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गुरुवार, 12 सितंबर 2019

राजभाषा हिंदी का सफर : संविधान से प्रयोग तक !

राजभाषा हिंदी का सफर : संविधान से प्रयोग तक !

                                       हिंदी को संविधान में राजभाषा का स्थान प्राप्त हुए 69 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं और अगर हम गंभीरता से इस बार विचार करें तो ये पायेंगे कि इतने वर्षों में अगर इस लक्ष्य की और हमने एक कदम भी बढ़ाया होता तो मंजिल के बहुत करीब होते।  हमने तो सिर्फ दशकों में उसे अधिनियम में परिवर्तन किया और कुछ परिवर्तन भी नहीं किया बल्कि उसको गोल गोल घुमा कर वहीँ ला कर रख दिया गया।  हमने इसको इतने वर्षों में इस दिशा में कार्य करने सितम्बर माह की 14 तारीख , प्रथम पखवारा , अंतिम पखवारे तक सीमित कर दिया है।  प्रयास चाहे सरकारी हों या  संस्थानीय , अगर निरंतर प्रयास किया गया होता या फिर हम आज भी करें तो सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं।  अच्छे कार्य  के लिए देर कभी भी नहीं होती है।  अब भी सिर्फ राजभाषा के लिए नहीं अपितु हिंदी भाषा के लिए प्रगति और उसको गतिमान बनाये रखने की दिशा में हम बहुत काम कर चुके होते।
                       सरकार ने नीतियां बनाई लेकिन राजभाषा के साथ अंग्रेजी को हमेशा जोड़े रखा , आखिर क्यों ? अंग्रेजी हमारी देश की किसी भी राज्य की मातृभाषा नहीं है।  इसको तमिलनाडु की राजभाषा घोषित क्यों गया ? वहां की अपनी मातृभाषा है।  संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाएं पास करके   समस्त  राज्यों से अधिकारी बनते हैं तो फिर उन समस्त विषयों के साथ राजभाषा की परीक्षा अनिवार्य क्यों नहीं रखा गया क्योकि नौकरशाही और राजनीतिक महत्वाकांक्षा हिंदी को उसका   समुचित स्थान देने के लिए प्रतिबद्ध हुए ही नहीं है।
                           
                  हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में १४ सितम्बर सन् १९४९ को स्वीकार किया गया। इसके बाद संविधान में अनुच्छेद ३४३ से ३५१ तक राजभाषा के साम्बन्ध में व्यवस्था की गयी। इसकी स्मृति को ताजा रखने के लिये १४ सितम्बर का दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। केंद्रीय स्तर पर भारत में दूसरी सह राजभाषा अंग्रेजी है।

धारा ३४३(१) के अनुसार भारतीय संघ की राजभाषा हिन्दी एवं लिपिदेवनागरी है। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिये प्रयुक्त अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप (अर्थात 1, 2, 3 आदि) है।

              हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था।[2][3] संसद का कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है। परन्तु राज्यसभा के सभापति महोदय या लोकसभा के अध्यक्ष महोदय विशेष परिस्थिति में सदन के किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकते हैं। {संविधान का अनुच्छेद 120} किन प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाना है, किन के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का प्रयोग आवश्यक है और किन कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाना है, यह राजभाषा अधिनियम 1963, राजभाषा नियम 1976 और उनके अंतर्गत समय समय पर राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय की ओर से जारी किए गए निदेशों द्वारा निर्धारित किया गया है।
        
हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किये जाने का औचित्य

हिन्दी को राजभाषा का सम्मान कृपापूर्वक नहीं दिया गया, बल्कि यह उसका अधिकार है। यहां अधिक विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है, केवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा बताये गये निम्नलिखित लक्षणों पर दृष्टि डाल लेना ही पर्याप्त रहेगा, जो उन्होंने एक ‘राजभाषा’ के लिए बताये थे-

(१) अमलदारों के लिए वह भाषा सरल होनी चाहिए।(२) उस भाषा के द्वारा भारतवर्ष का आपसी धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवहार हो सकना चाहिए।(३) यह जरूरी है कि भारतवर्ष के बहुत से लोग उस भाषा को बोलते हों।(४) राष्ट्र के लिए वह भाषा आसान होनी चाहिए।(५) उस भाषा का विचार करते समय किसी क्षणिक या अल्प स्थायी स्थिति पर जोर नहीं देना चाहिए।

इन लक्षणों पर हिन्दी भाषा बिल्कुल खरी उतरती है।
           
अनुच्छेद 343 संघ की राजभाषा

(१) संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।(२) खंड (१) में किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था, परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान, आदेश द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा का और भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।(३) इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, संसद उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि के पश्चात्‌, विधि द्वारा(क) अंग्रेजी भाषा का, या(ख) अंकों के देवनागरी रूप का,

ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएं।

अनुच्छेद 351 हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश

संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिंदुस्थानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।

राजभाषा संकल्प, 1968

भारतीय संसद के दोनों सदनों (राज्यसभा और लोकसभा) ने १९६८ में 'राजभाषा संकल्प' के नाम से निम्नलिखित संकल्प लिया-

1. जबकि संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी रहेगी और उसके अनुच्छेद 351 के अनुसार हिंदी भाषा का प्रसार, वृद्धि करना और उसका विकास करना ताकि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सब तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम हो सके, संघ का कर्तव्य है :

यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी के प्रसार एंव विकास की गति बढ़ाने के हेतु तथा संघ के विभिन्न राजकीय प्रयोजनों के लिए उत्तरोत्तर इसके प्रयोग हेतु भारत सरकार द्वारा एक अधिक गहन एवं व्यापक कार्यक्रम तैयार किया जाएगा और उसे कार्यान्वित किया जाएगा और किए जाने वाले उपायों एवं की जाने वाली प्रगति की विस्तृत वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट संसद की दोनों सभाओं के पटल पर रखी जाएगी और सब राज्य सरकारों को भेजी जाएगी।

2. जबकि संविधान की आठवीं अनुसूची में हिंदी के अतिरिक्त भारत की 21 मुख्य भाषाओं का उल्लेख किया गया है , और देश की शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि इन भाषाओं के पूर्ण विकास हेतु सामूहिक उपाए किए जाने चाहिए :

यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी के साथ-साथ इन सब भाषाओं के समन्वित विकास हेतु भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों के सहयोग से एक कार्यक्रम तैयार किया जाएगा और उसे कार्यान्वित किया जाएगा ताकि वे शीघ्र समृद्ध हो और आधुनिक ज्ञान के संचार का प्रभावी माध्यम बनें।

3. जबकि एकता की भावना के संवर्धन तथा देश के विभिन्न भागों में जनता में संचार की सुविधा हेतु यह आवश्यक है कि भारत सरकार द्वारा राज्य सरकारों के परामर्श से तैयार किए गए त्रि-भाषा सूत्र को सभी राज्यों में पूर्णत कार्यान्वित करने के लिए प्रभावी किया जाना चाहिए :

यह सभा संकल्प करती है कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी तथा अंग्रेजी के अतिरिक्त एक आधुनिक भारतीय भाषा के, दक्षिण भारत की भाषाओं में से किसी एक को तरजीह देते हुए, और अहिंदी भाषी क्षेत्रों में प्रादेशिक भाषाओं एवं अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी के अध्ययन के लिए उस सूत्र के अनुसार प्रबन्ध किया जाना चाहिए।

4. और जबकि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि संघ की लोक सेवाओं के विषय में देश के विभिन्न भागों के लोगों के न्यायोचित दावों और हितों का पूर्ण परित्राण किया जाए

यह सभा संकल्प करती है कि-(क) कि उन विशेष सेवाओं अथवा पदों को छोड़कर जिनके लिए ऐसी किसी सेवा अथवा पद के कर्त्तव्यों के संतोषजनक निष्पादन हेतु केवल अंग्रेजी अथवा केवल हिंदी अथवा दोनों जैसी कि स्थिति हो, का उच्च स्तर का ज्ञान आवश्यक समझा जाए, संघ सेवाओं अथवा पदों के लिए भर्ती करने हेतु उम्मीदवारों के चयन के समय हिंदी अथवा अंग्रेजी में से किसी एक का ज्ञान अनिवार्यत होगा; और(ख) कि परीक्षाओं की भावी योजना, प्रक्रिया संबंधी पहलुओं एवं समय के विषय में संघ लोक सेवा आयोग के विचार जानने के पश्चात अखिल भारतीय एवं उच्चतर केन्द्रीय सेवाओं संबंधी परीक्षाओं के लिए संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित सभी भाषाओं तथा अंग्रेजी को वैकल्पिक माध्यम के रूप में रखने की अनुमति होगी।
                  
                    
संगोष्ठी के उद्देश्य - 
• राजभाषा को दस्तावेजों से उठाकर वास्तव में प्रयोग करने की दिशा में कार्ययोजना तैयार करना
• ‎प्राथमिक स्तर से उच्चतर माध्यमिक स्तर तक हिंदी की अनिवार्यता पर विचार किया जाय।
• ‎शिक्षा के स्तर का समय समय और परीक्षण होना ज़रूरी है।
• ‎प्राथमिक शिक्षकों के हिंदी के ज्ञान के स्तर का परीक्षण के पश्चात नियुक्ति की जाय। अथवा नियुक्ति से पहले एक परीक्षा हिंदी व्याकरण आदि के ज्ञान पर आधारित पास करना अनिवार्य हो।
• ‎अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में भी स्कूलों में हिन्दी का पाठ्यक्रम सतही ना होकर सभी शिक्षा बोर्डों में समान हो, ताकि हिंदी को दोयम दर्जे का ना समझ जाये।
• ‎राजभाषा को इतने वर्षों में पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका है, संविधान में परिभाषित इसके सफर को इतने वर्ष बाद गति देने के विषय में विमर्श किया जाए।
• ‎अंग्रेजी को हिन्दी के स्थान और कुछ वर्षों तक रहने का प्राविधान किया गया था लेकिन आज भी अंग्रेजी ऊपर और हिन्दी नीचे है।
• ‎हिन्दी को समुचित स्थान पर लाने का प्रयत्न करना है।
• ‎अभिजात्य वर्ग की राजभाषा को उसके स्थान से चित्त रखने में भूमिका पर विचार।
• ‎विश्व के पटल पर छायी रहने वाली हिन्दी और देश में प्रयोग होने वाली हिन्दी का स्थान सुनिश्चित कैसे हो। सोशल मीडिया द्वारा हिन्दी को विकृत करने की दिशा में उसकी भूमिका पर विमर्श एवं अंकयश पर प्रस्ताव।
• ‎राजभाषा को मिलने वाले अनुदान पुरस्कार तथा अन्य सहायता का समुचित प्रयोग।

   इतने वर्षों में यदि शिक्षा के स्तर पर हिंदी को देखा जाय तो मीडिया , मोबाइल और नेट से उपलब्ध सामग्री ने गहन ज्ञान में सेंध लगाई है । हिंदी का स्वरूप बिगड़ रहा है । न स्कूली शिक्षा में , न कार्यालयीन कार्यों में । जितने वर्ष हमने  हिंदी माह , पखवाड़ा, सप्ताह और दिवस मना रहे हैं , उतना ही हिंदी को प्राथमिकता देते तो ये दिवस बेमानी हो चुका होता ।
            

4 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-09-2019) को " हिन्दीदिवस " (चर्चा अंक- 3458) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  2. हिन्दी को राष्ट्रभाषा के पद पर सिंहासनारूढ़ करने की शर्त कि,'भारत का एक भी राज्य जब तक हिन्दी को नहीं चाहेगा, वह राज्यभाषा नहीं बन सकती’ इसे हटाना जाना अब जरुरी है, तभी हिंदी को वास्तविक रूप से राष्ट्रभाषा कहलाएगी।
    बहुत अच्छी जानकारी और चिंतन प्रस्तुति

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  3. बहुत ही बढ़िया दीदी ,सच कहा हिंदी को जो स्थान और सम्मान मिलना चाहिए नही मिला ,नमस्ते

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ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जो मन में होता है आपसे उजागर कर देते हैं. आपकी राय , आलोचना और समालोचना मेरा मार्गदर्शन और त्रुटियों को सुधारने का सबसे बड़ा रास्ताहै.