब्लॉग जिस पर मैं भी कभी बहुत सक्रियता से लिखती थी और वह मुझे बहुत पसंद भी है, लेकिन उसकी आखिरी पोस्ट अप्रैल की पड़ी हुई थी तो मुझे लगा कि फेसबुक जैसी सोशल साईट ही ब्लॉग के प्रति ब्लॉगर की सक्रियता को कम करने लगी है।  हो सकता है कि वहम हो लेकिन सबसे इस पर विचार लेकर कुछ जाना तो जा ही सकता है।  इसी लिए आप सबको एक विषय पर अपने विचार लिखने का अनुरोध किया। जैसे जैसे विचार मिल रहे हैं ,   सबको प्रस्तुत  कर रही हूँ।  आप भी अपने विचार भेजें। 



आपने बिलकुल सही बात उठाई है, पर बात सिर्फ फेसबुक की नहीं है मेरे दृष्टिकोण से  …. लोग कुछ भी लिखने लगे हैं, और कुछ भी लिखे पर कमेंट्स देकर कमेंट्स की आशा रखते हैं और आशा पूरी भी होती है  …। इससे सही लिखनेवाले कमेंट्स से निर्विकार हो गए हैं और इस पर नज़र डालना ज़रूरी है ! 
ब्लॉगर अपने लिंक्स फेसबुक पर देते हैं ताकि आप पढ़ें - पर एक क्षण में लाइक बटन दबानेवाले नहीं समझते कि सही मायनों में लिखनेवाले इससे प्रभावित नहीं होते  . 
हमारे चाहने से कुछ नहीं होगा,क्योंकि जो पढ़ते हैं वे आज भी पढ़ते हैं - और जब प्रभावित होते हैं तो प्रतिक्रिया भी देते हैं - और कई बार समय,मानसिक स्थिति स्तब्ध भी बना देती है  . कमेंट्स के साथ seen  का भी चिन्ह है,जो बताता है कि कितनों ने पढ़ा हमें ! 
हम न जबरदस्ती किसी को पढने के लिए कह सकते हैं,न कमेंट्स देने को - खुद पर विश्वास मायने रखती है

 रश्मि प्रभा


आपका सोच सही हैं ब्लोग्स पर लिखा हर कोई नही पढता   वह  सबकी नजरो में आभी जाए तो यही होता हैं कि आप मेरे ब्लॉग पर आये तभी हम आपके ब्लॉग पर आयेंगे  .कम से कम मुझे तो यही लगता हैं   फेस बुक पर आप जितना भी अच्छा लिख ले हर कोई कमेंट नही करता  बस चलते चलते लाइक कर लेता हैं .मैंने देखा कई बार लोग पूरी पोस्ट पढ़ते भी नही हैं .....ब्लॉग अभिव्यक्ति का उत्तम माध्यम हैं और संजीदा भी   ,परन्तु क्षमा चाहती हूँ मैं भी ब्लोग्स पर सक्रीय होने की कोशिश करती हूँ परन्तु जितना होना चाहिए उतना नही हो पाती शायद मैं नवोदित हूँ इस क्षेत्र में इस लिय ...... हाँ आश्वासन देती हूँ मैं अपनी तरफ से कि अब से कम से कम रोजाना ब्लॉग का अवलोकन अवश्य करूंगी शुक्रिया आपने इस तरह ध्यान दि

 नीलिमा शर्मा




मुझे नहीं लगता कि फेसबुक से ब्लोगिंग पर कोई फर्क पड़ रहा है। बल्कि फेसबुक त्वरित गति से ब्लॉग पर ट्रेफिक बढ़ाने मे सहायता ही करता है। ब्लॉग और फेसबुक दोनों अभिव्यक्ति का माध्यम है और एक दूसरे  के पूरक हैं अलग नहीं। यह हम पर निर्भर है कि किस तरह इन दोनों माध्यम का प्रयोग करते हैं।
रही बात कमेंट्स की तो कमेंट्स आने से ज़्यादा महत्व इस बात का है कि जो हमने लिखा उसे कितने लोगों ने पढ़ा और इसका हिसाब ब्लॉग की statistics से आसानी चल सकता है।
फेसबुक ब्लॉग पर लगभग 70-80% ट्रेफिक बढ़ाता ही है इससे ब्लॉग को कोई खतरा नहीं है .


  यशवंत माथुर

समय और परिस्थिति सब नियंत्रित करती है.,मुझे जब जैसा समय मिलता है सक्रीय रहती हूँ,वैसे मेरा कार्य नए blogs खोजकर पढ़ना ही है...एक अच्छी पहल है .. राय जानने की
आभार

 अर्चना चावजी
 मेरे विचार इस मामले में कुछ भिन्न हैं. ब्लॉगस कोई नहीं पढता ऐसा नहीं है. अब भी अच्छे ब्लॉगस पढ़े जाते हैं. हाँ इतना अवश्य है कि अब ब्लॉग अपनी प्राकृतिक अवस्था में आ गया है. बीच में, चाहे किसी रेटिंग की वजह से हो या किसी और वजह से. हर कोई ब्लॉग लिखता नहीं था, बहुत से लोग ब्लॉग ठेला करते थे. रोज का रोज ठेलना, फिर चाहे वह किसी मेल से कॉपी पेस्ट किया हुआ मटेरियल हो या फिर आपस में दो लोगों की लड़ाई, गाली गलोच और भड़ास. अब वह सब छट कर फेसबुक पर चला गया है. ब्लॉग अब वही लिखता है जिसके पास वाकई कुछ लिखने या अभिव्यक्त करने को है. और तभी लिखता है जब उसका मन लिखने का हो, न कि रोज लिखना है कि तर्ज़ पर कुछ भी लिख दिया जाए.
फेसबुक पूरी दुनिया से जुड़ने का एक माध्यम है इससे इनकार नहीं किया जा सकता और वहां जब आप किसी ब्लॉग का लिंक देते हैं तो वह पूरी दुनिया के सामने होता है. यह सच है कि उसपर कुछ लोग बिना देखे ही लाइक क्लिक कर देते हैं, पर यह भी सच है कि उसे देखकर गंभीर पाठक भी ब्लॉग तक आता है और आपके ब्लॉग की रीडरशिप बढ़ती है. 
गंभीर लेखन आज भी ब्लॉग पर होता है और गंभीर पाठक आज भी उसे पढता है. ब्लॉग की अहमियत आज भी कम नहीं हुई है.
हाँ हलकी फुलकी बातों और टिप्पणियों के लिए फेसबुक बुरा नहीं.

शिखा वार्ष्णेय ,


मैं भी इस बात से सहमत हूँ कि फेसबुक की वजह से पूरा ब्लॉग-जगत इस बात से झूझ रहा है ...यहाँ आने वाले पाठकों की संख्या में कमी आई है ..और फेसबुक के स्टेट्स पर सिर्फ लाइक कर देते से इती-श्री कर देना लिखने और पढ़ने वालो पर सारा सर वार है ..वहाँ का लिखा हुआ इतनी जल्दी खो जाता है कि फिर से उसे खोजने में बहुत वक्त लगता है ....पर फेसबुक से पहचान मिलती है और मिली है इस बात को भी नाकारा नहीं जा सकता |

मेरे जैसे बहुत से लोग है जो वहाँ बहुत सक्रिय नहीं है ...हम लोगों के ब्लॉग या वेब साइड अपने पाठक ढूढं रही है |नीलिमा की बात सही है ..बिना कॉमंट किये कोई भी अपने ब्लॉग पर नहीं आता |सच में कुछ वक्त से सभी ब्लॉग अपने अपने पाठकों के लिए तरस रहें हैं और आगे चल के हालात और भी बुरे होने वाले हैं ...मुझे नहीं लगता कि वो वक्त फिर से आएगा जब सब लोग ब्लॉग लिख भी रहें थे और पढ़ भी रहें थे |

अंजू चौधरी

                                                                                                                     (  क्रमशः)