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शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

दलित की परिभाषा !

कुछ लोग अपनी सोच से ये परिचय दे देते हैं कि वे किस काबिल हैं और उनकी सोच क्या है? उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री वैसे तो दलित प्रेमी हैं और वे सिर्फ और सिर्फ दलितों का ही भला करने वाली अपने को कहती हैं लेकिन जहाँ वाकई दलित हैं वहाँ के बारे में उनको कितना ज्ञान है? वे वहाँ के लोगों के जीवन के बारे में कितना जानती हैंखुद को दलितों का मसीहा कहलाने में उनको फख्र होता होगा लेकिन हर जगह और हर मुद्दे पर जाति को लेकर हितैषी होने का तमगा उनको नहीं मिल जाताहै
उनका आरोप है कि अन्ना ने कमेटी में किसी दलित को शामिल नहीं किया है. उसमें दलित होनेचाहिए. यहाँ कोई जातिवाद पर बंटवारा नहीं होने वाला है कि इसमें दलितों के होने से उनका अहित होने वालाहैमुद्दा यहाँ भ्रष्टाचार से निपटने का हैफिर दलित ही क्यों? देश में रहने वाले हर धर्म और वर्ग के लोगों को येबात उठानी चाहिए कि उस समिति में हमारा प्रतिनिधित्व नहीं हैवहाँ हम कोई विरासत बांटने नहीं जा रहे हैं किउससे दलित या अनुसूचित या फिर पिछड़े वर्ग के लोग वंचित रह जायेंगेयहाँ सिर्फ प्रबुद्ध व्यक्तियों की जरूरत हैऔर वहाँ जो विचार होना है वो सर्वहित का है
जब बात उठ ही गयी है तो फिर ये दूर तक जाती है क्योंकि देश और प्रदेश में जिस वर्ग के लोगों कावे प्रतिनिधि बन कर अपने को प्रस्तुत कर रही हैं तो वे हमें दलितों की परिभाषा बतलाएंक्या सारे अनुसूचितजाति के लोग दलित की श्रेणी में आते हैंस्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद स्थितियां बहुत बदल चुकी हैंअब येआरक्षण की आग को बुझाना होगानहीं तो देश के अन्दर ही अन्दर कभी मीणा, कभी जाट , कभी मुसलमान औरकभी इसाई अपनी जातिगत आरक्षण का झंडा लिए खड़े दिखाई दे जाते हैंआख़िर कब तक हम इनको इस तरहसे तवज्जो देकर उन लोगों के हक पर डाका डालते रहेंगे जो वास्तव में कमजोर वर्ग के हैंइस वर्ग के लिए जातिकोई मायने नहीं रखती है आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग ही इसका हकदार होना चाहिएमेधा किसी जाति या वर्गकी मुहताज नहीं होती है और जिनमें मेधा है वे किसी आरक्षण के लिए भूखे नहीं हैंआरक्षण आप दीजिये कमजोरवर्ग के लिए - ये कमजोर वर्ग ब्राह्मण , कायस्थ, वैश्य और शूद्र कोई भी हो सकते हैंउनको जरूरत है कि उनकोआरक्षण दिया जायगाँवों में बंधुआ मजदूर आज भी हैं, उनकी कोई जाति नहीं होतीरिक्शा चला कर पेट भरनेवालों की कोई जाति नहीं होती हैबोझा ढोने वालों की कोई जाति नहीं होतीसड़क के किनारे खोमचा लगाने वालोंकी कोई जाति नहीं होतीसड़क के किनारे बैठ कर भीख माँगने वालों की कोई जाति नहीं होतीगरीब किसान जोखेतों में हल चला कर ( हाँ आज भी सबके पास ट्रेक्टर उपलब्ध नहीं है) खेतों में पसीना बहा कर अनाज पैदा करतेहैं और उनके बच्चों की सारी जिम्मेदारी उसी के ऊपर निर्भर रहती है उनकी कोई जाति नहीं होतीमजदूर जो दिनमें -१० घंटे काम करता है उसकी कोई जाति नहीं होती
इन सबके बारे में कभी मायावती ने सोचा हैएक दलित शब्द को उठा कर पूरा का पूरा इतिहासरचना चाहती हैंइस देश में रहने वाले हर उस व्यक्ति को जो आर्थिक रूप से कमजोर है, आरक्षण का हक चाहिएउनके बच्चों को भी नौकरी का हक चाहिएये जाति या वर्ग के नाम पर होने वाले तमाशे को ख़त्म करने के बारे मेंसोचना होगाअब तो दलित होना एक हथियार हो चुका है - गलत काम करते पकड़ जाएँ तो आप उनको कुछ कहनहीं सकते क्योंकि तुरंत ही वे दलित उत्पीड़न के नाम पर आपको भी कटघरे में खड़ा कर देंगेआज सब सक्षम हैऔर अपने अपने स्तर पर बहुत ऊपर पहुँच चुके हैं
एक पीढ़ी को आरक्षण देने के बाद अगली पीढ़ी को इससे वंचित कर देना चाहिए क्योंकि अगर पिताआरक्षण का फायदा उठा चुका है तो बेटे को किसी प्रकार की कमी नहीं होनी चाहिए की वे औरों के अधिकार को मारकर पीढ़ी डर पीढ़ी आरक्षण के हक़दार बने रहें और वे जो दूर दराज गाँव में रहते हैंवे कभी यहाँ तक पहुँच ही पायेंइस लिए भ्रष्टाचार के मुद्दे के बाद अगला मुद्दा जो देश में सबसे अधिक विसंगतियां पैदा करने वाला है वह हैआरक्षण का मुद्दा - जिसमें योग्य और वरिष्ठ व्यक्ति बैठे रहते हैं और आरक्षित वर्ग योग्यता होने के बाद भीप्रोन्नति लेकर ऊपर बढ़ जाता है भले ही उसको उस पद पर करने कि क्षमता होपढ़ाई में आरक्षण, नौकरी में , प्रोन्नति में और फिर परिणाम कि मेधा बाहर निकलती जा रही हैहम अपनी नीतियों को नहीं बदलेंगे तो मेधायहाँ काम करके अपने को हीनता से ग्रसित नहीं करना चाहती हैअगर हम रोते हैं कि मेधा बाहर क्यों जाती है? सिर्फ रोने से तो काम नहीं चलता है अब तो हमें सजग हो कर इस दिशा में सोच लेना चाहिए
बड़े बड़े राजनीतिज्ञ है, संविधान के विशेषज्ञ है और राजनेता है लेकिन क्यों मूल समस्याओं के हलसे मुँह चुराते रहते हैं क्योंकि उन्हें सत्ता चाहिए और जिनके बल पर उन्हें सत्ता मिलती हैं उन्हें वे उस जगह से ऊपरउठने नहीं देना चाहते क्योंकि अगर वे बौद्धिक रूप से सक्षम होने लगे तो बरगला कर वोट लेने की उनकी नीति काक्या होगा? उनकी दलगत नीति का क्या होगा? वोट खरीद कर राजनीति करने वाले लोगों का भविष्य तो अंधकारमें डूब जाएगाअब अगला कदम इस आरक्षण की गलत नीति में परिवर्तन लाने के लिए क्रांति का ही होगा

बुधवार, 20 अप्रैल 2011

पृथ्वी दिवस !



"क्षिति जल पावक गगन समीरा"
                 ये पांच तत्त्व है जिनसे मिलकर हमारा शरीर बना है , इससे ही हमारा जीवन चलता है और वापस इन्हीं में उसको विलीन हो जाना है। धरती माँ इसको ऐसे ही नहीं कहा जाता है, ये माँ की तरह से हमको पालती है लेकिन कहा जाता है न कि एक माँ अपने कई बच्चों को पाल लेती है लेकिन जैसे जैसे उसके बच्चे बढ़ते जाते हैं,  माँ की दुर्गति सुनिश्चित हो जाती है। यही तो हो रहा है न, मानव जनसंख्या बढती जा रही है और पृथ्वी का विस्तार तो नहीं हो रहा है। मानव ये भी नहीं सोच पा रहा है कि हम अपनी बढती हुई जनसंख्या के साथ कहाँ रहेंगे? उसने विकल्प खोज लिया और उसने तो बहुमंजिली इमारतें बनाने की पहल शुरू कर दी और बसने लगे बगैर ये सोचे कि इस धरा पर बोझ चाहे हम एक दूसरे के ऊपर चढ़ कर रहे या फिर अकेले बराबर बढेगा।

                  उसके गर्भ को हमने खोखला करना शुरू कर दिया। इतना दोहन किया कि भू जल स्तर बराबर नीचे जाने लगा और हमने मशीनों की शक्ति बढ़ा कर पानी और नीचे और नीचे से खींचना शुरू कर दिया। परिणाम ये हुआ कि  जब पृथ्वी के ऊपर पानी की बर्बादी बढ़ रही है तो फिर नीचे जल कहाँ से आएगा? हम अपना आज देख रहे हैं और कल जो भावी पीढ़ी का होगा उसके लिए क्या छोड़ कर जा रहे हैं? उस भविष्यवाणी कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा को जीवंत करने के विकल्प। उसके विषय में हम अभी भी सोचने की जरूरत नहीं समझते हैं। जो समझते हैं और इस विषय में किसी को सजग करने का प्रयास करते हैं तो ये उपदेश अपने पास ही रखें , क्या हम ही अकेले बर्बादी कर रहे है? उन्हें रोकिये जो बहा रहे हैं। ये किसी एक की जिम्मेदारी नहीं है कि उसका सारा फायदा उसी को मिलने वाला है। ये शिक्षित समाज है और ऐसा नहीं है कि इन चीजों से वाकिफ नहीं है।हम  सब जानते  हैं लेकिंन जान कर अनजान बने रहते हैं और कल किसने देखा की तर्ज पर जी रहे हैं।
                     धरती कुछ नहीं कहती लेकिन क्या उसकी क्रोध की अग्नि से बढ़ता उसका तापमान हमारे लिए घातक नहीं बनता जा रहा है। तप्त पृथ्वी की ज्वाला ने मौसम के क्रम को बिगाड़ कर रख दिया है और इसी लिए ये साल के दस महीने में तपती ही रहती है। अब तो इतनी भी बारिश नहीं होती कि उसका आँचल भीग जाये और उसको तपन शांत हो जाए। नदियाँ अपने किनारे छोड़ने लगी हैं और कुछ तो विलुप्त होने की कगार पर आ गयी हैं।
                  भूकंप आया तो हम सिहर गए, उसके वैज्ञानिक कारणों की खोज में लग गए किन्तु खुद को तब भी नहीं संभाल पाए। धरती का संतुलन नहीं बनेगा तो भूकंप आना सुनिश्चित है। समुद्र में सुनामी आई और मानव उस समय खिलौने की तरह बह गए लेकिन जो बह गया वह उसकी नियति थी हम बच गए और हम इससे कुछ सीख भी नहीं पाए । फिर अपने ढर्रे पर चलने लगे।
                        जब उर्वरक नहीं आये थे , तब भी ये धरती सोना उगलती थी और फसलें लहलहाती थी। सब का पेट भी भरती थी। हम उन्नत उपज की चाह में उर्वरकों को ले आये और धरती को बंजर बना दिया। क्या मिला? फसल खूब होने लगी लेकिन खड़ी फसल में बेमौसम की आंधी, बरसात और ओले की वृष्टि ने सब कुछ तबाह कर अपने साथ हो रहे खिलवाड़ का एक सबक दे दिया।
                     जंगल पर जंगल उजड़ते जा रहे हैं और कागजों में सारी सुरक्षा बनी हुई है। वृक्षारोपण के नाम पर बहुत काम हो रहा है, लेकिन एक बार लगाने के बाद कितने बचे इसकी किसी को चिंता नहीं है। कहाँ से शुद्ध वायु और वर्षा की उम्मीद करें? पेड़ लगाने की भी सोची जाती है तो वह जिसे बाद में बेच कर धन कमाया जा सके। यूकेलिप्टस  जैसे पेड़ जो पानी भी सोखते हैं और इंसान के लिए लगे हुए न छाया देते है और न ही फल।
              अपनी कमियों का बखान बहुत हो चुका है अब अगर हम स्वयं संयमित होकर अपना जीवन बिताने की सोचें तो शायद इस धरती माँ को बचाने की दृष्टि में एक कदम बढ़ा सकते हैं। हम किसी को उपदेश क्यों दें? हम सिर्फ अपने लिए सोचें और अगर कोई पूछे तो उसको भी बता दें की अगर आप ऐसा करें तो हमारे और हमारी भावी पीढ़ी के भविष्य के लिए बहुत अच्छा होगा।
                    जल का प्रयोग अपनी जरूरत के अनुसार ही करें। अगर सब्मार्सिबिल लगा ही रखा है तो उसका सदुपयोग करें न कि दुरूपयोग करते हुए उससे घर की दीवारें और सड़क धोने में उसको बर्बाद न करें। घर के सभी नलों को सावधानी से बंद रखें उनसे टपकता हुआ पानी भी बर्बादी की ही निशानी है। जल ही जीवन है इस बात को हमेशा याद रखें।
                  प्रदूषण की दृष्टि से भी पृथ्वी को सुरक्षित रखना होगा। हमारी आर्थिक सम्पन्नता बढती चली जा रही है और वह इस बात से दिखाई देती है कि घर के हर सदस्य के पास गाड़ी का होना। उससे उत्सर्जित होने वाली गैस के बारे में किसी ने नहीं सोचा है कि ये पर्यावरण को कितना विषैला बना रहा है। वायु प्रदूषण हमको रोगी और अल्पायु बना रहा है। बढाती हुई गाड़ियों की संख्या से ध्वनि प्रदूषण को नाकारा नहीं जा सकता है। इस लिए गाड़ियों का उपयोग करने में सावधानी बरतें । एक गाड़ी में दो लोगों का काम चल सकता है तो उसको उसी तरह से प्रयोग करें।एक घर में कई कई ए सी का होना कितना प्रदूषण का कारण बन रहा है ? लोग नहीं जानते ऐसा नहीं है बल्कि अपने जीवन स्तर को ऊँचा  दिखाने के लिए भी ऐसा किया जा रहा है।
                   वृक्ष पृथ्वी का श्रंगार भी हैं तो उनको अगर रोपें तो उनको बड़ा होने तक देखें भी ताकि ये पृथ्वी पुनः हरी भरी हो सकें।

रविवार, 17 अप्रैल 2011

रगों में बहता भ्रष्टाचार !

अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में सारा देश एक साथ खड़ा दिखाई दिया। लगा कि धरा वीरों से खाली नहींहै सिर्फ उनको दिशा चाहिए। बहुत अच्छा लगा - अभी शेष है अन्याय के विरुद्ध लगने की भावना और उस आंधी मेंभ्रष्टों की संकलित सरकार भी झुकने के लिए तैयार हो गयी। हमने सोचा कि हमारी जीत हो गयी लेकिन किसकोण से हम अपनी जीत का आकलन करेंगे?
भ्रष्टाचार आज सबकी ( अपवाद भी हैं उनको इसमें शामिल नहीं किया गया है) नसों में बहने वाले रक्त में घुला हुआहै। भ्रष्टाचार सिर्फ बड़ी बड़ी हस्तियों की बपौती नहीं है इसके लिए तो फैक्टरी या ऑफिस के गेट पर बैठा हुआचौकीदार भी दाँत निकाले बैठा है कि कुछ मिले तो अन्दर जाने को मिलेगा। सारे नियमों को ताक पर रखकर रक्षासंस्थान जैसे स्थानों पर भी प्रवेश मिल जाता है।
ऊपर वाले अगर करोड़ों खाते है तो जैसे जैसे नीचे की ओर क्रम चलता है उसकी रकम कम होती जाती है। किसी भीसरकारी या निजी संस्थान के तंत्र में बहुत बारीकी से झांक कर देखा है। जो पद पर बैठे हैं -- वे तो पूरा पूरा लाभउठा ही रहे हैं।
हमारी लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई थी फिर लोकपाल बिल पर केन्द्रित हो गयी और फिर दूसरी लड़ाई पीछेरह गयी . एक से निपट लिया जाय फिर दूसरे के खिलाफ मोर्चा बनाया जाएगा। इस बात को मैं निःसंकोच रूप सेकह सकती हूँ कि आज हमारी रगों में भ्रष्टाचार खून के साथ घुल कर बह रहा है। जो स्वयं भ्रष्ट नहीं है वे किसी किसी तरीके से इसके शिकार हो रहे हैं और उससे निपटने के लिए छोटे स्तर पर १०० या ५० रुपये खर्च करके कामनिकाल लेते हैं अगर नहीं निकालें तो फिर कहाँ जाएँ? उनकी कौन सुनेगा?
क्या कोई एक नागरिक शपथ उठा कर ये कह सकता है कि वह कभी कभी और कहीं कहीं इस भ्रष्टाचार काशिकार नहीं हुआ है। अगर उसने इसको अपनाने से इनकार कर दिया तब भी वह अपने उस अधिकार से वंचितकर दिया गया जिसका कि वो हकदार था। अगर ऐसा नहीं तो फिर वह अपने काम के लिए दो दिन के स्थान परमहीनों और सालों दौड़ता रहा आख़िर शिकार तो वह भी हुआ। हम खुद भ्रष्टाचार में लिप्त सही लेकिन हम उसकेत्रसित तो अवश्य ही हुए। जिनके पास पॉवर है वे अपनी पॉवर से इस में आगे बढ़ रहे हैं और जो कुछ भी नहीं है - एक मेहनतकश को लें , एक रिक्शा वाला अपने रिक्शे के लाइसेंस के लिए नगरपालिका में चक्कर लगाता है औरअगर वह कुछ देता नहीं है तो इसी तरह से चक्कर लगाता ही रहेगा। उसके पास कौन सी थाती रखी होती है कि वहदे लेकिन उससे भी लेने में लोग संकोच नहीं करते और वह अगर दो दिन रिक्शा नहीं चलाएगा तो उसके बीवीबच्चे भूखे मरने लगेंगे। वह देना ही एकमात्र विकल्प समझ कर लाइसेंस हाथ में लेकर खुश हो लेता है। उसेभ्रष्टाचार नहीं पेट की भूख दिखाई देती है।
असंगठित मजदूर अगर बाजार में खड़ा है तो शायद उसके खरीदार उसे मिले लेकिन अगर किसी ठेकेदार से जुड़जाता है तो उसको काम मिल जाता है और वह ठेकेदार उसको निर्धारित मजदूरी से भी कम देता है लेकिन उसकोकुछ दिन के लिए रोजी का भरोसा तो हो जाता है। अगर महिलायें मजदूरी करती हैं तो उन्हें पुरुषों से कम भुगतानदिया जाता है। ये सब क्या है? ये सब बेचारे भ्रष्टाचार नहीं जानते लेकिन उनको तो पेट पलने की मजबूरी दिखाईदेती है। जब वह रोज कमा कर लाएगा तभी उसके घर में चूल्हा जलेगा।
सड़क के किनारे गाँव से लेकर सब्जी बेचने वाले भी इस का शिकार होते हैं। मीलों दूर से सिर पर सब्जी की गठरीलेकर आने वाले सड़क के किनारे बैठने के लिए भी भुगतान करते हैं उनसे गरीब होते हैं वे लोग जो उनकीमेहनत की कमाई से भी लेकर चले जाते हैं। ये सरकारी लोग नहीं होते ये होते हैं दबंगई करने वाले लोग - जो सड़कऔर फुटपाथ को अपनी निजी संपत्ति समझ बैठते हैं।
मैंने नीचे स्तर से इस लिए शुरू किया की भ्रष्टाचार हमारी रगों में खून के साथ मिलकर बह रहा है। क्या कोई ऐसायन्त्र होगा जो कि हमारी रगों में बहते हुए इस भ्रष्टाचार को निकाल कर बाहर कर सकेगा। छोटे स्तर से लेकर बड़ेस्तर तक भ्रष्टाचार की संजीवनी लिए बिना इंसान जीवित कहाँ रह पता है? हाँ हम भी उतने ही दोषी हैं जो इससंजीवनी को उन्हें दे रहे हैं क्योंकि हमें अगर व्यवसाय है तो उससे अपने बाल बच्चों का पेट भरना है और अगरनौकरी है तो फिर काजल की कोठारी में साबुत बचकर भी कैसे सकते हैं? बड़े बड़े घोटाले और करिश्मे तोफाइलों के बीच में दब कर दम तोड़ देते हैं , छोटों की गिनती कहाँ तक करेंगे? कोई खुद कहाँ कुछ करता है सारेकाम तो उनके इशारों पर ही होता है फिर कौन पकड़ा जाय और कैसे? इस रक्त में बहते हुए भ्रष्टाचार को कैसे अलगकिया जाय?
एक पी डब्ल्यू डी का इंजीनियर एक आलीशान बंगले का मालिक होताहै - इसमें कितना भ्रष्टाचार से कमाया धनलगा है इसका आकलन कैसे होगा?
सरकारी प्रतिष्ठानों में मार्च और अप्रैल के महीने में रूम हीटर के आर्डर दिए जाते हैं और सप्लाई भी होती हैकिसलिए? १०० रुपये की चीज के लिए ८०० रूपये का भुगतान किया जाता है। किसलिए? क्या इस प्रतिष्ठान मेंरहने वाले इतने नादाँ होते हैं कि रूम हीटर का उपयोग कब होता है और एक रूम हीटर की कीमत क्या होती है? इसबात से वाकिफ नहीं होते हैं। क्या ऊपर से लेकर नीचे तक कोई भी आम आदमी की तरह से जीवन नहीं गुजरता हैकि उन्हें रोजमर्रा की चीजों की कीमत का पता भी हो।
निजी प्रतिष्ठानों में भी खाने के तरीके खोज कर बैठे हैं। मुझे तो बड़े बड़े अस्पतालों का ही अनुभव है। अपने दिएगए सामान के बदले जब आप चैक लेने जाते हैं तो तो चैक देने वाले को उसमें से हिस्सा चाहिए. आपको अगरअपना भुगतान चाहिए तो दें नहीं तो अगली बार चैक आपको महीने बाद भी नहीं मिलेगी. ऐसे रिश्वत कोई हाथमें नहीं लेता बल्कि उनके छद्म नाम से खाते खुले होते हैं और आपको निर्देश होगा कि इतनी रकम इस खाते मेंजमा कर दें . वह भी आपकी चैक के राशि के अनुसार ही निश्चित की जाएगी.
इतने सारे उदाहरणों के बाद भी क्या हम कह सकते हैं कि भ्रष्टाचार हमारी रगों में बहते हुए खून में शामिल नहीं होचुका है। फिर हम इससे कैसे निपट सकते हैं? इसके लिए अलग से सोच पैदा करनी होगी। सभी इस बात को सोचेंऔर फिर अमल करें शायद हम अपने मकसद में सफल हो जाएँ।

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

मौत तेरे कितने रूप?

बड़ा भयावह शब्द है "मौत" फिर भी इस जीवन का एक शाश्वत सत्य और सुखद अंत हैहाँ यह जरूर है कि इसके सुखद और दुखद होने पर उस व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता है जिसने इसको वरण किया है
पिछले दिनों "दया मृत्यु" पर चर्चा चली। सर्वोच्च न्यायालय ने इसके लिए अनुमति नहीं दी। उस व्यक्ति के लिएजो खुद बोल सके, उठ, चल, सोच और खा भी सके , उसके जीवन का अधिकार दूसरों के हाथ में सौप दिया।अगर वे चाहें तो उसे मुक्ति दी जाय। जो नहीं चाहते हैं उन्हें जबरन मुक्ति दे दी जाती है कभी आदमी दे देता है औरकभी कोई और। घर से निकल कर इंसान अगर शाम घर जाये तो समझिये कि जिन्दगी का एक दिन बचगया। हर इंसान बहुत सुरक्षित ढंग से जीना चाहता है। हर शरीफ इंसान। वे जो इसके खिलाडी हैं वे तो अगर रोजकिसी को इस अंजाम तक पहुंचा कर खुश होते हैं तो उनकी मौत तो समाचार ही बन कर रह जाती है।
पहले कहा जाता था कि जिन्दगी और मौत ईश्वर के हाथ में होती है लेकिन अब यह काम भी हम इंसानों ने ही लेलिया है। कब किसको कहाँ और कैसे ऊपर भेजना है ? इसकी सौदा भी होती है और इसके लिए ठेका भी दियाजाता है। जब भगवान की सारी सत्ता इंसान ने ले ली है तो फिर यह भी सही। ये बात और है कि उस प्राणी को गर्भसे लेकर जमीन तक कब मारना है ये बताना पड़ेगा।बाकी काम नीचे वाले ही कर देंगे क्यों ऊपर वाले को परेशानकिया जाय कि यमराज अपने गुर्गों को भेजें और चित्रगुप्त जी लिख कर लेखा जोखा देखे और फिर मौत का तरीकानिश्चित किया जाय। एकदम रेडीमेड
तरीका
बतलाइए कैसे ठेका देना है? क्योंकि प्राणी तो गर्भ से ही इस काबिल हो जाता है कि उसको मौत बख्श दी जाये।पहली स्टेज तो यही है कि प्राणी को गर्भ से बाहर आने के पहले ही चलता कर दिया जाय। ऊपर से धकेला गया किनीचे जा और नीचे वाले ने फिर ऊपर का रास्ता दिखा दिया। ये त्रिशंकु वाली स्थिति बहुत बुरी होती है। जब किसीतरह से बाहर ही गए तो फिर ये उन पर निर्भर करता है कि वे आपको अपनाने के लिए तैयार हैं या नहीं , नहींतो किसी कचरा पेटी, सड़क के किनारे , रेल की पटरी पर या किसी नाली या नाले में डाल दिया जाएगा और आपबहुत शरीफ आदमी हैं और। बहुत ही नियम और क़ानून से चलने वाले। हैं हमें त्रफ्फिक नियमों का पालन करते हैंमानव मनाने मानने क्या गया है? मेरी सत्ता की चुनौती देने लगा है।
यहाँ से बचे तो निर्भर करता है कि आप कैसे घर में जन्मे हैं - खुदा खास्ता आप अमीर परिवार के सदस्य है तोबचपन और जवानी की जरूरत नहीं होती कोई फिरौती वाला आप को उठा लेगा और फिर हालातों पर निभर करताहै कि वह आपको छोड़ दिया जाय या मार दिया जाय के लिए टॉस करता है और फिर निर्णय लेता है। मिल गयी तोठीक है नहीं तो पहले ही टपका दिया। कैसे टपकाना है ये उसकी मर्जी है। ऊपर वाला सिर्फ देखता रहता है कि कामठीक से अंजाम दिया गया या नहीं।
अगर प्राणी स्त्री है तो फिर बचपन से लेकर जवानी तक कभी भी वो मारी जा सकती है। बचपन कोई
नहीं देखता , उम्र की कोई सीमा देखता है maarane vala कैसे और किस गति से मारेगा ये उसका काम है। वह कुकर्म औरदुष्कर्म सब कुछ कर सकता है और फिर मौत इनाम में दे सकता है। इसके लिए बस स्त्री लिंग होना ही काफी है।कुछ हरकारे सिर्फ ऐसे ही काम करते हैं।
अगर इनकी नजर से बच गयी और आपकी नजर में कोई बस गया तो फिर जरूरी नहीं कि वो आप को मिल हीजाय। इसके लिए हैं - "ऑनर किलिंग " वह तो आपको कोई भी दे सकता है , आपके अपने घर वाले , दूसरे केघर वाले या फिर किराये के लोग। इसके लिए कोई सीमा निर्धारित नहीं की है भगवान ने। हाँ कैसे मिलेगी. ये दूसरेपर ही निर्भर करती है।
इस के लिए एक और तरीका निश्चित है - हाँ अगर आप बहुत ही नियम और क़ानून को मनाने वाले हो तो भी जरूरीनहीं कि आप कि जिन्दगी सुरक्षित है क्योंकि कोई भी बिगडैल नबाव अपनी बाइक या गाड़ी से लहराते हुए चले रहे और ठोक दिया आपको तो आप तो स्वर्गीय की श्रेणी में गए और बिगड़े नवाब के बड़े बाप तो बैठे ही हैंउनको बचाने के लिए. मौत का ये तरीका बड़ा ही खतरनाक है क्योंकि इसमें बेकुसूर ही इंसान ऊपर भेज दियाजाता है. फिर कुछ तो हमारी सरकार मेहरबान भी हो जाती है. महानगरों कि श्रेणी में आने वाले शहरों में चलेजाइए. कहीं भी सड़के आपको इतनी खुदी हुई मिल जाएँगी कि अगर आप अपनी सवारी में हैं तो फिर कोई बातनहीं, नहीं तो झूला हिंडोला सबका आनंद देते हुए कहीं भी बस पलट सकती है, टेम्पो पलट सकती है और अगर बचभी गए तो फिर कोई भी ट्रक चालाक अंगूर की बेटी के नशे में आपको चलता करने में जरा सी भी कोताही नहींकरेगा. वैसे आजकल यही तरीका सबसे अधिक लोकप्रिय और प्रचलित हो रहा है क्योंकि रोज ही दो चार इस तरहसे मौत का वरण करते ही रहते हैं.
अब एक ही रूप और रह गया है, वह है आत्महत्या का - दुनियाँ में आये हैं और मनचाहा नहीं मिला तो सबसेसस्ता और सुलभ उपाय है कि फाँसी लगा लो, मन आये तो सुसाइड नोट छोड़ दो और वजह बता कर चले जाओपुलिस और घर वालों को आसानी रहेगी और नहीं तो फिर दौड़ते रहेंगे घर वाले पुलिस तो सिर्फ दौड़ाने के लिए होतीहै. इसके लिए तो चुनने वाले आप ही होते हैं, फाँसी लगानी है, आग लगा कर मरना है, या फिर रेल कि पटरी परलेट कर मरना है. ऊँची इमारत के ऊपर चढ़ कर कूद कर मरने के भी किस्से आम होते हैं. हाँ अगर आप बहुतहैसियत वाले हैं तो अपनी लाइसेंस धारी बन्दूक या पिस्तौल से भी दुनियाँ से विदा हो सकते हैं.
ये अब आपकी मर्जी है कि इससे अधिक मौत के रूप हों तो सूचित करें इस लिस्ट में बढ़ा लिए जायेंगे ताकि अगरये विषय परीक्षा में शामिल कर लिया जाय तो सारी जानकारी एक ही स्थान पर मिल सके.

गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

विश्व स्वास्थ्य दिवस!








आज विश्व स्वास्थ्य दिवस है। स्वास्थ्य तो मनुष्य के जीवन की सबसे बड़ी नियामत है। आज जब कि मिलावट और प्राकृतिक संसाधनों में भी छेड़छाड़ कर खाद्य पदार्थ उपलब्ध हो रहे है तो इन विसंगतियों से कैसे बचा जा सकता है? कोई भी चीज ऐसी नहीं कि जिसे स्वास्थ्य की दृष्टि से सही मानकर उपयोग किया जा सके।
फिर भी हम अगर कुछ नहीं कर सकते हैं तो कम से कम इस बात की सतर्कता तो बरत ही सकते हैं कि जिन चीजों से हम भिज्ञ है कि इनसे ये बीमारी या परेशानी पनप सकती है तो इससे बचाव तो किया ही जा सकता है। इन स्थितियों से कितने लोग परिचित है ये तो मैं नहीं जानती , हाँ इतना जरूर है बचपन में भी ऐसी बातों से लोग परिचित थे। मैंने अपने बचपन में भी सुना था कि कच्ची फूल गोभी खाने से आदमी बहरा हो जाता है और मुझे वह बहुत पसंद थी। चुपचाप खाया करती और फिर श्रवण शक्ति का परीक्षण भी करती रहती। माँ को इस बारे में कितना पता था और वह क्यों रोकती थी ऐसा कभी हमने पूछा ही नहीं।
आज जब कि कुछ तथ्यों कि जानकारी हो चुकी है तो सबसे बाँट लेना जरूरी समझा। ये चर्चा निरर्थक नहीं है -- सार्थक है और हममें से शायद ६० प्रतिशत लोग इससे परिचित नहीं है और अगर है तो भी पार्टी में चाउमीन बड़े प्रेम से खाते हैं, सलाद तो सभी लोग लेते हैं। बगैर ये जाने कि पता नहीं कौन सी चीज किस बीमारी को न्योता दे सकती है?
इसका एक उदाहरण अभी हाल ही में सामने आया । मेरे एक परिचित स्कूटर चलाते हुए एक खड़े हुए ट्रक में जाकर टकरा गए और बेहोश हो गए। उनके हाथ कि हड्डी टूट चुकी थी। उनको ये नहीं मालूम हुआ कि वे कैसे टकरा गए? घर वालों को ये पता था कि वे भांग खाते हैं तो सबको क्रोध था कि क्यों ऐसा करते हैं? लेकिन बाद में पता चला कि कि उनके दिमाग में कुछ कीड़े प्रवेश कर गए हैं और उनके ही प्रकोप से उनको बेहोशी स्कूटर चलाते हुई आई और वे ट्रक से टकरा गए।
ये कीड़े कहाँ और किन पदार्थों में पाए जाते हैं ये चर्चा का विषय है ताकि उनके बारे में सावधानी बरती जा सके।
ये हैं -- बंद गोभी, पालक, मूली की जड़ और पत्ते दोनों , फूल गोभी, खीरा आदि। ये सभी चीजें कच्ची भी प्रयोग में लाई जाती हैं और पकी हुई भी। जिनमें मूली और खीरा तो कच्चा ही अधिकतर खाया जाता है। खीरे के छिलके और मूली के छिलके तथा पत्तों में ये कीड़े पाए जाते हैं। इसके लिए कभी भी खीरा और मूली बगैर छीले नहीं खाने चाहिए। मूली और पालक के पत्तों का बारीकी से निरीक्षण करने के बाद ही खाने के लिए प्रयोग करें। कहीं ऐसा न हो कि हम जिन विटामिन और खनिज के लिए इनको खा रहे हैं वे हमारे अन्दर कुछ और न पनपा दें। पत्ता गोभी, मूली के पत्ते और बंद गोभी के कच्चे स्वरूप को अधिकतर चाट और नूडल या चाउमीन के साथ प्रयोग किया जाता है। बाजार में या पार्टी में तो बिल्कुल भी इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता है।
पत्ता गोभी कच्चा बहुत पौष्टिक मना जाता है अक्सर इसको घर में भी सलाद या रायते के साथ प्रयोग करते हैं लेकिन ये सबसे अधिक घातक है। इसके प्रयोग करने से पहले इसको अच्छे से गरम पानी में नमक डाल कर उसमें पांच मिनट के लिए डाल कर रखे और इसके बाद पानी निथार कर प्रयोग करें तो अधिक सुरक्षित होगा। सब्जी में पकाने के बाद ये कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
क्या करते हैं ये कीड़े:
ये कीड़े सीधे अगर मष्तिष्क में पहुँच गए तो फिर ये वहाँ की रक्त वाहिनियों में अपना अधिकार कर लेते हैं । उनको ब्लाक कर सकते हैं, उनको निष्क्रिय भी कर सकते हैं। मष्तिष्क में इनकी संख्या बढ़ने लगती है। ऐसी स्थिति में ब्रेन स्ट्रोक, पक्षाघात या फिर मिर्गी जैसी स्थिति भी आ सकती है। समय रहते पता चलने पर इसका इलाज संभव होता है।
अपने स्वास्थ्य के प्रति सावधान रही और इसके सतर्कता बरते इतना ही काफी है।