इधर विभिन्न स्रोतों से देख रही हूँ कि कई बार बच्चियों की तस्वीरें फेसबुक , व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल मीडिया पर दिखलाई दे रही हैं और आज कल कुछ ज्यादा नजर आने लगी हैं। कभी तो ये विचार आकर सोचने पर मजबूर कर देता है कि वास्तव में ऐसा हो रहा है तो क्यों हो रहा है ? हाँ मैं इस बात को स्वीकार करती हूँ कि मैं भी ऐसी सूचनाओं को शेयर करती हूँ ताकि ये बच्चे अपने माँ बाप तक पहुंच जाएँ।
इस चित्र ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि वास्तव में हो क्या रहा है ? ये चित्र कई बार घूम घूम कर आया और ये नागपुर स्टेशन का है। फिर अचानक ये चित्र जिसमें महिला सिपाही नहीं थी फिर मेरे पास आया कि ये बच्ची चंडीगढ़ स्टेशन पर मिली है। इसके पीछे क्या चल रहा है ?
ये मिलने वाली बच्ची इतनी छोटी भी नहीं है कि वह अपने शहर या गाँव का नाम न बता सके या फिर पापा मम्मी का नाम न बता सके। अगर मान भी लें कि बच्ची नहीं बता सकती तो इसके माता पिता कैसे हैं कि उनकी इतनी बड़ी बच्ची स्टैशन पर छूट गयी और उनको खबर तक नहीं और जब भी उन्हें याद आया उन्हें पुलिस को खबर करनी चाहिए। रेलवे अपने संपर्क से तुरंत ही पता कर लेती हैं और स्टेशन पर मिले बच्चे तो उनके संरक्षण में रहते हैं। कहीं भी पुलिस को खबर करें वो संभावित जगहों पर जरूर खोजती है और पता चल ही जाता है।
पिछले कई बार ये बच्चे ट्रैन या स्टेशन पर ही पाए गए। किसी के दिमाग में ये सवाल उठा कि नहीं, मै नहीं जानती कि हम ये मान सकते हैं कि बच्चे दहशत में बदहवास हो जाते हैं और वह बोल नहीं पाते हैं। इस के पीछे के कारणों पर नजर जाती ही है कि इस तरह से बच्चियों का पाया जाना किस बात का द्योतक है --
* क्या लड़की होने के कारण या फिर अधिक बच्चे होने के कारण ये बच्चियां जानबूझ कर छोड़ी गईं है ?
*क्या इन बच्चियों का ट्रैन से अपहरण किया गया है और किसी तरह से पकड़ने की आशंका से इसको वहीँ छोड़ दिया गया है ?
*क्या गलती से छूट जाने पर माता पिता ने इसकी रिपोर्ट रेलवे थाने या अन्य किसी थाने में दर्ज कराई भी है या नहीं ?
*क्या ये अपरहण के बाद लेकर छोड़ी गईं या किसी और मंशा से उठाई गईं थी ?
इतने कारणों के बाद भी मैं इनके माता पिता की गलती और लापरवाही को ही इंगित करूंगी क्योंकि अपनी संतान के प्रति ऐसी लापरवाही क्यों करेगा कोई ? क्या इस लिए कि वह लड़की है और उससे वे निजात पाना चाहते हैं। अगर तुरंत सूचना दें तो बच्ची मिल सकती है। अगर नहीं ही रखना चाहते हैं तो सामाजिक संगठन इस दिशा में बहुत काम कर रहे हैं। लड़कियों को संरक्षण दे रहे हैं फिर हिम्मत कीजिये और खुद छोड़ कर आइये। बेटे की चाह में आई हुईं बेटियां खुद दोषी नहीं हैं बल्कि आपका पूर्वाग्रह दोषी है।
एक बात और है कि जो ऐसी घटनाओं को सोशल मीडिया के जरिये फैलाते हैं , जरूरी नहीं की वह हर व्यक्ति के लिए उतना ही सोच का सबब बन जाए। अधिकतर एक स्टेटस की तरह पढ़ कर लाइक या शेयर करके आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन कुछ संवेदनशील मन उन मासूम चेहरों को भूल नहीं पाते हैं। ये प्रश्न सदैव मन में कौंधता रहता है कि पता नहीं वह बच्चा अपने घर वालों को मिला या नहीं। इस लिए इस तरह के स्टेटस अपने को बहुत जिम्मेदार दिखाने के लिए न डालें और अगर आप वाकई जिम्मेदार है तो पहली बार इसको डालने वाला तह तक जाए और खबर रखे कि वह बच्चा कहाँ गया ? अगर आप इसकी सूचना देने के लिए जिम्मेदार हैं तो आगे भी इस जिम्मेदारी को निभाने का कार्य करें।
किसी बच्चे के जीवन का प्रश्न स्टेटस मात्र नहीं हो सकता है।
इस चित्र ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि वास्तव में हो क्या रहा है ? ये चित्र कई बार घूम घूम कर आया और ये नागपुर स्टेशन का है। फिर अचानक ये चित्र जिसमें महिला सिपाही नहीं थी फिर मेरे पास आया कि ये बच्ची चंडीगढ़ स्टेशन पर मिली है। इसके पीछे क्या चल रहा है ?
ये मिलने वाली बच्ची इतनी छोटी भी नहीं है कि वह अपने शहर या गाँव का नाम न बता सके या फिर पापा मम्मी का नाम न बता सके। अगर मान भी लें कि बच्ची नहीं बता सकती तो इसके माता पिता कैसे हैं कि उनकी इतनी बड़ी बच्ची स्टैशन पर छूट गयी और उनको खबर तक नहीं और जब भी उन्हें याद आया उन्हें पुलिस को खबर करनी चाहिए। रेलवे अपने संपर्क से तुरंत ही पता कर लेती हैं और स्टेशन पर मिले बच्चे तो उनके संरक्षण में रहते हैं। कहीं भी पुलिस को खबर करें वो संभावित जगहों पर जरूर खोजती है और पता चल ही जाता है।
पिछले कई बार ये बच्चे ट्रैन या स्टेशन पर ही पाए गए। किसी के दिमाग में ये सवाल उठा कि नहीं, मै नहीं जानती कि हम ये मान सकते हैं कि बच्चे दहशत में बदहवास हो जाते हैं और वह बोल नहीं पाते हैं। इस के पीछे के कारणों पर नजर जाती ही है कि इस तरह से बच्चियों का पाया जाना किस बात का द्योतक है --
* क्या लड़की होने के कारण या फिर अधिक बच्चे होने के कारण ये बच्चियां जानबूझ कर छोड़ी गईं है ?
*क्या इन बच्चियों का ट्रैन से अपहरण किया गया है और किसी तरह से पकड़ने की आशंका से इसको वहीँ छोड़ दिया गया है ?
*क्या गलती से छूट जाने पर माता पिता ने इसकी रिपोर्ट रेलवे थाने या अन्य किसी थाने में दर्ज कराई भी है या नहीं ?
*क्या ये अपरहण के बाद लेकर छोड़ी गईं या किसी और मंशा से उठाई गईं थी ?
इतने कारणों के बाद भी मैं इनके माता पिता की गलती और लापरवाही को ही इंगित करूंगी क्योंकि अपनी संतान के प्रति ऐसी लापरवाही क्यों करेगा कोई ? क्या इस लिए कि वह लड़की है और उससे वे निजात पाना चाहते हैं। अगर तुरंत सूचना दें तो बच्ची मिल सकती है। अगर नहीं ही रखना चाहते हैं तो सामाजिक संगठन इस दिशा में बहुत काम कर रहे हैं। लड़कियों को संरक्षण दे रहे हैं फिर हिम्मत कीजिये और खुद छोड़ कर आइये। बेटे की चाह में आई हुईं बेटियां खुद दोषी नहीं हैं बल्कि आपका पूर्वाग्रह दोषी है।
एक बात और है कि जो ऐसी घटनाओं को सोशल मीडिया के जरिये फैलाते हैं , जरूरी नहीं की वह हर व्यक्ति के लिए उतना ही सोच का सबब बन जाए। अधिकतर एक स्टेटस की तरह पढ़ कर लाइक या शेयर करके आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन कुछ संवेदनशील मन उन मासूम चेहरों को भूल नहीं पाते हैं। ये प्रश्न सदैव मन में कौंधता रहता है कि पता नहीं वह बच्चा अपने घर वालों को मिला या नहीं। इस लिए इस तरह के स्टेटस अपने को बहुत जिम्मेदार दिखाने के लिए न डालें और अगर आप वाकई जिम्मेदार है तो पहली बार इसको डालने वाला तह तक जाए और खबर रखे कि वह बच्चा कहाँ गया ? अगर आप इसकी सूचना देने के लिए जिम्मेदार हैं तो आगे भी इस जिम्मेदारी को निभाने का कार्य करें।
किसी बच्चे के जीवन का प्रश्न स्टेटस मात्र नहीं हो सकता है।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "विश्व पर्यावरण दिवस - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसच ...
जवाब देंहटाएंvichaaraneey mudda hai didi
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