अक्षय तृतीया का महत्व
'न माधव समो मासो न कृतेन युगं समम्। न च वेद समं शास्त्रं न तीर्थ गंगयां समम्।।'
वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं हैं, वेद के
समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। उसी तरह
अक्षय तृतीया के समान कोई तिथि नहीं है।
वैशाख मास की विशिष्टता इसमें आने वाली अक्षय तृतीया के कारण अक्षुण्ण
हो जाती है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाए जाने वाले इस पर्व का
उल्लेख विष्णु धर्म सूत्र, मत्स्य पुराण, नारदीय पुराण तथा भविष्य पुराण
आदि में मिलता है। इस दिन भगवान नर-नारायण सहित परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था।
* इसी दिन ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म भी हुआ था। कुबेर को
खजाना मिला था। *
* इसी दिन ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म भी हुआ था। कुबेर को
खजाना मिला था। *
इसी दिन बद्रीनारायण के कपाट भी खुलते हैं। जगन्नाथ भगवान के सभी रथों
को बनाना प्रारम्भ किया जाता है।
* इसी दिन भगीरथ जी के अथक प्रयासों के बाद शिव जी की जटाओं मां गंगा का पृथ्वी अवतरण भी हुआ था।
*इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था कि आज
के दिन इसके नामानुसार संसार में किये गए आध्यात्मिक, सांसारिक और पुण्यात्मक कार्यों का अक्षय पुण्य प्राप्त होगा।
को बनाना प्रारम्भ किया जाता है।
* इसी दिन भगीरथ जी के अथक प्रयासों के बाद शिव जी की जटाओं मां गंगा का पृथ्वी अवतरण भी हुआ था।
*इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था कि आज
के दिन इसके नामानुसार संसार में किये गए आध्यात्मिक, सांसारिक और पुण्यात्मक कार्यों का अक्षय पुण्य प्राप्त होगा।
*इसी दिन सुदामा भगवान कृष्ण से मिलने पहुंचे थे।
*प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभदेवजी भगवान के 13 महीने का कठीन उपवास का पारणा इक्षु (गन्ने)
के रस से किया था।
*इसी दिन सतयुग और त्रैतायुग का प्रारंभ हुआ था और द्वापर युग का समापन
भी इसी हुआ।
* अक्षय तृतीया के दिन से ही वेद व्यास और भगवान गणेश ने महाभारत ग्रंथ
लिखना शुरू किया था। आदि शंकराचार्य ने कनकधारा स्तोत्र की रचना की थी।
* इसी दिन महाभारत की लड़ाई खत्म हुई थी।
* अक्षय तृतीया के दिन ही वृंदावन के बांके बिहारी जी के मंदिर में श्री
विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं।
के रस से किया था।
*इसी दिन सतयुग और त्रैतायुग का प्रारंभ हुआ था और द्वापर युग का समापन
भी इसी हुआ।
* अक्षय तृतीया के दिन से ही वेद व्यास और भगवान गणेश ने महाभारत ग्रंथ
लिखना शुरू किया था। आदि शंकराचार्य ने कनकधारा स्तोत्र की रचना की थी।
* इसी दिन महाभारत की लड़ाई खत्म हुई थी।
* अक्षय तृतीया के दिन ही वृंदावन के बांके बिहारी जी के मंदिर में श्री
विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं।
अक्षय
तृतीया हम बचपन में तभी जानते थे जब माँ से सुनते आ रहे हैं कि ये बिना
पूछे शादी की साइत होती है और कुछ दान पुण्य के काम भी समझ में आने लगते थे। तब हमें इन सब कामों से मतलब नहीं ही होता है और हम अपने मतलब की बात याद रखते थे और करते थे।
सबसे बड़ा
काम हम दोस्तों के संग अपनी गुड़ियों का ब्याह रचाते थे। बाकायदा वरपक्ष में लडके और वधुपक्ष में लड़कियाँ होती थीं. मुँह से बैंड की आवाज निकालते हुए बारात आती थी। बारात का खाना पीना और फिर शादी के बाद विदाई तक का कार्यक्रम संपन्न होता था।
अब तो व्यापार और बाजारीकरण के इंटरनेट के
साथ झलकती प्रभाव से हम इसका सही अर्थ तो भूलते ही जा रहे हैं। बड़े
अक्षरों में ज्वैलर्स के विज्ञापन, सोने और हीरे के जेवरातों में मिली छूट
का आकर्षण लोगों को खींच लेता है। अक्षय का अर्थ शाब्दिक के साथ आर्थिक भी बन चुका है। हो भी क्यों नही? इसी के
लिए सोना खरीद तो बढ़ती ही रहेगी। दुकानदारों की चाँदी जरूर हो जाती है कि
वह पूरे साल में ज्यादा से ज्यादा कमाई करते हैं, कम से कम पूरे साल की
कमाई सिर्फ एक दिन में कमाई कर लेते हैं।
जब इसका वास्तविक अर्थ समझें तो ये है कि भौतिक वास्तु का क्षरण
सुनिश्चित है फिर इस दिन दी गई वस्तु को अक्षय मान कैसे मान सकते हैं ?
जीवन में हम कितना संग्रहण करके उसका सुख उठा सकते हैं। ये हमारे मन का
भ्रम है कि हमने इतना संग्रह कर लिया कि हमारी चार पीढ़ियाँ बैठ कर
खायेंगी। वास्तव में इस दिन यदि कोई व्यक्ति अच्छा काम करे तो वह पूरी तरह
से और निश्चित रूप से अक्षय हो सकता है। इस समय भीषण गर्मी का मौसम आ चुका
है और अगर करना है तो प्याऊ लगवाएं , गरीबों को सत्तू, शक्कर , छाता , पंखा
, सुराही आदि दान करना चाहिए। वह देकर जो आत्मसंतोष आपको मिलेगा वह अक्षय
होगा। गर्मी में चिड़ियों के लिए पानी के पात्र पेड़ पर टांगना,जानवरों के
लिए पानी भरवाना वह अक्षय होगा। आत्मा सभी में होती है और उस आत्मा की
संतुष्टि के लिए जो भी प्रयास किया जाय, वह अक्षय है और अक्षय तृतीया इसी
का पर्याय है। इससे प्राप्त संतोष भी आपके लिए अक्षय ही होगा।
पुराणों में लिखा
है कि इस दिन पिण्डदान करके भी अपने पितरों को संतुष्ट करना अक्षय फल प्रदान करता
है।
इस दिन गंगा स्नान करने का भी विधान है, हमारी आस्था सदा से धर्म कर्म
से जुडी है गंगा न उपलब्ध हों तो किसी भी पवित्र नदी , तालाब या पोखर में भी गंगा जी का स्मरण करते हुए स्नान करना भी अक्षय फल देने वाला होता है। इस दिन भगवन विष्णु और माँ लक्ष्मी का पूजन भी विशेष रूप से करने की बात सामने आती है। इसलिए कहा जाता है कि भगवत पूजन से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो
जाता है।
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