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सोमवार, 14 फ़रवरी 2022

पुरुष विमर्श - 3

 पुरुष विमर्श - 3 


निम्न मानसिकता 


              आज की कहानी का एक छोटा सा हिस्सा मेरे गिर्द भी घट रहा था और मैं निर्विकार उसको समझ रही थी । तब तो इसे लिखने के बारे में नहीं सोचा था।

                रमित चार भाई बहनोंं मेंं दूसरे स्थान पर था। अच्छी कम्पनी में मैनेजर था । सभी एक अच्छी लड़की की खोज में थे और एक रिश्तेदार ने उन्हें ये रिश्ता बताया ।

                इसमें कोई दो राय नहीं थी कि लड़की खूबसूरत थी और डॉक्टर भी थी। लड़के के परिवार में बड़ी बहन को छोड़ कर सभी इंजीनियर थे और वे सभी खूबसरत थे।  बड़े उत्साह से शादी की गई । करीब एक महीने दीपिका ने छुट्टी ली और ठीक से रही लेकिन आधा समय तो घूमने में गुजर गया और आधा इधर उधर जाने आने में ।

                  अब शुरू हुई उसकी सोच का दाँव पेंच में उतारना क्योंकि वह माँ बनने की स्थिति में आ चुकी थी और फिर बिस्तर से उठना गवारा नहीं था । सास ससुर, ननद और देवर को भी घर में आने वाले नन्हें मुन्ने के आने का उत्साह आ गया था । बहू और भाभी हाथों हाथ ली जा रही थी । वह तो सोच रही थी कि इसी समय कुछ लड़ने झगड़ने का मौका मिलेगा और वह यहाँ से भाग लेगी । उसकी नौकरी भी पति के नौकरी स्थल से कुछ घण्टे की दूरी पर थी ।

                  इस बीच उसने कई मौके खोजे , अपनी चीजों की चोरी का आरोप घर वालों पर लगाया लेकिन चीज बरामद होने पर गलत साबित हुई तो खिसियानी बिल्ली बन कर वह मायके चली गई । फिर वहीं पर बेटा हुआ और उसने घर आने से इंकार कर दिया तो सारे घर वाले मनाने पहुँच गये कि घर की पूजा वगैरह तो वहीं होंगी तो उसकी माँ ने भेजने से मना कर दिया ।

                  सब वापस लौट आये । रमित कुछ दिन वहीं रहा और घर वाले बच्चे के मोह में आते जाते रहे । एक दिन जब ये लोग पहुँचे तो घर में ताला बंद था और फोन भी बंद था। पता नहीं लग पाया । रमित ने पता किया तो उसने अपनी नौकरी ज्वाइन कर ली थी और बच्चे के लिए माँ को ले गई थी।

                  शनिवार और रविवार रमित वहाँ जाता रहता था कि कभी तो सही होगी, अब तो बच्चा भी हो गया है। वह छुट्टी में वहाँ जाने लगी । पाँच दिन अपनी नौकरी पर रहती । अपने घर का सपना पूरा करना चाह रही थी । ससुर पर दबाव डालने लगी कि मकान बेचकर आधा पैसा दो मैं अपना मकान लूँगी। ससुर ने मना कर दिया कि अभी मुझे अपनी बेटी और एक बेटे की शादी करनी है।

                 उसने पति को घर जाने से रोक दिया और जब भी गया उसने तमाशा खड़ा कर दिया। मैं और उसकी बहन एक साथ काम करते थे।  दिल्ली में हम लोग कांफ्रेंस के लिए गए , हम लोग एक ही रूम को शेयर कर रहे थे।  मैं सारी चीजों से वाकिफ थी।  वह मुझसे बोली कि मैं भैया से मिलने जा रही हूँ और लौट कर आयी तो वह मेरे गले लग कर फूट फूट कर रोयी। मैंने उसे चुप कराया और पूछा बात क्या हुई ? 

                  तब उसने बताया कि भैया मुझे घर नहीं ले गए बल्कि उन्होंने बताया कि जब मैं पिछली बार उनके घर गयी थी तो लौट कर उसने बहुत कहर बरपाया कि "तुम्हारी बहन मेरे घर में क्यों आयी थी ? इसी बैड पर बैठी होगी , उसने मेरे बेड को कैसे प्रयोग किया ? मेरी अनुपस्थिति में आने की जरूरत क्या थी ? आइंदा मेरे घर में आने की कोई जरूरत नहीं है।" 

                       मैंने उसे बहुत समझाया और उसकी काउंसलिंग करके ठीक किया।  भाभी उसकी शादी भी जहाँ बात चलती, गलत बातें फैला कर होने न देती बल्कि उसने चुनौती दे रखी थी कि बाकियों की मैं शादी न होने दूँगी। 

                     उसके रोज रोज के बढ़ते अत्याचारों से एक दिन पति ने आत्महत्या की कोशिश की , लेकिन डोज़ कुछ कम थी और वह तीन दिन बेहोश रहकर ठीक हो गया।  लेकिन अवसाद में इतना डूब चुका था कि उसने बगैर बताये होटल में कमरा लेकर रहने लगा।  उसके जीवन से ऑफिस वाले भी अवगत थे क्योंकि वह बहुत ही सुलझा हुआ इंसान था।  जब उसकी समस्या का कोई समाधान नहीं निकला तो उसने अपनी कंपनी में बात करके बाहर भेजने की बात की और कंपनी ने उसको बाहर भेज दिया।  फिर वह न भाई की शादी में आया और न ही बहन की शादी में। वह आज भी बाहर ही है। उन्होंने किसी को नहीं बताया कि वह कहाँ है ? सब यहाँ से वहीँ शिफ्ट हो गए।

1 टिप्पणी:

  1. समाज परिवार हो या रिश्तेदार आपका यह पोस्ट वक्त से पहले सचेत करने में मदद करेगी किसी भी मानव को कथा के माध्यम से बढ़िया लिखा बधाई स्वीकारें

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