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गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

अल्पकालीन निद्रा श्वासावरोधन !

                             



                           हम अपने स्वास्थ्य के प्रति कितने सजग हैं? ये तो हमसे बेहतर कोई नहीं जानता , लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जिनके बारे में हम तब सोचते हैं जब कोई अगला उसका शिकार  मुसीबत में पड़ जाता है. अगर किसी साधरण सी बात को हम गंभीर परिणामों में देखते है तो फिर अन्दर तक काँप जाते हैं .
                                आज सुबह की ही बात है, खबर मिली की मिश्र जी रात  में सोये थे और फिर सुबह उठे ही नहीं . कोई परेशानी नहीं थी और घर वालों के अनुसार वे डिनर लेने के बाद आराम से सोये थे. फिर क्या हुआ? एक बड़ी ही अजीब बात सुनने को मिली उन्हें खर्राटे बहुत आते थे और वही उनके जीवन को ख़त्म करने के कारण  बने. 
                      वैसे तो खर्राटे  एक  बात है और मेरी दृष्टि से हर दस लोगों में ८ लोग किसी न किसी रूप में खर्राटे कम या ज्यादा लेते ही है . ये खर्राटे व्यक्ति के निद्रावस्था में सांस का अल्पकाल के लिए अवरोधन की स्थिति है. ये आवाज क्यों आती है? इसके विषय में डॉक्टर के अतिरिक्त सभी अपने अपने विचार प्रस्तुत करते हैं और इसके विषय में दलीलें भी देते है . इन श्वसवारोधन को भी दो रूप में देखा जाता है  -- 

अल्पकालीन श्वास अवरोधन की स्थिति
                       इसमें व्यक्ति के वायु मार्ग (श्वसन) सम्पूर्ण रात जल्दी जल्दी बंद होते हैं , जिससे श्वास में अवरोध उत्पन्न होता है. इस स्थिति में फेफड़े वायु लेने का प्रयास करते हैं लेकिन अवरोधित मार्ग के कारण  संभव नहीं हो पाता और ये इस स्थिति को एक सामान्य रूप में देखा जा सकता है. इसको हम अपने शरीर की अन्य स्थितियों में एक मानते है। 

केन्द्रित श्वसावारोधन की स्थिति - 
                      व्यक्ति की निद्रा की स्थिति में मष्तिष्क फेफड़ों को श्वास लेने का निर्देश नहीं देता है, तब व्यक्ति की श्वसन प्रक्रिया में वायु प्रवाह एवं फेफड़ों में उसका सामान्य रूप से आना और जाना सम्पन्न नहीं होता है.   यह स्थिति व्यक्ति के लिए हृदयाघात या अन्य प्रकार की ह्रदय व्याधियों का कारण  बन जाती  है. क्योंकि यह अल्पकालीन  श्वासावरोध फेफड़ों में वायु का संचार नहीं होने देता , जिससे रक्त में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है और हृदय को अधिक मेहनत  या कार्य करना पड़ता है और इसी स्थिति में ऐसी दुर्घटनाएं हो जाया करती है।
अल्पकालीन निद्रा श्वासावरोधन  के कारण : 
                   यह अल्पकालीन श्वासावरोधन  तब होता है जब कि  व्यक्ति निद्रा के दौरान वायुमार्ग के मध्य बढ़ी हुई मांस पेशियों, जैसे टांसिल का असामान्य रूप से बढ़े होने के कारण  अवरोध उत्पन्न होता जाता  है.  यह तब भी हो सकता है  जबान या गले की मांसपेशियां अधिक ढीली हो जाती है और वायुमार्ग अधिक खुला रहता है. 
                    खर्राटे मात्र अल्पकालीन श्वसवारोधन का संकेत है। जिन्हें हम एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया समझ लेते हैं वे कभी कभी बहुत खतरनाक तरीके से जीवन को मुसीबत में डाल  देते है . 
                      कोई भी व्यक्ति यदि खर्राटे लेता तो अवश्य ही उसका श्वसन मार्ग आंशिक रूप से अवरोधित होता है. यदि आप तेज खर्राटे लेते हैं और आपकी नींद टूट जाती है, तब आपको इस स्थिति को गंभीरता से लेना  चाहिए . इस स्थिति में आप अपने डॉक्टर से  अपने अल्पकालीन निद्रा श्वसवारोधक परीक्षण करवा सकते है .  खर्राटे  किसी बड़ी मुसीबत का कारण बन सकते  है या फिर यह इसका पूर्व संकेत होते है. इस प्रकार खर्राटों से सचेत रहकर भावी मुसीबत से  के लिए तैयार रहेँ . 
    अल्पकालीन निद्रा श्वासावरोधन का निदान :

                    खर्राटे के संकेतों से आप अगर सचेत हो रहे हैं तो इसको आसानी से ज्ञात किया जा सकता है. यदि आपके डॉक्टर ये समझते हैं कि आप को अल्पकालीन निद्रा श्वासावारोधन की समस्या है, तो वह आपके लिए आपकी सम्पूर्ण रात्रि की "स्लीप स्टडी" की व्यवस्था  - आपकी नींद एवं श्वसन प्रक्रिया की जांच के लिए कर सका है. यह स्लीप स्टडी अस्पताल में विशेष रूप से बनाये गए 'निद्रा केंद्र ' में किया जा सकता है. ज्यादातर 'निद्रा केंद्र ' यथा संभव स्वाभाविक निद्रा के लिए आरामदेह और अनुकूल वातावरण से युक्त होते हैं . जिससे आप स्वाभाविक नीद लें और उसके अवरोध को आसानी से रिकॉर्ड किया जा सके. 
  पालिसोमनोग्राफी - 
                                          'निद्रा अध्ययन कई प्रकार के हो सकते हैं . सबसे अधिक विश्वसनीय एवं पूर्ण तरीका 'पालिसोमानोग्राफी ' कहा जाता है. एक निद्रा तकनीशियन पाली सोमानोग्राम के साथ एक सेंसर आपके शरीर के साथ लगा देता है और इससे आपके शरीर को निम्न  प्रक्रिया दिखलाई देती है --

* मष्तिष्क प्रक्रिया (नींद / जागृत स्थिति में )
* नेत्र गतिविधि 
* मांसपेशियों एवं पैरों की गतिविधि 
* श्वसन तंत्र एवं ह्रदय गतिविधि 
* आक्सीजन स्तर 

                              पालिसोमनोग्राम से आपके निद्रा विशेषज्ञ को एक चित्र प्राप्त होता है कि  आप कैसे सोते हैं और आपकी निद्रा भंग होने के कारणों को जाना जाता है. इसके अतिरिक्त दूसरे प्रकार के निद्रा परीक्षण भी संभव है, जो कि  घर पर भी किये जा सकते हैं लेकिन वे पाली सोमनोग्राम की तरह आवश्यक  जानकारी प्रदान नहीं कर सकते है . 

                     अल्पकालीन निद्रा श्वासावरोधन की गंभीरता 

          ये नींद में श्वास के रुकने की प्रक्रिया एक गंभीर रोग का संकेत हो सकती है लेकिन हम अगर इसके बारे में नहीं जानते तो फिर हम इसके नजर अंदाज करने के कारण और कई परेशानियों  का शिकार हो सकते है और अपने सामान्य जीवन में एक व्यवधान पाते हैं . इसके कारण  होने वाली संभावित समस्यायों को भी हम इस तरह से समझ सकते है . 

                                                अल्पकालीन निद्रा श्वासावारोधन 

                                                                         | 
                       १. हाई ब्लड प्रेशर 
                        २. ह्रदय सम्बन्धी समस्याएं ( हार्ट अटैक, हार्ट फेल  आदि )
                        ३. स्मृति सम्बन्धी समस्याएं एवं वैचारिकता सम्बन्धी समस्याएं 
                         ४. पक्षाघात 
                        ५ इन्सुलिन क्षमता वृद्धि 
                        ६. मार्ग दुर्घटना या कार्यस्थल दुर्घटना 

              आप अपने डॉक्टर से परामर्श करें और यदि आप अल्पकालीन निद्रा श्वासावारोधन से ग्रसित है तो आपको समुचित निदान एवं उपचार के लिए कदम उठाने चाहिए और अपने जीवन को स्वस्थ रहने की दिशा  में जागरुक होने का परिचय भी दे। 

** यह लेख मैंने अपने पतिदेव की सहायता लेकर ही लिखा है. 

शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

किशोर अपराधियों की बढती उपज !

                                                          बचपन त्याग कर बच्चा जब किशोरावस्था की दहलीज पर कदम रखता है तो वह दौर उनकी जिन्दगी का सबसे नाजुक दौर होता है . मनोवैज्ञानिक तौर पर उनका मन विभिन्न जिज्ञासाओं और कौतुक से भरने लगता है . वे उन प्रश्नों के उत्तर अपने घर वालों से और मित्रों से बार बार प्राप्त करना चाहते हैं और अगर वे संतुष्ट हो सके तो वह बात उनके कोमल मन पर हमेशा के लिए अंकित हो जाती है और अगर वे संतुष्ट न हो सके तो फिर वे खुद उसको खोजने के प्रयास में रहते हैं . जीवन के इस नाजुक दौर में वे अपने मष्तिष्क में उमड़ते हुए अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर खोजने में रास्ते से भटक भी जाते हैं . माँ बाप उन्हें बच्चे समझते हैं और वे अपनी को बड़ा समझते हैं . इसी लिए वे अपनी उम्र के साथ साथ गलत जरिये से भी अपनी जिज्ञासा शांत करने का प्रयास करते हैं। 
                                                  दिग्भ्रमित इन किशोरों के इस भटकाव के लिए दोषी कारण इसी समाज में और हमारे बीच  ही पल रहे हैं।  हम उनसे अनजान होते हैं ठीक वैसे ही जैसे चिराग तले अँधेरा होता है। ऐसा नहीं है इसके लिए हम ही जिम्मेदार भी हैं लेकिन उसको सोचने की जरूरत महसूस नहीं करते हैं या फिर करके भी उससे अनजान बने रह कर अपने दबदबे और पैसे की हनक में उन्हें बढ़ावा देते रहते हैं। अगर बच्चे भटक भी गए तो बचाने के लिए हम हैं न। कुछ कारणों को तो हम देख कर समझ सकते हैं और उन के निवारण के लिए प्रयास भी कर सकते हैं। 
1. संयुक्त परिवार का विघटन : 
                          संयुक्त परिवार की पहले वाली परिभाषा तो अब अपने भाव  और अर्थ दोनों ही खो चुकी है लेकिन जो परिभाषा अब भी शेष रह सकती है वह भी ख़त्म होती जा रही है। विवाह के बाद पति और पत्नी , बच्चे होने के बाद उसमें बच्चे भी शामिल हो जाते हैं। बस विवाह के बाद माता पिता का स्थान बेटे और बहू की मर्जी पर निश्चित होता है। आज के दौर में अधिकतर पति और पत्नी दोनों ही काम काजी होते हैं और बच्चों के विषय में वे इतर साधनों से परवरिश तो सोच सकते हैं लेकिन माता  - पिता को अपने साथ रखने की बात उन्हें कम ही समझ आती है। शायद जनरेशन गैप की वजह से वे सामंजस्य नहीं बिठा पाते हैं . फिर बच्चे पहले क्रच में डाल देते हैं और फिर थोडा बड़ा होने पर स्कूल या फिर आया के भरोसे छोड़ना शुरू कर देते हैं। ये जरूरी नहीं कि  वे नौकरी शौकिया तौर पर कर रही हों उनकी मजबूरी भी हो सकती है लेकिन इसके पीछे बच्चों की उपेक्षा किसी को नहीं दिखाई देती हैं 
             बच्चों को स्कूल के बाद आया और उसके अशिक्षित बच्चों का साथ मिलता है और उनसे ही मिलती है कुछ जानकारियाँ जो वे अपने छोटे से घर में माता - पिता के साथ रहते हुए हासिल कर लेते हैं। एक कमरे के घर  में पति-पत्नी और बच्चे जिसमें वे अपने रिश्ते का निर्वाह भी कर रहे होते हैं। उसमें बच्चों की उपस्थिति जाने अनजाने उनके रिश्तों के प्रति उनके मन में गाहे बगाहे एक प्रश्न छोड़ जाते  है और यही से पैदा होती है उनके लिए एक नयी जानकारी हासिल करने की इच्छा , जिसे वे अपने साथियों के साथ बाँटते हैं और फिर बाल अपराधियों के यौन अपराध में लिप्त होने का एक स्पष्ट कारण सामने होता है। अगर बाबा और दादी भी घर में होते हैं तो बच्चों के लिए सिर्फ एक शिक्षक ही नहीं बल्कि एक अभिभावक भी रहता है जो उन्हें हर दृष्टि से सुरक्षित और नैतिकता का ज्ञान देने में अग्रणी रहते हैं। वे बुजुर्ग हैं तो घर पर बोझ नहीं होते बल्कि हमारे एक ऐसे बोझ को कम करते हैं जिसे हम कर ही नहीं सकते हैं। 
2.गजेट्स की उपलब्धि : 
                                    रोज रोज बढ़ते जा रहे गजेट्स और सामान्य वर्ग की बढती हुई सामर्थ्य या शौक कहें नित नए गजेट्स का घर में आना सामान्य बात हो चुकी है। घर में प्रवेश कर चुके गजेट्स बच्चों की पहुँच से दूर नहीं होते हैं बल्कि घर में माता -पिता की अनुपस्थिति में ये गजेट्स उनके लिए एक्सपेरिमेंट का साधन बन जाते हैं और वे उनसे खेलते हुए सब कुछ जान लेते हैं जो उनकी उम्र के लिहाज से उचित  है वो भी और जो उचित नहीं है वो भी।
          टीवी तो नवजात शिशु की भी पसंद बनाते देखा है . माँ अपने शौक के चलते रोते हुए बच्चे को टीवी के आगे कर देती है और फिर वे बच्चे टीवी के रंगीन स्क्रीन और संगीत सुनकर चुप हो जाता है तो माँ बड़े शान से कहेगी कि इसको तो अभी से टीवी का बहुत शौक है चाहे जैसे रो रहा हो इसको टीवी दिखाने  लगो चुप हो जाएगा और फिर रिमोट पकड़ने लायक होने पर वह रिमोट किसी को ही नहीं देता है। धीरे धीरे वह उसके लिए पूरी तरह से समय गुजरने का साधन बन जाता है। 
                    कंप्यूटर या लैपटॉप तो आम बच्चों की पढाई का हिस्सा प्राथमिक शिक्षा स्तर से ही बन चुके हैं . उनको ऑपरेट करना , नेट सर्फिंग करना उनके लिए कोई बड़ा काम नहीं रह जाता है। फिर घर में अकेले होने पर उसमें गेम खेलना और पिक्चर देखना उनके लिए समय गुजारने  का एक सबसे अच्छा साधन बन जाता है। इसमें देशी विदेशी फिल्में, पोर्न फिल्में और विभिन्न साइट्स शामिल होती हैं। उन्हें घर में रोकने वाला भी कोई नहीं होता है। इसके सकारात्मक प्रयोग को 10 में से सिर्फ 2 बच्चे खोजते हैं और शेष नकारात्मक प्रयोग को अधिक प्राथमिकता देते हैं। मध्यम वर्गीय परिवारों में पैसे की चलती हुई कशमकश के चलते  बच्चे बहुत जल्दी धन प्राप्त करने के लिए प्रयास करने लगते हैं। इसके लिए मेहनत करने की बात बच्चे कम ही सोचते हैं वे अन्य तरीकों को प्रयोग करना सीख जाते हैं। अभी हाल ही कानपूर में हुई एक बैंक डकैती में इंजीनियरिंग कॉलेज के दो छात्र लिप्त पाए गए और उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि  उन्होंने एक इंग्लिश पिक्चर देख कर इस डकैती की योजना बनाई  थी और वे उसमें सफल भी हुए। पुलिस उन तक कई हफ्तों बाद पहुँच पायी थी।

3.शिक्षा का व्यापारीकरण : 
                       शिक्षा का व्यापारीकरण हो चुका है और अपनी काली कमाई  को सफेद बनाने के चक्कर में रोज नए इंजीनियरिंग कॉलेज , मेडिकल कॉलेज , यूनिवर्सिटी और डिग्री कॉलेज खुलते चले जा रहे हैं और हमारी शासन व्यवस्था उनको बगैर मानकों के भी मान्यता प्रदान करती चली जा रही है . इसमें शिक्षा प्राप्त करने वालों का भविष्य कितना उज्जवल होता है इसकी कई मिसाले मेरे सामने हैं . अपने कॉलेज में कोटा पूरा करने के लिए उनको छात्रों को उनके गाँव और घर जाकर लुभाना होता है इसके लिए उनके एजेंट बाकायदा कम कर रहे होते हैं। उन्हें फीस कम करवाने और स्कालरशिप दिलवाने का लालच देकर किसी तरह से उनके सर्टिफिकेट हासिल कर लेते हैं और फिर वे उसमें प्रवेश लेकर बंध जाते हैं भले ही वे इस काबिल न हों लेकिन उन्हें अच्छे करियर के दिवा स्वप्न दिखा कर फंसा लेते हैं। 
                         मेरे अपने सामने कई ऐसे बच्चे हैं जिन्होंने प्राइवेट कॉलेज से बी टेक किया फिर घूमते रहे , फिर एम् बी इ भी कर लिया और आज भी वे खाली घूम रहे हैं। अगर माता  पिता सम्पन्न न होते तो वे किसी स्कूल में पढ़ा रहे होते और अपने कॉलेज के लिए दलाली कर रहे होते। बी टेक , फिर पी सी एस की तैयारी  के लिए कोचिंग और फिर बी टी सी करके प्राइमरी स्कूल में पढाने  वाले भी कई लोग मेरी नजर में हैं।
                        ऐसे कॉलेज में  निकलने वाले बच्चे जब बैंक से कर्ज लेकर पढ़ते हैं और बाहर निकल कर उनके कुछ बनने के सपने टूटने लगते हैं बैंक के कर्जे को चुकाने का जो तनाव घर वालों पर होता है वो धीरे धीरे उनके ऊपर उतरा जाने लगता है क्योंकि वे अपनी सामर्थ्य से अधिक खर्च करके पढ़ते हैं तो उनके टूटते मनोबल को सही दिशा देने वाला कोई नहीं होता है और वे चेन स्नेचिंग , लूट पाट , डकैती जैसे अपराधों में लिप्त होने लगते हैं। ये महँगी शिक्षा उन्हें अपने गुजरे भर के लिए रोजगार नहीं दिलवा पाती है और वे ठगे जाने के बाद विद्रोही हो जाते हैं। अपराध की दुनियां में ऐसे लोगों के लिए दरवाजे खुले होते हैं और ये पढ़ी लिखी पीढी इसमें फँस जाती है। 

4.भौतिकता की चकाचौंध :  
                                    दिन पर दिन बढ़ते जा रहे ऐशो आराम के साधनों की आमद ने इंसान को परिश्रम से विमुख कर दिया है और किशोर तो आजकल शार्ट  कट के चक्क में अधिक रहते हैं। उनको अपने मित्रों की बराबरी करने के चक्कर में और साथ ही लड़कियों को आकर्षित करने की जो भावना उनमें घर करती जा रही है इसके लिए उनको महंगे कपडे गाड़ियाँ और मोबाइल चाहिए होते हैं। ये भी जरूरी नहीं है कि सम्पन्न  परिवारों के बच्चे हों फिर वे गलत हाथों में पड जाते हैं और इस अपराध की दुनियां में जमें हुए लोग इस फिराक  में रहते हैं की उन्हें नयी पीढी के किशोर मिले जिन्हें आसानी से प्रशिक्षित किया जा सकता है और जल्दी उन्हें अपराध में लिप्त समझा भी नहीं जाता है।