सांसदों के वेतन और भत्ते में वृद्धि - एक अहम् मुद्दा जिसे संसद में फिलहाल टाल दिया गया है. बाकी मुद्दे पीछे हैं, कोई एक मत नहीं हो पाटा है. बहिर्गमन, निष्कासन और बहुत सारे कार्य होते हैं , जिससे हमारी संसद सिर्फ देश में ही नहीं विदेश में भी चर्चित हो जाती है. यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर पूरी संसद एकमत है. आखिर ऐसा क्यों? न पक्ष और न विपक्ष का कोई असहयोग क्योंकि इससे सभी लाभान्वित होने वाले हैं. तब देश के सारे मुद्दे एक किनारे हो जाते हैं. चोर चोर मौसेरे भाई.
उन्हें रहना, फ़ोन, बिजली यात्रा सभी सुविधाएँ मुफ्त प्राप्त होती हैं. उनका वेतन और दैनिक भत्ता इतना होता है कि उनके लिए कम तो नहीं कहा जाएगा. इस पर भी कल ये दलील पेश की गयी कि -- क्या वाकई सांसदों के वेतन और भत्ते इतने काम हैं की उनको अपने सार्वजनिक जीवन और जन संपर्क के कार्यों में पूरा नहीं पड़ पाता है.
'सांसदों से ईमानदारी की अपेक्षा करना जितना जरूरी है, उतना ही व्यवहारिक बातों पर ध्यान देना भी. जिस तरह से मंहगाई बढ़ रही है, उसमें सांसदों के वेतन भत्ते बढ़ाना बिल्कुल जायज है.'
ये सांसद कितने प्रतिशत एक बार चुनाव जीतने के बाद अपने चुनाव क्षेत्र में जाते हैं. इनको संसद सत्र के अतिरिक्त कभी भी समय नहीं होता है. संसद में प्रश्न पूछने के लिए उन्हें अपने ही क्षेत्र से घूस चाहिए तब वे संसद में मुद्दे उठाएंगे क्योंकि उनका खर्च पूरा नहीं पड़ रहा है. कोई सांसद राज्य सभा में चुनाव के लिए अपने मत की कीमत १ करोड़ रुपये लगाता है और कोई ५० हजार. ये कमाई के अतिरिक्त साधन हैं जो कि उनको एक सांसद होने के नाते प्राप्त हैं.
अगर उनके इतर खर्चों पर निगाह डालें तो पता चलता है कि ये कुछ विधायक और सांसद जब तक दो चार हत्याकांड में वांछित न हों उनका दबदबा कम ही रहता है और इस दबदबे के लिए कई कई गुर्गों को पालने का खर्चा भी तो होता है. उसको भी शामिल किया जाना चाहिए .
कभी इन सांसदों ने सोचा है कि अपने क्षेत्र कि समस्याओं पर भी इसमें से कुछ खर्च कर दिया जाय. सांसद निधि से वे क्या करवाते हैं? दो मीटर सड़क बनवा दी और एक बड़ा सा पत्थर प्रमाण के लिए लगवा दिया गया चाहे उससे जुड़ी सड़क पानी और कीचड से भरी ही क्यों न पड़ी हो? इसके लिए भी उनके चमचों को पहुँच होती है. नहीं तो ये सांसद आम आदमी कि समस्याओं से दो चार कब होते हैं? हाँ ये जरूर सुनने को मिल जाता है कि इस बार आप हमें जिताइये हम आपकी ये सड़क पक्की करवा देंगे और नाली पानी की व्यवस्था जरूर सही करवा देंगे और फिर सब चमचों का राज.
इस जगह एक ऐसे सांसद का उल्लेख मैं जरूरी समझती हूँ जो कि इटावा के जसवंत नगर क्षेत्र से सांसद थे . अपने कार्यों और जन सेवा के बल पर सांसद बने. अपना सम्पुर्ण जीवन सेवा कार्य में लगाया . अपने परिवार के लिए इतना भी नहीं कर पाए कि उनके बाद पत्नी को कार्य न करना पड़े. उनकी पत्नी आज भी कपड़ों पर प्रेस करके अपना जीवन यापन कर रही हैं. (दैनिक जागरण में प्रकाशित खबर के आधार पर.)
कभी इन्होने ये सोचा है कि ६०-७० कि उम्र में काम करके पेट पालने वाले पुरुषों और महिलाओं के लिए ऐसे कार्य संचालित करवा सकें के वे घर में बैठ कर खाना खा सकें. इस उम्र में दूसरों के घर में जाकर काम करने की सामर्थ्य न होने पर भी वे मजबूर हैं. इस उम्र के बुजुर्ग रिक्शा खींच कर अपना और पत्नी का पेट पाल रहे हैं. उनका कोई वेतन नहीं होता और कोई भी भत्ता नहीं होता. अगर रिक्शा नहीं चलाएंगे तो रोती नहीं खा सकेंगे .
ये हमारे जन प्रतिनिधि हैं और सिर्फ अपना और अपना ही हित सोचते हैं जिन्हें अपने वेतन और भत्तों की चिंता है आम इंसां की नहीं.
मंगलवार, 17 अगस्त 2010
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