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बुधवार, 17 नवंबर 2010

बड़े घराने बनाम सरकार !

   जब रतन टाटा ने घूस माँगने के मामले का खुलासा किया तो सरकार के कान खड़े हो गए और तुरंत ही सरकार नतमस्तक हो गयी. उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने रतन टाटा के घाव पर मरहम लगाते हुए उन्हें इस क्षेत्र में आने के लिए निमंत्रण दे डाला. ये एक बड़े घराने का आरोप था और खुलासा करते ही रास्ता साफ हो गया. जब सरकार के मंत्रालय स्तर इतना भ्रष्ट  है जहाँ करोड़ों की सौदा होती है और सतर्कता विभाग कभी कदार  अपनी तत्परता और निष्पक्षता के लिए कुछ एक अधिकारियों पर हाथ डाल कर वाह वही लूट लेती है और  ये बड़े करार होते हैं उन तक पहुँचने की हिम्मत उनमें नहीं है.

                        अब आम आदमी के बात करें तो वह तो इसके बिना कुछ करवा ही नहीं पाता है. समर्थ और सक्षम के लिए तो फिर भी ये बातें कोई मायने नहीं रखती हैं. हम बात करते हैं कोषागार की - जहाँ से अवकाश प्राप्त अपनी पेंशन पाते हैं. वहाँ चलें और देखें कि वे वृद्ध जो स्वयं चलने में असमर्थ है फिर भी घंटों लाइन में खड़े हैं, जिसको चक्कर आ गया तो वही बैठ गया. पेंशन लेने के बाद वहीं रखी एक भगवान की तस्वीर के आगे कुछ चढ़ावा चढ़ाना होता है. यहाँ कोई नहीं ले रहा और कोई नहीं दे रहा. श्रद्धा जाग्रत करवाकर कुछ चढ़वाया जा रहा है. शाम को वह चढ़ावा सबकी जेबों में चला जाता है.
                  
   'जीवित प्रमाण पत्र' हर वर्ष पेंशनर को जमा करना होता है. अगर उसको पेंशन लेनी है तो जमा करना  ही पड़ेगा. इस प्रक्रिया में अगर आपको निर्बाध पेंशन चाहिए है तो उस फार्म के साथ हर महीने के १०० रुपये के हिसाब से एक साल तक का चार्ज देना होगा तभी ये कार्य संभव है और यहाँ लाखों की संख्या में पेंशनर होते हैं. हो गयी न करोड़ों की कमाई. यहाँ कोई रिश्ता या परिचय काम नहीं आता है भले ही आप उसी कोषागार से अवकाशप्राप्त कर्मी क्यों न हों? अब नियम है तो है. ये पेंशनर जो अपने पैरों पर चल नहीं पाते , कुछ को तो दिखाई भी कम पड़ता है , कुछ मोहल्ले वालों के हाथ पैर जोड़ कर साथ लेकर आते हैं. वे कहाँ गुहार लगायें? किससे करें अपनी फरियाद और करने से भी क्या मिलेगा? उनकी पेंशन लटका दी जाएगी. वे कांपते हाथों से ये रकम देने के लिए मजबूर होते हैं लेकिन लेने वालों के हाथ नहीं कांपते है. ऐसा इस लिए भी होता है कि अब अधिकांश पेंशनर की पेंशन बैंक में जाने लगी है तो कोषागार वालों को तो साल में एक बार ही मौका मिलता है. धर्म की कमाई है. जो मांग रहे हैं वे अपनी मेहनत की कमाई मांग रहे हैं और जो देने वाले हैं उनकी तो मुफ्त की कमाई है इसलिए उनको देना होता है. चलिए आगे और विभागों में सेंध लगायेंगे .
*सभी चित्र गूगल के साभार *

14 टिप्‍पणियां:

  1. भ्रष्टाचार का नया तरीका ....
    कम से कम वृद्धों के हालात पर तो रहम करना चाहिए ...
    दुखद !

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  2. भ्रष्टाचार हर स्तर पर है चाहे वो टाटा से माँगा गया घूस हो या जीवित प्रमाण पत्र बनाने के लिए कोषागार का बाबु . यहाँ तक की भर्ष्टाचार निरोधक समितियों के सदस्य भी इसमें लिप्त पाए जाते है . विचारणीय पोस्ट

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  3. जीवित प्रमाण पत्र और मृत्यु परमान पत्र दोनों को हासिल करने के लिए भी घूस देनी पड़ती है ...सार्थक लेखन ..

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  4. बहुत ही दुखद और चिंताजनक स्थिति है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    विचार-श्री गुरुवे नमः

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  5. bhrst aachran kisi par daya dhrshti nahi rakhta chahye amir ho ya gareeb.... fark yeh hai ki ek gareeb ko koi chara nahi.. na jaane kya kya nahi karna padta usko ek chhote se kaam ke liye..
    ..sach mein aise dhrsya dekh-sunkar kar manav kee samvedanheenta kee parakashta ka pata chalta hai..
    ..saarthak aalekh ke liye aabhar

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  6. माना कि भ्रष्‍टाचार सर्वव्‍यापी है लेकिन इस मामले में कुछ भ्रम की स्थिति लग रही है। हो सकता है कहीं किसी प्रकरण विशेष में कुछ ऐसा हुआ हो जिससे आपको ऐसा लगा, लेकिन मेरे संपर्क में जितने भी पेंशनर्स हैं उनसे ऐसी किसी स्थिति की जानकारी नहीं मिली। हॉं यह अवश्‍य है कि बिना भेंट पूजा के पेंशन प्रारंभ होना दूभर हो गया है।
    मेरा तो मत है कि विदाई पर उत्‍सवीय आयोजन से अधिक आवश्‍यक है कि सेवानिवृत्‍त होने वाले को पेंशन संबंधी कार्रवाई पूर्ण कर ग्रेच्‍युटि आदि भुगतान के चैक सौंप देना।

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  7. jo baat rag rag me sama gayee hai, uske liye ab kya chintan karna.....aise nahi ham bhrastachar desho ki suchi me awwal hote ja rahe hain..:D

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  8. जीवित होने का प्रमाण पत्र इस लिए आवश्यक क्योंकि सरकार का मानना है की इतनी मंहगाई और भ्रष्टचार के युग में कोई जीवित रह सकता है क्या ?.........

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  9. बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है! हार्दिक शुभकामनाएं!
    लघुकथा – शांति का दूत

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  10. तिलकराज जी,

    ऐसा होता है और हम लोग अपनी सासु माँ के मामले में भुक्तभोगी है. ये उत्तर प्रदेश राज्य कर्मियों के लिए हाल का बयान कर रही हूँ. केंद्र कर्मियों के ईए अवश्य ही कुछ और हालत हैं. इसमें मिथ्या कुछ भी नहीं है. वो बिस्तर पर हैं और उनको ले जाना कितना मुश्किल होता है की हम तो दो साल में एक बार किसी तरह से ले जा पाते हैं. पेंशन नहीं मिलती तो न सही. एक साथ जब मिलती है तो चेक का १० प्रतिशत चढ़ौती देना होता है तब मिलता है. हम तो शायद लेने भी न जाएँ लेकिन वह अपनी पेंशन के प्रति इतनी सजग हैं कि हमारा जीना मुहाल कर देंगी.

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  11. इस के खिलाफ आवाज़ उठानी ही होगी. यह अन्याय कब तक चल सकता है.

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  12. पैसे वाले और गरीब .... अलग अलग मापदंड होते हैं समाज में ... ये तो सरकार है इसका क्या कहना ....

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  13. नवम्बर माह में जब भी बैंक जाना होता है बुजुर्गो की हालत देखकर मन दुखी होजाता है |
    जिसमे कुछ तो काफी समर्द्ध होते है किन्तु कुछ लोग जिनका जीवन सिर्फ पेंशन से ही चलता है उन्हें देखकर उनपर बहुत दया आती है |
    कुछ बैंक कर्मी उनकी भरपूर सहायता करते है |

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  14. शर्मनाक नियम ! एक आवश्यक विषय पर लिखने के लिए आभार !
    हार्दिक शुभकामनायें

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ये मेरा सरोकार है, इस समाज , देश और विश्व के साथ . जो मन में होता है आपसे उजागर कर देते हैं. आपकी राय , आलोचना और समालोचना मेरा मार्गदर्शन और त्रुटियों को सुधारने का सबसे बड़ा रास्ताहै.