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रविवार, 20 दिसंबर 2020

ये अनमोल रिश्ते !

 ये अनमोल रिश्ता!



                                जीवन में कुछ रिश्ते तो जन्म से बन जाते हैं और कुछ रिश्ते बस भावात्मक रूप से बने होते हैं और वे रिश्ते जो कि मेरे जीवन में इस साल मिले तो मेरा मन गदगद हो गया है। वो रिश्ता जो पापा और चाचा से जुड़े थे। उसे पैतृक घर और स्थान से जुड़े थे। जब मिला तो लगा कि पापा से ही मिल रही हूँ। 

                                ये फेसबुक की ही कृपा कहूँगी कि मुझे श्री रामशंकर द्विवेदी चाचाजी से मिलवाया। मैं उन्हें कितना जानती थी कि वे मेरे पापा पैतृक नगर जालौन में घर के पास ही रहते थे और आगरा विश्वविद्यालय के टॉपर  थे। उसे समय में जब वह उरई में आगरा विश्वविद्यालय में ही लगता है। मैं बहुत छोटी थी - पापा ने ही बताया था कि घर के आगे से डिग्री कॉलेज जाते हैं कि ये कितने विद्वान हैं। वह छवि अभी भी मेरी आँखों के सामने है। धोती कुरता पहने हुए और एक हाथ में धोती का कोना पकड़े हुए जाते हुए वे कॉलेज के प्रोफेसर थे। कभी उसे समय पर गहन परिचय नहीं मिला। फिर फेसबुक पर मैंने उन्हें पाया और उनकी पूरी प्रोफाइल पढ़ी तो समझ गयी और मैंने उन्हें मैसेंजर पर बात की। पापा का नाम सुनकर उन्होंने बहुत सारी बातें बता डाली पापा के बारे में और तय किया कि अबकी बार जब भी उरई आऊँगी जरूर मिलूंगी।  

                                 उस समय के बाद तो कभी न देखा न उनके बारे में जानकारी मिली।  आज उनकी विद्वता के समक्ष सिर झुक जाता है , इस उम्र में भी उनका लेखन जारी है और  अब तक उनकी प्रकाशित पुस्तकों की संख्या अनगिनत है और उनकी सक्रियता और विद्वता देख कर लगता है कि अभी बहुत कुछ माँ सरस्वती के इस वरद पुत्र को लिखना शेष है।                               

                               ये सौभाग्य मिला नवम्बर २०२० में ,  घर के पास ही उनका घर है और कानपुर निकलने के ठीक पहले मैं उनसे मिलने गयी।  मैं अपनी किताब उनको देने के लिए लेकर गयी थी। उनके घर पहुंची तो उनके बेटे से कह दिया वे घर पर नहीं है तो मैं अपनी किताब देकर चली आयी कि ये उनको दे दीजिएगा।  वह घर पर ही थे और जैसे ही उनको किताब दी होगी उन्होंने  पीछे से बेटे को भेजा कि उन लोगों को  बुलाकर लाओ।  हम वापस चल दिए और उन्हें देख कर अभिभूत  हो गयी।  पापा की याद आ गयी।  

                            फिर तो मैं बहुत देर तक रही।  उन्होंने अपने बचपन की यादें दुहराईं।  वे मेरे छोटे चाचा के मित्र थे और कहें कि पास पास घर होने से और हम उम्र भी उन्हें के थे।  वे बातें जो न कभी हमें पापा ने बतलायीं और न ही कोई औचित्य ही था।  चाचा जी ने पापा और मेरे दोनों चाचाओं के विषय में ढेर से यादें खोल कर सामने रख दीं। अपने बचपन की यादें - साथ साथ रहने के समय कैसे वक्त गुजारते थे ?  तब कोई  प्रतिस्पर्धा नहीं होती थी और न ही आर्थिक स्तर की कोई दीवारें थी।  एक लम्बे अरसे से वे चाचा लोगों से भी नहीं मिले थे।  उनके मित्र चाचाजी का तो निधन हो चुका है लेकिन पापा से छोटे भाई बड़े चाचाजी का हाथ अभी  हमारे सिर पर  है।  उनसे हमने वादा किया कि  अगली बार उन्हें जरूर मिलवाएंगे। उन्होंने भी वादा किया कि जब वे कानपुर आएंगे तो मेरे घर जरूर आएंगे। 

                         ये रिश्ता मेरे लिए अनमोल है और हम छोटे  शहर वाले रिश्तों को जीते हैं , कोई अंकल , आंटी नहीं होता बल्कि चाचा, बुआ , भाई और भाभी होते हैं। हम चाहे फेसबुक पर हों या फिर किसी और तरह से जुड़े हों , मिले हों या न मिले हों लेकिन हमारे रिश्ते देश दुनियां में मिलते हैं और हम उतने ही अपनत्व से उनको स्वीकार करते हैं। हमें गर्व है अपनी संस्कृति और रिश्तों को प्यार देने वाले अपने बुजुर्गों , हमउम्र और छोटों पर।  

रविवार, 6 दिसंबर 2020

कोरोना वैक्सीन !

  कोरोना वैक्सीन 


                                  विगत महीनों से  कोरोना ने पूरे विश्व को अपनी अँगुलियों  पर नचा रखा  है और वह इंसान जिसने  कि सम्पूर्ण प्रकृति से  लेकर नक्षत्रों तक को अपने अनुसन्धान  का विषय ही नहीं बनाया बल्कि उन पर अपनी सफलता भी दर्ज की। लेकिन एक वायरस के आगे कठपुतली बन गया।  इसके लिए वैक्सीन सबसे बड़ी ढाल बनने जा रही है और उसके लिए पूरे विश्व में प्रयास चल रहे हैं। 

                                 सारे लोग उसके लिए बेसब्री से इन्तजार से इन्तजार कर रहे हैं।  लोगों ने कोरोना का सही हल मान लिया है , कुछ लोगों  विवाह जैसे कार्य आगे बढ़ा दिए कि वैक्सीन आ जाए तब करेंगे ताकि बड़े बुजुर्ग सभी शामिल हो सकें लेकिन ये भूल गए कि  वह कोई अलादीन का चिराग नहीं है कि आते ही सबको सुरक्षित कर देगी। उसकी सफलता भी देश , वातावरण और स्थानिक स्थितियों पर भी निर्भर करेगा।  हर व्यक्ति ये चाहता है कि वैक्सीन सफल हो और होगी भी लेकिन कितनी ये तो समय ही बताएगा।  

                              अब जब कि  वैक्सीन का ट्रायल शुरू हो चुका है तो उसके परिणामों का इन्तजार और अभी काम शुरू हुआ ही था कि एक झटका लगा आम आदमी की बात होती तो पता  नहीं चलता लेकिन जब एक मंत्री को ये वैक्सीन लगी और उसके दूसरी खुराक के लगने से पहले ही वह कोरोना से ग्रसित  हो गए।  इन सबकी एक निश्चित प्रक्रिया होती है और उसके पूर्ण होने के पश्चात् उसकी सफलता आँकी जा सकती है। हम बेफिक्र कभी भी नहीं जी सकते हैं क्योंकि ये वायरस अपने रूप और लक्षणों को भी बराबर बदलते रहते हैं। कभी ये होने पर  भी बराबर निगेटिव आता रहता है और इस गलतफहमी में मरीज मौत के मुंह  चला जाता है। कभी तो ये मरीज के छूने या फिर संपर्क में आने पर ग्रस लेता है और कभी बराबर साथ रहने बाद भी सुरक्षित रह जाता है।  कभी कभी पूरा का पूरा परिवार ग्रसित हो जाता है और ठीक भी हो जाता है।  कभी कभी सारी सावधानी के बाद भी वह ग्रसित हो जाता है।  विगत दिनों में 600 डॉक्टर्स के इस से ग्रस्त  होकर मरने का आंकड़ा सामने है , इसके साथ ही कितने कोरोना योद्धा इससे ग्रस्त होने के बाद भी लोगों की सेवा में लगे लगे ही अपने जीवन की पारी हार गए।  

                                  इस वैक्सीन के भरोसे रहना अपने को भुलावे में डालने जैसा ही है। वातावरण में बढ़ता प्रदूषण , कोरोना के वायरस के बदलते स्वरूप ने अपने आधिपत्य को अभी भी कायम रखा है।  परीक्षण में आज भी परिणाम सही प्राप्त ही हो रहे हैं ये हम पूरे विश्वास के साथ नहीं कह सकते हैं। वैक्सीन का  तैयार होना और लगाने के लिए सबसे अधिक जरूरतमंद व्यक्तियों को चुनना भी एक कठिन कार्य है।  हमें किसी भी भुलावे में नहीं रहना है।  अपने को इससे बचाने के लिए वह सारी सावधानियां जो हम बरतते चले आ रहे हैं , उन्हें जीवन को सही तरीके से चलाते रहने के लिए मास्क , सैनिटाइज़र और सामाजिक दूरी का पालन हमेशा के लिए अपना कर चलना होगा।  वैक्सीन की सफलता के बाद भी इन को अपनाना बुरा नहीं है। 

                                  ये भी कहते हुए लोगों को सुना है कि जितना  सावधानी बरती जाती है , उतना ही इसका खतरा बढ़ता है , नहीं तो फेरी वालों , भिखारियों और रिक्शे वालों को कोरोना होते कभी न देखा गया है।  अपना जीवन आपका अपने लिए और इसको कैसे जीना है ? ये आपकी अपनी जिम्मेदारी है।  आपका परिवार आपका है और उसके लिए  स्वयं को सुरक्षित रखना और उन्हें भी सुरक्षित रहना आपके ऊपर है। वैक्सीन मिल जाए तो बहुत अच्छा लेकिन इसके साथ ही आप अपनी सुरक्षा के लिए सतर्क रहें तभी बचाव है। वैक्सीन कोई गारंटी वाली  चीज नहीं है कि वह आपको पूरी पूरी सुरक्षा देगी। जीवन शैली  अपनाये रहना होगा कि हम सुरक्षित रहें और दूसरों को भी रहने की दिशा की और प्रेरित करें।