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बुधवार, 21 अप्रैल 2010

झंडा ऊँचा रहे हमारा!


    तिरंगा - एक तीन रंग के कपड़े के टुकड़ों से बना और उस पर एक चक्र.
                  राष्ट्रीय त्योहारों पर बड़ी शान से फहराया जाता है और राष्ट्रीय शोक पर झुकाया जाता है. 
--ये क्या मायने रखता है? 
--एक भारतीय के लिए, 
-- हमारे सैनिकों के लिए , 
ये हमारे दिल से पूछो - वह भी अगर हम सच्चे भारतीय हैं तो? 
              इस आलेख में कुछ चित्रों को मैंने लगाया है और ये चित्र मुझे मेरे कुछ प्रिय बच्चों ने भेजे इस शीर्षक के साथ:

Fwd: I wish this mail reaches right ppl .....!!

मैंने इसे अपने कुछ और परिचितों को फॉरवर्ड किया क्योंकि ये सवाल और अपमान एक कपड़े के टुकड़े का नहीं है बल्कि इस तिरंगे की शान के लिए बर्फ की चोटियों पर हाड़  कंपकंपा देने वाली सर्दी में हमारे सैनिक सीमा की निगहबानी कर रहे हैं. उनके लिए ये तिरंगा एक जज्बा है, आत्म सम्मान है और जान की कीमत से अधिक इसकी कीमत है. अपने घरों से , घरवालों से दूर महीनों अपनी देश की रखवाली के लिए तैनात रहते हैं . इन चित्रों को शायद वे देख भी नहीं पायें. 
            कहाँ गए वे लोग जिन्होंने इस तिरंगे के लिए -
           
          झंडा ऊँचा रहे हमारा
         विजयी विश्व तिरंगा प्यारा . 

 ये गान लिखा था, और स्कूल में इसी गान के साथ हम अपनी पढ़ाई शुरू करते थे. आज कुछ अलगाववादी इसको लेकर शर्मनाक व्यवहार करने में भी नहीं चूक  रहे हैं. इस  जमीं  पर  रहना  इसी के हवा और पानी से जीवन लेना फिर इसकी सरहद को घायल  करने की साजिश से बाज क्यों नहीं आते? क्या मिलता है इनको इस बेसबब काम करने से. अगर नहीं रास आता है तो मत रहो इस तिरंगे की छाँव में. 
अनुमान लगाइए कि ये  कहाँ का चित्र हो सकता है? 
पूरे भारत में एक ही जगह है, जहाँ देश में रहकर भी भारतीय न होने का दावा करते हैं.  झंडे का अपमान करते हैं. क्या कभी इन चित्रों को हमारी मीडिया ने दिखाया है?
अगर दिखाया भी हो तो आम आदमी इन तस्वीरों से रूबरू शायद ही हुआ हो. हम किस के धर्म की बात करें?  राष्ट्र धर्म की बात - ये उसके भी विरुद्ध है और उससे अधिक गुनाहगार है हमारा प्रशासन. इन दृश्यों को सिर्फ इस भीड़ ही ने नहीं देखा है बल्कि उसने भी देखा है जो इन तस्वीरों का गवाह है. ये प्रश्न कभी नहीं उठाया गया? सानिया ने निकाह किया तो सौ सवाल उठे--
-सानिया किस देश का प्रतिनिधित्व करेगी? 
-सानिया ने शोएब से निकाह करके अच्छा नहीं किया? 
-क्या भारत में युवकों की कमी आ गयी थी? 
                    मीडिया ने भी हर पल की खबर रखते हुए  पूरे पूरे दिन यही खबरें प्रसारित की. वो उनका धर्म है, किन्तु अगर देश जल रहा है, देश अपमानित हो रहा है, भारत माँ का आँचल जलाया जा रहा है तो उसको खबर नहीं लगी या फिर इस बेमतलब की खबर में मसाला नहीं है कि लोग उसकी ओर आकर्षित हों.  पत्रकारिता धर्म भूल गयी, अभिव्यक्ति के अधिकार कि बात भूल गयी. सच के  बेबाक प्रस्तुति की बात भूल गयी. कश्मीर में अमरनाथ तीर्थ यात्रियों के हाथ से छीन कर कश्मीर पुलिस तिरंगा जला देती है और कोई खबर नहीं होती है. कश्मीर के कुछ हिस्से में स्वतंत्रता दिवस १४ अगस्त को मनाया जाता है, यहां तक की सरकारी भवनों पर झंडा फहराया जाता है और १५ अगस्त को तिरंगा जलाया जाता है. फिर भी सब खामोश हैं. न मीडिया और न ही सरकार किसी को इसकी खबर नहीं होती है या फिर अपने अपने पद के छिनने के भय से चुप्पी साधे रहते हैं.
                        अगर सचिन तेंदुलकर  तिरंगा केक काट देते हैं तो विवाद उठ खड़ा होता है, मंदिरा बेदी तिरंगे के रंगों की साड़ी पहन लेती हैं तो विवाद होता है लेकिन तिरंगा आग के हवाले कर दिया जाता है तो मीडिया अनदेखी कर देती है कोई भी 'ब्रेकिंग न्यूज ' नहीं बनती है. 
                        इस तिरंगे के अपमान के लिए मैं तो देश के जिम्मेदार लोगों की निंदा करती हूँ. जो इस विषय को जान बूझ कर उजागर नहीं करते हैं. क़ानून के दायरे में लाना तो बहुत बड़ी बात है. इस स्वतन्त्र देश में तिरंगे को अपमानित करना एक अक्षम्य अपराध होना चाहिए. 
ये तस्वीरें इस बात की गवाह हैं कि पाकिस्तान की किसी भी हरकत को यहाँ पूरी तरह से समर्थन मिलता है और इस बात के लिए कश्मीर की सरकार भी दोषी है , जिसे इस तरह की घटनाओं के घटित होने पर कोई भी कार्यवाही न करने पर शर्म नहीं आती है. ये वो भारतीय हैं जो देश के नाम पर कलंक हैं.

3 टिप्‍पणियां:

  1. इस तरह की घटनाओं के घटित होने पर कोई भी कार्यवाही न करने पर शर्म नहीं आती है. ये वो भारतीय हैं जो देश के नाम पर कलंक हैं

    इससे बढ़कर कुछ नहीं हो सकता ..ज़मीर मर चुका है ..

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  2. मीडिया की भूमिका ही आज संदिग्ध हो गई है. महत्वहीन खबरों का कवरेज़ पूए=पूरे दिन होता है, जबकि राष्ट्रीय महत्व की इन खबरों का प्रसारण तक नहीं होता.

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  3. मीडिया को अपना स्वार्थ सिद्ध करना है...उन्हें सिर्फ चटपटी ख़बरों से ही मतलब है... ऐसे कार्यों की जितनी निंदा की जाए कम है...बहुत शर्मनाक है यह, सब

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