जब रतन टाटा ने घूस माँगने के मामले का खुलासा किया तो सरकार के कान खड़े हो गए और तुरंत ही सरकार नतमस्तक हो गयी. उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने रतन टाटा के घाव पर मरहम लगाते हुए उन्हें इस क्षेत्र में आने के लिए निमंत्रण दे डाला. ये एक बड़े घराने का आरोप था और खुलासा करते ही रास्ता साफ हो गया. जब सरकार के मंत्रालय स्तर इतना भ्रष्ट है जहाँ करोड़ों की सौदा होती है और सतर्कता विभाग कभी कदार अपनी तत्परता और निष्पक्षता के लिए कुछ एक अधिकारियों पर हाथ डाल कर वाह वही लूट लेती है और ये बड़े करार होते हैं उन तक पहुँचने की हिम्मत उनमें नहीं है.
अब आम आदमी के बात करें तो वह तो इसके बिना कुछ करवा ही नहीं पाता है. समर्थ और सक्षम के लिए तो फिर भी ये बातें कोई मायने नहीं रखती हैं. हम बात करते हैं कोषागार की - जहाँ से अवकाश प्राप्त अपनी पेंशन पाते हैं. वहाँ चलें और देखें कि वे वृद्ध जो स्वयं चलने में असमर्थ है फिर भी घंटों लाइन में खड़े हैं, जिसको चक्कर आ गया तो वही बैठ गया. पेंशन लेने के बाद वहीं रखी एक भगवान की तस्वीर के आगे कुछ चढ़ावा चढ़ाना होता है. यहाँ कोई नहीं ले रहा और कोई नहीं दे रहा. श्रद्धा जाग्रत करवाकर कुछ चढ़वाया जा रहा है. शाम को वह चढ़ावा सबकी जेबों में चला जाता है.
'जीवित प्रमाण पत्र' हर वर्ष पेंशनर को जमा करना होता है. अगर उसको पेंशन लेनी है तो जमा करना ही पड़ेगा. इस प्रक्रिया में अगर आपको निर्बाध पेंशन चाहिए है तो उस फार्म के साथ हर महीने के १०० रुपये के हिसाब से एक साल तक का चार्ज देना होगा तभी ये कार्य संभव है और यहाँ लाखों की संख्या में पेंशनर होते हैं. हो गयी न करोड़ों की कमाई. यहाँ कोई रिश्ता या परिचय काम नहीं आता है भले ही आप उसी कोषागार से अवकाशप्राप्त कर्मी क्यों न हों? अब नियम है तो है. ये पेंशनर जो अपने पैरों पर चल नहीं पाते , कुछ को तो दिखाई भी कम पड़ता है , कुछ मोहल्ले वालों के हाथ पैर जोड़ कर साथ लेकर आते हैं. वे कहाँ गुहार लगायें? किससे करें अपनी फरियाद और करने से भी क्या मिलेगा? उनकी पेंशन लटका दी जाएगी. वे कांपते हाथों से ये रकम देने के लिए मजबूर होते हैं लेकिन लेने वालों के हाथ नहीं कांपते है. ऐसा इस लिए भी होता है कि अब अधिकांश पेंशनर की पेंशन बैंक में जाने लगी है तो कोषागार वालों को तो साल में एक बार ही मौका मिलता है. धर्म की कमाई है. जो मांग रहे हैं वे अपनी मेहनत की कमाई मांग रहे हैं और जो देने वाले हैं उनकी तो मुफ्त की कमाई है इसलिए उनको देना होता है. चलिए आगे और विभागों में सेंध लगायेंगे .
*सभी चित्र गूगल के साभार *
उठा के हाथ में कब से मशाल बिठा हूँ ...
13 घंटे पहले