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रविवार, 6 फ़रवरी 2011

मूलाधिकारों को चुनौती !

                                  
              

                           हमारे संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की गयी है. उसके अंतर्गत भारत में रहने वाला हर व्यक्ति अपनी आस्था  के अनुरुप पूजा अर्चना करने के लिए स्वतन्त्र है. अब हमारे तथाकथित जाना प्रतिनिधि संविधान में निहित नागरिकों के मूलाधिकारों को चुनौती देने की ठान बैठे हैं. उदारहण के लिए उ. प्र. सरकार की मर्जी से यहाँ राम का नाम लिया जाएगा अन्यथा नहीं लिया जायेगा.
         आज के अमर उजाला --

                              जेलों में राम कथा प्रवचन पर शासन ने लगाई रोक !
"अब प्रदेश की जेलों में बंद कैदी राम कथा अथवा प्रवचन नहीं सुन सकेंगे. प्रदेश जेल मैनुअल को दरकिनार करते हुए अघोषित रूप से जेल में राम कथा पर रोक लगा दी गयी है. 
                  इसके चलते आगरा में एक दिन प्रवचन हुआ और फिर अगले दिन रोक ली गयी. हालाँकि सेन्ट्रल और जिला जेल के अधिअकरी इस मामले में टिप्पणी करने से बच रहे हैं . उनका कहना है की जेल में अन्य प्रवचन हो साकता है पर राम कथा प्रवचन की इजाजत नहीं दी जाएगी. समझा जाता है की आला अधिकारी के फरमान का डर उन्हें सता रहा है. आगरा के आर के शर्मा बीते १२ दिसंबर को अपने दोनों बेटों से जेल में राम कथा करा रहे थे. कथा सात दिन तक चलने वाली थी लेकिन प्रदेश के एक जेल अधिकारी का फरमान आया की राम कथा नहीं होनी चाहिए. बहनजी नाराज हो जायेंगी. चुनाव आने वाला है. आला अधिकारी का फरमान सुनकर जेल अधिकारियों ने राम कथा बंद करा दी. इसके बाद वाराणसी, आजमगढ़, इलाहबाद समेट पूर्वांचल के जेल अधिकारियों को इसी अधिकारी का फ़ोन आया की बौद्ध परिचर्चा जेल अधिकारी करा सकते हैं. "


                      आज तक ऐसा किसी भी सरकार में ऐसा नहीं हुआ कि जिस मत का  वहाँ का जनप्रतिनिधि अनुयायी हो उसी धर्म के प्रवचन के लिए अनुमति दी जाय. ये तो सीधा सीधा अधिकारों का हनन है. वह भी किसके अधिकारों का उस जन समूह के जिसने तुम्हें जन प्रतिनिधि बना कर वहाँ तक पहुँचाया है. सत्ता के मद ने अगर इंसान को अंधा बना दिया है तो चिंता न करें ये राम कथा वाले ही तुमको जमीन के रास्ता भी दिखा सकते हैं. अब तो ये डर भी लगने लगा है कि कल को ऐसे ही प्रतिनिधि अगर केंद्र में काबिज हो जाए तो भारत का नाम भी बदल कर किसी महापुरुष के नाम पर न रख दिया जायगा . जैसे कि उ. प्र. में विश्वविद्यालय, मेडिकल कॉलेज और जिलों के साथ खिलवाड़ किया गया  है. इस बात को सोचे बगैर के एक बार नाम बदलने के बाद कितना पैसा खर्च होता है? दूसरे को स्थापित करने में और कितना धन बर्बाद होता है . पुराने के नाम को ख़त्म करने में. ऐसे जन प्रतिनिधियों को जिनके अन्दर न बुद्धि और न ही विवेक हो सिर्फ छल-छद्म के बल पर अपने को सुपर पावर समझे हुए हैं. बहुत जल्दी ही इसका परिणाम सामने आएगा. लेकिन कैसे सत्ता में काबिज लोग कुछ भी कर सकते हैं. 
                             

8 टिप्‍पणियां:

  1. दार्मिक स्वतन्त्रता सबके लिये हो।

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  2. चलिये सब को नमाज अदा करनी चाहिये इस भेण जी को वोट तो वेसे भी नही कोई देगा, जो देगा वो कोई पागल ही होगा,आज की जनता सयानी हो गई हे

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  3. सही कहा सत्ता पर काबिज लोग कुछ भी कर सकते हैं।

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  4. अजी जनता इन्हे जुते मार मार कर कुर्सी से नीचे भी उतार सकती हे, यह कल तक तो हमारे ही तलवे चाटते थे एक एक वोट के लिये...

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