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मंगलवार, 11 जून 2024

विश्व बाल श्रमिक निषेध दिवस !

  विश्व बाल श्रमिक निषेध दिवस ! 


                        बच्चों को वैश्विक मुद्दा बनाये जाने का भी जन मानस के मन में जागती मानवीय भावनाओं और उनके प्रति संवेदनशीलता है और कितने एनजीओ इस दिशा में काम कर रहे हैं। हर बच्चे को स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा का अधिकार है और हर समाज का जीवन में बच्चों के लिए अवसरों का विस्तार करने का दायित्व भी है।  फिर भी दुनियां भर में लाखों बच्चों को किन्हीं कारणों से उचित अवसर नहीं मिल पाते हैं और वह बाल श्रम की जद में आते हैं।  पूरे विश्व में 160 मिलियन बच्चे बाल श्रम में लिप्त हैं।

 

          
                ये बचपन जो भूखा है और ये बचपन जिसकी भूख  किसी और को मिटानी चाहिए अपने नन्हें नन्हें हाथों से काम कर असहाय माता - पिता की  भूख मिटाने के लिए काम  कर रहे हैं और कहीं कहीं तो नाकारा बाप के अत्याचारों से तंग आकर उसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी मजदूरी करने लगते हैं और कहीं कहीं माँ बाप के द्वारा ही बेच दिए जाते हैं।
                मैं अपनी बहन के यहाँ गयी तो उसकी सास ने कहा - कोई लड़की काम करने के लिए आपके जानकारी में हो तो बताना . घर में रखना है कोई तकलीफ नहीं होगी , घर वालों को हर महीने पैसे भेजती रहूंगी . क्या कहती उनसे ? उनकी बहू और बेटियां बहुत नाजुक है कि  वह अपने बच्चों को तक नहीं संभाल  सकती हैं और घर के काम के लिए उन्हें कोई बच्ची चाहिए क्योंकि उसको डरा धमका कर काम करवाया जा सकता है और अगर बाहर की होगी तो उसके कहीं जाने का सवाल भी नहीं रहेगा, स्थानीय होगी तो राज घर जायेगी तो सीमित समय तक ही काम करेगी। 
 
 
                ये घरेलू  काम करने वालों का हाल है . होटलों , ठेकों , भट्ठों और भवन निर्माण में ऐसे बच्चे काम करे हुए देखे जा सकते हैं और उनके नन्हे हाथ कितनी तेजी से काम करते हैं ? यहाँ मुफ्त शिक्षा भी क्यों नहीं ले पा  रहे हैं ये बच्चे ? क्योंकि माँ बाप को दो पैसे कमा कर लाने वाले बच्चे चाहिए जिससे खर्च में हाथ बँटा सके। माँ बीमार हो तो बेटी काम करके आएगी। स्कूल जाने पर क्या मिलेगा? 
 

                  इनके लिए सरकारी नीतियाँ तो हैं लेकिन उन नीतियों को लागू करवाने के लिए जिम्मेदार लोग शोषण करने वालों से ही पैसे खाकर सब कुछ नजर अन्दाज करके कागजों में खाना पूरी करते रहते हैं।  घर में काम करने वाली कम उम्र लड़कियाँ अक्सर यौन शोषण का शिकार होती हैं और वे अपनी मजबूरी के कारण  कुछ कह नहीं पाती हैं।  घर की मालकिन भी पति के डर से अपना मुँह बंद रखती हैं। 
 
           होटलों में मुँह अँधेरे से उठ कर काम करते हुए बच्चे और आधी रात  तक होटल बंद होने तक काम करते रहते हैं और खाने को क्या मिलता है ? बचा हुए खाना या नाश्ता। वहीं से वह कभी कभी अपराधों में भी लिप्त हो जाते हैं। ढाबे और सड़क किनारे बने हुए चाय के होटल तो ऐसे बच्चों को ही रखते हैं ताकि उन्हें कम पैसों में अधिक काम करने वाले हाथ मिल सकें। जहाँ पर दौड़ दौड़ कर काम करने वाले नौनिहाल होंगे वहाँ पर अत्याचार का शिकार भी होंगे। 
 

             
आज के दिन इन बच्चों को कोई छुट्टी देने वाला भी नहीं होगा। वे बिचारे क्या जाने इस लोकतान्त्रिक देश में उनको पढ़ने लिखने और और बच्चों की तरह से खेलने का पूरा अधिकार ही नहीं है बल्कि सरकारी तौर पर उनके लिए मुफ़्त शिक्षा और खाने पीने की व्यवस्था भी है। हम इस दिन को मना कर और कुछ लिख कर अपने दिल में तसल्ली कर लेते हैं कि  हमारा फर्ज पूरा हो गया लेकिन हम भी उतने ही दोषी है क्योंकि कहीं भी काम करते हुए बच्चों से काम लेने वालों को समझाने का काम करने का प्रयास तो कर ही सकते हैं। ये भी निश्चित है की जिन्हें ये मुफ्त में काम करने वाले मिले हैं, वह हमें 'भाषण और कहीं जाकर दीजिये।' कह कर वहाँ से चले जाने के लिए मजबूर कर देंगे। 
 
         अभी पिछले दिनों ही एनसीआर के एक स्लॉटर हाउस में कितने नाबालिग बच्चे काम करते हुए पकड़े गए। फिर आगे क्या होगा? इसके बारे में कोई भी जानकारी नहीं है। लेकिन अगर उनको कार्यस्थल से बाहर लाया गया है तो जरूर उनको वहाँ से मुक्ति मिलेगी। लेकिन ऐसे बच्चों की पारिवारिक और सामाजिक परिस्थियों का भी अध्ययन होना चाहिए।  सरकार द्वारा गरीबी रेखा से नीचे पाए जाने वाले परिवारों को वो सुविधाएँ दिलवाने का प्रयास हो ताकि इन बच्चों के भविष्य के बारे में कुछ सार्थक सोचा जा सके।
 
        सरकारी प्रयास कभी तो अच्छे अफसर पाकर सफल हो जाते हैं और कभी वे भी बिक़े होते हैं,  लेकिन हम प्रयास तो कर ही सकते हैं, और हो भी रहे हैं।  कहीं कोई एक बच्चा भी माँ बाप को  समझाने से, मालिक को  समझाने से, उसके बचपन को बचाने   में सफल हो सके तो आज का दिन सार्थक समझेंगे 
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*सभी चित्र गूगल के साभार 
 
 

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