क्या यकीन करेंगे हमारी सरकार द्वारा आवंटित राशन
की दुकानें। इसकी वास्तविकता सब जानते हैं उन्हें जितना भी सामान मिलता है
उसमें सिर्फ BPL राशन कार्ड रखने वाले ही सामान लेते हैं। आप पूछेंगे कि
मैं इतने विश्वास से कैसे कह सकती हूँ ? एक राशन की दूकान मेरे घर के बहुत
करीब है। मैं कई बार देखती हूँ कि जब हम सुबह मॉर्निंग वाक के लिए निकलते
हैं तो चाहे सर्दी हो या गर्मी रात ४ बजे से मिटटी के तेल के लिए डिब्बों
की लाइन लगी होती है और उपस्थित लोगों से ज्यादा होती है क्योंकि एक आदमी कई कई डिब्बों की रखवाली कर रहा होता है क्योंकि कई महिलायें रखकर घर के कामों में लगी होती हैं और दूसरों के घर काम करने वाली डिब्बा दूसरों की रखवाली में रखा कर काम करने जाती हैं और फिर काम ख़त्म करके आ जाती हैं . कई बार बच्चे खड़े होते हैं और जब माँ आ जाती है बच्चे स्कूल चले जाते हैं । दूकान ९
बजे खुलती है लेकिन इन्हें तो सामान चाहिए तो नींद ख़राब करके वहां खड़ा होना
ही पड़ेगा।
ये दुकान
महीने में सिर्फ 10 और 21 तारिख को ही खुलती हैं और इसमें सैकड़ों कार्ड
जुड़े हुए हैं। इन लोगों को पता है कि मध्यम वर्गीय लोग राशन की दुकान में
लाइन लगाने का समय नहीं रखते हैं सो उन्हें उनके हिस्से का आया हुआ सामान
तो काला बाजारी के लिए एक सबसे बड़ा साधन तो होता ही है। फिर वे क्यों
नहीं सप्ताह में दो दिन सामान वितरित करते हैं ? गरीबों को कब
तक अपने हिस्से का सामान ही लेने के लिए भूखे प्यासे घंटों लाइन लगा कर खड़े
रहना पड़ेगा ? ऐसा क्यों कर रहे हैं ये लोग ? ईमानदारी से भी दें तब भी वे मिलवे ने वाले फायदे से वंचित नहीं होंगे।
राशन की दुकानें जो महीने में २८ दिन बंद रहती हैं। |
वे कहते है कि हमें कोटा लेने के लिए लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं अगर इसी पर निर्भर रहेंगे तो अपने बाल बच्चे कैसे पालेंगे ? मुझे सरकारी नीतियों और उसको नियम कायदों की जानकारी नहीं है लेकिन इतना एक आम नागरिक होने के नाते कह सकती हूँ कि ऐसी दुकानों को सप्ताह में कम से कम २ दिन जरूर खुलने का आदेश होना चाहिए। गरीबों को अपने हक़ से पेट भरने की जो सरकारी व्यवस्था है उसमें से तो इनका हक़ न मारा जाय।
राशन की दुकान तक बंटते बंटते जो कुछ थोडा बहुत बच जाता है उसी में खुश रहने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं ..
जवाब देंहटाएंशिकायत करे तो भी किससे...कौन सुनेगा
चिंताजनक स्थिति।
जवाब देंहटाएंआपने सच्चाई को बहुत बेवाकी से उकेरा है |
जवाब देंहटाएंउम्दा लेख |
एक दुखद स्तिथि..
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