www.hamarivani.com

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2019

दशहरा !

                               दशहरा या विजयादशमी हमारे देश का बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है और साथ ही इसको संस्कृति से जोड़ते हुए समाज को एक सन्देश - बुराई पर भलाई की विजय या सत्य की असत्य पर विजय जाता है।  पूरे  देश में कहीं विजयादशमी का सम्बन्ध सिर्फ रामायण महाकाव्य की लीला से होता है और कहीं पर इसको दुर्गा पूजा के साथ जोड़ कर देखते हैं कि  दुर्गा जी के द्वारा महिषासुर का वध भी शक्ति की विजय दिखता है और दोनों का ही एक ही सन्देश जाता है। हमारे देश में ही दशहरा विभिन्न स्थानों पर अलग अलग तरीके से मनाया जाता है।  सबका उद्देश्य एक ही होता है लेकिन कहीं कहीं पर लोक कथाओं पर आधारित भी है।   

 बंगाल का दशहरा :-- बंगाल में यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है, जो कि बंगालियों, ओडिओं तथा असमियों का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है।   इसमें  दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसके अन्‍तर्गत स्त्रियाँ द्वारा नौ दिनों तक मां दुर्गा की आराधना के बाद दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।  देवी के माथे पर सिंदूर चढ़ाती हैं व देवी को अश्रुपूरित विदाई देती हैं इसके साथ ही वे आपस में भी सिंदूर खेलती हैं और अंत में सभी देवी प्रतिमाओं को विसर्जन के लिए ले जाया जाता  है। उसके बाद दशहरा का त्यौहार मनाया जाता है। विसर्जन की ये यात्रा महाराष्‍ट्र के गण‍पति-उत्‍सव के गणेश-विसर्जन के समान ही भव्‍य, शोभनीय और दर्शनीय होती है जबकि इस दिन नीलकंठ पक्षी को दर्शन  बहुत शुभ माना जाता है।

कर्नाटक का दशहरा -  मैसूर का दशहरा अंतर्राष्ट्रीय उत्सव के रूप में अपनी अलग पहचान बना चूका है जिसमे शामिल होने के लिए विदेशो से पर्यटक आते है | इस दिन यहाँ कई प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किये जाते है लेकिन सबसे अधिक प्रसिद्ध है 12 हाथियों की इस इस उत्सव में उपस्थिति | इन हाथियों की अपनी अपनी विशेषता होती है | दशहरा उत्सव के अंतिम दिन यहा मैसूर महल से “जम्बो सवारी” का आयोजन किया जाता है जिसमे रंग बिरंगे आभूषण और कपड़ो से सजे हाथी एक साथ शोभायात्रा के रूप में इकट्ठे चलते है और इन सबका नेतृत्व करने वाल विशेष हाथी “अम्बारी ” है जिसकी पीठ पर चामुंडेश्वरी देवी की प्रतिमा सहित 750 किलो का “स्वर्ण हौदा” रखा होता है | यह सवारी मैसूर महल से तीन किलोमीटर की दूरी तय करने एक बाद बन्नीमंडप पहुचकर समाप्त होती है | इस समय प्रसिद्ध मैसूर महल को दीप-मालिकाओं से दुल्‍हन की तरह सजाते हैं। साथ ही शहर में लोग टॉर्च लाइट के संग नृत्य और संगीत की शोभायात्रा भी निकालते हैं।

 तमिलनाडू , तेलंगाना , आंध्रप्रदेश का दशहरा :--

इन सभी  राज्यों में दशहरा  नौ दिनों तक मनाते  है ,| यहाँ के लोग दशहरे पर तीनो देवियों लक्ष्मी ,सरस्वती और दुर्गा की पूजा करते है | अगर कोई भी नया कार्य करना हो तो इस दिन को बहुत शुभ माना जाता है | इन सभी राज्यों में लक्ष्मी माता की पूजा प्रथम तीन दिनों में की जाती है उसके अगले तीन दिनों में विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है और अंत के तीनो दिनों में शक्ति की देवी माँ दुर्गा का पूजन किया जाता है। |यहाँ नवरात्रि जैसी कोई परिकल्पना नहीं है लेकिन शक्तिपूजा का ही विधान है।

 उत्तर भारत का दशहरा --( उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश , बिहार और पंजाब ):--

उत्तर भारत  में दशहरे के पर्व का सम्बन्ध सीधे सीधे असत्य पर सत्य की विजय माना जाता है। इस पर्व को मनाने से पूर्व रामलीला का जगह जगह पर आयोजन होता है।  यहाँ पर रामलीला बहुत लोकप्रिय है , जिसमें रामायण को आधार मान कर उसको नायकीय रूप में प्रस्तुत किया जाता है। रामलीला इस तरह से आयोजित की जाती है कि दशहरे के दिन रावण वध का प्रसंग आता है और फिर रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के बड़े बड़े पुतले बना कर जलाये जाते हैं।   | यहा दशहरे की रौनक देखते ही बनती है | जहाँ  एक ओर रामनगर की लीला विश्वविख्यात है | वही बनारस में घट स्थापना से शुरू हुआ यह उत्सव दस दिन तक चल चलता है | दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, इन सभी राज्यों में दशहरे का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। इन सभी प्रदेशों में इस दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। यहां दशहरे को विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर प्रदेश में दशहरे के दिन नीलकंठ नामक चिड़िया और मछली के दर्शन करना विशेष शुभ माना जाता है।

  कुल्लू का दशहरा:--

                            हिमाचल प्रदेश में स्थित कुल्लू का दशहरा एक अनोखे और भव्य अंदाज में मनाये जाने के कारण विश्वविख्यात है  | कुल्लू का दशहरा पारम्परिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व रखता है | यहाँ  इस पर्व को मनाने की परम्परा राजा जगत सिंह के समय से चली आ रही है  |एक लोक कथा के अनुसार राजा जगत सिंह ने एक साधू की सलाह पर कुल्लू में अयोध्या से मंगवा कर भगवान रघुनाथ जी (राम जी ) की प्रतिमा स्थापित की थी | वास्तव में राजा किसी रोगग्रस्त से थे और इसी से मुक्ति पाने के लिए साधू ने उन्हें यह सलाह दी थी | मूर्ति स्थापना के बाद राजा धीरे धीरे स्वस्थ हो गए और  उन्होंने इसी वजह से अपना शेष जीवन भगवान को समर्पित कर दिया। इस उत्सव के एक दिन पहले एक रथ यात्रा आयोजित की जाती है जिसमे रथ में भगवान रघुनाथ जी ,सीता जी एवं दशहरे की देवी मनाली की हिडिम्बा जी की प्रतिमाओं को रखा जाता है |सातवे दिन रथ से व्यास नदी के किनारे लाया जाता है जहा लंका दहन का आयोजन होता है | इसके बाद रथ पुन: वापस लाकर रघुनाथ जी को उनके मन्दिर में फिर से स्थापित कर दिया जाता है | दशहरे के दिन यहाँ की धूमधाम देखने योग्य होती है |

गुजरात का दशहरा

गुजरात में मिटटी का एक रंगीन घड़े को देवी का प्रतीक माना जाता है जिसको कुंवारी लडकिया अपने सिर पर रखकर गरबा करती है  जो गुजरात की शान है | गुजरात के सभी पुरुष और महिलाये दो डंडो से गरबे के संगीत पर गरबा नाचते है | इस अवसर पर भक्ति और पारम्परिक लोक संगीत का समायोजन भी होता है | आरती हो जाने के बाद यहा पर डांडिया रास का आयोजन होता है जो पूरी रात चलता है | | नवरात्रि  में सोने के गहनों को खरीदना बहुत ज्यादा शुभ माना जाता है   राजस्थान और गुजरात दोनों एक दुसरे से सटे हुए राज्य है शायद यही कारण है कि यहां पर दशहरे से जुडी एक ही मान्यता को दोनों जगह समान माना जाता है यहां नवरात्रि के 9वें दिन के उपवास के बाद 10वें दिन व्रत को खत्म कर लोग अन्न खातें है। गुजरात में दशहरे के दिन सुबह उठ के लोग जलेबी और फाफडा खा के अपने दिन की शुरुवात करतें हैं।

बस्तर का दशहरा :--

बस्तर के दशहरे के मुख्य कारण को राम की रावण पर विजय न मानकर लोग इसे माँ दंतेश्वरी की आराधना को समर्पित एक पर्व मानते है | दंतेश्वरी माँ बस्तर के निवासियों की आराध्य देवी मानी जाती है जो माँ दुर्गा का ही स्वरूप  है | यहाँ पर यह पर्व पूरे 75 दिन तक चलता है जो  दशहरा श्रावण मास की अमावस से लेकर आश्विन मास  की शुक्ल त्रयोदशी तक चलता है | पहले  दिन को काछिन गादी कहते है जिसमे देवी से समारोह आरम्भ की अनुमति ली जाती है | यहाँ पर देवी एक कांटो की शैय्या पर विराजमान होती है जिसे काछिन गादी कहते है | यह कन्या अनुसूचित जाति की है जिससे बस्तर के राजपरिवार के व्यक्ति की अनुमति लेते है | यह समारोह लगभग 500 साल पहले 15वी शताब्दी से शुरू हुआ था | इसके बाद जोगी बिठाई होती है | इसके बाद यहाँ पर भीतर रैनी (विजयादशमी) , फिर बाहर रैनी (रथ यात्रा ) और अंत में मुरिया दरबार होता है | इसपर्व का समापन आश्विन शुक्ल त्रयोदशी को ओहाडी पर्व से होता है |

महाराष्ट्र का दशहरा :--

महाराष्ट्र में माँ दुर्गा को नवरात्रि के नौ दिनों तक पूजा जाता है और दसवे दिन माता सरस्वती की पूजा की जाती है | यहा के लोगो का मानना है कि इस दिन माँ सरस्वती की पूजा करने से स्कूल में नये नये पढने वाले बच्चो पर माँ का आशीर्वाद रहता है इसलिए इस दिन को विद्या के लिए बहुत ज्यादा शुभ माना जाता है | महाराष्ट्र में लोग नया घर खरीदने के लिए भी इस दिन को बहुत शुभ मानते है | | यहा पर एक सामजिक उत्सव सिलंगण का आयोजन भी इस दिन होता है जिसमे गाँव के सभी लोग नये कपड़े पहनकर गाँव के दुसरी ओर जार्क शमी वृक्ष के पत्तो को अपने गाँव लाते है | एक पौराणिक कथा के अनुसार शमी वृक्ष के पत्तो को स्वर्ण से जोड़ा गया है | इन शमी वृक्ष के पत्तो को स्वर्ण के रूप में लोग एक दुसरे को देकर इस पर्व का आनन्द लेते है |

कश्मीर का दशहरा :--

वैसे तो कश्मीर में हिन्दुओ की संख्या बहुत कम है फिर भी यहा पर अल्संख्यक हिन्दू इस पवित्र त्यौहार को अपने अलग ही अंदाज में मनाते है | यहाँ के लोग नवरात्रि के दिनों में केवल पानी पीकर ही उपवास करते है | यहा के हिन्दू परिवार खीर भवानी माता में बहुत आस्था रखते है और इस दिन माता के दर्शन को बहुत शुभ मानते है | यहाँ के लोगो का मानना है कि दशमी के दिन जो तारा उगता है उस समय विजय मुहूर्त माजा जाता है जो सभी कार्यो को सफल करता है इसलिए उस विजय मुहूर्त के तारे के नाम पर इसे विजयादशमी कहते है |
 
इन सबके अतिरिक्त विदेशो में भी विजयादशमी का त्यौहार बड़ी उमंगो और धूमधाम से मनाते है  | नेपाल में नौ दिन तक माँ काली और माँ दुर्गा की पूजा की जाती है और दशहरे वाले दिन राज दरबार में राजा अपनी प्रजा को अबीर ,दही और चावल का तिलक लगाते है  | श्रीलंका ,चीन ,मलेशिया और इंडोनेशिया में भी अपने अपने रीति  रिवाजो से अनुसार यह पर्व मनाने की परम्परा है |
                 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जो मन में होता है आपसे उजागर कर देते हैं. आपकी राय , आलोचना और समालोचना मेरा मार्गदर्शन और त्रुटियों को सुधारने का सबसे बड़ा रास्ताहै.