मायके के चंद घंटे (2)
मायके का सफर अभी ख़त्म नहीं हुआ था क्योंकि वह तो पहुँचने के कुछ घंटे बाद से सोने के बाद का समय था। दूसरे दिन हम लोगों को अपनी चाची के पास जाना था, जो कई महीनों बाद उरई वापस आयीं थी। हमें उनसे मिलना था। हमारे उरई जाने का मुख्य ध्येय अपनी चाची , भाई भाभी और भतीजी से मिलना ही था।
मेरे लिए हर रिश्ता चाहे वह खून का हो या फिर दिल का हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। भले ही हमको उरई छोड़े हुए 45 वर्ष हो चुके हों लेकिन कुछ भी भूला या गुजरा हुआ नहीं लगता है। हमारी चाची हमारी ही हमउम्र हैं लेकिन उनकी शादी बहुत जल्दी हो गयी थी। हमारी उम्र के अनुरूप पटती बहुत थी। माँ-पापा ही उनके संरक्षक थे। वही हाल रहा कि दो चार दिन बाद चाची के पास बैठे होते हम। कहीं भी जाना हो, हम दो साथ साथ। तब लड़कियों का अकेले जाना सिर्फ कॉलेज तक अनुमत था। उसके बाद संरक्षक चाहिए सो मेरी चाची के पास लाइसेंस था और हम कहीं भी जाएँ, जब माँ मेरे जाने के लिए पापा से पूछें तो वहीं सवाल और कौन जा रहा है? चाची का लाइसेंस आगे कर दिया जाता। पिक्चर हो , बाजार हो या फिर प्रदर्शनी ( तब उरई में प्रदर्शनी लगाती थी , हाँ यही बोला जाता था।
चाची से मिलना भी उतने ही साल बाद हो रहा था, जितने वर्ष बाद मैं उरई आयी थी। काऱण हमारे चाचाजी दो महीने पहले ही हम सब को छोड़ कर चले गए थे। उन्होंने या चाची ने कभी ये नहीं समझा कि हम उनकी बेटियाँ नहीं है। वही रिश्ता हमारे भाइयों के बीच है। यद्यपि दोनों भाई मेरी शादी के बाद पैदा हुए लेकिन रिश्ते तो रिश्ते हैं। हमें प्यार और इज्जत सभी से खूब मिलती है। वे चाहे कहीं भी रहें लेकिन जुड़े हैं और हमेशा जुड़े रहेंगे।
हमने सारा दिन चाची के साथ गुजारा। नयी पुरानी बातें , सुख-दुःख तो हम पहले से ही बाँटते रहे हैं। एक कष्ट उन्हें भी और मुझे भी कि उरई से धीरे धीरे डेरे उठ रहे हैं। घर हैं या मकान हैं लेकिन उसमें अपने रहने वाले दूर बेटों के पास जाकर रहने को मजबूर हैं क्योंकि जब दो में से एक रह जाता है तो बच्चे उन्हें अकेले यहाँ रहने की अनुमति नहीं देते हैं। और आज के सामाजिक परिप्रेक्ष्य में ये हमारे परिवार के संस्कार हैं कि बच्चों को इतनी फिक्र है। हम बच्चे दूर हों या फिर पास लेकिन अपने से बड़ों के संतुष्ट और सुरक्षित होने का अहसास एक निश्चिंतता का अहसास बहुत हैं।
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