स्विस बैंक में संचित धन का खुलासा विकीलीक्स पहले ही कर चुका है और इससे सभी लोग वाकिफ होंगे , फिर भी एक बानगी देखें और विचार करें कि इन धन कुबेरों की मानसिकता और इस देश के प्रति जिम्मेदारी कितनी अधिक है कि वे अपने धन की सुरक्षा कुछ लेने के स्थान पर कीमत चुका कर करवा रहे हैं और वह कीमत कहाँ से वसूल रहे हैं? अपने ही देश और देशवासियों से।
१ प्रबोध मेहता - २८००० करोड़
२ चिंतन गाँधी - १९५० करोड़
३ अरुण मेहता - २५०० करोड़
४ आर पासवान - ३५०० करोड़
५ नीरा राडिया - २८९९९० करोड़
६ राजीव गाँधी - १९८००० करोड़
७ नरेश गोयल - १४५६०० करोड़
८ ए राजा -७८०० करोड़
९ हर्षद मेहता - १३५८०० करोड़
१० केतन पारीख - ८२०० करोड़
इन आकड़ों को देख कर कहा जा सकता है कि जिस देश रहने वालों का धन विदेशों में इतनी बड़ी रकम के रूप में संचित हो वह गरीब हो ही नहीं सकता है। ये हमारे ही देश के जिम्मेदार नागरिक है जिन्होंने ये सोचा कि अगर कभी देश में गरीबी बढ़ गयी तो हम उसके शिकार न हों तो यहां से धन चूस चूस कर पहले ही बाहर रख लें ताकि यहाँ से भाग कर वहाँ जीवन आराम से गुजर सके। साफ सी बात है कि अगर ये और इतना पैसा देश की बैंकों में जमा होता तो ये सवाल उठता कि कहाँ से कमाया गया? अगर देश की बैंक में होता तो देश की संपत्ति होती और देश के विकास में काम आता तो ऐसे देशभक्तों को ये कहाँ मंजूर होता? क्या इन्हें देशद्रोही कहा जाय तो गलत होगा क्योंकि ये सभी इसी देश की धरती इन की मिट्टी से उपजा अन्न खा रहे है और यहां की धरती से निकला हुआ पानी लेकिन यहां की धरती के साथ ही धोखा कर रहे हैं। अपनी संपत्ति विदेशों में जमा कर रहे है इन सबसे हिसाब तो लेना ही पड़ेगा कि वे कौन सा रोजगार कर रहे हैं कि जिसका शुद्ध लाभ और अपनी ईमानदारी की कमाई भी छिपानी पद रही है।
आज जब ये आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं और उसी में सांस ले रहे हैं तो फिर इनकी रगों में बहने वाला खून उसकी दुर्गन्ध से पानी बन चुका है और उस गंदे पानी को हमें अपनी शक्ति से इनकी रगों से निकलना होगा। भारत गरीब है क्योंकि हमारे गरीब लोगों के लिए विदेशों से सहायता मिलती है फिर भी इस देश में करोड़ों लोग सिर्फ आसमान के नीचे जीवन गुजर रहे हैं। पालीथीन के बनी छत की झोपड़ियाँ भी नसीब नहीं है। कहीं कहीं बड़ी मीलों या इमारतों की चाहरदीवारी को सहारा बना कर अपने परिवार का आशियाना बना कर लोग रह रहे हैं। ये किसकी देन है इन्हीं भ्रष्टाचारियों की - जो इन सब के लिए सरकार के दिए धन से भी निकाल कर खा रहे है। यहां की तिजोरी भर गयी तो किराये की जगह लेकर विदेशों में धन भर लिया । ये धन आता कहाँ से है? हमसे ही कron का नाम लेकर लिया जाता है और हमें महंगाई के नाम पर चूसा जाता है। सब्सिडी ख़त्म कर दी और चीज महँगी - इससे कमाई हुई और उनके खातों में जमा हो गयी ।
कभी ये भी सोचती हूँ कि राजीव गाँधी के नाम इतना पैसा जमा है , ये किसके काम आ रहा है, राजीव गाँधी साथ नहीं ले जा सके तो फिर सोनिया या राहुल को तो इसकी जरूरत नहीं है। फिर इस संपत्ति का क्या होगा? बाकी लोग भी जिन लोगों ने जमा कर रखा है शेष जीवन में खर्च तो कर नहीं पायेंगे तब क्या होगा - सूम का धन शैतान ही खायेंगे। हमारा दोहन कर ये लोग अपना जीवन सुधार रहे हैं। देश को गिरवी रखने की योजना बना रहे हैं। फिर ऐसा क्यों न हो? सांसदों के वेतन और भत्तों में २०० % की वृद्धि और इनमें से अधिकतर करते क्या हैं? संसद के सत्रों में उपस्थित नहीं होते और वेतन भत्ते पूरे पूरे - उस पर भी खुश नहीं , अरे उन किसानों की तरफ देखो जो हल की जगह खुद जुट कर खेती करते हैं और फिर कर्ज में डूबे रहते हैं और आत्महत्या करने को मजबूर होते हैं । ये इतने भूखे हैं कि इतने पर भी पेट नहीं भरता है और ve vibhinna tareekon से देश की संपत्ति भ्रष्टाचार के sahare अपनी बना कर अपनी bhookh मिटा रहे हैं।
उठा के हाथ में कब से मशाल बिठा हूँ ...
12 घंटे पहले