जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला कह रहे हें कि अगर अफजल गुरु को फाँसी दी जाती है तो इसके नकारात्मकपरिणाम देश में देखने को मिलेंगे। एक मुख्यमंत्री का ये कथन क्या उनके देश के प्रति निष्टा पर प्रश्नचिह्न नहीं लगा रहेहें? अभी तक तो चोरी छिपे ही अपराधियों और शरारती तत्वों को राजनीतिक शरण और शह मिलती रही है और यहीकारण है कि राजनीति का अपराधीकरण हो चुका है। अब ऐसे देशद्रोहियों को भी राजीनीतिक समर्थन मिलने के संकेतमिलने लगे हें और वह भी खुले आम। ऐसे में अगर देश की आतंरिक सुरक्षा पर सवाल खड़े किये जा रहे हें तो क्या गलतहै?
हम कहते हें कि पाकिस्तान आतंकियों को प्रशिक्षण देता है, उन्हें शह दे रहा है और ये अपने ही देश के अन्दर बैठेराजनेता अपने ऐसे वक्तव्यों से क्या अपनी उनके प्रति सहानुभूति और संरक्षण नहीं दर्शा रहे हें। अगर किसी राज्य कीविधायिका अब देशद्रोहियों के पक्ष में मतदान करके सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती देती है तो लोकतंत्र के तीनस्वतन्त्र स्तंभों को दूसरे के कार्य में निरर्थक हस्तक्षेप कहा जाएगा।
अफजल गुरु संसद हमले काण्ड का आरोपी है तो इसका पूरा मामला केंद्र शासित दिल्ली से जुड़ा है और वहीं केन्यायायलय में मामला विधाराधीन रहा और उसको सजा निधारित की गई फिर इस विषय में किसी राज्य कीविधायिका में उसे विचारार्थ रखने की बात क्यों और कैसे उठी? क्या उमर कश्मीर भारत से अलग और अफजल गुरु कोकश्मीर के प्रति समर्पित मानते हें और यदि नहीं तो फिर कल जब यही kasaab के साथ होगा तो भी क्या इसी तरह सेफाँसी का विरोध करके देश के प्रति अपनी निष्ठां पर स्वयं प्रश्नचिह्न लगाकर अपनी प्रतिष्टा और देश के प्रति निष्ठां नहीं खोरहे हें। इन सब के पीछे सिर्फ किसी एक व्यक्ति का विचार नहीं बनता है - ऐसी बातों के पीछे किसी बड़े दल या केंद्र की शहहोती है क्योंकि ऐसे जघन्य अपराधियों को जब हम सरकारी मेहमान बनाकर वर्षों जेल में पाल रहे हें तो कल को इनकापालना किसी नई घटना का वायस बन जाय तो कोई बड़ी बात नहीं है। अभी हाल में ही १३ जुलाई को कसाब के जन्मदिनपर हुए विस्फोट से अगर सरकार और जिम्मेदार मंत्रालय को समझ नहीं आता है तो फिर उन्हें अपने को गैर जिम्मेदारमान लेना चाहिए और सत्ता छोड़ कर चले जाना चाहिए।
सरकार क्यों ऐसे अपराधियों के मामले को वर्षों लटका कर रखती है क्योंकि उन्हें आशंका है कि अगर वह अफजल गुरुजैसे लोगों को फाँसी दे देती है तो उससे जुड़े वर्ग विशेष का समर्थन खो सकती है और ऐसा कोई भी रिस्क वह लेना नहींचाहती है। इसी लिए गृहमंत्री पी चिदंबरम अपने बयान में ये कह रहे हें कि हर आतंकी हमले को रोका नहीं जा सकता है।क्यों नहीं रोका जा सकता है क्या वे अमेरिका से सबक नहीं ले सकते हें कि एक हमले की तबाही के बाद कोई भीआतंकवादी संगठन वहाँ एक भी वारदात नहीं कर सका और अपने देश के प्रति प्रतिबद्धता दुहराते हुए चाहे राष्ट्रपतिबदल गए हों लेकिन ओसामा को जिन्दा या मुर्दा प्राप्त करने के संकल्प को कभी नहीं बदला। और जिनके इरादे मजबूतहोते हें उन्हें लक्ष्य तक पहुँचाने में कोई रोक नहीं सकता है।
उमर के ये अपने शब्द नहीं है बल्कि उसके साथ दूसरे अलगाववादी नेताओं ने भी सुर मिलने शुरू कर दिए हें। हमारी केंद्रसरकार की इसमें शत प्रतिशत शह है और जब तक ऐसी सरकार रहेगी देश सदैव असुरक्षित रहेगा।
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आतंकियों के प्रति दयाभाव न दिखाये जायें।
जवाब देंहटाएंकेन्द्र की शह तो है ही...सभी को दिख रहा है...
जवाब देंहटाएंविचारणीय आलेख....
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग्स पर भी आएं ,आपका हार्दिक स्वागत है -
http://ghazalyatra.blogspot.com/
http://varshasingh1.blogspot.com/