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मेरा सरोकार

ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जब भी और जहाँ भी ये अनुभव होता है कि इसको तो सबसे बांटने और पूछने का विषय है, सब में बाँट लेने से कुछ और ही परिणाम और हल मिल जाते हैं. एकस्वस्थ्य समाज कि परंपरा को निरंतर चलाते रहने में एक कण का क्या उपयोग हो सकता है ? ये तो मैं नहीं जानती लेकिन चुप नहीं रहा जा सकता है.

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सोमवार, 25 दिसंबर 2023

कानपुर लिटरेरी फेस्टिवल - 23

 कानपुर लिटरेरी फेस्टिवल









- 2023, जो 23-24 दिसंबर को यहां प्रकाशित हुआ, इसमें शामिल होने का यह पहला अनुभव बहुत अच्छा रहा।
इस अनुभव ने मुझे फिर से सक्रिय होने का और बहुत सारे अच्छे कार्यक्रम में शामिल होने का आनंद प्राप्त करने का अवसर भी दिया।

         इसके लिए मैंने अपनी बिटिया रानी रंजना यादव को पूरा श्रेय दिया, क्योंकि उन्होंने मुझे वहां आकर अपनी कहानियां रखने का मौका दिया था। उसने ही जद्दोजहद को लेकर कान के लेखकों के लिए एक स्टॉल की व्यवस्था की थी और फिर लेखक या नहीं पहुंचे सभी की सलाह को वहां पर लेकर आए थे। उसका दृश्य भी नीचे देखना होगा। यह भी एक रिकॉर्ड रखा गया है कि हमारे शहर में कितने लोग एक-दूसरे के साथ काम कर रहे हैं, जरूरी नहीं कि किसी भी मंच से जुड़ने का मौका मिले और सीखा जा सके। मेरे जैसे लोग जो अपने जीवन को एक अलग तरह के संघर्ष की राह पर बनाए रखते हैं, तो रहे लेकिन चित्रित करने का कभी सोचा ही नहीं, बहुत कुछ लिखा लेकिन फिर मैंने भी किताब का आकार दिया लेकिन प्रकाशक और प्रकाशन के बारे में कोई अनुभव नहीं था, जिसने जैसा सुझाया वैसा ही कर दिया। इस अवसर पर विभिन्न लोगों से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ, जो लब्ध प्रतिष्ठित और जाने-माने लोग थे और उनकी टीम को बहुत अच्छा लगा। फिर लगा कि विभिन्न उत्सवों में इतने सारे उत्सवों में न जाने के कारण बहुत सारे गैर-सरकारी लोग रहते हैं लेकिन जब भी जागो सवेरा। 

           इसके साथ-साथ 23 और 24 दिसंबर को दो सत्र आए, जो फिल्मों से संबंधित थे - एक तो ब्रह्मानंद जी की राहुल देव बर्मन की तैयारी के दौरान उनके शोध में शामिल हुए दिग्गज तन्मयता से नजर आए और खचाखच हॉल में उनके अनूठे संगीत की यात्रा हुई। रचना के साथ जब देखा तो न समय का पता चला और न ही कहां क्या हो रहा है पता चला, बहुत ही आनंद आया। 

      ऐसे ही दूसरे दिन 24 दिसंबर को धूमकेतु के आकाशवाणी के जाने वाले यूनुस खान जी द्वारा पोस्ट किए गए अवशेष जी के अवशेष लेकर चले गए शोध - जब एक-एक करके उनकी जीवन यात्रा और उनकी यात्रा के बारे में पोस्ट किया गया। तो पता नहीं चला कि समय कहां गया और पूरे हॉल के लोग भी साथ-साथ गीत गा रहे थे। आवाजें गूँजती थीं। मेरे अनुभव के अनुसार एक लाजवाब अभिनेता थे। उनके स्मारकों में से एक गोपाल शर्मा और श्वेतावृथ ने अपनी आवाज दी थी जो आपके घर में थी।

          यूनुस जी से मिलने का मेरा पूरा मन था इसलिए वह कोई सेलिब्रिटी नहीं हैं बल्कि वह मेरे भाई अजय ब्रह्मात्मज के पारिवारिक सदस्य हैं, लेकिन समयाभाव और उनके अन्य काम कार्यक्रम में प्रोत्साहन ने अपना यह पद नहीं दिया। मेरी उनकी पत्नी ममता सिंह से हुई मुलाकात बहुत अच्छी लगी।

          इसी अवसर पर रंजना यादव की किताब "मैट्रो का पहला डिब्बा" का कवर पेज लॉन्च किया गया। जो दिल्ली की बुक मॉल में उपलब्ध होगी।

प्रस्तुतकर्ता रेखा श्रीवास्तव पर 5:36 am कोई टिप्पणी नहीं:

गुरुवार, 12 अक्टूबर 2023

दुश्मन को रख देंगे चीर : हम हैं अग्निवीर !

 दुश्मन को रख देंगे चीर : हम हैं अग्निवीर !


                                ये नारा है अग्निवीरों का।  हाँ वही अग्निवीर  - जिनके लिए जब यह योजना लाई गयी थी तब पता नहीं किसने युवाओं को इसके विरुद्ध भड़काया था कि ये उनको सुनहरे ख़्वाब दिखाए जा रहे हैं और चार साल के बाद ये युवा दर दर के भिखारी बन भटकेंगे। जब अग्नि वीरों की भर्ती हो रही थी तो सरकार की इस योजना की पुरजोर आलोचना की गई थी और इसको विफल करने के लिए उस समय रेल जलाना , बसें जलाने के काम भी किए गए थे। वह कौन थे? जो युवाओं को अग्निवीर में भर्ती के लिए भड़का रहे थे, ये हम खुल कर नहीं कह सकते हैं।  

                                    पिछले दिनों अपनी नासिक से कानपुर की यात्रा के दौरान मुझको अपने ही कंपार्टमेंट में कुछ अग्निवीरों से मुलाकात करने का मौका मिला। बोगी में हम दूर थे लेकिन कानपुर में उतरते समय हम सब एक ही गेट पर खड़े थे तो मैंने सोचा कि उनके कुछ अनुभव और उनके अपनी नौकरी के प्रति विचारों को साझा किया जाए. वह जो अग्निवीर बने वे बहुत ही संतुष्ट है और सरकार की भविष्य की नीतियों के प्रति भी उनके अंदर एक आश्वासन है, जो उन्हें एक सुरक्षित भविष्य देगा।

           . मेरी 8 -10 अग्नि वीरों से मुलाकात हुई जिनकी उम्र 18 से 23 वर्ष के बीच थी। वे अपनी पहली ट्रेनिंग पीरियड पूरा करके 15 दिन की छुट्टी पर अपने घर आ रहे थे और स्टेशन पर उनको रिसीव करने के लिए उनके घर वाले, उनके मित्र सभी एकत्र थे। जितना उत्साह अग्नि वीरों में था, उतना ही उत्साह उनके घर वालों में भी था। उनमें से कुछ अपनी यूनिफॉर्म में थे। जब उनसे पूछा कि आप यूनिफॉर्म में क्यों जा रहे हैं ? वे बोले हमारा मन तो नहीं था लेकिन घर वालों ने कहा कि हम अपने बच्चों को यूनिफॉर्म में देखना चाहते हैं इसीलिए हम यूनिफॉर्म में जा रहे हैं।गाँव से घर वाले स्टेशन पर आ रहे हैं मैंने तो मना किया था लेकिन वो माने ही नहीं है। 
 
                             हमारे साथ पढ़ने वालों में भी बहुत उत्साह है कि हमें इस तरह देख कर वे अपने को खुशनसीब समझेंगे कि हमारा यार देश की सेवा में है।हमारे घर वाले इतने सम्पन्न नहीं हैं कि हमको एन डी ए  के लिए कोचिंग करवा पाते और सरकार के इस कदम ने हमें एक अच्छा मौका दिया है। हम और घर वाले सब खुश हैं।
        
 
         मैंने उनकी अपनी कार्य स्थल और कार्य प्रशिक्षण के प्रति संतुष्टि के बारे में पूछा और पूछा - 
 
1.   आप अपने भविष्य के प्रति आशंकित तो नहीं है?
 
                   तब उन्होंने बताया - " नहीं इससे अच्छा भविष्य हमको नहीं मिलता, हमको 40 हजार रुपए वेतन मिलता है और हमारे सारे खर्च सरकार उठाती है। 4 साल के बाद हमको 14 लाख रुपए मिलेंगे और सिविल एरिया में हमें नौकरी मिलेगी। जिसमें हर क्षेत्र में हमें 25 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। हममें से जो भी सेना की नौकरी को जारी रखना चाहेगा तो उसकी नौकरी जारी रहेगी। इससे अच्छा विकल्प और हमारे लिए क्या हो सकता है ? 
हम अभी उच्च शिक्षित नहीं है लेकिन अपने परिवार के लिए और अपने लिए एक सुरक्षित भविष्य के प्रति निश्चिंत हैं।
 
2. आपकी ट्रेनिंग किस तरह की होती है ? :--
 
                       हमारी ट्रेनिंग बहुत कठिन होती है, जिसके लिए ही हमारी इसमें चयन के समय ही कठिन परीक्षा ली गयी थी और उसमें सफल होने के बाद ही लिया गया। अपने नासिक के प्रशिक्षण काल में  हमको काफी बोझ पीठ , हाथों में लेकर मीलों तक पैदल चलना होता है और यह हमारे दैनिक की क्रिया होती है।हमें कड़े अनुशासन का पालन करना होता है और हमारा "आर्टिलरी प्रशिक्षण केंद्र " है।   हम लोग  आर्टिलरी शाखा में है,  जिसमें हमको सभी अस्त्र-शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है।  गोला आदि का चलाना सिखाया गया है। एक गोले का भार करीब 95 किलो होता है, जिसे हम चार लोग उठाकर डालते हैं और एक बार उसका वार करने पर 40 किलोमीटर तक सब कुछ तबाह हो जाता है। इसलिए हमें निर्णय भी बहुत सोच समझ कर लेने का निर्देश दिया जाता है।हम जहाँ भी जरूरत होती है वहाँ सेना को इन सब चीजों को पहुंचाते भी हैं।  हमें  भारतीय सेना में तोपची , तकनीकी सहायक, रेडिओ ऑपरेटर और चालक के रूप में सेवा करने  का अवसर प्रदान किया जाएगा।
 
3.  आपको  एक साल में कितने दिनों की छुट्टी मिलती है ?  
     
                     हमको साल में 2 महीने की छुट्टी मिलती है , जिसमें १ महीने की कैजुअल और एक महीने की अर्न होती है। और मेडिकल सुविधा हमको सेना की तरफ से प्राप्त होती है। उसे छुट्टी का कोई गणना नहीं की जाती है। बाकी कैंटीन की सुविधा भी मिलती है , जिसे घर वालों के लिए प्रयोग किया जा सकता है क्योंकि हमें तो सब कुछ वहीँ से मिलती है। 
 
4. आप को अपने काम से संतुष्टि है कोई असुरक्षा का भाव तो नहीं है ?
 
                   बिलकुल भी नहीं , हमारी उम्र में कौन इतना कमा सकता है ? हम अभी आगे की पढाई के लिए जा रहे होते तो अभी पढ़ ही रहे होते।  हम अपने घर का एक मजबूत कन्धा बन चुके हैं और घर वाले भी खुश हैं और हम भी। 
 
                      इनमें से कुछ बच्चे तो कानपूर के आस पास के थे , कुछ लखनऊ , गोण्डा , बलिया, बस्ती  और गोरखपुर के थे। 

नोट :-- ये सारी जानकारी मुझे उन अग्निवीरों से ही प्राप्त हुई है और इससे पहले मैं भी अग्निवीरों के भविष्य के प्रति फैलाई वही भान्तियों का शिकार थी।
                   
प्रस्तुतकर्ता रेखा श्रीवास्तव पर 4:20 am कोई टिप्पणी नहीं:

शुक्रवार, 30 जून 2023

सोशल मीडिया डे !

                                                     सोशल मीडिया डे !


                           पहले से तो मुझे इस बारे में ज्ञात नहीं था कि सोशल मीडिया डे नाम से कोई दिवस भी मनाया जाता है। बहुत अच्छे प्लेटफॉर्म हैं यहाँ पर , लेकिन उन पर अगर विचार करें तो इसने हमारी सामान्य दिनचर्या या सामाजिक जीवन का सर्वनाश कर दिया है, लेकिन हर क्षेत्र में ऐसा ही हो रहा है ऐसा नहीं है।  कोई भी सामाजिक सरोकार से जुड़ी हुई सुविधा सदैव अच्छी ही या बुरी ही नहीं होती है। यह तो हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम उसको किस तरह से प्रयोग कर रहे हैं। उसका उपयोग या दुरुपयोग कर रहे हैं। न तो विज्ञानं दोषी है और न कोई सुविधा बस हमारा ही विवेक उसका गुलाम हो चुका है।  चलिए हम कुछ बिंदुओं पर विचार ही करते चलें। 


उपयोगी बिंदु :--

                    * सोशल मीडिया ने दूरदराज बैठे लोगों के मध्य एक सेतु बन कर उनके विचारों के आदान प्रदान के लिए एक मंच प्रस्तुत किया है। 

                    *कितनी जानकारियाँ जिनसे एक आम आदमी परिचित ही नहीं है उससे अवगत कराया।  उनके ज्ञान का विस्तार होने लगा। 

                    * इतिहास बन चुके साहित्य, ज्ञानकोष, जो कि प्रिंट मीडिया ने अब छापने बंद कर दिए थे।  दूसरों शब्दों में कहैं तो कालातीत हो चुके थे। इस सोशल मीडिया ने उनको खोज कर या फिर प्रबुद्ध लोगों ने उसको यहाँ पर लोड करके सर्व सुलभ बना दिया। 

                    *बच्चों या बड़ों में सोई पड़ी प्रतिभा - लेखन, चित्रकारी , होम डेकोरेशन , बागवानी , शिल्प सभी तरह की चीजों को मंच मिला। दूसरे लोग भी इससे फायदा उठाने लगे हैं।  

                   * कुछ सामाजिक, सांस्कृतिक ,साहित्यिक संगठनों का निर्माण हुआ और उससे पूरे विश्व से लोगों ने जुड़ कर उसको समृद्ध बनाया। उनके कार्य पटल पर आने लगे। भाषा और संस्कृति को समझने समझाने में भी एक अच्छा मंच बन चुका है।

                   *गृहणियों के लिए भी एक अच्छा मंच मिला , वे सिर्फ घर में रहकर घर तक ही सीमित रह गयीं थी। उनकी  उच्च शिक्षा , ज्ञान और कला जो घर की चहारदीवारी में दम तोड़ रही थी , उसको सही स्थान मिला और उससे वे कुछ क्षेत्रों में आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी होने लगी। 

                  *छात्रों के लिए अपनी पढाई के लिए विश्व के साहित्य या पठन पाठन के लिए उपयोगी सामग्री भी प्राप्त होना सुलभ हो गया। हर छात्र के लिए सन्दर्भ पुस्तकें खरीदना संभव नहीं होता है तो वे सोशल मीडिया से सब आसानी से प्राप्त कर लेते हैं। 

               *किसी भी दुर्घटना के बारे में कभी कभी सोशल मीडिया से ही पता चल जाता है और पीड़ित को समय से सहायता भी मिल जाती है , जो उसके जीवन को बचा भी लेती हैं। 

                *अवसाद में गिरे हुए कितने लोग ये बात अगर सोशल साइट पर शेयर करके गलत कदम उठाने लगते हैं तो कई बार वे समय से बचा भी लिए जाते हैं। 

                *खोये हुए बच्चे या भटके हुए बुजुर्ग भी कभी कभी इसके द्वारा सही स्थान पर मिल जाते हैं। बरगला कर भगाये हुए बच्चे भी इससे पकड़ लिए जाते हैं। 


अनुपयोगी बिंदु :--


                 *सबसे अधिक दुरूपयोग इसका अपराधी प्रवृत्ति के लोग करने लगे हैं।  फेसबुक जैसे मंच से दोस्ती करके के बाद मैसेंजर पर जाकर स्त्रियाँ पुरुषों और पुरुष स्त्रियों को गलत ढंग से बातचीत करने के लिए फ़ोन मिलाने लगे हैं या फिर मैसेज के द्वारा ही उनसे अश्लील बातचीत करने लगते हैं। इसमें सिर्फ एक नहीं बल्कि दोनों ही होते हैं बल्कि ये भी होता है कि पुरुष होकर अपनी प्रोफाइल महिला के नाम से बना कर बात करते हैं और महिलाओं से ही गलत व्यवहार करने लगते हैं। ये सबसे बड़ी समस्या है और इसका कोई निदान भी नहीं है सिवाय इसके की पीड़ित पक्ष उसको अपने मित्र श्रेणी से बाहर कर दे या फिर अपना मैसेंजर ही लॉक कर दे। 

               *घरेलू महिलायें, बच्चों की देखरेख करने वाली सहायिकायें इसका दुरूपयोग करके छोटे छोटे बच्चों के सामने राइम या गेम खोल कर रख देती हैं और वे पाने काम में लगी रहती हैं।  अपनी सुविधा के लिए वे बच्चों को इसका आदी बना देती हैं और फिर बच्चा खाना भी उसके साथ ही खायेगा। इसके दुष्प्रभावों को वे जाती हैं या नहीं ये तो नहीं कह सकती लेकिन इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव होता है कि बच्चे का बोलना देर से शुरू होता है और वे वीडिओ वाली भाषा भी ग्रहण करने लगते हैं। (इस बारे में मेरी बात एक बच्चों की डॉक्टर ,जो इसका ही इलाज करती हैं , के साथ हुई है।)

               *बहुत छोटी उम्र में ही वे मोबाइल में अपने मन के वीडिओ लगाने लगते हैं , कॉल भी करने लगते हैं। उनको इसका ज्ञान नहीं होता है लेकिन उंगली चला कर वे उसके अभ्यस्त हो जाते हैं। पढ़ने वाले बच्चे भी मोबाइल चाहते हैं , छोटे छोटे क्लास के बच्चों के लिए भी अब पढाई का तरीका बदल गया है। विषय वार वाट्सएप पर ग्रुप बना दिए जाते हैं और पहले की तरह से हर बच्चे की डायरी में होमवर्क लिखने के बजाय वह एक बार ग्रुप पर डाल देती हैं फिर अभिभावकों  सिरदर्द कि वे उसको देखें और कुछ बड़े बच्चे हुए तो उनको लैपटॉप या मोबाइल चाहिए। 

                *किशोर होते बच्चों के लिए पढाई के लिए लैपटॉप बहुत जरूरी हो गया है क्योंकि उनको अपना प्रोजेक्ट बनाना है या फिर सन्दर्भ देखने हैं। फिर पढाई के अलावा बच्चे बहुत कुछ देखना सीख जाते हैं। जो कि उनके मानसिक विकास की दृष्टि समय से पहले परिपक्व बना रहा है। 

                *किशोर इससे ही अवसाद  शिकार जल्दी होने लगे हैं और उससे भी निजात पाने के लिए आत्महत्या जैसे कदम भी उठाने लगे हैं। वो क्रियाएं या अपराध जो कि उनके लिए न उचित हैं और न ही उनकी उम्र के अनुसार होने चाहिए वे करना सीख रहे हैं।  उनकी IQ बहुत अधिक होने लगी है तो उनको सोशल मीडिया से और अधिक ज्ञान मिलने लगा है। 

                *मैंने देखा है कि किशोर लड़कियाँ अपनी प्रोफाइल में अपनी आयु अधिक डाल देती हैं और फिर उनकी मित्रता भी उस उम्र के लड़कों से होने लगाती है और वे बहकावे में भी जल्दी आ जाती हैं।  आजकल हो रहे अपराधों के गर्भ में कहीं न कहीं ये मंच जिम्मेदार हो रहे हैं। 

                 *नए नए स्कैम भी इसी के तहत होने लगे हैं , जिन्हें पकड़ पाना हर एक के वश की बात नहीं है और इस तरह से अपराधों की श्रेणी में आ रहे हैं।  ये सोशल मीडिया ही है कि बी टेक और एम बी ए जैसी व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण करते हुए वे अपराधों में लिप्त होने लगे है उनको सारे रास्ते यही पर मिल जाते हैं। 

                          इस सोशल मीडिया डे को हम किस दृष्टि से देखते हैं, ये अपनी अपनी सोच है लेकिन कुल मिला कर हम प्रगति तो कर रहे हैं लेकिन गर्त में ज्यादा जा रहे हैं। 

प्रस्तुतकर्ता रेखा श्रीवास्तव पर 6:34 am कोई टिप्पणी नहीं:

सोमवार, 19 जून 2023

मैट्रो से - 2 !

 मैट्रो से - 2 !

                     एक ही स्टेशन से कई सहायिकाएं लेडीज़ डिब्बे में चढ़ती हैं, रोज नहीं तो अक्सर उनका मिलना होता रहता है , एक बहनापे की तरह हो गया। एक टाउनशिप में सब काम करती हैं और कई कई घरों में करती हैं। इतने बड़े शहर में अपने दम पर ही तो रह रही हैं। 

   "अरी बबिता आज कुछ ज्यादा थकी नजर आ रही है, वह भी सुबह सुबह।"

   "हाँ बहन कुछ न कुछ ऐसा हो जाता है, फिर कल तो पूरी रात सो ही नहीं सकी, काम पर निकलना ही था। "

   "रोज तेरा कुछ न कुछ ऐसा ही होता रहता है, अरी थोड़ा मजबूत बन, नहीं तो सब तुझे भी बेच कर खा जाएंगे। " 

    "वह तो है तभी तो रोती नहीं हूँ, कब का छोड़ दिया लेकिन दिल और दिमाग के आँसूं आँखों से चुगली कर देते हैं। " 

    "अरे आज सी तो कभी न दिखी, कह डाल तो कुछ हल्की हो जायेगी।"

   "क्या कहूँ, कल रात पीने के लिए पैसे माँग रहा था तो मैंने मना कर दिया।  मारपीट करके घर से भाग गया। जब देर तक न  आया तो एक बजे ढूंढने निकली। धुत पड़ा मिला।  किसी तरह से लेकर आयी। तीन बज गया और चार बजे से घर के काम करके निकल पड़ी।"

    "तू भगा क्यों नहीं देती ऐसे मरद को, कमाए भी तू, खिलाये भी तू और मार खाकर खोजने भी तू ही जाए। कम से कम चैन से काम करके खायेगी तो। "

     "किस किस को भगाएँगे, हम लोगों के भाग्य में ऐसे ही मरद लिखे होते हैं, नहीं तो हम भी घर में चैन से न रहें।"

     "सच कह रही है, किसी की औलाद खून पीने  के लिए पैदा होती है और किसी का तो मरद ही जीते जी मार देता है। "

                  फिर गंतव्य आ गया और चल दी दोनों।                     

 

प्रस्तुतकर्ता रेखा श्रीवास्तव पर 8:37 pm कोई टिप्पणी नहीं:

नौटंकी !

            नीति ने सुबह उठकर मोबाइल उठाया तो उसमें एक स्टोरी देख कर उसकी आँखें आश्चर्य से फैल गयीं। वो थी उसकी ही सहेली मीता के द्वारा डाली गयी अपने ससुर की तस्वीर - आज पितृ दिवस के उपलक्ष्य में।  अभी कल ही उनका गाँव में निधन हुआ है। 

                  पिछले कई सालों से वह अपने पैतृक गाँव में छोटे भाई के सहारे रह रहे थे क्योंकि मीता और उनके पतिदेव को तो उनको रखना ही नहीं था।  माँ के निधन के बाद कुछ ही महीनों में उनको गाँव भेज आये थे क्योंकि माँ थीं तो उनके सारे काम समेटे रहती थी। अब कौन करेगा और क्यों? 

                 उनके निधन पर जरूर गाँव गए थे लेकिन उनके भाइयों ने खुद ही उनका अंतिम संस्कार किया। बेटा अपना हक़ तो पहले ही खो चुका था। अंतिम समय कई बार कहा भी कि मुझे यहाँ से ले जाओ मैं अपने ही घर में मरना चाहता हूँ लेकिन वह घर तो अब बेटे के अनुसार ढल चुका था। 

              स्टोरी के साथ गाना लगा था - "चिट्ठी न कोई सन्देश। ...... " और कैप्शन था - "पापाजी आप इतनी जल्दी क्यों चले गए? आपके बिना हम अनाथ हो गये।" 

              मीता ने मोबाइल उठा कर पटक दिया। कोई इतनी बड़ी नौटंकी कैसे कर सकता है? शायद अपने फ्रेंड सर्किल में या दूर के रिश्तेदारों में अपनी छवि बनाने के लिए ?

प्रस्तुतकर्ता रेखा श्रीवास्तव पर 7:25 pm कोई टिप्पणी नहीं:

बुधवार, 14 जून 2023

पुरुष विमर्श - 4

पुरुष विमर्श -4

                                   

                                           नारी विमर्श का एक दूसरा पहलू है पुरुष विमर्श। सदियों से शोषित नारी ने भी  रूप बदला है या  संविधान और कानून ने जब उसकी रक्षा और अधिकारों के प्रति सजगता दिखलाई तो उसका दुरूपयोग भी शुरू हो गया।  इसमें कानून के साथ उस स्त्री के साथ खड़े परिवार वालों ने भी सारी सामाजिकता और नैतिकता को ताक पर रख दिया। परिणाम सामाजिक संस्थाएँ खतरे में ही नहीं आ गयीं हैं बल्कि उसका विद्रूप रूप भी सामने आने लगा है। अब इतना अधिक आतंक हो चुका है कि लोग लड़कियों से ज्यादा लड़कों की शादी के लिए सशंकित रहने लगे हैं। 

                          गिरीश एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार और सुलझे हुए माता-पिता का इंजीनियर बेटा, जिसे घर और परिवार से अधिक दुनिया जहाँ में कोई रूचि न थी। उसकी एक सेमिनार के दौरान नमिता से मुलाकात हुई और बात हुई कुछ अधिक बात बढ़ी बस।  फिर सब अपनी अपनी जगह। सामान्य बातचीत होती रही। 

                    एक दिन नमिता के पिता मिस्टर सिन्हा, जो आईएएस अधिकारी थे, ने गिरीश के पिता को  फ़ोन किया कि वे उनसे मिलना चाहते हैं।  दोनों अलग अलग प्रदेशों के रहवासी थे, यहाँ तक कि बहुत फर्क था दोनों की भाषा और संस्कृति में भी। राय साहब को समझ नहीं आया कि उनका ऐसा कोई परिचय भी नहीं है फिर कोई अनजान व्यक्ति क्यों मिलना चाहता है। सिन्हा साहब अपने रुतबे के अनुकून लाव लश्कर के साथ आ गए और उनका भी समुचित आदर सत्कार किया गया। 

        "अपनी बेटी नमिता का रिश्ता आपके बेटे गिरीश से करना चाहता हूँ , वे दोनों भी एक दूसरे को पसंद करते हैं आशा करता हूँ कि आपको कोई आपत्ति नहीं होगी।"

        ये बात सुनकर राय साहब कुछ अचकचा गए और बोले "गिरीश ने तो मुझसे ऐसा कुछ भी नहीं बताया, फिर एकाएक शादी की बात कैसे पैदा हो गयी।" उनको सिन्हा साहब का रुतबा और स्टेटस देख कर संकोच तो हो ही रहा था। 

         "मुझे नमिता ने बताया और लड़की के पिता होने के नाते में खुद प्रस्ताव लेकर आया।  आपको कोई आपत्ति तो नहीं। "

          "जी मुझे क्या आपत्ति होती अगर गिरीश की मर्जी है तो। "

         "तब आप एक बार मेरे निवास पर आइये, आपकी नमिता से भी मुलाकात हो जायेगी, हमारे परिवार भी आपस में मिल लेंगे। "

          सब कुछ सही रहा और कुछ महीने के अंतराल में विवाह सम्पन्न हो गया। सिन्हा साहब ने अपने स्तर के अनुसार शादी की और सारा सामान गिरीश की पोस्टिंग के अनुसार हैदराबाद में भिजवा दिया। नमिता एक सप्ताह ससुराल में रही और फिर उसके पापा ने हनीमून टिकट दिया ही था सो वे बाहर निकल गए।  लौटकर नमिता सीधे मायके निकल गयी और गिरीश घर आकर अपनी नौकरी पर चला गया। 

              कुछ एक सप्ताह के बाद नमिता अपने एक नौकर को लेकर हैदराबाद पहुँच गयी। वह उसके साथ ही रहने वाला था और पिता ने अपनी बेटी को पूरी सुख सुविधा का ध्यान रखते हुए ये व्यवस्था की थी और कुछ बड़े घरों के बच्चों की जिंदगी के अनुरूप भी किया। यहाँ भी वह सिर्फ एक सप्ताह सामान्य रही और फिर एक दिन - गिरीश ऑफिस से वापस आया तो ड्रांइंग रूम में कैंडल लाइट में नमिता शार्ट पहने मेज पर दोनों पैर फैलाये ड्रिंक करती मिली, वह तो ऊपर से नीचे गिरा क्योंकि वह तो ड्रिंक तो क्या कोई भी व्यसन नहीं करता था। वह अपने पर काबू नहीं रख पाया तो उसने आते ही सवाल किया - "नमिता ये क्या ?" 

    "कुछ नहीं जानू , बहुत दिन हो गए थे , अब तो इससे दूर नहीं रखा जाता आखिर कब तक मैं नाटक कर सकती हूँ  आओ न दोनों मिलकर पिएंगे। "

          "नहीं मेरे घर में ये सब नहीं चलेगा।"

          "क्या कहा तेरा घर? अरे में मेरा भी घर है और इसमें मेरी ही चलेगी।  तुम मर भुक्के हो ये मैं जानती थी और इसी लिए पैग बनाने और बाकि सामान लाने के लिए पापा ने राजू को साथ भेजा है।"

        "नमिता होश में बात करो, ये घर है कोई होटल नहीं और मेरे साथ तो ऐसे बिलकुल भी नहीं चलेगा। "

         "तुम्हारे साथ चलाना भी किसे है? वो तो उस एक्सीडेंट से मेरे ब्रेन में कुछ गड़बड़ हो गया था और ये कभी भी उभर सकता है ये बात पापा जानते थे।  इसीलिए न तुमसे शादी की नहीं तो तुम्हारी औकात क्या है ? मेरे लिए आईएएस और आईपीएस लड़कों की कमी नहीं थी। अब शादी की है तो उसका भी मजा लो न। "

               गिरीश एकदम सकते में आ गया और समझ गया कि अब जीवन नर्क होने वाला है। दूसरे ही दिन उसने अपने पापा से सारी बात बतलाई और पूछा कि अब क्या करूँ ? लेकिन पापा भी कुछ नहीं सकते थे।  कुछ दिन ऐसे ही गुजरे उसने अब उसकी हरकतों और गालियों, जो कि रोजमर्रा का रूटीन बन चुका था, के वीडियो बनाना शुरू कर दिया क्योंकि वह कर कुछ नहीं सकता था। फिर एक दिन जब वह ऑफिस से आया तो घर में ताला लगा था और वह नौकर सहित जा चुकी थी। उसने चारों तरफ फ़ोन घुमाये तो पता चला कि वह फ्लाइट पकड़ कर अपने पापा के घर पहुँच चुकी है।  उसने अपने ससुर को फ़ोन किया तो उनका उत्तर था - "अब वह तुम्हारी वाइफ है और उसको कैसे रखना है ?  ये तुम्हें पता होना चाहिए। मैं इस विषय में कोई सहायता नहीं कर सकता हूँ। "

                सिर्फ एक हफ़्ते के अंदर उसके खिलाफ घरेलू हिंसा का केस कर दिया गया और उसके घर सम्मन भेजा गया। इधर उसको नौकरी से भी निकलवा दिया गया। वह वहाँ से घर भागा, लेकिन कानून की पेचेदगी में उसे फँसा लिया गया था। सब कुछ पूर्व नियोजित था क्योंकि उसके ससुर को पता था कि नमिता की दिमागी हालत आज नहीं तो कल उबरेगी ही और फिर क्या होगा ? उनका भेजा हुआ नौकर उनका गवाह बन गया। उसने घर आकर अपने ही हाथ से दीवार पर सिर मार कर गुमला बना लिए , चूड़ियां तोड़ कर हाथों पर भी खरोंच के निशान बना कर मेडिकल करवा कर सुबूत बनवा लिए।  जो उसके पिता के लिए कोई बड़ा काम नहीं था और मारा गया बेचारा सीधा सादा परिवार। समाज के सामने परिवार ख़राब होने का एक सर्टिफिकेट नमिता को मिल गया और अब मनमर्जी के लिए वह स्वतन्त्र थी।  वैसे भी बड़े घरों में ये सब कोई बड़ी बात नहीं होती।

                    वारंट निकाला गया किसी शुभचिंतक ने इसकी सूचना दे दी और उन्हीं ने आकर पूर्व जमानत ले लेने की सलाह दी। पिता ने भाग दौड़ करके वह भी ली।  गिरीश घर में आकर बैठा था और फिर घर का माहौल तनावपूर्ण हो गया। सब तरफ से वे लोग सशंकित रहते , घर का दरवाजा भी खटकता तो डर लगा रहता। 

                   इसी बीच गिरीश की माँ को ब्रेन हैमरेज हुआ और तीन महीने वह जीवन मृत्यु के बीच झूलती रहीं, आखिर में चल बसी। घर का एक स्तम्भ ढह गया, सारा घर मानसिक रूप से बिखर गया।  माँ के जाने से पिता भी असहाय महसूस करने लगे थे। उनका मन उचाट हो गया और वे वहां से भागने की सोचने लगे। 

                  तारीखों का सिलसिला शुरू हो गया, साथ ही जान का खतरा भी लगने लगा क्योंकि ऐसे रुतबे वाले लोगों के लिए कुछ भी असंभव न था। गिरीश भी न नौकरी कर रहा था और न उसको मानसिक शांति थी। पिता का स्वास्थ्य भी गिरने लगा था, कोई रोग न भी था तो चिंता उनको खाये जा रही थी कि मेरा सीधा सादा लड़का किस मुसीबत में फँस गया। 

                  उन्होंने अपना घर और सारी जायदाद बेच कर अपना शहर छोड़ने की सोच ली और वे रातोंरात जो भी मिला बेच कर अपने भाई के पास चले गए और वहीँ सेटल होने की सोची।  भतीजे ने अपनी ही कंपनी में गिरीश को जॉब दिलवा दी। उसके पीछे होने से कोई समस्या खड़ी नहीं हुई। पिता और बेटे ने अपने मोबाइल नंबर भी बदल दिए।  धमकियों का सिलसिला बंद हो और उनका पता न मिल सके। उन्होंने सभी से अपने संपर्क तोड़ लिए।  अब अकेले ही सब झेलना था, एक भाई का परिवार उनके साथ था।  

                इसके साथ ही गिरीश के साढ़ू, जो उससे अपने उत्पीड़न की घटनाएं शेयर करता था, की तरफ से एक मुकद्दमा उसके खिलाफ लगा दिया गया। उसका सम्मान पुराने आवास पर भेजा गया लेकिन वापस हो गया। मुकदमा दर्ज है और वारंट भी, लेकिन जिस कोर्ट में ये सब चल रहा है वहां पर तारीख पर तारीख अब सालों में पड़ रहीं हैं और इनके कभी वहाँ न पहुंचने से आगे बढ़ जाती है। 

                  एक मानसिक यंत्रणा का शिकार एक होनहर इंजीनियर का भविष्य एक गलत निर्णय ले गया। जिससे मुक्ति अब संभव है या नहीं किसी को नहीं पता है। 

प्रस्तुतकर्ता रेखा श्रीवास्तव पर 7:17 pm कोई टिप्पणी नहीं:

शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023

अक्षय तृतीया !

 अक्षय तृतीया का महत्व

                                                  

'न माधव समो मासो न कृतेन युगं समम्। न च वेद समं शास्त्रं न तीर्थ गंगयां समम्।।'
 
वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं हैं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। उसी तरह अक्षय तृतीया के समान कोई तिथि नहीं है।
 
  वैशाख मास की विशिष्टता इसमें आने वाली अक्षय तृतीया के कारण अक्षुण्ण हो जाती है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाए जाने वाले इस पर्व का उल्लेख विष्णु धर्म सूत्र, मत्स्य पुराण, नारदीय पुराण तथा भविष्य पुराण आदि में मिलता है।  इस दिन भगवान नर-नारायण सहित परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था।
* इसी दिन ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म भी हुआ था। कुबेर को
खजाना मिला था।
*
इसी दिन बद्रीनारायण के कपाट भी खुलते हैं। जगन्नाथ भगवान के सभी रथों
को बनाना प्रारम्भ किया जाता है।
 * इसी दिन भगीरथ जी के अथक प्रयासों के बाद शिव जी की जटाओं मां गंगा का पृथ्वी अवतरण भी हुआ था।
*इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था कि आज
के दिन इसके नामानुसार संसार में किये गए आध्यात्मिक, सांसारिक और पुण्यात्मक कार्यों का अक्षय पुण्य प्राप्त होगा। 
*इसी दिन सुदामा भगवान कृष्ण से मिलने पहुंचे थे। 
*प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभदेवजी भगवान के 13 महीने का कठीन उपवास का पारणा इक्षु (गन्ने)
के रस से किया था।

*इसी दिन सतयुग और त्रैतायुग का प्रारंभ हुआ था और द्वापर युग का समापन
भी इसी हुआ।

 * अक्षय तृतीया के दिन से ही वेद व्यास और भगवान गणेश ने महाभारत ग्रंथ
लिखना शुरू किया था। आदि शंकराचार्य ने कनकधारा स्तोत्र की रचना की थी।

 * इसी दिन महाभारत की लड़ाई खत्म हुई थी।
 * अक्षय तृतीया के दिन ही वृंदावन के बांके बिहारी जी के मंदिर में श्री
विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं।

                  
           अक्षय तृतीया हम बचपन में तभी जानते थे जब माँ से सुनते आ रहे हैं कि ये बिना पूछे शादी की साइत होती है और कुछ दान पुण्य के काम भी समझ में आने लगते थे। तब हमें इन सब कामों से मतलब नहीं ही होता है और हम अपने मतलब की बात याद रखते थे और करते थे। 
              सबसे बड़ा काम हम दोस्तों के संग अपनी गुड़ियों का ब्याह रचाते थे। बाकायदा वरपक्ष में लडके और वधुपक्ष में लड़कियाँ  होती थीं. मुँह से बैंड की आवाज निकालते हुए बारात आती थी।  बारात का खाना पीना और फिर शादी के बाद विदाई तक का कार्यक्रम संपन्न होता था।
                            
                                 अब तो व्यापार और बाजारीकरण के इंटरनेट के साथ झलकती प्रभाव  से हम इसका सही अर्थ तो भूलते ही जा रहे हैं। बड़े अक्षरों में ज्वैलर्स के विज्ञापन, सोने और हीरे के जेवरातों में मिली छूट का आकर्षण लोगों को खींच लेता है। अक्षय का अर्थ शाब्दिक के साथ आर्थिक भी बन चुका है।  हो भी क्यों नही? इसी के लिए सोना खरीद तो बढ़ती ही रहेगी। दुकानदारों की चाँदी जरूर हो जाती है कि वह पूरे साल में ज्यादा से ज्यादा कमाई करते हैं, कम से कम पूरे साल की कमाई सिर्फ एक दिन में कमाई कर लेते हैं। 
               जब इसका वास्तविक अर्थ समझें तो ये है कि भौतिक वास्तु का क्षरण सुनिश्चित है फिर इस दिन दी गई वस्तु को अक्षय मान कैसे मान सकते हैं ? जीवन में हम कितना संग्रहण करके उसका सुख उठा सकते हैं। ये हमारे मन का भ्रम है कि हमने इतना संग्रह कर लिया कि हमारी चार पीढ़ियाँ बैठ कर खायेंगी। वास्तव में इस दिन यदि कोई व्यक्ति अच्छा काम करे तो वह पूरी तरह से और निश्चित रूप से अक्षय हो सकता है। इस समय भीषण गर्मी का मौसम आ चुका है और अगर करना है तो प्याऊ लगवाएं , गरीबों को सत्तू, शक्कर , छाता , पंखा , सुराही आदि दान करना चाहिए। वह देकर जो आत्मसंतोष आपको मिलेगा वह अक्षय होगा। गर्मी में चिड़ियों के लिए पानी के पात्र पेड़ पर टांगना,जानवरों के लिए पानी भरवाना वह अक्षय होगा। आत्मा सभी में होती है और उस आत्मा की संतुष्टि के लिए जो भी प्रयास किया जाय, वह अक्षय है और अक्षय तृतीया इसी का पर्याय है। इससे प्राप्त संतोष भी आपके लिए अक्षय ही होगा।
                    पुराणों में लिखा है कि इस दिन पिण्डदान करके भी अपने पितरों को संतुष्ट करना अक्षय फल प्रदान करता है। 
       इस दिन गंगा स्नान करने का भी विधान है, हमारी आस्था सदा से धर्म कर्म से जुडी है गंगा न उपलब्ध हों तो किसी भी पवित्र नदी , तालाब या पोखर में भी गंगा जी का स्मरण करते हुए स्नान करना भी अक्षय फल देने वाला होता है। इस दिन भगवन विष्णु और माँ लक्ष्मी का पूजन भी विशेष रूप से करने की बात सामने आती है।  इसलिए कहा जाता है कि भगवत पूजन से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है।
 



 


प्रस्तुतकर्ता रेखा श्रीवास्तव पर 9:46 pm कोई टिप्पणी नहीं:

बुधवार, 22 मार्च 2023

विश्व जल दिवस!

 रहिमन पानी राखिये , बिन पानी सब सून,

पानी गए न ऊबरे मोती मानस चून।


रहीम जी ने वर्षों पहले ये लिखा था, शायद उन्हें आने वाले समय के बारे में ये अहसास था कि ये विश्व एक दिन इसी पानी के लिए विश्व युद्ध की कगार पर भी खड़ा हो सकता है।

इस एक दिन हम विश्व जल दिवस के रूप में मना लेते हें, कुछ भाषण दिए जाते हें। कुछ लेख लिखे जाते हें लेकिन आने वाले समय में जल विभीषिका के बारे में किसी ने सोचा ही नहीं है। ऐसा नहीं है कि आज इस पानी के लिए लोग तरस नहीं रहे हें ।

मैं किसी को दोष नहीं दे रही लेकिन वो हम ही हैं न कि सड़क पर लगे हुए सरकारी नलों की टोंटी तोड़ देते हें ताकि पानी पूरी रफ्तार से आ सके और फिर अपना पानी भर जाने पर उससे उसी तरह से बहता हुआ छोड़ देते हें। हमें किसी को दोष देने का अधिकार नहीं है लेकिन सबसे ये अनुरोध तो कर ही सकती हूँ कि पानी की एक एक बूँद में जीवन है - एक बूँद जीवन दे सकती है तो एक बूँद के न होने पर जीवन जा भी सकता है। ये प्राकृतिक वरदान है जिसे हम खुद नहीं बना सकते हें और हमारा विज्ञान भी इसको बना नहीं सकता है। हम अनुसन्धान करके खोज तो कर सकते हें लेकिन प्रकृतिदत्त वस्तुओं का निर्माण नहीं कर सकते हैं।

शहरों में सबमर्सिबल लगा कर हम पानी का गहराई से दोहन कर रहे हें और जल स्तर निरंतर गिरता चला जा रहा है। नदियों के किनारे बसे शहरों में भी आम आदमी बूँद - बूँद पानी के लिए जूझ रहा है। लेकिन ये नहीं है कि वह इसके लिए दोषी नहीं है बल्कि एक आम आदमी जो पानी के लिए परेशान है लेकिन पानी आने पर वह इस तरह से बर्बाद करने से नहीं चूकता है।

--घरों में नलों के ठीक न होने पर उनसे टपकता हुआ पानी सिर्फ और सिर्फ पानी की बर्बादी को दिखाता है जिसके लिए हम जिम्मेदार हैं। इस तरह से बहते हुए।

- आर ओ हम जीवन का अभिन्न अंग बना चुके हैं लेकिन उससे उत्सर्जित पानी को बहने के लिए छोड़ देते है। उसका उपयोग हो सकता है, कपड़े धोने में, गमलों में डालकर, घर की धुलाई में। 

   आज भी लोग मीलों दूर से पानी लाते हैं। बढ़ती आबादी के साथ खपत तो बढ़ती है लेकिन जल स्रोत नहीं। जो हैं उन्हें संरक्षित कीजिए और जल दिवस रोज मानकर चलिए।

प्रस्तुतकर्ता रेखा श्रीवास्तव पर 4:33 am 1 टिप्पणी:
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मैं अपने बारे में सिर्फ इतना ही कहूँगी कि २५ साल तक आई आई टी कानपुर में कंप्यूटर साइंस विभाग में प्रोजेक्ट एसोसिएट के पद पर रहते हुए हिंदी भाषा ही नहीं बल्कि लगभग सभी भारतीय भाषाओं को मशीन अनुवाद के द्वारा जन सामान्य के समक्ष लाने के उद्देश्य से कार्य करते हुए . अब सामाजिक कार्य, काउंसलिंग और लेखन कार्य ही मुख्य कार्य बन चुका है. मेरे लिए जीवन में सिद्धांत का बहुत बड़ी भूमिका रही है, अपने आदर्शों और सिद्धांतों के साथ कभी कोई समझौता नहीं किया. अगर हो सका तो किसी सही और गलत का भान कराती रही यह बात और है कि उसको मेरी बात समझ आई या नहीं.
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