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शनिवार, 21 सितंबर 2019

ब्लॉगिंग के 11 वर्ष !

ब्लॉगिंग के 11 वर्ष !

                                     वह साल 2008 का था जब मेरा ब्लॉगिंग से परिचय हुआ था और वहीँ से दिशा मिली थी खुद को अपनी मर्जी से प्रकाशित करने की सुविधा।  इसमें ये कोई चिंता नहीं थी कि कोई पढ़ेगा या नहीं फिर भी धीरे धीरे लोग पढ़ने लगे और उस समय चल रहे ब्लॉग की सूचना देने वाले एग्रीगेटर थे और आज भी है जो  ब्लॉग के लिखने और उसके प्रकाशित होने की सूचना सबको देते थी। "हमारी वाणी" ने बहुत काम किया।
                      कई वर्षों तक ब्लॉग अपने चरम पर थे, हमारे पास समय भी था और सब  नियमित लिखते थे।  आलोचना , समालोचना , बहस से लेकर सब कुछ होता था फिर भी वह एक मंच है , जहाँ पर सब एक दूसरे को पढ़ते थे और नहीं भी पढ़ पाते थे तो कोई शिकायत जैसी  बीच नहीं थी।  एक परिवार की तरह से थे हम और आज भी ब्लोगर्स के बीच वही भावना है।  कभी भी किसी को पुकारों उत्तर जरूर देता है।  वह रिश्ते क्यों इतने गहरे थे क्योंकि उसे समय तू मुझे दे और मैं तुझे दूँ ऐसा नहीं था।  जब जिसको जहाँ समय मिला पढ़ लिया और नहीं मिला तो नहीं पढ़ पाए।  फेसबुक का मंच आया तो इसने सेंध लगा दी ब्लॉग में।  तुरंत लिखना और तुरंत पाठकों की प्रतिक्रिया मिलाने का खेल सबको अधिक भाया और फिर वही मंच पकड़ लिया।  हजारों की संख्या में मित्र बन गए लेकिन वे कितना आपसे जुड़े हैं इसके लिए आप अंदाज नहीं लगा सकते हैं।  नाम के मित्रों का मजमा लगा रहता है। उससे बड़ा झटका तब लगा जब हर हाथ में स्मार्ट फोन आ गया और फिर उसमें हिंदी लिखने की सुविधा भी मिल गयी।  इस हालत में ब्लॉग पर कौन जाए ? एक बार में फेसबुक खोली और चेप दिया।  हर हाथ में मोबाइल और हर हाथ में फेसबुक ने ब्लॉग को बुरी तरह से झटका दिया।  ब्लॉग पर सभी अर्थ पूर्ण पढ़ने के आदी थे और वहां लिखा भी वही जाता था। सही अर्थों में ब्लॉग में फेसबुक ने सेंध लगायी और हम उससे खुद ब खुद दूर होते गए।  कुछ समर्पित ब्लॉगर आज भी उतनी ही लगन से अपने ब्लॉग को चला रहे हैं और फेसबुक को भी भी दे रहे हैं।
                         अरे मैं फेसबुक की आलोचना करने में लग गयी।  हमारे ब्लॉग ने हमें जितना बड़ा संसार दिया उसके लिए मैं शुक्रगुजार हूँ।  डायरियों में बंद पड़ी रचनाएँ , जो खो चुकी थी पन्नों के ढेरों में, फिर से मंच पर आ गयी।  सबने मुझे दिशा दी , सिखाया क्योंकि मैं काम जरूर कंप्यूटर साइंस विभाग में थी और सारे दिन सिर्फ डेस्कटॉप पर होते थे और तब हमें नेट सुविधा उपलब्ध नहीं थी।  ईमेल आई डी जरूर थी और मैं से काम चल जाता था।  बाद में नेट सुविधा मिलने पर जुडी , लेकिन इस ब्लॉग के टिप्स से मैं अपरिचित थी।  धीरे धीरे हमारी मित्रों ने मुझे दिशानिर्देश दिया और फिर धीरे धीरे सब तो नहीं हाँ कुछ तो करना आ ही गया।
                         बीच में साथ छूट गया था लेकिन फिर उस मंच की गरिमा और उसके महत्व को स्वीकार करते हुए , उस पर लिखना शुरू कर दिया है।  बहुत सारी  सामग्री है जिसको अभी लिखना शेष है। अपने ब्लॉग का महत्व समझें तो ये एक ऑनलाइन डायरी है , किताब है जो सबके लिए उपलब्ध है।  जो ब्लॉग़र बंधु और बहने इससे दूर हैं वो वापस आ  जाय और फेसबुक को मंच बनाने वाले भी अपने को इसा पर संचित रख सकते हैं।
                       ग्यारह वर्ष में एक काम २०१२ में किया था और वह भी अपने सभी ब्लॉगर साथियों के सहयोग से , उसको पुस्तकाकार देने का कार्य चल रहा है , जो मेरे ब्लॉगर होने के नाते ब्लॉगर साथियों के संस्मरण को संचित कर सबके सामने लाने का प्रयास है।  "अधूरे सपनों की कसक " विषय को लेकर अंदर पलने वाली कसक को उजागर किया है।  भले ही वो कसक अब कोई मायने नहीं रखती लेकिन जीवन के लिए देखे सपने एक धरोहर तो हैं ही इस जीवन के।  मेरे उस सपने को साकार करने में भी हमारे ब्लॉगर साथियों का सहयोग है और उनकी मैं शुक्रगुजार हूँ।

रविवार, 15 सितंबर 2019

बेटियों का दंश (५) !

        लोगों ने जीना हराम कर दिया।  तरह तरह के सवाल कभी कभी हमें खुद अपराधबोध कराने लगे थे।
--पांच पांच लड़कियां है कब  करेंगे शादी ?
--अरे बेटियों की कमाई खा रहे हैं पैसा किसे बुरा लगता है ?
--हमें लगता है कि इन लोगों के पास पैसा नहीं है , लड़कियां कमा कर इकठ्ठा कर लेंगी तो कर देंगे।
-- इन लोगों को रात में नींद कैसे आती है ? जवान लड़कियां घर में बैठी हैं। 

                 कोई किसी से कहता तो दूसरा आकर हमें बताता या फिर खुद अपने मन से गढ़ कर बताता।  जो भी हो हम बहुत शांत भाव से सुन लेते और कह देते कि कुछ चीजें इंसान के वश में नहीं होती , जब भाग्य साथ देगा तो सब हो जाएगा। अंदर ही अंदर ये बातें सुन मन कभी कभी खुद को दोषी ठहराने लगता.।
                 फरवरी २०१० में बड़ी  बेटी की शादी पक्की हुई। अंतर्जातीय थी कर्नाटक के रहने वाले थे।   प्रश्न उठे और सिर  पटक कर दम तोड़ गए। हमने वहीँ जाकर शादी की थी और फिर अनुभव किया कि हमारे उत्तर भारत में जैसे लड़की का पिता और उसके पक्ष के लोग "बेचारे " बने लडके  वालों के नखरे उठाया करते हैं।  वहां ऐसा कुछ भी न था।  सारा इंतजाम उन्होंने ही किया था और सम्मान भी पूरा किया।

बड़ी बेटी ऋतु  और दामाद विनय केशव

                अभी तो चार बाकी हैं , फिर वही एक से गिनती गिनना शुरू करना था।  दूसरे नंबर की बेटी लम्बे समय के लिए यू एस में रही  कंपनी के काम से , और लोगों को लगा कि हम चुपचाप बैठे हैं।  खोज जारी थी दूसरे और तीसरे नंबर की बेटियों के लिए।  तीसरी भी तब तक  अपनी पढाई पूरी करके दिल्ली में जॉब करने लगी थी।शायद विवाह की कोई भी ऐसी साइट नहीं थी जिस पर मैंने उसका विज्ञापन न दे रखा हो।  आज भी वह डायरी मेन्टेन करके रखी है। 
             इसी बीच मेरी छोटी बेटी का चयन भी IPH   दिल्ली में ही हो गया और उससे बड़ी वाली की इंटर्नशिप चल रही थी । 
                    दिल्ली में लडके देखने की जिम्मेदारी मैंने अपने मानस पुत्र हरीश को दे रखी थी। चूँकि वह दिल्ली में जॉब कर रही थी तो मेरी प्राथमिकता यही थी कि वही एनसीआर में कोई लड़का मिले तो अच्छा है। फिर हरीश ने एक लड़का बताया जो महाराष्ट्रीय था और ये बात मेरे पतिदेव को बिलकुल भी पसंद न थी। हरीश ने बहुत समझाया क्योंकि वह कई रिश्तों के लिए दौड़ रहा था और हर जगह कभी मेरी बेटी की पांच फुट लम्बाई और कभी उसका रंग आड़े आ रहा था।  कोई बीस लाख की शादी करने पर समझौता करने को तैयार था।  पहली दो चीजों को तो हम बदल नहीं सकते थे।हमारे पास इतने सारे पैसे भी नहीं थे कि हम लाखों दहेज़ में देकर शादी कर पाते।  
                     वह लड़का उसके पापा के विभाग एनपीएल से डॉक्ट्रेट करके पुर्तगाल में पोस्ट डॉक्ट्रेट फ़ेलोशिप लेकर काम कर रहा था।  उससे भी हरीश ने संपर्क साध रखा था और फिर हम लोगों से कहा।  किसी तरह से पतिदेव नागपुर लडके के घर वालों से मिलने को तैयार हुए।  उससे पहले उन्होंने अपने सभी मित्रों और रिश्तेदारों से इस पर चर्चा कर ली और सब से पॉजिटिव उत्तर मिलने के बाद वह तैयार हुए।  
                         उसके बाद  सब कुछ ठीक रहा और शादी पक्की हो गयी।  शादी की तिथि हमने करीब ग्यारह महीने  के बाद रखी क्योंकि इससे पहले पवन को छुट्टी भी न मिलती और हमारी दूसरे नंबर की बेटी के लिए वर खोजने समय भी मिल जाता क्योंकि संयुक्त परिवार में बड़ी बैठी रहे और छोटी की शादी जो जाए एक बड़ा प्रश्न बन जाता है।  उसको यूएस से वापस आने को कहा गया और फिर खोज शुरू हुई।  भाग्य ने साथ दिया और उसकी भी शादी पक्की हो गयी। 
                 मेरी बेटी की शादी के लिए पवन के परिवार ने हमें पूरा पूरा सहयोग किया बल्कि वहां पर मेरे चचेरे भाई के होने से सारी जिम्मेदारी उसने संभाल रखी थी। हमें बड़ा आश्चर्य हुआ और बड़े सुखद अनुभव भी हुए और अहसास हुआ कि लड़की वाले भी इज्जत पाने के हक़दार होते हैं।  हमें कहीं न लगा कि हम निरीह बेटी वाले हाथ जोड़े खड़े हैं ।
      दहेज़ हमारे पास देने को न था और न उन्होंने कुछ माँगा। मन से बड़े ही सहृदय लोग हमने पाये। शादी हम दोनों की रस्मों के अनुसार नवम्बर 2011 सम्पन्न हो गयी। दूसरे नं की बेटी की फरवरी 2012 में हुई ।
                         तीन बेटियों की शादी दो साल के अंदर हो गयी तो लोगों के मुंह बंद हो गए।  बाद की दोनों छोटी थी अभी पढ़ रही थीं सो कुछ दिन के लिए सब कुछ शांत हो गया।  एक बात और कि तीनों बड़ी के बीच दो दो साल का अंतर था और चौथी पाँच साल छोटी थी

             चौथी बेटी की शादी 2014 फरवरी में हो गई । सब कुछ ऊपर वाले की मर्जी से हो रहा था । उसकी जॉब भी दिल्ली में ही थी और दामाद की गुड़गांव में । बस अब एक रह गई थी । वह मुम्बई के सरकारी संस्थान से BSLP .का कोर्स कर रही थी । उसके वहीं से मास्टर्स के दौरान ही डॉक्टर लड़का मिल गया और उसकी पढ़ाई पूरी होते है 2016 में उसकी भी शादी हो गई ।

     आज बड़ी अपने पति व बेटे के साथ यूएस में , उससे छोटी अपने परिवार के साथ आस्ट्रेलिया , तीसरी नागपुर , चौथी दिल्ली और पाँचवी झाँसी में अपना क्लीनिक चला रही है । हमें बेटियाँ देकर दामाद नहीं पाँच बेटे मिले और पाँच नाती भी मिल गये । 
            जमाने का दंश जी लिया , अब चिंतामुक्त हूँ।

गुरुवार, 12 सितंबर 2019

राजभाषा हिंदी का सफर : संविधान से प्रयोग तक !

राजभाषा हिंदी का सफर : संविधान से प्रयोग तक !

                                       हिंदी को संविधान में राजभाषा का स्थान प्राप्त हुए 69 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं और अगर हम गंभीरता से इस बार विचार करें तो ये पायेंगे कि इतने वर्षों में अगर इस लक्ष्य की और हमने एक कदम भी बढ़ाया होता तो मंजिल के बहुत करीब होते।  हमने तो सिर्फ दशकों में उसे अधिनियम में परिवर्तन किया और कुछ परिवर्तन भी नहीं किया बल्कि उसको गोल गोल घुमा कर वहीँ ला कर रख दिया गया।  हमने इसको इतने वर्षों में इस दिशा में कार्य करने सितम्बर माह की 14 तारीख , प्रथम पखवारा , अंतिम पखवारे तक सीमित कर दिया है।  प्रयास चाहे सरकारी हों या  संस्थानीय , अगर निरंतर प्रयास किया गया होता या फिर हम आज भी करें तो सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं।  अच्छे कार्य  के लिए देर कभी भी नहीं होती है।  अब भी सिर्फ राजभाषा के लिए नहीं अपितु हिंदी भाषा के लिए प्रगति और उसको गतिमान बनाये रखने की दिशा में हम बहुत काम कर चुके होते।
                       सरकार ने नीतियां बनाई लेकिन राजभाषा के साथ अंग्रेजी को हमेशा जोड़े रखा , आखिर क्यों ? अंग्रेजी हमारी देश की किसी भी राज्य की मातृभाषा नहीं है।  इसको तमिलनाडु की राजभाषा घोषित क्यों गया ? वहां की अपनी मातृभाषा है।  संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाएं पास करके   समस्त  राज्यों से अधिकारी बनते हैं तो फिर उन समस्त विषयों के साथ राजभाषा की परीक्षा अनिवार्य क्यों नहीं रखा गया क्योकि नौकरशाही और राजनीतिक महत्वाकांक्षा हिंदी को उसका   समुचित स्थान देने के लिए प्रतिबद्ध हुए ही नहीं है।
                           
                  हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में १४ सितम्बर सन् १९४९ को स्वीकार किया गया। इसके बाद संविधान में अनुच्छेद ३४३ से ३५१ तक राजभाषा के साम्बन्ध में व्यवस्था की गयी। इसकी स्मृति को ताजा रखने के लिये १४ सितम्बर का दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। केंद्रीय स्तर पर भारत में दूसरी सह राजभाषा अंग्रेजी है।

धारा ३४३(१) के अनुसार भारतीय संघ की राजभाषा हिन्दी एवं लिपिदेवनागरी है। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिये प्रयुक्त अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप (अर्थात 1, 2, 3 आदि) है।

              हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था।[2][3] संसद का कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है। परन्तु राज्यसभा के सभापति महोदय या लोकसभा के अध्यक्ष महोदय विशेष परिस्थिति में सदन के किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकते हैं। {संविधान का अनुच्छेद 120} किन प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाना है, किन के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का प्रयोग आवश्यक है और किन कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाना है, यह राजभाषा अधिनियम 1963, राजभाषा नियम 1976 और उनके अंतर्गत समय समय पर राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय की ओर से जारी किए गए निदेशों द्वारा निर्धारित किया गया है।
        
हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किये जाने का औचित्य

हिन्दी को राजभाषा का सम्मान कृपापूर्वक नहीं दिया गया, बल्कि यह उसका अधिकार है। यहां अधिक विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है, केवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा बताये गये निम्नलिखित लक्षणों पर दृष्टि डाल लेना ही पर्याप्त रहेगा, जो उन्होंने एक ‘राजभाषा’ के लिए बताये थे-

(१) अमलदारों के लिए वह भाषा सरल होनी चाहिए।(२) उस भाषा के द्वारा भारतवर्ष का आपसी धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवहार हो सकना चाहिए।(३) यह जरूरी है कि भारतवर्ष के बहुत से लोग उस भाषा को बोलते हों।(४) राष्ट्र के लिए वह भाषा आसान होनी चाहिए।(५) उस भाषा का विचार करते समय किसी क्षणिक या अल्प स्थायी स्थिति पर जोर नहीं देना चाहिए।

इन लक्षणों पर हिन्दी भाषा बिल्कुल खरी उतरती है।
           
अनुच्छेद 343 संघ की राजभाषा

(१) संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।(२) खंड (१) में किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था, परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान, आदेश द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा का और भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।(३) इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, संसद उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि के पश्चात्‌, विधि द्वारा(क) अंग्रेजी भाषा का, या(ख) अंकों के देवनागरी रूप का,

ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएं।

अनुच्छेद 351 हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश

संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिंदुस्थानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।

राजभाषा संकल्प, 1968

भारतीय संसद के दोनों सदनों (राज्यसभा और लोकसभा) ने १९६८ में 'राजभाषा संकल्प' के नाम से निम्नलिखित संकल्प लिया-

1. जबकि संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी रहेगी और उसके अनुच्छेद 351 के अनुसार हिंदी भाषा का प्रसार, वृद्धि करना और उसका विकास करना ताकि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सब तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम हो सके, संघ का कर्तव्य है :

यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी के प्रसार एंव विकास की गति बढ़ाने के हेतु तथा संघ के विभिन्न राजकीय प्रयोजनों के लिए उत्तरोत्तर इसके प्रयोग हेतु भारत सरकार द्वारा एक अधिक गहन एवं व्यापक कार्यक्रम तैयार किया जाएगा और उसे कार्यान्वित किया जाएगा और किए जाने वाले उपायों एवं की जाने वाली प्रगति की विस्तृत वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट संसद की दोनों सभाओं के पटल पर रखी जाएगी और सब राज्य सरकारों को भेजी जाएगी।

2. जबकि संविधान की आठवीं अनुसूची में हिंदी के अतिरिक्त भारत की 21 मुख्य भाषाओं का उल्लेख किया गया है , और देश की शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि इन भाषाओं के पूर्ण विकास हेतु सामूहिक उपाए किए जाने चाहिए :

यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी के साथ-साथ इन सब भाषाओं के समन्वित विकास हेतु भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों के सहयोग से एक कार्यक्रम तैयार किया जाएगा और उसे कार्यान्वित किया जाएगा ताकि वे शीघ्र समृद्ध हो और आधुनिक ज्ञान के संचार का प्रभावी माध्यम बनें।

3. जबकि एकता की भावना के संवर्धन तथा देश के विभिन्न भागों में जनता में संचार की सुविधा हेतु यह आवश्यक है कि भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों के परामर्श से तैयार किए गए त्रि-भाषा सूत्र को सभी राज्यों में पूर्णत कार्यान्वित करने के लिए प्रभावी किया जाना चाहिए :

यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी तथा अंग्रेजी के अतिरिक्त एक आधुनिक भारतीय भाषा के, दक्षिण भारत की भाषाओं में से किसी एक को तरजीह देते हुए, और अहिंदी भाषी क्षेत्रों में प्रादेशिक भाषाओं एवं अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी के अध्ययन के लिए उस सूत्र के अनुसार प्रबन्ध किया जाना चाहिए।

4. और जबकि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि संघ की लोक सेवाओं के विषय में देश के विभिन्न भागों के लोगों के न्यायोचित दावों और हितों का पूर्ण परित्राण किया जाए

यह सभा संकल्प करती है कि-(क) कि उन विशेष सेवाओं अथवा पदों को छोड़कर जिनके लिए ऐसी किसी सेवा अथवा पद के कर्त्तव्यों के संतोषजनक निष्पादन हेतु केवल अंग्रेजी अथवा केवल हिंदी अथवा दोनों जैसी कि स्थिति हो, का उच्च स्तर का ज्ञान आवश्यक समझा जाए, संघ सेवाओं अथवा पदों के लिए भर्ती करने हेतु उम्मीदवारों के चयन के समय हिंदी अथवा अंग्रेजी में से किसी एक का ज्ञान अनिवार्यत होगा; और(ख) कि परीक्षाओं की भावी योजना, प्रक्रिया संबंधी पहलुओं एवं समय के विषय में संघ लोक सेवा आयोग के विचार जानने के पश्चात अखिल भारतीय एवं उच्चतर केन्द्रीय सेवाओं संबंधी परीक्षाओं के लिए संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित सभी भाषाओं तथा अंग्रेजी को वैकल्पिक माध्यम के रूप में रखने की अनुमति होगी।
                  
                    
संगोष्ठी के उद्देश्य - 
• राजभाषा को दस्तावेजों से उठाकर वास्तव में प्रयोग करने की दिशा में कार्ययोजना तैयार करना
• ‎प्राथमिक स्तर से उच्चतर माध्यमिक स्तर तक हिंदी की अनिवार्यता पर विचार किया जाय।
• ‎शिक्षा के स्तर का समय समय और परीक्षण होना ज़रूरी है।
• ‎प्राथमिक शिक्षकों के हिंदी के ज्ञान के स्तर का परीक्षण के पश्चात नियुक्ति की जाय। अथवा नियुक्ति से पहले एक परीक्षा हिंदी व्याकरण आदि के ज्ञान पर आधारित पास करना अनिवार्य हो।
• ‎अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में भी स्कूलों में हिन्दी का पाठ्यक्रम सतही ना होकर सभी शिक्षा बोर्डों में समान हो, ताकि हिंदी को दोयम दर्जे का ना समझ जाये।
• ‎राजभाषा को इतने वर्षों में पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका है, संविधान में परिभाषित इसके सफर को इतने वर्ष बाद गति देने के विषय में विमर्श किया जाए।
• ‎अंग्रेजी को हिन्दी के स्थान और कुछ वर्षों तक रहने का प्राविधान किया गया था लेकिन आज भी अंग्रेजी ऊपर और हिन्दी नीचे है।
• ‎हिन्दी को समुचित स्थान पर लाने का प्रयत्न करना है।
• ‎अभिजात्य वर्ग की राजभाषा को उसके स्थान से चित्त रखने में भूमिका पर विचार।
• ‎विश्व के पटल पर छायी रहने वाली हिन्दी और देश में प्रयोग होने वाली हिन्दी का स्थान सुनिश्चित कैसे हो। सोशल मीडिया द्वारा हिन्दी को विकृत करने की दिशा में उसकी भूमिका पर विमर्श एवं अंकयश पर प्रस्ताव।
• ‎राजभाषा को मिलने वाले अनुदान पुरस्कार तथा अन्य सहायता का समुचित प्रयोग।

   इतने वर्षों में यदि शिक्षा के स्तर पर हिंदी को देखा जाय तो मीडिया , मोबाइल और नेट से उपलब्ध सामग्री ने गहन ज्ञान में सेंध लगाई है । हिंदी का स्वरूप बिगड़ रहा है । न स्कूली शिक्षा में , न कार्यालयीन कार्यों में । जितने वर्ष हमने  हिंदी माह , पखवाड़ा, सप्ताह और दिवस मना रहे हैं , उतना ही हिंदी को प्राथमिकता देते तो ये दिवस बेमानी हो चुका होता ।
            

मंगलवार, 3 सितंबर 2019

ओणम्

ओणम्
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       भारत भूमि पर अनेक धर्म और मतों के लोग रहते हैं और सबके अपने अपने त्यौहार हैं । कुछ त्यौहार सम्पूर्ण देश में मनाये जाते हैं और कुछ राज्य विशेष में अपनी अपनी आस्था के अनुरूप भी मनाये जाते हैं । ओणम् एक ऐसा ही त्यौहार है , जो केरल राज्य में मनाया जाता है और जो प्राचीन पौराणिक कथा के कथानक को जीवंत करते हुए मनाते हैं ।
        ओणम् मलियाली पंचांग के अनुसार वर्ष के पहले महीने चिंगम में जब थिरुवोनम नक्षत्र आता है तभी मनाया जाता है । यह दस दिनों का त्यौहार होता है और इसमें दीपावली के समान ही कुछ परम्परायें होती हैं । 
      वैसे तो इसको किसानों और नयी फसल से जोड़ कर भी माना गया है लेकिन यह सम्पूर्ण प्रदेश में हर्षोल्लास से मनाया जाता है । इसकी महत्ता देखते हुए इसे केरल राज्य का राष्ट्रीय त्यौहार घोषित किया गया है और इस अवसर पर चार दिनों की छुट्टी होती है । यह अगस्त और सितम्बर के मध्य दस दिन का पर्व होता है और प्रत्येक दिन को अलग नाम दिया गया है और विशिष्ट रूप से उसकी तैयारी होती है । इसे चावल की फसल और वर्षा के फूलों का त्यौहार भी माना जाता है ।
   
   पौराणिक कथा 
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          इससे जुड़ी पौराणिक कथा राजा महाबली और भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है । तभी वामन देव ने महाबली का सारा राज्य दान में माँग कर उसे पातालवासी बना दिया था । यही मान्यता है कि ओणम् के दौरान राजा महाबली अपनी प्रजा से मिलने और उनकी खुशहाली देखने के लिए आते हैं । उन्हीं के सम्मान में यह मनाया जाता है ।
        ओणम् के दस दिनों को विशेष नामों से जाना जाता है और प्रत्येक दिन अलग अलग कार्य सम्पादित किये जाते हैं । 

ओणम् के दस दिनों के नाम --

ओणम् के दस दिनों को विशेष नामों से जाना जाता है और प्रत्येक दिन अलग अलग कार्य सम्पादित किये जाते हैं । 
1. अथं - यह पहला दिन होता है , जब राजा महाबली पाताल से केरल आने के लिए तैयार होते हैं ।
2 - चिथिरा - फूलों का काली बनाना शुरू किया जाता है ,जिसे पूवक्लम कहते हैं ।
3 - चोधी - पूवक्लम में विभिन्न फूलों की अगली परत चढा़ते हैं ।
4 - विशाका - इस दिन से विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं शुरू होती हैं ।
5 - अनिज्हम - नौका दौड़ की तैयारी शुरू होती है ।
6 - थ्रिकेता - छुट्टियाँ आरम्भ हो जाती हैं ।
7 - मूलम - मंदिरों में विशेष पूजा शुरू होती है ।
8 - पूरादम - महाबली और वामन की प्रतिमा स्थापित की जाती हैं ।
 9 - उठ्रादोम - इस दिन महाबली केरल में प्रवेश करते हैं ।
 10 - थिरुवोनम - मुख्य त्यौहार होता है ।
ओणम मनाने की पद्धति --
                इस पर्व की मुख्य धूम कोच्चि के थ्रिक्कारा मंदिर में रहती है । इसके विशेष आयोजन पूरे दस दिन तक होते रहते है , जिनमें नाच गाना , पूजा आरती , मेला आदि होता है । इसको देखने के लिए देश - विदेश से सैलानीआते हैं ।
    ओणम में फूलों का विशेष कालीन बनाया जाता है  - जिसे पूवक्लम पहते हैं , इसमें फूलों की परत रोज चढ़ाई जाती है ।
      इसमें विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है । इनमें केरल के लोक नृत्यों जैसे -- थिरुवातिराकाली , कुम्मात्तिकाली,कथकली , पुलिकाली आदि का विशेष आयोजन होता है ।
    इस त्यौहार में नौका दौड़ प्रतियोगिता  , जिसे वल्लाम्काली कहते है, की तैयारी जोर शोर से होती है । यह ओणम के बाद होती है लेकिन तैयारियाँ शुरू हो जाती है । यह विश्व प्रसिद्ध नौका दौड़ सिर्फ केरल में होती है और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र होती है ।
        ओणम्  चावल के घोल से घर के बाहर सजाया जाता है , घर को दीपावली की तरह रोशनी से सजाया जाता है ।
       ओणम चूंकि महाबली से जुड़ा त्यौहार है इस लिए दान का विशेष महत्व होता है । गरीबों को दान दिया जाता है ।
      ओणम के आठवें दिन महाबली और वामन की प्रतिमायें स्थापित की जाती हैं । उनकी पूजा अर्चना की जाती है ।
       ओणम के आखिरी दिन बनने वाले व्यंजनों को 'ओणम सद्या' कहते हैं , इसमें 26 प्रकार के व्यंजन बनाये जाते हैं और केले के पत्तों में परोसे जाते हैं ।
             वैसे तो ओणम दस दिनों का त्यौहार होता है किन्तु इसके बाद दो दिन और मनाया जाता है । इन दिनों में पहले दिन महाबली और वामन की प्रतिमाओं का विसर्जन होता है और दूसरे दिन पूवक्लम को साफ किया जाता है ।