सोशल मीडिया डे !
पहले से तो मुझे इस बारे में ज्ञात नहीं था कि सोशल मीडिया डे नाम से कोई दिवस भी मनाया जाता है। बहुत अच्छे प्लेटफॉर्म हैं यहाँ पर , लेकिन उन पर अगर विचार करें तो इसने हमारी सामान्य दिनचर्या या सामाजिक जीवन का सर्वनाश कर दिया है, लेकिन हर क्षेत्र में ऐसा ही हो रहा है ऐसा नहीं है। कोई भी सामाजिक सरोकार से जुड़ी हुई सुविधा सदैव अच्छी ही या बुरी ही नहीं होती है। यह तो हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम उसको किस तरह से प्रयोग कर रहे हैं। उसका उपयोग या दुरुपयोग कर रहे हैं। न तो विज्ञानं दोषी है और न कोई सुविधा बस हमारा ही विवेक उसका गुलाम हो चुका है। चलिए हम कुछ बिंदुओं पर विचार ही करते चलें।
उपयोगी बिंदु :--
* सोशल मीडिया ने दूरदराज बैठे लोगों के मध्य एक सेतु बन कर उनके विचारों के आदान प्रदान के लिए एक मंच प्रस्तुत किया है।
*कितनी जानकारियाँ जिनसे एक आम आदमी परिचित ही नहीं है उससे अवगत कराया। उनके ज्ञान का विस्तार होने लगा।
* इतिहास बन चुके साहित्य, ज्ञानकोष, जो कि प्रिंट मीडिया ने अब छापने बंद कर दिए थे। दूसरों शब्दों में कहैं तो कालातीत हो चुके थे। इस सोशल मीडिया ने उनको खोज कर या फिर प्रबुद्ध लोगों ने उसको यहाँ पर लोड करके सर्व सुलभ बना दिया।
*बच्चों या बड़ों में सोई पड़ी प्रतिभा - लेखन, चित्रकारी , होम डेकोरेशन , बागवानी , शिल्प सभी तरह की चीजों को मंच मिला। दूसरे लोग भी इससे फायदा उठाने लगे हैं।
* कुछ सामाजिक, सांस्कृतिक ,साहित्यिक संगठनों का निर्माण हुआ और उससे पूरे विश्व से लोगों ने जुड़ कर उसको समृद्ध बनाया। उनके कार्य पटल पर आने लगे। भाषा और संस्कृति को समझने समझाने में भी एक अच्छा मंच बन चुका है।
*गृहणियों के लिए भी एक अच्छा मंच मिला , वे सिर्फ घर में रहकर घर तक ही सीमित रह गयीं थी। उनकी उच्च शिक्षा , ज्ञान और कला जो घर की चहारदीवारी में दम तोड़ रही थी , उसको सही स्थान मिला और उससे वे कुछ क्षेत्रों में आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी होने लगी।
*छात्रों के लिए अपनी पढाई के लिए विश्व के साहित्य या पठन पाठन के लिए उपयोगी सामग्री भी प्राप्त होना सुलभ हो गया। हर छात्र के लिए सन्दर्भ पुस्तकें खरीदना संभव नहीं होता है तो वे सोशल मीडिया से सब आसानी से प्राप्त कर लेते हैं।
*किसी भी दुर्घटना के बारे में कभी कभी सोशल मीडिया से ही पता चल जाता है और पीड़ित को समय से सहायता भी मिल जाती है , जो उसके जीवन को बचा भी लेती हैं।
*अवसाद में गिरे हुए कितने लोग ये बात अगर सोशल साइट पर शेयर करके गलत कदम उठाने लगते हैं तो कई बार वे समय से बचा भी लिए जाते हैं।
*खोये हुए बच्चे या भटके हुए बुजुर्ग भी कभी कभी इसके द्वारा सही स्थान पर मिल जाते हैं। बरगला कर भगाये हुए बच्चे भी इससे पकड़ लिए जाते हैं।
अनुपयोगी बिंदु :--
*सबसे अधिक दुरूपयोग इसका अपराधी प्रवृत्ति के लोग करने लगे हैं। फेसबुक जैसे मंच से दोस्ती करके के बाद मैसेंजर पर जाकर स्त्रियाँ पुरुषों और पुरुष स्त्रियों को गलत ढंग से बातचीत करने के लिए फ़ोन मिलाने लगे हैं या फिर मैसेज के द्वारा ही उनसे अश्लील बातचीत करने लगते हैं। इसमें सिर्फ एक नहीं बल्कि दोनों ही होते हैं बल्कि ये भी होता है कि पुरुष होकर अपनी प्रोफाइल महिला के नाम से बना कर बात करते हैं और महिलाओं से ही गलत व्यवहार करने लगते हैं। ये सबसे बड़ी समस्या है और इसका कोई निदान भी नहीं है सिवाय इसके की पीड़ित पक्ष उसको अपने मित्र श्रेणी से बाहर कर दे या फिर अपना मैसेंजर ही लॉक कर दे।
*घरेलू महिलायें, बच्चों की देखरेख करने वाली सहायिकायें इसका दुरूपयोग करके छोटे छोटे बच्चों के सामने राइम या गेम खोल कर रख देती हैं और वे पाने काम में लगी रहती हैं। अपनी सुविधा के लिए वे बच्चों को इसका आदी बना देती हैं और फिर बच्चा खाना भी उसके साथ ही खायेगा। इसके दुष्प्रभावों को वे जाती हैं या नहीं ये तो नहीं कह सकती लेकिन इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव होता है कि बच्चे का बोलना देर से शुरू होता है और वे वीडिओ वाली भाषा भी ग्रहण करने लगते हैं। (इस बारे में मेरी बात एक बच्चों की डॉक्टर ,जो इसका ही इलाज करती हैं , के साथ हुई है।)
*बहुत छोटी उम्र में ही वे मोबाइल में अपने मन के वीडिओ लगाने लगते हैं , कॉल भी करने लगते हैं। उनको इसका ज्ञान नहीं होता है लेकिन उंगली चला कर वे उसके अभ्यस्त हो जाते हैं। पढ़ने वाले बच्चे भी मोबाइल चाहते हैं , छोटे छोटे क्लास के बच्चों के लिए भी अब पढाई का तरीका बदल गया है। विषय वार वाट्सएप पर ग्रुप बना दिए जाते हैं और पहले की तरह से हर बच्चे की डायरी में होमवर्क लिखने के बजाय वह एक बार ग्रुप पर डाल देती हैं फिर अभिभावकों सिरदर्द कि वे उसको देखें और कुछ बड़े बच्चे हुए तो उनको लैपटॉप या मोबाइल चाहिए।
*किशोर होते बच्चों के लिए पढाई के लिए लैपटॉप बहुत जरूरी हो गया है क्योंकि उनको अपना प्रोजेक्ट बनाना है या फिर सन्दर्भ देखने हैं। फिर पढाई के अलावा बच्चे बहुत कुछ देखना सीख जाते हैं। जो कि उनके मानसिक विकास की दृष्टि समय से पहले परिपक्व बना रहा है।
*किशोर इससे ही अवसाद शिकार जल्दी होने लगे हैं और उससे भी निजात पाने के लिए आत्महत्या जैसे कदम भी उठाने लगे हैं। वो क्रियाएं या अपराध जो कि उनके लिए न उचित हैं और न ही उनकी उम्र के अनुसार होने चाहिए वे करना सीख रहे हैं। उनकी IQ बहुत अधिक होने लगी है तो उनको सोशल मीडिया से और अधिक ज्ञान मिलने लगा है।
*मैंने देखा है कि किशोर लड़कियाँ अपनी प्रोफाइल में अपनी आयु अधिक डाल देती हैं और फिर उनकी मित्रता भी उस उम्र के लड़कों से होने लगाती है और वे बहकावे में भी जल्दी आ जाती हैं। आजकल हो रहे अपराधों के गर्भ में कहीं न कहीं ये मंच जिम्मेदार हो रहे हैं।
*नए नए स्कैम भी इसी के तहत होने लगे हैं , जिन्हें पकड़ पाना हर एक के वश की बात नहीं है और इस तरह से अपराधों की श्रेणी में आ रहे हैं। ये सोशल मीडिया ही है कि बी टेक और एम बी ए जैसी व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण करते हुए वे अपराधों में लिप्त होने लगे है उनको सारे रास्ते यही पर मिल जाते हैं।
इस सोशल मीडिया डे को हम किस दृष्टि से देखते हैं, ये अपनी अपनी सोच है लेकिन कुल मिला कर हम प्रगति तो कर रहे हैं लेकिन गर्त में ज्यादा जा रहे हैं।
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