दशहरा या विजयादशमी हमारे देश का बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है और साथ ही इसको संस्कृति से जोड़ते हुए समाज को एक सन्देश - बुराई पर भलाई की विजय या सत्य की असत्य पर विजय जाता है। पूरे देश में कहीं विजयादशमी का सम्बन्ध सिर्फ रामायण महाकाव्य की लीला से होता है और कहीं पर इसको दुर्गा पूजा के साथ जोड़ कर देखते हैं कि दुर्गा जी के द्वारा महिषासुर का वध भी शक्ति की विजय दिखता है और दोनों का ही एक ही सन्देश जाता है। हमारे देश में ही दशहरा विभिन्न स्थानों पर अलग अलग तरीके से मनाया जाता है। सबका उद्देश्य एक ही होता है लेकिन कहीं कहीं पर लोक कथाओं पर आधारित भी है।
बंगाल का दशहरा :-- बंगाल में यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है, जो कि बंगालियों, ओडिओं तथा असमियों का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है। इसमें दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसके अन्तर्गत स्त्रियाँ द्वारा नौ दिनों तक मां दुर्गा की आराधना के बाद दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। देवी के माथे पर सिंदूर चढ़ाती हैं व देवी को अश्रुपूरित विदाई देती हैं इसके साथ ही वे आपस में भी सिंदूर खेलती हैं और अंत में सभी देवी प्रतिमाओं को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। उसके बाद दशहरा का त्यौहार मनाया जाता है। विसर्जन की ये यात्रा महाराष्ट्र के गणपति-उत्सव के गणेश-विसर्जन के समान ही भव्य, शोभनीय और दर्शनीय होती है जबकि इस दिन नीलकंठ पक्षी को दर्शन बहुत शुभ माना जाता है।
कर्नाटक का दशहरा : - मैसूर का दशहरा अंतर्राष्ट्रीय उत्सव के रूप में अपनी अलग पहचान बना चूका है जिसमे शामिल होने के लिए विदेशो से पर्यटक आते है | इस दिन यहाँ कई प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किये जाते है लेकिन सबसे अधिक प्रसिद्ध है 12 हाथियों की इस इस उत्सव में उपस्थिति | इन हाथियों की अपनी अपनी विशेषता होती है | दशहरा उत्सव के अंतिम दिन यहा मैसूर महल से “जम्बो सवारी” का आयोजन किया जाता है जिसमे रंग बिरंगे आभूषण और कपड़ो से सजे हाथी एक साथ शोभायात्रा के रूप में इकट्ठे चलते है और इन सबका नेतृत्व करने वाल विशेष हाथी “अम्बारी ” है जिसकी पीठ पर चामुंडेश्वरी देवी की प्रतिमा सहित 750 किलो का “स्वर्ण हौदा” रखा होता है | यह सवारी मैसूर महल से तीन किलोमीटर की दूरी तय करने एक बाद बन्नीमंडप पहुचकर समाप्त होती है | इस समय प्रसिद्ध मैसूर महल को दीप-मालिकाओं से दुल्हन की तरह सजाते हैं। साथ ही शहर में लोग टॉर्च लाइट के संग नृत्य और संगीत की शोभायात्रा भी निकालते हैं।
इन सबके अतिरिक्त विदेशो में भी विजयादशमी का त्यौहार बड़ी उमंगो और
धूमधाम से मनाते है | नेपाल में नौ दिन तक माँ काली और माँ दुर्गा की पूजा
की जाती है और दशहरे वाले दिन राज दरबार में राजा अपनी प्रजा को अबीर ,दही
और चावल का तिलक लगाते है | श्रीलंका ,चीन ,मलेशिया और इंडोनेशिया में भी
अपने अपने रीति रिवाजो से अनुसार यह पर्व मनाने की परम्परा है |
बंगाल का दशहरा :-- बंगाल में यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है, जो कि बंगालियों, ओडिओं तथा असमियों का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है। इसमें दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसके अन्तर्गत स्त्रियाँ द्वारा नौ दिनों तक मां दुर्गा की आराधना के बाद दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। देवी के माथे पर सिंदूर चढ़ाती हैं व देवी को अश्रुपूरित विदाई देती हैं इसके साथ ही वे आपस में भी सिंदूर खेलती हैं और अंत में सभी देवी प्रतिमाओं को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। उसके बाद दशहरा का त्यौहार मनाया जाता है। विसर्जन की ये यात्रा महाराष्ट्र के गणपति-उत्सव के गणेश-विसर्जन के समान ही भव्य, शोभनीय और दर्शनीय होती है जबकि इस दिन नीलकंठ पक्षी को दर्शन बहुत शुभ माना जाता है।
कर्नाटक का दशहरा : - मैसूर का दशहरा अंतर्राष्ट्रीय उत्सव के रूप में अपनी अलग पहचान बना चूका है जिसमे शामिल होने के लिए विदेशो से पर्यटक आते है | इस दिन यहाँ कई प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किये जाते है लेकिन सबसे अधिक प्रसिद्ध है 12 हाथियों की इस इस उत्सव में उपस्थिति | इन हाथियों की अपनी अपनी विशेषता होती है | दशहरा उत्सव के अंतिम दिन यहा मैसूर महल से “जम्बो सवारी” का आयोजन किया जाता है जिसमे रंग बिरंगे आभूषण और कपड़ो से सजे हाथी एक साथ शोभायात्रा के रूप में इकट्ठे चलते है और इन सबका नेतृत्व करने वाल विशेष हाथी “अम्बारी ” है जिसकी पीठ पर चामुंडेश्वरी देवी की प्रतिमा सहित 750 किलो का “स्वर्ण हौदा” रखा होता है | यह सवारी मैसूर महल से तीन किलोमीटर की दूरी तय करने एक बाद बन्नीमंडप पहुचकर समाप्त होती है | इस समय प्रसिद्ध मैसूर महल को दीप-मालिकाओं से दुल्हन की तरह सजाते हैं। साथ ही शहर में लोग टॉर्च लाइट के संग नृत्य और संगीत की शोभायात्रा भी निकालते हैं।
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